Bharang

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Location of Villages around Churu

Bharang or Bhadang (भाड़ंग) is an ancient village in Taranagar tahsil in Churu district in Rajasthan. [1]

Location

It is in Raiyatunda Panchayat in east of it. The ancient town was slightly away from the present town some where in between Bhurawas and Sahawa. We find traces of the ancient town in form of ruins of buildings, sculptures and coins etc.

The Founders

Saran Jats

Jat Gotras

The Jat gotras with number of families in the village are;

Population

According to Census-2011 information:

With total 400 families residing, Bharang village has the population of 2130 (of which 1104 are males while 1026 are females).[2]

History

The north-eastern and north-western Rajasthan, known by the name Jangladesh in ancient times, was inhabited by Jat clans ruled by their own chiefs and largely governed by their own customary law. [3]

Prior to the rule of Rathores, it was capital of Saran Jats. Khejra, Phog, Buchawas, Suin, Badnu and Sirsala were its districts. Their king's name was Pula Saran and he had 360 villages under him.

As for the Jats prior to coming of Rathors in Rajasthan Nainsi refers to Jat settlements at Bhadang which is identified as the Saran Jatan Ra Des or des belonging to the Saran sept of Jats. [4]

There are evidences of town being in existence in 725 AD. There is temple of Pula Saran. Pandiyas were the priests of Sarans of this area.

Pulasar (पूलासर) is a village in Sardarshahar tahsil in Churu district in Rajasthan. It is situated in southeast direction of Sardarshahar at a distance of few kms. It was founded by its ruler Pula Saran.

The ancient Jain Temple of Taranagar has got two sculptures which are said of 11-12th century and brought from Bharang. [5]

The ancient Bharang town has been identified with the present field of Late Thakur Madho Singh Kandlot. It has got evidences of ancient pottery and coins discovered from this place. [6]

Jat Monuments

सारणौटी

चूरू जनपद के जाट इतिहास पर दौलतराम सारण डालमाण[7] ने अनुसन्धान किया है और लिखा है कि पाउलेट तथा अन्य लेखकों ने इस हाकडा नदी के बेल्ट में निम्नानुसार जाटों के जनपदीय शासन का उल्लेख किया है जो बीकानेर रियासत की स्थापना के समय था।

क्र.सं. जनपद क्षेत्रफल राजधानी मुखिया प्रमुख ठिकाने
2. सारण (सारणौटी) 360 गाँव भाडंग पूलाजी सारण खेजड़ा , फोगां , धीरवास , भाडंग , सिरसला , बुच्चावास , सवाई, पूलासर, हरदेसर, कालूसर, बन्धनाऊ , गाजूसर, सारायण, उदासर

भाड़ंग का इतिहास

भाड़ंग (Bharang) राजस्थान में चुरू जिले की तारानगर तहसील में चुरू से लगभग 40 मील उत्तर में बसा एक गाँव है. यह राठोड़ों के आगमन से पहले सारण जाटों की राजधानी थी. खेजड़ा, फोग , बुचावास , सूई , बदनु , सिरसलाआदि इस राज्य में जिलों के नाम थे. इसका पिन कोड 331302 है.

संवत 1320 (1263 ई.) में सारण राजा के वंशजों द्वारा भाड़ंग को राजधानी बनाया गया था।[8]

इतिहास

पृथ्वीराज चौहान के बाद अर्थार्त चौहान शक्ति के पतन के बाद भाड़ंग पर किसी समय जाटों का आधिपत्य स्थापित हो गया था. जो 16 वीं शताब्दी में राठोडों के इस भू-भाग में आने तक बना रहा. पहले यहाँ सोहुआ जाटों का अधिकार था और बाद में सारण जाटों ने छीन लिया. जब 16 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में राठोड़ इस एरिया में आए, उस समय पूला सारण यहाँ का शासक था और उसके अधीन 360 गाँव थे. इसी ने अपने नाम पर पूलासर (तहसील सरदारशहर) बसाया था जिसे बाद में सारण जाटों के पुरोहित पारीक ब्राह्मणों को दे दिया गया. पूला की पत्नी का नाम मलकी था, जिसको लेकर बाद में गोदारा व सारणों के बीच युद्ध हुआ. [9] मलकी के नाम पर ही बीकानेर जिले की लूणकरणसर तहसील में मलकीसर गाँव बसाया गया था.[10] सारणों में जबरा और जोखा बड़े बहादुर थे. उनकी कई सौ घोड़ों पर जीन पड़ती थी. उन्हीं के नाम पर जबरासर और जोखासर गाँव अब भी आबाद हैं, मन्धरापुरा में मित्रता के बहाने राठोडों द्वारा उन्हें बुलाकर भोज दिया गया और उस स्थान पर बैठाने गए जहाँ पर जमीन में पहले से बारूद दबा रखी थी. उनके बैठ जाने पर बारूद आग लगवा कर उन्हें उड़ा दिया गया.[11][12]

कहा जाता है की पहले भाड़ंग पर सोहुआ जाटों का अधिकार था. किंवदन्ती है कि सोहुआ जाटों की एक लड़की सारणों को ब्याही थी. उसके पति के मरने के बाद वह अपने एकमात्र पुत्र को लेकर अपने पीहर भाडंग आ गयी और वहीं रहने लगी. भाड़ंग के सोहुआ जाट उस समय गढ़ चिनवा रहे थे लेकिन वह गढ़ चिनने में नहीं आ रहा था. तब किसी ने कहा कि नरबली दिए बिना गढ़ नहीं चिना जा सकता. [13] कोई तैयार नहीं होने पर विधवा लड़की के बेटे को गढ़ की नींव में चुन दिया. वह बेचारी रो पीटकर रह गयी. गढ़ तैयार हो गया, लेकिन माँ के मन में बेटे का दुःख बराबर बना रहा. एक दिन वह ढाब पर पानी भरने गयी तो वहां एक आदमी पानी पीने आया. लड़की के पूछने पर जब आगंतुक ने अपना परिचय एक सारण जाट के रूप में दिया तो उसका दुःख उबल पड़ा. उसने आगंतुक को धिक्कारते हुए कहा कि क्या सारण अभी जिंदा ही फिरते हैं ? आगंतुक के पूछने पर लड़की ने सारी घटना कह सुनाई. इस पर वह बिना पानी पिए ही वहां से चला गया. उसने जाकर तमाम सारणों को इकठ्ठा कर उक्त घटना सुनाई. तब सारणों ने इकठ्ठा होकर भाडंग पर चढाई की. बड़ी लड़ाई हुई और अंततः भाड़ंग पर सारणों का अधिकार हो गया. [14] इसके बाद सोहुआ जाट धाणसिया की तरफ़ चले गए और वहां अपना अलग राज्य स्थापित किया. उनके अधीन 84 गाँव थे. [15][16]

सारणों की राजधानी भाड़ंगाबाद

चूरू जनपद की तारानगर तहसील के उत्तर में साहाबा कस्बे से 9 किलोमीटर दक्षिण में वर्तमान में आबाद भाड़ंग गांव कभी पूला सारण की राजधानी भाड़ंगाबाद के नाम से आबाद थी। मौजूदा भाड़ंग गांव के उत्तरी-पूर्वी कोने में 2-3 किलोमीटर दूर यह पुराना भाड़ंगाबाद पूला सारण की राजधानी आज खंडहर के रूप में अवस्थित अपनी करुण कथा सुना रही है। यहां पूरी तरह से खंडहर हो चुके गढ़ के अवशेष तथा आबादी बसी हुई होने के अवशेष के साथ साथ पीने के पानी के लिए बनाए गए पुराने कुए, कुंड तथा तालाब के चिन्ह भी अपनी उपस्थिति बताते हुए दूर-दूर तक मलबे के ढेर बिखरे पड़े हैं जो कभी विशाल आबादी होने का एहसास दिला रहे हैं। भाड़ंगाबाद का यह गढ़ बहुत बड़ी लंबाई-चौड़ाई में बनाया हुआ था जिसमें 12 गांव आबाद थे। इसके साक्ष्य दूर-दूर खेतों में बिखरे पड़े पुराने मकानों के मलबे के ढेर के ढेर दिखाई देते हैं। यह भी साक्ष्य दिखाई देते हैं कि यहां कभी बहुत बड़ी आबादी गढ़ के परकोटे में दुश्मनों के हमलों से बचाव के साथ आबाद थी। इसी गढ़ के पुराने मलबे के ढेर पर विस्थापित भोमिया जी का छोटा सा मंदिर (थान) बना हुआ है। यह है भोमिया जी वही सारण था जो सहूओं का भांजा था, जिसे सहूओं ने गढ़ की नींव में जीते जी दे दिया था। जिसका नाम पीथा सारण बताया जाता है। यह भूमि अब श्री मालसिंह सुपुत्र विशाल सिंह राजवी (राजपूत) के कब्जे में है।

पीथा सारण: अमर शहीद पीथा की करुण गाथा इस प्रकार किंवदंती के रूप में बताई जाती है। कहते हैं कि सहूओं की एक लड़की सारणों के ब्याही थी जिसका पीहर भाड़ंगाबाद तथा ससुराल सहारनपुर था। वह विधवा हो गई तथा उसके एक लड़का था जो दिव्यांग था। विधवा अवस्था में वह पीहर भाड़ंगाबाद में ही अपने परिवारजनों के साथ रहकर अपना समय व्यतीत करती थी। इधर सहू लोगों ने गढ़ बनाना शुरू किया तो जितना गढ़ वे दिन में चिनते उतना ही वापस ढह जाता। सहू बड़े चिंतित हुए। उन्होंने उस समय के तथाकथित जानकार साधु महात्मा आदि से पूछा कि क्या उपाय किया जाए जिससे यह गढ़ पूर्ण हो सके। किसी ने जानकारी दी कि यह गढ़ एक व्यक्ति का बलिदान मांगता है। एक व्यक्ति को जीते जी इसके नींव में चुना जावे तो यह गढ़ निर्विघ्न पूर्ण हो जाएगा। सब लोगों से पूछा गया, कोई भी व्यक्ति तैयार नहीं हुआ। तब यह तय हुआ कि अपना भांजा पीथाराम दिव्यांग व्यक्ति है उसको ही क्यों न नींव में दे दिया जावे। मां के लिए बेटा बहुत ही प्यारा होता है। पीथा राम की मां अबला थी, उसका कोई जोर नहीं चला। उसके कलेजे के कोर, अपने रहे सहे जीवन के सहारे को अपने आंखों के सामने जीते जी गढ़ की नींव में चिन दिया गया। पीथाराम की मां मजबूरी में अपने दिन काटती रही।

एक दिन पीथाजी की मां जोहड़ पर पानी लाने गई। वहां पर एक प्यासा सारण जाट पानी पीने के लिए आ गया। उसने पिथा की माता से पानी मांगा। तब पिथा की मां ने राहगीर का परिचय पूछा तो उसने बताया कि मैं सारण गोत्र का जाट हूँ। पीथा की मां ने कहा कि अभी सारण धरती पर जिंदा भी हैं? सारण ने पूछा ऐसी क्या बात हो गई। तब पिथा की मां ने सारी कहानी बताई। सारण वहां से बिना पानी पिए सीधा सहारनपुर पिथा के परिवार वालों को यह खबर देने चला गया। इधर सहू जाटों ने गढ़ की चिणाई कर निर्माण कार्य पूर्ण कर लिया।

सारणों और सहू जाटों का युद्ध: सारणों का निकास सहारनपुर से होना बताया जाता है। मंगलाखेजड़ा दो भाई थे। जो पिथाराम की मां के देवर के लड़के थे। अतः पिथा की मां उनकी काकी (चाची) लगती थी। वे कोलायत स्नान का बहाना बनाकर लंबी-चौड़ी फौज लेकर आए और भाड़ंगाबाद में ठहर गए। मंगला-खेजड़ा ने अपनी चाची से सलाह-मशविरा करके सहू जाटों को निमंत्रण दिया कि आपने नया गढ़ बनाया है तो इस खुशी में हम आपको भेज देंगे। भोज की तैयारी के समय नगाड़ा बजेगा तब गढ़ का गेट बंद हो जाएगा। बाहर वाले बाहर वह अंदर वालों को भोजन कराने के बाद बाहर वालों का नंबर आएगा। नगाड़े इस खुशी में जोर जोर से बजते रहेंगे। इधर मंगला-खेजड़ के साथियों ने हथियारों से लैस हो गढ़ में भोजन कराने वाले व्यक्तियों के रूप में घुसेड़ दिया। जब सारे सहू अंदर आ गए तो गढ़ का गेट बंद कर नगाड़े बजाने शुरू कर दिए। अंदर मारकाट शुरु हो गई। रोने-चीखने-चिल्लाने की आवाजें नगाड़ों के स्वर में सुनाई नहीं दी। बचे हुए सहू गढ़ छोड़कर धानसिया गांव में भाग गए जो अब नोहर-सरदारशहर सीमा पर स्थित है। वहां अपनी राजधानी बनाई। इस प्रकार भाड़ंगाबाद के इस सहूओं के गढ़ पर कब्जा कर अमर शहीद पिथा के बलिदान का बदला सारणों ने ले लिया। आगे चलकर यह भाड़ंगाबाद पूला सारण की राजधानी बनी जिसमें 360 गांव आबाद थे।

सारण लोग गढ़ पर कब्जा होने के पश्चात भाड़ंगाबाद में नहीं बसे। नोहर तहसील के जोजासर गांव के पास बैर नाम की गैर आबाद रेख है, उस में बसे थे जो बाद में गैर आबाद हो गई। खेजड़ ने सहूओं को शरण दी थी तब उसे श्राप मिला था कि तेरे नाम से कोई खेड़ा नहीं बसेगा। खेजड़ ने खेजड़ा गांव तहसील सरदारशहर में एक ही बसाया था।

पूला सारण: पूला सारण के बारे में बताते हैं कि यह दो ऐल के थे। पहला पूला सारण ने पूलासर गांव बसाया था, जो बाद में पारीक (पांडिया) ब्राह्मणों को दान में दे दिया था। किंवदंती है कि पूला बड़े लुटेरों के गिरोह में शामिल हो गया था। बादशाह को टैक्स आदि नहीं देता था। बादशाह की बेगम को लूट लिया था। बादशाह ने पकड़ने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी। उधर पूला ने गिरफ्तारी से बचने के लिए अपना डेरा दिल्ली में डाल लिया। तीन व्यक्ति उसके साथ ही थे। वह भी साथ ही रहते थे। चमड़े की मसक (भकाल)से यमुना नदी से पानी भरकर लोगों के घरों में डालते थे और अपना पेट पालते थे।

एक दिन घटना ऐसी घटी की पूला के दिनमान ही बदल गए। बादशाह की वही बेगम, जिसे पूला ने लूटा था, वह यमुना में स्नान करने आई थी। वहां उसका पैर फिसल गया और वह पानी में डूब गई। वहां पूला अपने साथियों के साथ पानी भरने आए हुए थे। पूला ने तत्काल नदी में छलांग लगाई और बेगम को नदी से बाहर निकाल लाया। बेगम ने बादशाह को कहा मुझे बचाने वाले को मुंह मांगा इनाम दिया जाए। पूला ने कहा इस बेगम को लूटने वाला भी मैं था और बचाने वाला भी मैं ही हूँ। तब बेगम ने कहा लूटने वाला कसूर माफ कर दिया जाए और मेरी जान बचाने वाले को इनाम दिया जाए। बादशाह ने लूटने का कसूर माफ कर दिया तथा बचाने के लिए मुंह मांगा इनाम देने के लिए कहा। इस पर पूला ने 7 दिन का दिल्ली का राज मांग लिया। बादशाह ने 7 दिन के लिए पूला को दिल्ली का बादशाह बना दिया। पूला ने सात दिन के राज में चमड़े के सिक्के चलाये जिसके बीच में सोने की एक मेख लगाई। चमड़े के सिक्के इसलिए चलाए क्योंकि चांदी व अन्य धातु के सिक्के ढालने में बहुत समय लगता। पूला के पास केवल 7 दिन ही थे।

पूलासर: इधर पूलासर के पारीकों को पता चला तो वे दिल्ली पहुंच गए तथा पूलासर गांव दान में मांग लिया। पूला ने गांव पारीक ब्राह्मणों को दान में दे दिया। 'पूला दादा' के नाम से पूलासर में पूला का मंदिर बना हुआ है। पूला भाड़ंग नहीं आया था।

दूसरा पूला जिसने भाड़ंगाबाद राजधानी बनाई वह कई पीढ़ी बीत जाने पर राजा बना था। पहले पूला ने अपना गाँव दान में देकर अपना नाम अमर कर दिया।

मौजूदा भाड़ंग गांव सुरजाराम जोशी एवं गुणपाल चमार ने बसाया था। सुरजा राम जोशी ने एक जोड़ी खुदवाई जो आज भी सुरजानी जोड़ी कहलाती है।

राव बीका कांधल के राज्य में कांधल राजपूतों ने राज किया। यह पूला सारण राज्य पतन के बाद फिर यह राजवियों के हिस्से में आ गया। 288 बीघा भूमि दे दी गई। 2 बीघा भूमि पर घर बसाने के लिए व एक कुई एवं खेत जाने का रास्ता बीकानेर शासक ने पट्टे पर दे दिया। 1260 बीघा 6000 बीघा भूमि मंडेरणा घोटडा में दी जो भादरा तहसील में पड़ती है। यह गैर आबाद है जो घोटड़ा पट्टा- धीरवास के बीच में पड़ता है।

नोट:- यह संकलन दिनांक 19 दिसंबर 2014 को श्री गणेशराम सारण से भाड़ंग में उनके निवास स्थान पर जाकर किया। श्री गणेश राम ने यह जानकारी अपने भाट एवं पुराने बुजुर्गों से सुनी हुई बताई। गोविंद अग्रवाल द्वारा चूरू का शोधपूर्ण इतिहास में अलग ही विवरण है। चूरू का शोधपूर्ण इतिहास में जाटों के पतन के कारण में मलकी को पूला सारण की पत्नी बताया जाकर उस के अपहरण की कहानी सत्य नहीं है। मलकी पूला सारण की पत्नी न होकर चोखा साहू की पत्नी थी जिसका अपहरण धानसिया गांव में गणगौर के दिन गणगौर के मेले में हुआ था। अतः इस विषय पर सत्य खोज व शोध की आवश्यकता है। भादरा सारणों के बही भाट श्री जसवंत सिंह राव गांव मंडोवरी पोस्ट बड़सिया तहसील परबतसर (नागौर) मोब 9660216254 से जानकारी ली जा सकती है।

संकलनकर्ता - लक्ष्मण राम महला, जाट कीर्ति संस्थान चुरू

Bharang history in Rajasthani

Ref - Blog of Dula Ram Saran

दि. 29.06.1967 नैं भाड़ंग कै थेड़ पर म्हारै सागै जाण हाळा राजवी जी कै मिनखां सोहुवां सैं भाड़ंग सारणां कै हाथ आणै की एक दंत कथा सुणाई-

भाड़ंग पर पहली सोहुवै जाटां को कब्जो हो। सोहुवां की एक डीकरी सारण जाटां कै ब्यायोड़ी थी, जकी धणी कै मर्यां पछै आप कै टाबर नैं लेकर पी'र में भाड़ंग आग्यी'र अठै ही रेवण लागी। सोहुवा जाट बा दिनां भाड़ंग में गढ़ घलावै हा पण गढ़ चिणनी में को आवै थो नीं। कह'कै दिन में जितो गढ़ चिणता हा बो रात नैं पाछो ढह ज्यांतो। जणा कोई बोल्यो'क नींव में नर बलि दिये बिना गढ़ कोनी चिण्यो जा सकै, पण कोई माणस आपकी बलि देवण नैं त्यार को थो नीं। तो सोहुवां के करी'क आप हाळी विधवा बेटी कै नानियैं नै गढ़ की नींव में चिण दियो। बा बिच्यारी रो-पीट कर रहगी। गढ़ त्यार होग्यो पण मां कै मन में बो दु:ख बरोबर सालतो रैयो।

संजोग की बात। एक दिन बा डीकरी ढाब पर पाणी भरै थी जद एक जणो बठै पाणी पीण नैं आयो तो पूछणै पर आप की ओळखाण सारण जाट की कराई तो सारण नांव सुणतां ही डीकरी को दुखड़ो उबळ पड़्यो'र बा धिक्कारती बोली'क के सारण ईं धरती पर हाल ही जीवंता ही फिरै है के ? पाणी पीण नैं ढुकण हाळै कै पूछणै पर बा डीकरी सगळी बात खोल'र कही। जिकी सुण'र बो बिना पाणी पिये ही चल्यो गयो'र जा कर सगळै सारणां नैं आ कथा सुणाई। ईं बात पर सारणा भाड़ंग पर चढ़ाई करी। जबरी राड़ होई'र आखर में भाड़ंग पर सारणा को कब्जो होग्यो।


चूरू मण्डल कै इतिहास में गोविन्द अग्रवाळ लिखै'क सम्भव है; भटनेर'र भटिंडा की ज्यूं भाड़ंग भी कदे सिमरिद्ध नगर रयो होवै। चुहाणा कै राज की टेम भाड़ंग स्यात जैन धरम को कोई एक आच्छो थळ थो। आ बात तारानगर कै जैन मंदिर में पड़ी मूर्त्यां सैं भी कह सकै है। जैन ग्रंथां का बिदवान बीकानेर का अगरचन्द नाहटा 'लछागर रास' नैं 15वीं सदी में रचणो मानैं हैं जैं में भाड़ंग बेई लिखेड़ो है-

जंबू दीविहि भरह खेति, भाडंगु भणी जई,
बागड़ दसि सिंगार हारू, कवि जणिहिं थुणी जइ।
तासु सीम सावय समूहि, दस दिसिहिं विदितउ,
गामु गडावउ सिरि निवासु सुरपुरू जिणी जीतउ।

मतलब - जम्बू द्वीप-भारत क्षेत्र में प्रसिद्ध बागड़ देस है; जीं कै सिणगार हार कै रूप में भाडंगु (भाड़ंग) बसै है, जैं की सींव ऊपर गडाणउ (गडाणा) नांव को सोवणो गांव है। जठै लिछमी को वास है।

'लछागर रास' को कवि बागड़ देस में भाड़ंग'र गडाणो नेड़ै-नेड़ै बता कर दोनुवां कै बारै में स्थिति एक दम साफ करी है। गडाणै पर चाहिल चुहाणा को राज हो। मतलब'क भाड़ंग 15वीं सदी में एक आच्छ्यो सिमरिद्ध नगर हो। चूरू मण्डळ में जाटां को महताऊ इतिहास रैयो है। पण ख्यात कै नतै कोई पुख्ता बात सिवाय भाटां की पट मेळी कै को मिल्यो नीं। घणखरी गपोड़ां चढ़ी दंत कथावां ही चाली आवै है। ले देकर ठाकुर देशराज को एक इतिहास है, पण बै भी घणी बेगार करकै क्यूं सही तो क्यूं अप्रमाणित-प्रमाणित रो मेळो कर्यो है।

बीकानेर राज्य की ख्यातां'र इतिहास मुजब बीकानेर थरपणा सैं पहली ईं जगां में जाटां का 7 जनपद सिरै था। कहावत है सात पट्टी'र सित्यावन मांझरा ,मतलब अठै जाटां का 7 बडा'र 57 छोटा ठिकाणा हा। ईं सातूं बडै जाट राज्यां की ये 7 राजधानियां-

1. सेखसर, 2. सूंईं, 3. धाणसियो, 4. भाड़ंग, 5. रसलाणा, 6. सिधमुख, 7. लुदी बड़ी थी।

आं में सेखसर चूरू सैं आथण-उतरादो 58 मील'र लुदी बडी उतरादी-उगण 38 मील है। यूं चूरू नैं नामी मानणै सैं सेखसर सैं लुदी बडी ताणी 120 डिग्री रो कूणियो बणै है'र ऊपर मंडी सै राजधानियां इण ही घेरै में आज्या है। अ राजधानिया मांय सैं कोई भी राजधानी चूरू सैं 60 मील सैं ज्यादा दूर कोनी। आपस में एक-दूसरी सैं आं को पछेतो 25 मील सैं बत्ती कोनी। आं में सैं भाड़ंग, सिधमुख'र लुदी बडी तो चूरू जिलै की तारानगर अर राजगढ़ तसील में है। सेखसर'र सूईं बीकानेर में अर रसलाणो हनुमानगढ़ जिलै में हैं।

पण आं कै सिवाय भी मांझरा कै बीच में जाटां की दूसरी साखावां'र और जातियां का गांव भी मिल्योड़ा था। ईं जाट राज्यां में गोदारा सैं स्यूं सबळ गिण्यां जावंता हा। पण जोहिया'र भाटियां आद कै झगड़ां सैं पिण्ड छुटावण राव बीकै राठौड़ की सत्ता मान ली ही'र ब्यूं भी आं की आपसरी में फूट'र द्वेस भरी होड लागी रहती ही। अर ओ एक जोग बैठणो हो'क बीं बखत एक इस्सी घटना घटी कै बीं सैं ईं जाट राज्यां की फूट सिलग उठी, जैं को भी फायदो राठौड़ां नैं मिल्यो। आ घटना बीकानेर कै इतिहास में यूं है'क- गोदारो सिरदार पांडु जिसो वीर हो बिसो ही बड़ो दातार भी थो। बै एक ढाढ़ी नैं मोकळो दान दियो। जैं कैं जस मांय गीत गावंतो ढाढ़ी पूलै सारण कै अठै भाड़ंग पूंच्यो। लोक मुख पर एक दोवो है -

धजा बांध बरसै गोदारा,
छात भाड़ंग की भीजै।
ज्यूं ज्यूं पांडू गोदारो बगसै,
पूलो मन में छीजै।।

पूलै भी बीं ढाढ़ी नैं आच्छो दान दियो। पण पूलो जद आपकै म्हैल में गयो तो बीं की जोड़ायत मलकी (बेणीवाळ) तानैं में हंस'र बोली कै दानी तो पांडु बरगो होवै। मद में छिक्योड़ो सिरदार आव देख्यो न ताव, आ सुणताईं कैयो कै जै तूं पांडु ऊपरां रीझी है तो बीं कनै ही चली जा। लुगाई की जात, धणी की ईं हरकत सैं मलकी कै गस बैठगी'र बा चौधरी सैं बोलणो बंद कर दियो। मलकी किणी हलकारै रै सागै पांडु ताणी सगळी बात पुगाई अर कुहायो कै म्हनैं लेज्या। अयां महीनां 6 निकळग्या। एक दिन सै सारण जाटां चौधरी-चौधरण रो मेळ करवावण ताणीं पूलै रै अठै भेळा होया। गोठ-घूघरी करी। इनै तो गोठ उडरी ही अर बिनै पांडु कोई साठेक ऊंट सुवारां रै सागै भाड़ंग आयो'र मलकी नै छानै-मानै ही सेखसर लेग्यो। पांडु बूढो होग्यो हो पण मलकी नै आपकै घर घालली। ईं सैं नकोदर की मां (पांडु की पैलड़ी लुगाई) सैं पांडु की खट-पट रहण लागगी। मलकी नैं पांडु रै घरां मान कोनी मिल्यो तो बा गांव गोपलाणै में जा'र रैवण लागग्यी। इण भांत मलकी न तो इन्नै की रैयी अर न बिन्नैं की। पछै आपकै नांव पर मलकीसर गांव बसायो। बिन्नै इब भाड़ंग में मलकी की खोज-खबर होई'र सगळो भेद खुल्यो तो पूलै सलाह करण नै दूसरै जाट मुखियावां नैं भेळा कर्या पण गोदारां की पीठ पर राठौड़ देख कर बां की चढाई करण की तो हिम्मत को होई नीं । बै सगळा मिल कर सिवाणी कै नरसिंह जाटू कनैं गया'र आपकी सहायता ताणी बीं नैं चढ़ा ल्याया।


१.इतिहासकार नैणसी तो पांडु खुद को आणो लिख्यो है पण दयालदास बीं कै बेटै नकोदर का आकर मलकी नैं लेज्याणो लिख्यो है। पाउलेट भी कोई १५० ऊंटा ऊपरां नकोदर को आकर लेज्याणो लिख्यो है। देखो-चूरू मं.शो.पू.इ. पाद टिप्पणी सं.४ पृष्ठ ११० ।
२. नरसिंह जाटू नैं ल्याण नैं अै अै जाट गया-सिधमुख को कस्वों बडो कंवरपाल(मलकी को नानो) , बेणीवाल रायसल (मलकी को बाप) , भाड़ंग को पूलो सारण (मलकी को खसम) , धाणसियै को सहू अमरो (मलकी की भूवा को बेटो भाई) , सूंईं को सिहाग चोखो, लूदी को पूनियो कानो। देखो चू. म. शो. पू. इ. पृष्ठ १११ ।)

तंवर सिरदार नरसिंह जाटू बडो सूरवीर जोधो हो। बो आप की सेना सुदां आयो'र गोदारै पांडू कै ठिकाणै लादड़ियै पर हमलो कर्यो। गांव बाळ दियो'र पांडू कै मोकळा मिनखां नै मार कर पाछो होयो। पांडू को बेटो नकोदर राठौड़ां कनैं मदद ताणी पूच्यों। राठौड़ां कै मुखियां में बीको'र कांधल बीं बखत सिधमुख लूंटण नैं गयोड़ा था'र नरसिंह भी जोग सैं आप कै ठिकाणै लौटतो सिधमुख कै सा'रै ही ढाकां गांव में डेरो गेर्यां सूत्यो पड़्यो हो। राठौड़ रातूं रात ढाकां पूंच्या।

नींद में सूत्यै बैरी पर घात करणै नैं वीरां को काम न समझ'र कांधल वीरां रै लहजै में नरसिंह नैं चेतायो। नरसिंह चिमक कर उठ्यो। दोनूं कानियां सैं जोधा में जबरो जंग होयो पण नरसिंह अर दूसरा तंवर सिरदार किसोर जाटू राठौड़ां कै हाथ मार्यां जाणैं सैं नरसिंह का साथी'र जाट भाग खड़्या होया। पछै एक समझौतै हुयो अर राठौड़ां नैं गांवां रा ठाकर अर अै जाट गांवां रा चौधरी रैया। एक भांत ईं लड़ाई में मात खा कर तो सैं ही जाट मुखिया सहज में ही राठौड़ां नैं राजा मान लिया हा। भाड़ंग 16 वीं सदी की कई पोथियां में समैंर परसंग सारू ठोड-ठोड चर्चित है। चूरू मण्डळ कै शोधपूर्ण इतिहास कै 17 वैं अध्याय कै परिशिष्ट 2 पन्नै 378 में बीकानेर कै चौथै राव जैतसी (सं.1583-1598) मुगल बादशाह बाबर कै बेटै कामरां नैं बीकानेर की चढाई पर गहरी किस्त देकर भगायो जणा बी बखत कै जुद्ध को हाल चूरू जिलै की तसील सिरदारसहर कै गांव खिलेरिया की चारण सूजै बीठू डिंगल में 'छंद राव जैतसी' लिख्यो थो, जैं सैं भी नरसिंह को मार्यो जाणो और भाड़ंग पर राठौड़ां को कब्जो होणो पायो जावै है। बारडिक एण्ड हिस्टोरिकल सर्वे आफ राजपूतानां 'छंद राउ जइतसीरउ बीठू सूजइरउ कहियउ' एशियाटिक सोसाइटी कलकता सैं प्रकाशित,सम्पादित डॉ. एल.पी.तैसितोरी, पन्नै 10 पर छंद संख्या 42 -

नरसिंध मारि उपाड़िनेस,
दीवाण भाण थर हरिय देस।
भाड़ंग तणा खाई भुरज्ज,
राहउडि रोळि किय रज्ज रज्ज ।। 42 ।।

(ओ इतियास पुराणो भाड़ंग जको भाड़ंगाबाद रै नांव सूं ई जाण्‍यो जावंतो, उण रो है। आज जठै भाड़ंग आबाद है उण रो एक न्‍यारो-निकेवळो इतियास है। कीं दीठ चितराम अर कीं दीठ आखरां रै पांण नीचै दीरीज रैयी है।)

भाड़ंग के महत्वपूर्ण लोग

  • दुला राम सारण - वकील और साहित्यकार, Mob. -09414327734
  • Dr. Amar Singh Doot - Date of Birth : 29-July-1955, Designation : M.O.(Med.Directorate), Department : MEDICAL& HEALTH, VPO-Bharang, VIA- Sahawa, TEH.-TARANAGAR,CHURU, Present Address : 43,RAJENDRA NAGAR,SIRSI ROAD,VAISHALI NAGAR,JAIPUR, Resident Phone Number : 0141-2357963, Mobile Number : 9414845363

External links

सन्दर्भ

  1. Dr. Jay Singh Sahu, Jat Samaj Agra, July 2015, p. 17
  2. http://www.census2011.co.in/data/village/69961-bharang-rajasthan.html
  3. Dashrath Sharma, Rajasthan through the ages, Jodhpur, 1966, Vol.I, p. 287-288
  4. Nainsi Khyat, Vol. I p. 12
  5. http://bharang.blogspot.com/
  6. http://bharang.blogspot.com/
  7. 'धरती पुत्र : जाट बौधिक एवं प्रतिभा सम्मान समारोह, साहवा, स्मारिका दिनांक 30 दिसंबर 2012', पेज 8-10
  8. Jananayak Shri Daulat Ram Saran Abhinandan Granth,p.120
  9. दयालदास ख्यात, देशदर्पण, पेज 20
  10. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 209
  11. चौधरी हरिश्चंद्र नैन, बीकानेर में जनजागृति, प्रथम खंड, पेज 18
  12. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 202
  13. पंरेऊ, मारवाड़ का इतिहास, प्रथम खंड, पेज 92
  14. गोविन्द अग्रवाल, चुरू मंडल का शोधपूर्ण इतिहास, पेज 112-113
  15. दयालदास ख्यात, देशदर्पण, पेज 20
  16. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 203

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