Jiwan Ram Punia

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Jiwan Ram Punia

Jiwan Ram Punia (born:1888-) was a Freedom fighter and a social worker.[1]। He was Bhajanopadeshak and did extensive touring of villages to awaken the people through motivating folkl songs. He was from village Jetpura Churu. His son was Mohar Singh Punia who was elected MLA from Rajgarh Churu twice as CPI (M) candidate in 1957 and 1974.[2]

जाट जन सेवक

Chaudhari Jiwan Ram Bhajanopadeshak

रियासती भारत के जाट जन सेवक (1949) पुस्तक में ठाकुर देशराज द्वारा चौधरी जीवनराम पूनिया का विवरण पृष्ठ 150-151 पर प्रकाशित किया गया है । ठाकुर देशराज[3] ने लिखा है ....चौधरी जीवनराम पूनिया- [पृ.150]: जयपुर, जोधपुर और बीकानेर और आधे हरियाणा में जिसके भजनों को सुनकर स्त्री-पुरुष मुग्ध हो जाते हैं वही चौधरी जीवनरामजी बीकानेर राज्य की राजगढ़ तहसील के जैतपुरा गांव के चौधरी देवाराम जी पूनिया के सुपुत्र हैं। आपका जन्म


[पृ.151]: विक्रम संवत 1944 मार्गशीर्ष सुदी 5 (=1888 ई.) को हुआ। संवत 1959 से आपको भजन गाने का शौक लगा और पुराने ढंग के भजन आपने गाना आरंभ किया।

शेखावाटी में टमकोर आर्य समाज के जलसों में आपको आर्य समाज का रंग लाया और संवत 1980 से आप आर्य समाजी ढंग के भजनीक हो गए। 5 वर्ष तक आर्य समाज मंडावा के अधीन आपने प्रचार किया और फिर स्वतंत्र उपदेशक बन गए। आपके पाँच सन्तानें हैं। चार लड़के और एक लड़की। लड़के हैं 1. हरिश्चंद्र,2. बजरंग, 3. मोहर सिंह और 4. भंवर सिंह। मोहर सिंह राजस्थान के एक माने हुये भजनोपदेशक हैं। आप दोनों पिता-पुत्रों से कौम को बड़ी उम्मीदें हैं। आपने झुंझुनू महोत्सव और सीकर जाट महायज्ञ में भी बड़ा काम किया है।

बीकानेर राज्य में मरुभूमि सेवा कार्य संस्था के तत्वावधान में जो स्कूल खुले हैं उनमें मोटेर का प्रथम स्थान है। इस को उन्नत बनाने के लिए प्रसन्न करने वालों में निम्न सज्जन इस समय काफी दिलचस्पी ले रहे हैं।

  1. चौधरी मामराज गोदारा मोटेर, मोटेर, हनुमानगढ़
  2. चौधरी चंदाराम थाकन, मोटेर, हनुमानगढ़
  3. चौधरी केशाराम गोदारा, उदासर, हनुमानगढ़

जीवन परिचय: जीवण राम

जाट कीर्ति संस्थान चुरू द्वारा 31.8.2017 को ग्रामीण किसान छात्रावास रतनगढ में प्रदान किया गया सम्मान

जीवन राम जैतपुरा के पुत्र मोहर सिंह थे। जीवण राम वाणी के धनी थे और हालात को देखकर समाज में बदलाव और सुधार के लिए रचनाएँ करते थे। उन्हीं से प्रेरणा लेकर मोहर सिंह ने एक भजन मंडली बनाई जिसके सदस्य थे [4]-

1 मोहर सिंह
2 धुडनाथ जोगी, हमीरवास
3 जगमाल सिंह राठोड (वीरेंद्र के समसीर)
4 रिछपाल सिंह फगेडिया (लंबोर बड़ी)
5 कामरेड बृजलाल
6 कामरेड भागू राम बिस्सु (जिसने किताब के रूप में इस मंडली के भजनों का संकलन किया)

इस मंडली ने जनजागृति का कारी किया।


गणेश बेरवाल[5] ने लिखा है ...मोहर सिंह के पिता जीवन राम शेखावाटी के मशहूर भजनोपदेशक थे। उन्होने भजनों के माध्यम से आम आदमी को सामंतशाही व अङ्ग्रेज़ी साम्राज्यवाद के खिलाफ जागृत करने का महान काम किया। "अखिल भारतीय किसान सभा" की राजस्थान इकाई का गठन करने में उन्होने अपना योगदान दिया। सन् 1952 में सीकर में "राजस्थान किसान सभा" के स्थापना सम्मेलन के आयोजन हेतु कामरेड त्रिलोक सिंहचौधरी घासी राम के साथ उन्होने महती भूमिका निभाई। इसी के साथ वे किसान सभा के नेतृत्व में स्थापित हो गए। थोड़े दोनों बाद मोहर सिंह कम्युनिष्ट पार्टी के सदस्य बन गए। वर्ष 1964 में भारत की कम्युनिष्ट पार्टी (मार्क्सवाद) के गठन के साथ ही वे सी. पी. आई. (एम) में शामिल हो गए।

मोहर सिंह की डायरी के पन्नों से ....

गणेश बेरवाल[6] ने लिखा है ... [p.41]: 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में अंग्रेजों की जीत हुई। मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर को कैद कर लिया गया। मुगल बादशाह के दो पुत्रों के कटे हुये सिर जब उन्हें दिखाये गए तो उन्होने कहा कि मुझे मरना मंजूर है लेकिन अंग्रेजों की दस्ता स्वीकार नहीं। अंग्रेजों ने देसी रियासतों में राजाओं को अधिनस्त कर जागीरदारों को बड़े-बड़े अधिकार दे दिये। जनता पूर्णत: अशिक्षित थी। ऐसे समय में सयानों और तंत्र जानने वाले आदमियों की मूर्ख अशिक्षित जनता में बड़ी चल-बल थी। गांवों में जगह-जगह शीतला, भोमिया व मावली गुड़गांवा की वसाली आदि की बड़ी पूजा होती थी।

ऐसी हालत में वर्ष 1918 विक्रम संवत 1075 में ग्राम जैतपुरा तहसील राजगढ़ जिला बीकानेर (अब चुरू) में चौधरी जीवणराम पूनिया के घर मतेश्वरी श्रीमती नानी के गर्भ से मेरा जन्म मूल नक्षत्र में हुआ।

उसी साल वर्ष 1918 में टमकौर नगर में आर्य समाज के जलसे में पिताश्री चौधरी जीवणराम पूनिया को आर्य-समाजी बनाया गया। यज्ञ (हवन कुंड) के सामने बैठाकर उनसे बुराइयां छोडने का संकल्प करवाया गया।

राजा के नीचे खालसा तथा जागीरी के अंदर दो किस्म के किसान थे। दोनों तरह के किसान ही मालगुजारी व लाग-बाग तथा सैंकड़ों प्रकार के बोझ के नीचे दबे हुये थे। किसानों पर तरह-तरह के अत्याचार किए जाते थे। जमीन पर किसान के खातेदारी हक नहीं थे। राजा और जागीरदार जब चाहे किसान को गाँव से निकाल बाहर कर देते थे। जागीरी इलाके में जागीरदार के मकान के आगे से कोई घोड़ी या ऊंट पर चढ़कर नहीं निकल सकता था। जागीरदार के मरने के बाद उसके इलाके के सभी ग्रामीणों को दाढ़ी-मूंछ मुड़ानी पड़ती थी । जागीरदार के सामने किसान खात पर नहीं बैठ सकता था। ग्रामीण जनता पर घोर अत्याचार थे।

वर्ष 1917 में ही रूस में समाजवादी सरकार बन गई थी। प्रथम विश्व तुद्ध में अंग्रेजों की विजय के बाद अंग्रेजों ने अपने सिपाहियों को वापस हिंदुस्तान भेजना शुरू कर दिया। लड़ाई में खुले में रहे सिपाही अपने गाँव में आकर जागीरदारों के दबाव व शोषण के नीचे से निकलना चाहते थे। फलस्वरूप आपसी संघर्ष शुरू हो गया।

ईधर देश में कई जगह अलग-अलग संगठन उभर रहे थे। उनमें प्रमुख थे - कांग्रेस, आर्य-समाज, जाट महासभा आदि। इसी समय 1920 में भिवानी में महात्मा गांधी का आना हुआ। शेखावाटी की किसान नेताओं का जत्था गांधी जी से मिला। चौधरी पन्ने सिंह देवरोड, पंडित तड़केश्वर पचेरी, चौधरी ताराचंद झारोड़ा, चिमना राम, भूदा राम सांगासी, नेतराम सिंह गौरीर, तथा गोविंदराम जी हनुमानपुरा जत्थे में थे। उन्होने गांधीजी से अनुरोध किया कि रियासती जनता में जागीरदारों के द्वारा अत्यधिक अत्याचार व जुल्म किए जा रहे हैं। हमारी जनता की भी कुछ मदद करो। गांधीजी ने कहा कि तुम संघर्ष शुरू करो देशी राजलोक परिषद तुम्हारी मदद करेगा। यह देशी राजलोक रियासतों में आल इंडिया कांग्रेस कमेटी के तहत लोगों में जागृति और संघर्ष बढ़ाने के लिए संगठन था। जिसके प्रधान पंडित जवाहर लाल नेहरू, श्री जयनारायण मंत्री थे।


[p.42]: वर्ष 1925 के पुष्कर (अजमेर) में जाट महासभा का जलसा हुआ। जिसमें महाराज किशनसिंह जी प्रधान बनाए गए थे। राजगुरु मदन मोहन मालवीय भी साथ थे। अजमेर में उनका भव्य जुलूस निकाला गया। इस जलसे का सारे राजस्थान में जबरदस्त प्रभाव देखने को मिला। जागीरदारों के दिलों में दहशत पैदा हो गई और किसानों का भरी उत्साह बढ़ा। रियासतों में जागीरदारों के खिलाफ यत्र-तत्र संघर्ष शुरू हो गया। उन्ही दिनों काफी स्थानों पर आर्य समाज पत्थर पूजा तथा अंधविश्वासों का विरोध कर रही थी और शिक्षा व संगठन का जोरदार प्रचार कर रही थी।

सन 1917 में उन दिनों मंडावा के जागीरदार ने मंडावा के आर्य समाज (चौधरी जीवनराम, देवी बक्स के गांवों में खुली आर्य समाज मंडावा में कविता भजन 1927) के मंदिर के ताले लगा दिये। सेठ देवी बक्स सराफ़ के सानिध्य में आर्य समाज का प्रचार-प्रसार बढ़ रहा था। जागीरदार देवीबक्स सर्राफ के बहुत खिलाफ था। 1927 में आर्य समाज का जलसा मंडावा में रखा। 5000 ग्रामीण जनता इसमें सम्मिलित हुई। गाँव जैतपुरा में छतुसिंह शेखावत जलसे में चौधरी जीवन राम पूनीया को साथ लेकर पहुंचे। आर्य समाज के मंडावा मंदिर का ताला जनता द्वारा तोड़ दिया गया। मंडावा में बड़ा जबर्दस्त जलसा हुआ जिससे सारे शेखावटी और बीकानेर क्षेत्र में रोशनी फ़ैल गई।

1928 में लाहोर में साईमान कमीशन आया। साईमान कमीशन के भारत आगमन पर जब विरोध प्रदर्शन में लाला लाजपत राय को लाठियों से पीटने से गिरे और मृत्यु हो गई। उसके विरोध में भगतसिंह ने पुलिस सुपरिंटेंडेंट सांडर्स को गोली से मार्कर लालाजी की मौत का बदला ले लिया। निरंतर 1927 से 1934 तक शेखावाटी में पिताश्री चौधरी जीवणराम जी ने शेखावाटी व बीकानेर जिले के लोगों में भजनों व मिसालों द्वारा शिक्षा, सामाजिक सुधार तथा छूआछूत को मिटाने के लिए जागीरी जुर्म के खिलाफ काफी जन जागृति पैदा की। इससे भविष्य में जुल्मों के खिलाफ संघर्ष में काफी योगदान मिला।

इधर उत्तर प्रदेश की जाट सभा ने भी किसानों को जगाने के लिए काफी योगदान दिया। कृषि कालेज बड़ौत, जिला मेरठ से तैयार किए कितने ही अध्यापकों को शिक्षा के प्रचार के लिए शेखावाटी में भेजा गया। उनमें प्रमुख थे मास्टर रघुवीर सिंह, मास्टर चंद्रभान, मास्टर हेमराज, मास्टर फूल सिंह, मास्टर हरफूल सिंह आदि। इनहोने जागीरदारों के जुल्मों की संकट की घड़ी में हिम्मत के साथ किसानों के लड़कों को पढ़ाया। शिक्षा प्रचार और अंधविश्वासों से किसान परिवारों को शेखावाटी में जागृत किया।

जागीरदार किसानों को तंग करने के साथ ही जकात, लगान आदि के प्रश्न पर व्यापार करने वाले महाजनों को भी तंग करते थे। महाजनों ने भी जागीरदारों के डर से किसानों को शिक्षा दिलवाना तथा जागृति पैदा करना आवश्यक समझा। शेखावाटी के सेठों ने जगह-जगह स्कूल-कालेज खोले।


[p.43]: जिसमें बिड़ला ने पिलानी में कालेज खोला। नवलगढ़, बगड़, खेतड़ी, अलसीसर, मलसीसर, बिसाऊ, मंडावा आदि में सेठों ने काफी स्कूल खोले। इन संस्थाओं में गरीब बच्चों को छात्रवृति दी जाती थी। बिड़ला हाई स्कूल के हैड मास्टर चौधरी रतन सिंह को 'शेखावाटी में जाटों की दुर्दशा' नामक किताब लिखने के कारण इलाके से ही निकाल दिया गया।

जागीरदारों के खिलाफ संगठन में जाटों के अलावा महाजन, सैनी, गुर्जर, ब्राह्मण, यादव (अहीर), हरिजन आदि सब जतियों के लोग संगठन में जुडने लगे व संगठन में भरोसा करने लगे।

वर्ष 1930 में जाट महासभा का जलसा दिल्ली में हुआ। इसमें उत्तर प्रदेश के जाट नेता भी जलसे में पहुंचे। उन्होने उन नेताओं से भी निवेदन किया कि शेखावाटी में भी जागृति व शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने हमारा साथ दो तो उन्होने कहा कि कोई बहुत बड़ा जलसा रखो, हम सब वहाँ आएंगे तब वहाँ भी जागृति आएगी। यह तय किया गया कि बसंत पंचमी वर्ष 1932 में झुञ्झुनू में जाट सभा का बड़ा जलसा रखा जावे। इधर आर्य समाज भी सक्रिय था।


[p.44]: जाट महासभा का झुंझुणु कान्फ्रेंस बसंत पंचमी 1932 को हुआ। इस जलसे में 80 हजार आदमी व औरतें इकट्ठे हुये। जलसे में उपस्थित होने वालों में 50 हजार जाट और 30 हजार अन्य कौम के लोग थे। अन्य कौम के लोग भी जाटों से सहानुभूति रखते थे क्योंकि जाट जागीरदारों का मुक़ाबला कर रहे थे। पिलानी कालेज से प्रोफेसर, मास्टर अकान्टेंट आदि इस जलसे में पहुंचे। बिड़ला जी का रुख इस जलसे को सफल बनाने का था। जलसे को सफल बनाने वालों में पिताश्री जीवनराम जी भजनोपदेशक, पंडित हरदत्तराम जी, चौधरी घासीराम जी, हुकम सिंह जी, मोहन सिंह जी आदि ने गांवों में भारी प्रचार किया। चौधरी मूल सिंह जी, भान सिंह जी मुकाम तिलोनिया (अजमेर) आदि इस जलसे को सफल बनाने के लिए आए। उत्तर प्रदेश, हरयाणा से भी कफी लोग आए। अधिवेशन में जुलूस निकाला गया जिसमें चौधरी रिछपाल सिंह जी मुकाम धमेड़ा (उत्तर प्रदेश) से पधारे थे। वे जलसे के प्रधान थे।


[p.45]: इसी जलसे में मास्टर नेतराम गौरीर की बड़ी लड़की जो घरड़ाना के मोहर सिंह राव को ब्याही थी, ने लिखित में भाषण पढ़ा था। उस वक्त शेखावाटी में स्त्री शिक्षा झुञ्झुणु में शुरू हो चुकी थी। स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए पिताश्री जीवन राम जी के निम्नांकित भजनों से बड़ा प्रोत्साहन मिला....

सुनिए ए मेरी संग की सहेली
रीत एक नई चाली। बहन विद्या बिन रह गई खाली री
एक जाने ने दो वृक्ष लगाए सिंचिनिया भी एक माली
बहन विद्या बिन रह गई खाली री......
मैं जन्मी तब फूटा ठीकरा – भाई जन्मा तब थाली री
विद्या बिन रह गई खाली री
भईया को पढ़न बैठा दिया, मैं भैंसा की पाली री
बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
भाई खावे दूध पतासो मैं रूखी रोटी खाली री
विद्या बिन रह गई खाली री.....
भाई के ब्याह में धरती धर दी मेरे ब्याह में छुड़ाली री
बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
भईया पहने पटना का आभूषण मैं पहनू नथ-बाली री
बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
मेरा पति जब आया लेवण ने मैं पहन सींगर के चाली री
बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
जब सासु के पैरों में लागी कपड़ों में उजाली री
बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
देवरानी जिठानी पुस्तक बाँचे मेरे से मजवाई थाली री
बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
मेरे में उनमें इतना फर्क था वो काली मैं धोली री
बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
जीवन सिंह चलकर के आयो बहन न डिग्री ला दी री
बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
सुनिए ए मेरी संग की सहेली रीत एक नई चाली
बहन स्कूल में चाली री

चौधरी जीवन राम जी के इस गीत ने जादू का सा असर किया। गाँव-गाँव में लड़कियां पढ़ने स्कूल जाने लगी। आज के दिन स्त्री शिक्षा में झुंझुणु जिला राजस्थान में प्रथम है। झुंझुणु अधिवेशन से 4-5 जिलों में भारी जागृति फैली। इस जलसे में राजगढ़ तहसील के 17 आदमी गए थे। महाराजा गंगा सिंह ने हमारे पीछे सी.आई.डी. लगा राखी थी। इस जलसे ने मेहनतकशों व अन्य क़ौमों में जागृति पैदा


[p.46]: कर दी। जागीरदारों के जुल्मों के खिलाफ आवाज उठने लगी और शेखावाटी किसान आंदोलन तेज हो गया। इस दौरान शेखावाटी के नेतागण निम्नांकित थे-

जनता को जगाने में संघर्ष करते भजनोपदेशक पिताश्री जीवन राम आर्य, भजनोपदेशक पंडित दंतू राम (मुकाम पोस्ट डाबड़ी, त. भादरा, गंगानगर) साथी सूरजमल (नूनिया गोठड़ा), तेजसिंह (भडुन्दा), साथी देवकरण (पलोता), स्वामी गंगा राम, हुकम सिंह, भोला सिंह आदि थे। गाँव-गाँव में प्रचारकों की मंडलियाँ प्रचार में जुटी हुई थी जो जनता को जागृत कर रही थी। इस प्रकार शेखावाटी में जन आंदोलन की लहर सी चल पड़ी।

झुंझुनूं में जाट महासभा का सम्मलेन सन् 1932

जब राष्ट्रीय स्तर पर गांधीजी डांडी यात्रा कर रहे थे और नमक का कानून तोड़ने के अभियान चला रहे थे तो पन्नेसिंह देवरोड़ (1902-1933) ने शेखावाटी में जन आन्दोलन की हलचलें शुरू की. पन्ने सिंह उस समय शेखावाटी में तेजी से उभर रहे थे. उनमें संगठन निर्माण की अद्भुत क्षमता थी. रींगस के मूल चन्द अग्रवाल ने पिलानी में खादी भण्डार खोल दिया जिसे पन्ने सिंह ही संभाल रहे थे. खादी उत्पादन केंद्र देवरोड़ में खोला गया . कताई-बुनाई का कार्य शुरू किया गया. ठाकुर देशराज झुंझुनू आये औए पन्ने सिंह सहित अन्य किसान नेताओं से मिले. झुंझुनूं में विशाल पैमाने पर सम्मलेन करने के लिए गाँव-गाँव भजनोपदेशक पहुँचने लगे. (राजेन्द्र कसवा: पृ.109)

सन 1931 में ही मंडावा में आर्य समाज का वार्षिक सम्मलेन हुआ. ठिकानेदारों ने भय का वातावरण बनाया किन्तु हजारों स्त्री-पुरुषों ने सम्मलेन में भाग लिया. सभी ने आग्रह किया कि झुंझुनू में होने वाले सम्मलेन में भाग लें. ठाकुर देशराज के नेतृत्व में झम्मन सिंह वकील, भोला सिंह, हुकुम सिंह तथा स्थानीय भजनोपदेशकों की टोलियाँ शेखावाटी अंचल के सैंकड़ों गाँवों में घूमी और झुंझुनू सम्मलेन को सफल बनाने की अपील की.(राजेन्द्र कसवा: पृ.109)

सरदार हरलाल सिंह द्वारा ऊंटों से जनजागरण

जन जागरण के गीतों के माध्यम से गाँव-गाँव को जागरुक किया. घासी राम और हरलाल सिंह पडौसी रियासत बीकानेर के गाँवों में प्रचार करने लगे. राजगढ़ तहसील के जीवन राम जैतपुरा साथ थे जो देर रात तक गाँवों में भजनों के माध्यम से कार्यक्रम करते.(राजेन्द्र कसवा: पृ.110)

झुंझुनू सम्मलेन, बसंत पंचमी गुरुवार, 11 फ़रवरी 1932 को होना तय हुआ जो तीन दिन चला. स्वागत-समिति के अध्यक्ष पन्ने सिंह को बनाया गया. उनके पुत्र सत्यदेव सिंह के अनुसार महासम्मेलन के आयोजन के लिए बिड़ला परिवार की और से भरपूर आर्थिक सहयोग मिला. मुख्य अतिथि का स्वागत करने के लिए बिड़ला परिवार ने एक सुसज्जित हाथी उपलब्ध कराया. यह समाचार सुना तो ठिकानेदार क्रोधित हो गए. उन्होंने कटाक्ष किया - तो क्या जाट अब हाथियों पर चढ़ेंगे? यह सामंतों के रौब-दौब को खुली चुनोती थी. जागीरदारों ने सरे आम घोषणा की, 'हाथी को झुंझुनू नहीं पहुँचने दिया जायेगा.' पिलानी के कच्चे मार्ग से हाथी झुंझुनू पहुँचाना था. रस्ते में पड़ने वाले गाँवों ने हाथी की सुरक्षा का भर लिया. इस क्रम में गाँव खेड़ला, नरहड़ , लाम्बा गोठड़ा, अलीपुर, बगड़ आदि गाँवों के लोग मुस्तैद रहे. हाथी दो दिन में सुरक्षित झुंझुनू पहुँच गया. ठिकाने दारों की हिम्मत नहीं हुई कि रोकें. (राजेन्द्र कसवा: पृ.110)

चौधरी घासीराम, हर लाल सिंह, राम सिंह बख्तावरपुरा, लादूराम किसारी, ठाकुर देशराज, पंडित ताड़केश्वर शर्मा, जीवन राम जैतपुरा, हुकुम सिंह आदि की मेहनत के कारण पूरा झुंझुनू जिला महासम्मेलन की और उमड़ पड़ा. पन्ने सिंह के बड़े भाई भूरेसिंह ने भी इस सम्मलेन के दौरान उत्साह से कार्य किया. सीकरवाटी से भी काफी संख्या में किसान नेता आये थे. यह परिवर्तन की आंधी थी. इसलिए भूखे-प्यासे, पीड़ित गाँवों के लोग पैदल जत्थों में सभा स्थल की और चल पड़े. प्रथम बार गाँवों की महिलायें गीत गाते हुए आई. झुंझुनू की मुख्य सड़क पर जुलुस सभा स्थल की और बढ़ रहा था. शहर के निवासीगण घरों की छतों पर, दीवारों और मुंडेरों तथा छपरों पर खड़े हो आन्दोलनकारियों का हौसला बढ़ा रहे थे.(राजेन्द्र कसवा: पृ.111)

जयपुर रियासत के पुलिस इंस्पेक्टर जनरल मि. अफ.ऍस. यंग (F.S.Young) , नाजिम शेखावाटी, पुलिस अधीक्षक झुंझुनू व अन्य अधिकारीगण जुलुस के साथ-साथ चल रहे थे. शहर के निवासियों ने अनेक स्थानों पर जुलुस रोककर , मुख्य अतिथि व किसान नेताओं का सम्मान किया. महिलाओं ने आरती उतारी. तत्पश्चात वे भी जुलुस में शामिल हो गए.

सम्मलेन स्थल पर ऊँचा मंच बना हुआ था. अनेक हवन-कुण्ड एक और बने हुए थे. अधिवेशन के दौरान तीनों दिन सुबह यग्य हुआ और जनेऊ बांटी गयी. दिन में भाषणों के अतिरिक्त भजनोपदेशक रोचक और जोशीले गीत प्रस्तुत कर रहे थे. जीवन राम जैतपुरा, हुकुम सिंह, भोला सिंह, पंडित दत्तुराम, हनुमान स्वामी, चौधरी घासी राम आदि ने एक से बढ़कर एक गीत सुनाये. ठाकुर देशराज, पन्ने सिंह, सरदार हरलाल सिंह आदि नेताओं ने सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक बदलाव की आवश्यकता प्रतिपादित की. विशाल सम्मलेन को संबोधित करते हुए जयपुर रियासत के आई .जी . यंग (F.S.Young) ने कहा - जाट एक बहादुर कौम है. सामन्तों और पुरोहितों के लिए यह असह्य था. (राजेन्द्र कसवा: पृ.113)

इस ऐतिहासिक सम्मलेन जो निर्णय लिए गए उनमें प्रमुख निर्णय था - झुंझुनू में विद्यार्थियों के पढ़ने और रहने के लिए छात्रावास का निर्माण. दूसरा निर्णय जाट जाति का आत्मसम्मान, स्वाभिमान और सामाजिक दर्जा बढ़ाने सम्बंधित था. जागीरदार और पुरोहित किसान को प्रताड़ित करते थे और उनमें हीन भावना भरने के लिए छोटे नाम से पुकारते थे जैसे मालाराम को मालिया. मंच पर ऐलान किया गया कि आज से सभी अपने नाम के आगे 'सिंह' लगावेंगे. सिंह उपनाम केवल ठाकुरों की बपौती नहीं है. उसी दिन से पन्ना लाल देवरोड़ बने कुंवर पन्ने सिंह देवारोड़, हनुमानपुरा के हरलाल बने सरदार हरलाल सिंह, गौरीर के नेतराम बने कुंवर नेतराम सिंह गौरीर, घासी राम बने चौधरी घासी राम फौजदार. आगरा के चाहर अपना टाईटल फौजदार लगाते हैं अत: चाहर गोत्र के घासी राम को यह टाईटल दिया गया. (राजेन्द्र कसवा: पृ.114)

जयपुर प्रांतीय जाट क्षत्रीय सभा के सम्मलेन के स्वागताध्यक्ष विद्याधर कुलहरी थे. इस सम्मलेन में जाटों को संगठित रहने, बालक-बालिकाओं को शिक्षा दिलाने, प्रत्येक बालक को यज्ञोपवीत पहनने पर बल दिया. बाल-विवाह रोकने, चढ़ावे में जेवर की रस्म कम करने, शादी में कम खर्चा करने आदि पर भाषण हुए. जलसे में करीब 1500 जाटों ने जनेऊ धारण करने का काम किया. जाटों पर ठिकानेदारों द्वारा की जाने वाली ज्यादतियों का जिक्र कियागया जिसे मनमाने लगान, पैमईस की जरीब छोटी करना, लगान पर ज्यादा ब्याज लेना और अनेक प्रकार की बेगार लेना आदि.(डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया:पृ.22)

झुंझुनू सम्मलेन के फलितार्थ - झुंझुनू का अधिवेशन शेखावाटी के किसानों विशेषकर जाटों के सामाजिक व सांस्कृतिक जीवन में परिवर्तनकारी साबित हुआ. हिम्मत, जोश व स्वाभिमान के साथ उन्हें अपनी जातीय उच्चता का भी भान हुआ. इसी अवसर पर ठाकुर देशराज ने जाट इतिहास लिखने की घोषणा की. पंडितों ने जाटों को यज्ञोपवीत धारण करवाए. समाज के अन्य वर्ग भी उन्हें श्रेष्ठ आर्य तथा क्षत्रिय कौम मानने लगे. इस सम्मलेन ने शेखावाटी ही नहीं जयपुर रियासत व बीकानेर के बड़े इलाकों में भी जाटों की काया पलट दी. उनमें वह रूह फूंक दी जो उनके सहस और कार्यक्षमता को बराबर बढाती रही. इस जलसे में धन की अपील पर लोगों ने कानों की मुर्कियाँ और लड़कियों ने हाथों के कड़े तक उतार दिए थे. यह जलसा शेखावाटी की जागृति का प्रथम सुनहरा प्रभात था. इसने ठिकानेदारों की आँखों के सामने चकाचोंध पैदा करदी. जातीय सुधार के काम बहुत जोरों से होने लगे. (डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया:पृ.23)

मलसीसर में किसान सम्मलेन 1945

नोट - यह सेक्शन राजेन्द्र कसवा की पुस्तक मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), प्रकाशक: कल्पना पब्लिकेशन, जयपुर, फोन: 0141 -2317611, संस्करण: 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, p. 189-192 से साभार लिया गया है.

21 नवम्बर 1945 को प्रजामंडल ने जयपुर स्टेट से बातें करने के लिए एक उपसमिति का गठन किया. इसके संयोजक विद्याधर कुलहरी बनाये गए. दो सदस्य थे - सरदार हरलाल सिंह और नरोत्तम जोशी. पंडित ताड़केश्वर उपसमिति के मंत्री एवं सत्यदेव सिंह देवरोड़ आफिस इंचार्ज बनाये गए. इस उपसमिति ने जयपुर दरबार से बातचीत की परन्तु उनके कान पर जूं नहीं रेंगी. तब सरदार हरलाल सिंह, चौधरी घासी राम, नेतराम सिंह आदि ने गाँवों में तूफानी दौरे शुरू किये. किसानों को सावधान किया कि खतौनियों में दर्ज लगान से अधिक लगान बिलकुल न दें. (राजेन्द्र कसवा, p. 189)


ठिकाने दारों द्वारा प्रतिदिन किसानों को परेशान किया जाने लगा. 19 दिसंबर 1945 को चौधरी घासीराम ने झुंझनु जिले के मलसीसर गाँव में किसानों का विशाल जलसा आयोजित किया. पंडित हीरा लाल शास्त्री ने इस सम्मलेन कि अध्यक्षता की. झुंझुनू, सीकर एवं चूरू जिले से करीब दस हजार किसान इस सम्मलेन में उपस्थित हुए. प्रसिद्ध भजनोपदेशक पृथ्वी सिंह बेधड़क, जीवन राम, मोहर सिंह, देवकरण पालोता, सूरजमल साथी आदि ने ऐसे गीत प्रस्तुत किये कि जानलेवा जाड़े के बावजूद किसान आधीरात तक डटे रहे. मलसीसर अति पिछड़े क्षेत्र में आता है. यहाँ के निवासियों ने प्रथम बार इतना बड़ा सम्मलेन देखा. (राजेन्द्र कसवा, p. 190)


मलसीसर का ठाकुर असभ्य और क्रूर समझा जाता था. वह अन्य ठाकुरों से दुगुना लगान वसूल करता था. किसानों में वह फूट पैदा कर अपना स्वार्थ पूरा करता था.उसी मलसीसर में, ठीक गढ़ के सामने, चौधरी घासी राम ने किसानों का जलसा कर ठाकुर को सीधी चुनौती दी थी.(राजेन्द्र कसवा, p. 190)

पंडित हीरालाल शास्त्री को दिन के बारह बजे ही सम्मलेन स्थल पर पहुँचाना चाहिए था. परन्तु वे विलम्ब से पहुंचे. जाड़े का मौसम था. घासी राम की योजना थी कि चार बजे तक सम्मलेन समाप्त हो जायेगा. इससे किसान रात होने से पूर्व ही अपने अपने घरों में चले जायेंगे. दूर के किसानों के ठहराने की व्यवस्था थी. जिस समय चूरू जिले के गाँव दूधवा खारा के किसान नेता हनुमान सिंह बुडानिया मंच से भाषण कर रहे थे, ठाकुर के कारिंदे हथियारों से लैस होकर गढ़ के बाहर आ गए. सभा में कानाफूसी होने लगी. हनुमान सिंह को समझते देर नहीं लगी. उन्होंने अपनी आवाज ऊँची करते हुए कहा, 'किसानो, तुम, क्यों चिंता करते हो? तुम लोग तो जमीन पर बैठे हो. मैं मंच पर खड़ा हूँ. ठाकुर की पहली गोली मुझे ही लगेगी. लेकिन मैं कहना चाहता हूँ कि अब इन बंदूकों में जान नहीं है.' (राजेन्द्र कसवा, p. 190)

ठाकुर के कारिंदे आगे नहीं बढे. तभी हीरालाल शास्त्री का काफिला आ पहुंचा. उनके साथ कुम्भा राम आर्य, सरदार हरलाल सिंह और नरोत्तम जोशी आदि थे. किसान बहुत समय से बैठे उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे. आते ही कुम्भा राम आर्य ने भाषण शुरू किया. कुम्भाराम आर्य ने कहा, 'किसानों, इन जागीरदारों से डरने की जरुरत नहीं है. परिवर्तन का शंख बज चुका है. ठाकुरों की तलवारों में जंग लग चुकी है. बंदूकों में पानी भर गया है. मैं ठाकुरों को चेतावनी देता हूँ कि वे अब समय की आवाज सुनें. अब किसानों को जानवर नहीं अन्नदाता समझें. तुम स्वयं को अन्नदाता समझना छोड़ दो. अब तुम्हारे पाप का घड़ा भर चुका है.' (राजेन्द्र कसवा, p. 191)

सम्मलेन स्थल पर उस दिन किसानों में चर्चा हुई कि नरोत्तम जोशी जान बूझकर शास्त्री और हरलाल सिंह को विलम्ब से लाये. इसका कारण बताया जाता है कि जोशी चौधरी घासी राम से उनकी अधिक लोकप्रियता के कारण ईर्ष्या करते थे और सम्मलेन को असफल बनाना चाहते थे. बार-बार किसानों का मुद्दा उठाना जोशी को अच्छा नहीं लगता था. सम्मलेन के संयोजक चौधरी घासीराम ही थे. जोशी की यह सोच बताई जाती है कि लेट होने से रात को किसान सर्दी में भूखे रहेंगे और घासी राम पर क्रुद्ध होंगे. यह ईर्ष्या संगठन के लिए खतरनाक थी. (राजेन्द्र कसवा, p. 191)

सम्मलेन समाप्त होने के बाद पंडित नरोत्तम जोशी ने चौधरी घासी राम को एक और लेकर कहा, 'तुमने इतनी भीड़ इकट्ठी करली, अब ये लोग तुम्हें भूखे पेट गलियां देते जायेंगे. इनके खाने की कोई व्यवस्था हो नहीं सकती.' चौधरी घासीराम इनके विलम्ब से आने पर पहले ही नाराज थे. झुंझलाकर बोले, 'तुम अपनी करलो. मेरा नाम घासीराम है. एक भी ऊँट या किसान यहाँ से भूखा नहीं जायेगा.' (राजेन्द्र कसवा, p. 191)

बड़े सभी नेता मलसीसर से खिसक लिए. घासीराम ने हाड़तोड़ शर्दी में कड़क आवाज में कहा, 'सभी किसान खाना खाकर जायेंगे. ऊंटों के लिए चारे की व्यवस्था है.'

आस-पास के गाँवों के किसान चले गए. लेकिन फिर भी बहुत बड़ी संख्या में मौजूद किसानों को मीठे चावल पकाकर खिलाये गए और ऊंटों के लिए चारे की व्यवस्था की. निकटतम गाँवों के लोगों ने चारे और लकड़ी का ढेर लगा दिया. गुड़ और चावल बाजार से मंगाए गए. ऐसी व्यवस्था चौधरी घासी राम ही कर सकते थे. सम्मलेन की सफलता के पीछे चौधरी घासीराम की कर्मठता और नेतृत्व क्षमता थी. उन्होंने किसानों का एक मजबूत संगठन खड़ा कर लिया. गाँवों में वे एक मसीहा समझे जाते थे. (राजेन्द्र कसवा, p. 192)

गैलरी

सन्दर्भ

  1. Sanjay Singh Saharan, Dharati Putra: Jat Baudhik evam Pratibha Samman Samaroh Sahwa, Smarika 30 December 2012, by Jat Kirti Sansthan Churu, pp.11-12
  2. Ganesh Berwal: 'Jan Jagaran Ke Jan Nayak Kamred Mohar Singh', 2016, ISBN 978.81.926510.7.1, p.8
  3. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.150-151
  4. Ganesh Berwal: 'Jan Jagaran Ke Jan Nayak Kamred Mohar Singh', 2016, ISBN 978.81.926510.7.1, p.7
  5. Ganesh Berwal: 'Jan Jagaran Ke Jan Nayak Kamred Mohar Singh', 2016, ISBN 978.81.926510.7.1, p.8
  6. Ganesh Berwal: 'Jan Jagaran Ke Jan Nayak Kamred Mohar Singh', 2016, ISBN 978.81.926510.7.1, p.41-46

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