Dudhwa Khara

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Location of Villages around Churu

Dudhwa Khara (दूधवा खारा) is a large, historical village in Churu tahsil and district in Rajasthan.

Founder

Dudhwa Khara village was founded on 31 December 1428[1] by Dudharam Kaswan hence the name.[2]

Location

It is situated in northeast direction of Churu Thar Desert at a distance of 36 Kms from Churu in north direction.

Jat Gotras

Population

As per Census-2011 statistics, Dudhwakhara village has the total population of 6240 (of which 3173 are males while 3067 are females).[3]

History

कसवां जाटों के भाटों तथा उनके पुरोहित दाहिमा ब्रह्मण की बही से ज्ञात होता है की कंसुपाल पड़िहार 5000 फौज के साथ मंडोर छोड़कर पहले तालछापर पर आए, जहाँ मोहिलों का राज था. कंसुपाल ने मोहिलों को हराकर छापर पर अधिकार कर लिया. इसके बाद वह आसोज बदी 4 संवत 1125 मंगलवार (19 अगस्त 1068) को सीधमुख आया. वहां रणजीत जोहिया राज करता था जिसके अधिकार में 125 गाँव थे. लड़ाई हुई जिसमें 125 जोहिया तथा कंसुपाल के 70 लोग मारे गए. इस लड़ाई में कंसुपाल विजयी हुए. सीधमुख पर कंसुपाल का अधिकार हो गया और वहां पर भी अपने थाने स्थापित किए. सीधमुख विजय के बाद कंसुपाल सात्यूं (चुरू से 12 कोस उत्तर-पूर्व) आया, जहाँ चौहानों के सात भाई (सातू, सूरजमल, भोमानी, नरसी, तेजसी, कीरतसी और प्रतापसी) राज करते थे. कंसुपाल ने यहाँ उनसे लड़ाई की जिसमें सातों चौहान भाई मारे गए. चौहान भाइयों की सात स्त्रियाँ- भाटियाणी, नौरंगदे, पंवार तथा हीरू आदि सती हुई. सतियों ने कंसुपाल को शाप दिया, जिसके कारण पड़िहार कंसुपाल ने जाटों के यहाँ विवाह किया, जिसमें होने वाली संतान कसवां कहलाई. फाल्गुन सुदी 2 शनिवार, संवत 1150, 18 फरवरी, 1094, के दिन कंसुपाल का सात्यूं पर कब्जा हो गया. फ़िर सात्यूं से कसवां लोग समय-समय पर आस-पास के भिन्न-भिन्न स्थानों पर फ़ैल गए और उनके अपने-अपने ठिकाने स्थापित किए. [4] [5]

ज्ञानाराम ब्रह्मण की बही के अनुसार कंसुपाल के बाद क्रमशः कोहला, घणसूर, महसूर, मला, थिरमल, देवसी, जयसी और गोवल सीधमुख के शासक हुए. गोवल के 9 लडके थे- चोखा , जगा, मलक, महन, ऊहड, रणसी, भोजा और मंगल. इन्होने अलग अलग ठिकाने कायम किए जो इनके थाम्बे कहे जाते थे.

चोखा के अधिकार में 12 गाँव थे जिनमे से एक था: दूधवा. [6]

भाटों की बही के अनुसार कंसुपाल के एक वंशज चोखा ने संवत 1485 माघ बदी 9 शुक्रवार (31 दिसम्बर 1428) को दूधवाखारा पर अधिकार कर लिया. [7]

The havelis

The village has enticing topography and there are huge beautifully designed havelis. The rural life and camel safaris in this village are worth seeing.

Role in Freedom movement

Dudhwa Khara had become the centre of freedom movement in 1942. Hanuman Singh Budania from Dudhwa Khara took the lead in this movement. He was in police service of princely state of Bikaner. He was sympathetic to the people who did conspiracy against the state. This fact came to the notice of Bikaner Maharaja and he was warned on this. He left the police services of Bikaner state in 1942 to take part in the struggle for independence and joined Bikaner Rajya Praja Parishad. He spread the message of freedom movement from village to villages and made villagers member of this Parishad. He was arrested by the state and was dispossessed of his land and village. His entire family was also arrested. He sat on fast till death. When the Maharaja Bikaner learnt that the death of this freedom fighter might create problems for the state, he was released. Maharaja enticed him by offering hundred murrabas, but he refused. During the same period there was a conference of the Indian Praja Parishads going on in Udaipur, chaired by Jawahar Lal Nehru. Hanuman Singh Budania approached Pandit Nehru and told every thing to him. Maharaja Bikaner invited him back to join service but he refused. He was again arrested. His 90-year-old mother, four brothers and their wives were imprisioned for two years. He again sat on fast till death in jail and continued it for 65 days when he got fainted for 10 hours, and then he was released. [8]


In 1947 the farmer’s movement for freedom and abolition of Jagirs was in full swing. He was arrested along with 8000 participating farmers and left in unknown forest. Later he was arrested and punished with hard imprisonment for one year. To enhance the hardships in jail, snakes were left in his room. He was released only after India got freedom in 1947.[9]

दूधवाखारा आंदोलन (1943-1946)

गणेश बेरवाल[10] ने लिखा है ... [p.55]: दूधवाखारा में जमीन तथा कुंड जब्त करना, जमीन से बेदखल करना, हनुमान बुड़ानिया तथा उसके खानदान को बार-बार जेलों में डालना जैसी घटनाएँ हुई। ठाकुर सूरजमालसिंह गाँव से बुड़ानियों को निकालना चाहता था। ठाकुर के ऊपर महाराज सारदूल सिंह का वरदहस्त था। सूरजमाल सिंह महाराज सारदूल सिंह के ए. डी. सी. थे, इसलिए सूरजमाल सिंह पूरे घमंड में थे।

ठाकुरों के जुल्मों से तंग आकार सन् 1944 में 25 किसानों का एक जत्था टमकोर के आर्य समाज जलसे में आया जिसके सरगना चौधरी हनुमान सिंह बुड़ानिया एवं नरसा राम कसवा थे। मोहर सिंह और जीवन राम भी इस जलसे में आए थे। जीवन राम ने दूधवाखारा के लोगों को समझाया कि संघर्ष में सब साथ मिलकर रहें। राजगढ़ तहसील वाले भी आपका साथ देंगे।

महाराज सारदूल सिंह ने सूरजमाल सिंह की मदद के लिए त्रिलोक सिंह जज को भेजा। और आदेश दिया कि तुम जाकर किसानों को बेदखल कर दो। इसके बाद दूधवाखारा में कुंड व जमीन कुर्क कर ली गई, परंतु किसानों ने गाँव नहीं छोड़ा और गाँव में ही जमे रहे। हनुमान सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। हनुमान सिंह ने भूख हड़ताल शुरू कर दी तो उनको छोड़ दिया गया। गर्मियों के दिनों में महाराज से


[p.56]: मिलने दूधवाखारा के किसानों का जत्था गया। उन्होने कहा, “राजन हमारे ऊपर जुल्म बंद करवादो।“ राजा ने उनकी बात न मानी बल्कि उन्हें फटकार दिया। वापिस आते समय रतनगढ़ स्टेशन पर हनुमान सिंह को गिरफ्तार करलिया। कुछ दिनों बाद रिहा भी कर दिया गया। वर्ष 1944 से 1946 तक इसी प्रकार गिरफ्तारियाँ होती रही।

8 अप्रेल 1946 को बीकानेर शहर में राजगढ़ के किसानों का काफी बड़ा जुलूस निकला जो की दूधवाखारा के किसानों के हिमायत के लिए निकाला गया था। लोगों को गिरफ्तार किया गया परंतु कुछ दूर लेजाकर छोड़ दिया गया।

10 अप्रेल 1946 को शीतला मंदिर चौक राजगढ़ में किसानों का बड़ा जुलूस निकला। इसमें पुलिस की तरफ से भयंकर लाठी चार्ज हुआ जिससे काफी किसान घायल हुये। इस लाठी चार्ज की खबर बहुत से अखबारों ने निकाली। 12 अप्रेल 1946 के हिंदुस्तान में राजगढ़ के लाठी चार्ज की खबर छपी। इसके बाद जलसों का एक नया दौर आया।

दूधवाखारा सम्मेलन – 1946 में यह सम्मेलन हुआ, जिसमें 10 हजार के करीब आदमी थे। जिसमें रघुबर दयाल गोयल, मधाराम वैद्य, चौधरी हरीश चन्द्र वकील (गंगानगर), सरदार हरी सिंह (गंगानगर), चौधरी हरदत्त सिंह बेनीवाल (भादरा) और चौधरी घासी राम (शेखावाटी) शामिल थे। इस जलसे में मोहर सिंह भी सम्मिलित हुये थे। इस जलसे को चारों तरफ भारी समर्थन मिला। राजा को आखिर किसानों की अधिकतर मांगे माननी पड़ी।


राजेन्द्र कसवा[11] ने लिखा है ... सत्यदेव सिंह का कहना है कि कुम्भाराम आर्य प्रथम बार जब झुंझुनू के सम्मलेन में आये तो वे पुलिस की वर्दी में थे और पिस्तौल साथ था. दूधवा खारा गाँव में चले आन्दोलन के दौरान सत्यदेव सिंह भेष बदल कर झुंझुनू से गए थे. पुलिस द्वारा पूछ-ताछ करने पर उन्होंने बिड़ला का मुनीम बताया और ऊन खरीदने का मकसद जाहिर किया. इस पर पुलिस ने गाँव में जाने दिया. गाँव पहुँच कर सम्बंधित किसान को सरदार हरलाल सिंह का सन्देश दिया.

Monuments

Sat Sati - Sevan women became sati on the death of their Kaswan Jat husbands.[12]

Notable persons

  • Dudharam Kaswan- The village was founded on 31 December 1428[13] by Dudharam Kaswan hence the name.[14]
  • Narsa Ram Kaswan was a social worker and freedom fighter from Dudhwa Khara village of Churu district in Rajasthan, India.
  • Hanuman Singh Budania - Freedom fighter
  • Bega Ram Budania - Social worker and Freedom fighter from village Dudhwa Khara. Brother of Hanuman Singh Budania. गणेश बेरवाल [15] ने लिखा है ... रायसिंहनगर के जलसे में बिकानेर डिवीजन के बहुत से आदमी शामिल थे। यह सबसे बड़ा जलसा था। यह इलाका पंजाब से आए सरदारों- सिखों का था। इस जलसे में हजारों आदमियों ने भाग लिया। लोगों में भारी जोश था। सरदार अमर सिंह जलसे के संचालक थे। इस जलसे में मास्टर बेगाराम जी (अबोहर), पंजाब कांग्रेस के प्रधान पंडित जी, रामचन्द्र जैन, चौधरी ख्यालीराम गोदारा, आदि प्रमुख थे। जब मोहर सिंह जलसे में बोल रहे थे तभी जनता बहुत उत्साहित थी कि इतने में दुधवा खारा के किसान नेता हनुमान सिंह के बड़े भाई बेगा राम बीकानेर जेल से रिहा होकर समय पर जलसे में पहुँच गए। हमने उनसे कहा कि दुधवा खारा जाकर अपने बच्चों को संभालो, जलसा तो चलता रहेगा हम संभाल लेंगे। बेगाराम दुधवा खारा जाने की मंशा से रेलवे स्टेशन पर टिकट लेने आए। उनके हाथ में तिरंगा झण्डा था, जो कि महाराजा के आदेश से सभा मंच के सिवाय बाहर लगाना प्रतिबंधित था। पुलिस झंडे सहित बेगा राम पर टूट पड़ी और घसीट कर रेस्ट हाउस ले आए। वहाँ उसे लेटाकर उसकी छाती पर दो लठियाँ रखकर दो पुलिस वाले बैठ गए। इधर सारे घटनाक्रम को एक साधू पैनी नजर से देख रहा था । वह भाग कर स्टेज पर आया और कहा कि आपके एक आदमी को पुलिस रेस्ट हाऊस में बुरी तरह पीट रही है। यह सुनकर दसों हजार आदमी खड़े हो गए और सारे जलसे में गुस्से की लहर दौड़ गई। सभी आदमी रेस्ट हाऊस की तरफ दौड़ पड़े। इस मौके पर राजगढ़ तहसील से 84 आदमी जलसे में गए हुये थे।
  • Narendra Budania - Thrice MP from Churu
  • Dr. Harish Kumar Kaswan - Date of Birth :1977, RESIDENT MS, MEDICAL & HEALTH, V.P.O.- Dudhwa Khara, T.& DISTT.- Churu, Present Address : NAYAR HOSPITAL,BOMBAY, Resident Phone Number : 01562-286542, Mobile Number : 9323342361
  • Jesraj Mehda - S/O Khama Ram Mehda, Did commendable Job in Kray-Vikray Sahkari Samiti in Bhilwara, Awarded with 'Jat Ratna' (Posthumous).[16]

Gallery

Further reading

  • Dr Mahendra Singh Arya, Dharmpal Singh Dudi, Kishan Singh Faujdar & Vijendra Singh Narwar: Ādhunik Jat Itihas (The modern history of Jats), Agra 1998, pages 329-30

External links

References

  1. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 203
  2. Dr. Raghavendra Singh Manohar:Rajasthan Ke Prachin Nagar Aur Kasbe, 2010,p. 229
  3. http://www.census2011.co.in/data/village/70505-dudhwakhara-rajasthan.html
  4. गोविन्द अग्रवाल, चुरू मंडल का शोधपूर्ण इतिहास, पेज 115-116
  5. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 203-204
  6. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 203
  7. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 203
  8. Dr Mahendra Singh Arya] etc,: Ādhunik Jat Itihas, Agra 1998, pages 329-30
  9. Dr Mahendra Singh Arya] etc,: Ādhunik Jat Itihas, Agra 1998, pages 329-30
  10. Ganesh Berwal: 'Jan Jagaran Ke Jan Nayak Kamred Mohar Singh', 2016, ISBN 978.81.926510.7.1, p.55-56
  11. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 196
  12. उद्देश्य:जाट कीर्ति संस्थान चूरू द्वारा आयोजित सर्व समाज बौधिक एवं प्रतिभा सम्मान समारोह, स्मारिका जून 2013,p.121
  13. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 203
  14. Dr. Raghavendra Singh Manohar:Rajasthan Ke Prachin Nagar Aur Kasbe, 2010,p. 229
  15. Ganesh Berwal: 'Jan Jagaran Ke Jan Nayak Kamred Mohar Singh', 2016, ISBN 978.81.926510.7.1, p.57-58
  16. उद्देश्य:जाट कीर्ति संस्थान चूरू द्वारा आयोजित सर्व समाज बौधिक एवं प्रतिभा सम्मान समारोह चूरू, 9 जनवरी 2013,पृ. 77

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