Karkotaka

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Karkotakeshwar Temple near Harasiddhi Temple complex in Ujjain
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Karkotaka (कर्कॊटक) were ancient people mentioned in Mahabharata. Karkota is probably same tribe as Karkotaka. They traditionally occupied the site of the present Nepal Valley. They lived in the forest of Vindhyachala also. Some Jat clans are said to have originated from them.

Variants

History

Karkotaka resided, according to Hodgson (Lang. Lit. etc., reprint, p. 115), in the lake which traditionally occupied the site of the present Nepal Valley, and when the lake was dessicated 'by the Sword of the Manjusri, Karkotako had a fine tank built for him to dwell in, and is there still worshipped; as well as in the Cave-temple attached to the great Buddhist Shrine of Swayambhu Nath in Nepal. A range of hills in Rajasthan named 'Kārkota' seems associated with Nagas (Ind. Arch. Surv. Hep. vi. p. 167). And 'Karkota' is the name of a Kashmir dynasty mentioned in Raja Tarangini and elsewhere, dating from the seventh century AD; and of a 'Kota' dynasty (Ind. Arch. Surv. Rep. xiv. 45).

Karkota is probably same tribe as Karkotaka (कर्कोटक), the ancient Nagavanshi King of Mahabharata (I.35.5), (II.9.9), (V.103.9), (VIII.30.45), (XVI.5.14).

According to Tej Ram Sharma[1] Nepala is mentioned in Allahabad Stone Pillar Inscription of Samudragupta (=A.D.335-76) (L. 22), The Nepal valley originally contained a lake called Naga Basa or Kalihrada, in which lived Naga Karkotaka. It was fourteen miles in length and four miles in breadth.


According to the Mahabharata and the Puranas, the most celebrated Haihaya king was Arjuna Kartavirya.[2] His epithet was Sahasrabahu. He was called a Samrat and Chakravartin. His name is found in the Rig Veda (VIII.45.26).[3] He ultimately conquered Mahishmati city from Karkotaka Naga, a Naga chief and made it his fortress-capital.[4]

Karkotaka in south of Jaipur were samantas of Chauhans. (Devi Singh Mandawa,p.137)

Jat Gotras from Karkotaka

Karkotak (कार्कोटक) is a gotra of Jats.[5] Its Origin is from Karkotaka (कर्कोटक), ancient Nagavanshi King of Mahabharata period.

Mythology

In Indian mythology, Karkotaka was a naga king lived in a forest near Nishadha Kingdom, who bit Nala at the request of Indra, transforming Nala into a twisted and ugly shape. Karkotaka had deceived Narada who cursed him due to which he could not move a step. Karkotaka was friend of Nala and suggested Nala to go to Rituparna, king of Ayodhya and stay there under a changed name Bahuka.[9]

Karkotaka in Indian epics

Adi Parva, Mahabharata/Mahabharata Book I Chapter 35 provides us Names of Chief Nagas. Karkotaka is mentioned in Mahabharata (I.35.5)

शेषः परथमतॊ जातॊ वासुकिस तदनन्तरम
ऐरावतस तक्षकश च कर्कॊटक धनंजयौ Mahabharata (I.35.5)

Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 9 mentions names of following Naga kings who attended the Sabha of Yudhishthira:

Vasuki and Takshaka, and the Naga called Airavata; Krishna and Lohita; Padma and Chitra endued with great energy; the Nagas called Kamvala and Aswatara; and Dhritarashtra and Valahaka; Matimat and Kundadhara and Karkotaka and Dhananjaya; Panimat and the mighty Kundaka, O lord of the Earth; and Prahlada and Mushikada, and Janamejaya,--all having auspicious marks and mandalas and extended hoods;--these and many other snakes. These have been described from shloka 8 to 11 as under:

वासुकिस तक्षकश चैव नागश चैरावतस तदा
कृष्णशलॊहितश चैव पद्मश चित्रश च वीर्यवान ।।8।।
कम्बलाश्वतरौ नागौ धृतराष्ट्र बलाहकौ
मणिमान कुण्डलधरः कर्कॊटक धनंजयौ ।।9।।
परह्लाथॊ मूषिकादश च तदैव जनमेजयः
पताकिनॊ मण्डलिनः फणवन्तश च सर्वशः ।।10।।
एते चान्ये च बहवः सर्पास तस्यां युधिष्ठिर
उपासते महात्मानं वरुणं विगतक्लमाः ।।11।।
Karkotakeshwar Temple near Harasiddhi Temple complex in Ujjain

Udyoga Parva/Mahabharata Book V Chapter 103: Bhogavati city and innumerable Nagas described. Karkotaka is mentioned in Mahabharata (V.103.9)

वासुकिस तक्षकश चैव कर्कॊटक धनंजयौ
कालीयॊ नहुषश चैव कम्बलाश्वतराव उभौ Mahabharata (V.103.9)

Karna Parva/Mahabharata Book VIII Chapter 30 mentions this tribe in derogatory sense and advises to avoid this country:

"The Karasakaras, the Mahishakas, the Kalingas, the Kikatas, the Atavis, the Karkotakas, the Virakas, and other peoples of no religion, one should always avoid."
कारः करान महिषकान कलिङ्गान कीकटाटवीन
कर्कॊटकान वीरकांश च दुर्धर्मांश च विवर्जयेत Mahabharata (VIII.30.45)

Mausala Parva/Book 16 Section 4 mentions the great slaughter of the Yadus. Krishna proceeded along that way which led to the ocean. Ocean himself, and many celestial snakes, and many sacred Rivers were there, for receiving him with honour. There were Karkotaka and Vasuki and Takshaka and Prithusravas and Varuna and Kunjara, and Misri and Sankha and Kumuda and Pundarika, and the high-souled Dhritarashtra, and Hrada and Kratha and Sitikantha of fierce energy, and Chakramanda and Atishanda, and that foremost of Nagas called Durmukha, and Amvarisha, and king Varuna.

कर्कॊटकॊ वसुकिस तक्षकश च; पृथुश्रवा वरुणः कुञ्जरश
मिश्री शङ्खः कुमुदः पुण्डरीकस; तथा नागॊ धृतराष्ट्रॊ महात्मा Mahabharata(XVI.5.14)
हरादः कराथः शितिकण्ठॊ ऽगरतेजास; तथा नागौ चक्रमन्दातिषाण्डौ
नागश्रेष्ठॊ दुर्मुखश चाम्बरीषः; सवयं राजा वरुणश चापि राजन ...Mahabharata (XVI.5.15)

कर्कोटक नाग

विजयेन्द्र कुमार माथुर[10] ने लेख किया है ... कर्कोटक (AS, p.142): 'कारस्करान् माहिष्कान् कुरंडान् केरलांस्तथा कर्कोटकान् वीरकांश्च दुर्धर्मांश्च विवर्यजेत्।' (कर्ण पर्व महाभारत 44, 43) अर्थात् कारस्कर, माहिषक, कुरंड, केरल, कर्कोटक और वीरक दूषित धर्म वाले हैं, इसलिए इनसे दूर रहना चाहिए। कर्कोटक नामक नाग जाति का उल्लेख महाभारत की नल दमयंती की कथा में है। यह जाति संभवत: विंध्याचल के घने जंगलों में रहती थी। उन्हीं के निवास स्थान के प्रदेश का नाम कर्कोटक माना जा सकता है।

कर्कोटेश्वर

कर्कोटक पौराणिक धर्म ग्रंथों और हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शिव के गण और नागों के राजा थे। भगवान शिव की स्तुति के कारण कर्कोटक जनमेजय के नाग यज्ञ से बच निकले थे और उज्जैन में उन्होंने शिव की घोर तपस्या की थी। कर्कोटेश्वर का एक प्राचीन उपेक्षित मंदिर आज भी चौबीस खम्भा देवी के पास कोट मोहल्ले में है। वर्तमान में यह कर्कोटेश्वर मंदिर हरसिद्धि के प्रांगण में स्थित है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार नागों की माँ ने उन्हें अपना वचन भंग करने के कारण शाप दिया कि वे सब जनमेजय के नाग यज्ञ में जल मरेंगे। इससे भयभीत होकर शेषनाग हिमालय पर, कम्बल नाग ब्रह्माजी के लोक में, शंखचूड़ मणिपुर राज्य में, कालिया नाग यमुना में, धृतराष्ट्र नाग प्रयाग में, एलापत्र ब्रह्मलोक में और अन्य कुरुक्षेत्र में तप करने चले गए। एलापत्र ने ब्रह्म जी से पूछा- "भगवान ! माता के शाप से हमारी मुक्ति कैसे होगी?" तब ब्रह्माजी ने कहा, "आप महाकाल वन में जाकर महामाया के सामने स्थित शिवलिंग की पूजा करो। तब कर्कोटक नाग वहाँ पहुँचा और उन्होंने शिवजी की स्तुति की। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर कहा कि "जो नाग धर्म का आचरण करते हैं, उनका विनाश नहीं होगा।" इसके उपरांत कर्कोटक नाग वहीं लिंग में प्रविष्ट हो गया। तब से उस लिंग को कर्कोटेश्वर कहते हैं। यह माना जाता है कि जो लोग पंचमी, चतुर्दशी और रविवार को कर्कोटेश्वर की पूजा करते हैं, उन्हें सर्प पीड़ा नहीं होती।

संदर्भ: भारतकोश-कर्कोटक

कश्मीर का कर्कोटक वंश

कर्कोटक वंश: कश्मीर के हिन्दू राज्य के विषय में हमें कल्हण की 'राजतरंगिणी' से जानकारी मिलती है। 800 से 1200 ई. के मध्य कश्मीर में तीन राजवंशों ने शासन किया जिनका क्रम था-

7वीं शताब्दी में दुर्लभ वर्धन ने कश्मीर में कोर्कोट वंश की स्थापना की। ह्वेनसांग के विवरण के आधार पर कहा जाता है कि उसके राज्य की सीमा के अन्तर्गत तक्षशिला, सिंहपुर, उरशा, पुंछ एवं राजपूताना शामिल थे।

कर्कोटक का इतिहास

ठाकुर देशराज लिखते हैं कि कर्कोटक का वर्णन पिछले पृष्ठों में आ चुका है। यह यादव-वंशी समुदाय अब कटेवा नाम से मशहूर है। इन्हीं लोगों के नाम से उस नदी का नाम काटली प्रसिद्ध हुआ, जिसके किनारे यह जमकर बैठ गए। झंझवन से आगे काटली नदी बहती थी। बरसात में वह अब भी बहती है। उसी के किनारों पर कटेवा लोगों का जनपद था। काटली नदी के किनारे खुडाना नामक एक गढ़ है। अब सिर्फ वहां भी मिट्टी का एक टीला अवश्य है। आस-पास के लोग कहते हैं, यह पहले गढ़ था। हमें विश्वास के साथ बताया गया है कि कटेवा लोगों का यहां राज्य था। ऐसा कहते हैं कि यवनों से युद्ध में लड़ते समय देश की रक्षा के लिए अत्यधिक संख्या में सिर कटाने के कारण ये कटेवा मशहूर हुए हैं, जिस भांति कि शिशोदिया। वास्तव में यह कर्कोट या वाकाटक यादव हैं।[11]

पुरातन काल में नाग क्षत्रिय समस्त भारत में शासक थे. नाग शासकों में सबसे महत्वपूर्ण और संघर्षमय इतिहास तक्षकों का और फ़िर शेषनागों का है. एक समय समस्त कश्मीर और पश्चिमी पंचनद नाग लोगों से आच्छादित था. इसमें कश्मीर के कर्कोटक और अनंत नागों का बड़ा दबदबा था. पंचनद (पंजाब) में तक्षक लोग अधिक प्रसिद्ध थे. कर्कोटक नागों का समूह विन्ध्य की और बढ़ गया और यहीं से सारे मध्य भारत में छा गया. यह स्मरणीय है कि मध्य भारत के समस्त नाग एक लंबे समय के पश्चात बौद्ध काल के अंत में पनपने वाले ब्रह्मण धर्म में दीक्षित हो गए. बाद में ये भारशिव और नए नागों के रूप में प्रकट हुए. इन्हीं लोगों के वंशज खैरागढ़, ग्वालियर आदि के नरेश थे. ये अब राजपूत और मराठे कहलाने लगे. तक्षक लोगों का समूह तीन चौथाई भाग से भी ज्यादा जाट संघ में सामिल हो गए थे. वे आज टोकस और तक्षक जाटों के रूप में जाने जाते हैं. शेष नाग वंश पूर्ण रूप से जाट संघ में सामिल हो गया जो आज शेषमा कहलाते हैं. वासुकि नाग भी मारवाड़ में पहुंचे. इनके अतिरिक्त नागों के कई वंश मारवाड़ में विद्यमान हैं. जो सब जाट जाति में शामिल हैं.[12]

पौराणिक कथाओं के अनुसार

कर्कोटेश्वर का मंदिर उज्जैन में हरसिद्धि मंदिर परिसर के अन्दर स्थित है. कर्कोटक शिव के एक गण थे. पौराणिक कथाओं के अनुसार सर्पों की माँ ने साँपों के द्वारा अपना वचन भंग करने से श्राप दिया कि वे सब जनमेजय के नाग यज्ञ में जल मरेंगे. इससे भयभीत होकर शेष हिमालय पर , कम्बल नाग ब्रह्माजी के लोक में, शंखचूड़ मणिपुर राज्य में, कालिया नाग यमुना में, धृतराष्ट्र नाग प्रयाग में, एलापत्र ब्रह्मलोक में, और अन्य कुरुक्षेत्र में तप करने चले गए. एलापत्र ने ब्रह्म जी से पूछा - भगवान ! माता के शाप से हमारी मुक्ति कैसे होगी ? तब ब्रह्माजी ने कहा आप महाकाल वन में जाकर महामाया के पास सामने स्थित लिंग की पूजा करो. तब कर्कोटक नाग वहां आया और उन्होंने शिवजी की स्तुति की. स्कन्दपुराण मे इस स्थल की भौगोलिक स्थिति बताने वाला स्लोक इस प्रकार है: [13]

देवमाराधयामास महामायापुरः स्थितः ।१३ ।

शिव ने प्रसन्न होकर कहा कि - जो नाग धर्म का आचरण करते हैं उनका विनाश नहीं होगा. इसके उपरांत कर्कोटक नाग वहीँ लिंग में प्रविष्ट हो गया. तब से उस लिंग को कर्कोटेश्वर (संभवतः उज्जैन के कोट मोहला में ) कहते हैं. मान्यता है कि जो लोग पंचमी, चतुर्दशी और रविवार को कर्कोटेश्वर की पूजा करते हैं उन्हें सर्प पीड़ा नहीं होती. [14]

कर्कोटक नाग के तपस्या-स्थल का वर्णन महामाया (चौबीस खंभा देवी ) के पास किया गया है. कर्कोटेश्वर का एक प्राचीन उपेक्षित मंदिर आज भी चौबीस खम्भा देवी के पास कोट मोहल्ले में है . कोट मोहल्ला शब्द भी कर्कोटेश्वर का अपभ्रंश है . वर्त्तमान में कर्कोटेश्वर मंदिर हरसिद्धि के प्रांगण में है . [15]

भीमताल

भीमेश्वर महादेव मन्दिर, भीमताल

भीमताल भारत के उत्तराखण्ड राज्य के नैनीताल ज़िले में स्थित एक नगर है। नगर का नाम भीमताल झील के ऊपर पड़ा है, जो नगर के मध्य में स्थित है। 'भीमाकार' होने के कारण शायद इस ताल को भीमताल कहते हैं। परन्तु कुछ विद्वान इस ताल का सम्बन्ध पाण्डु-पुत्र भीम से जोड़ते हैं। काठगोदाम से 10 किमी उत्तर और नैनीताल से 22 किमी पूर्व नैनीताल जिले में स्थित यह झील कुमाऊं क्षेत्र का सबसे बड़ा झील है। त्रिभुज के आकार का यह ताल तीन तरफ से पर्वतों से घिरा है। इसमें पर्यटकों हेतु नौकाविहर की सुविधा है। इसमें जल का रंग गहरा नीला है। यह कमल और कमल कड़ी के लिए प्रसिद्ध है। इस झील के बीच में टापू है, जिस पर रेस्टोरेंट है। इस झील से सिंचाई हेतु छोटी-छोटी नहरें निकाली गई है। भीमताल नैनीताल और हल्द्वानी से भी पुराना है। ऐसा माना जाता है कि यह स्थान प्राचीन सिल्क मार्ग पर पड़ता था जो नेपाल और तिब्बत को जोड़ता था।

कर्कोटक नाग के नाम से यहाँ एक पहाड़ी है जिस पर एक नाग मंदिर बना हुआ है। हजारों लोग ऋषि पंचमी के दिन यहाँ पूजा करने के लिए आते हैं। यह उत्तराखंड का प्रसिद्ध नाग मंदिर हैं।

भीमेश्वर महादेव मन्दिर: भीमेश्वर महादेव मंदिर नैनीताल से 22 किमी. की दूरी पर भीमताल झील के तट पर बसा हुआ एक प्राचीन मंदिर है| माना जाता है कि अज्ञातवास के समय पांडव इस क्षेत्र में आये थे, तथा भीमताल के किनारे भीम ने भगवान शिव की तपस्या की थी। तेरहवीं शताब्दी में यह क्षेत्र कुमाऊँ राज्य के अंतर्गत आया, और सत्रहवीं शताब्दी में यहां अल्मोड़ा के राजा बाज़ बहादुर चन्द ने भीमेश्वर महादेव मन्दिर की स्थापना की थी। चन्द काल में यह छखाता परगना का मुख्यालय हुआ करता था।

See also

References

  1. Personal and geographical names in the Gupta inscriptions/Place-Names and their Suffixes,p.259
  2. Pargiter, F.E. (1972) [1922]. Ancient Indian Historical Tradition, Delhi: Motilal Banarsidass, p.265-7
  3. Misra, V.S. (2007). Ancient Indian Dynasties, Mumbai: Bharatiya Vidya Bhavan, ISBN 81-7276-413-8, pp.157-8
  4. Pargiter, F.E. (1972) [1922]. Ancient Indian Historical Tradition, Delhi: Motilal Banarsidass, p.265-7
  5. डॉ पेमाराम :राजस्थान के जाटों का इतिहास, 2010, पृ.297
  6. Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.30,sn-255.
  7. Dr Mahendra Singh Arya, Dharmpal Singh Dudee, Kishan Singh Faujdar & Vijendra Singh Narwar: Ādhunik Jat Itihas (The modern history of Jats), Agra 1998, p. 233
  8. Dr Mahendra Singh Arya, Dharmpal Singh Dudee, Kishan Singh Faujdar & Vijendra Singh Narwar: Ādhunik Jat Itihas (The modern history of Jats), Agra 1998 p. 235
  9. Doug Niles (18 August 2013). Dragons: The Myths, Legends, and Lore. New York: Adams Media. pp. 131–132. ISBN 978-1-4405-6216-7.
  10. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.142
  11. Jat History Thakur Deshraj/Chapter IX, p.614
  12. किशोरी लाल फौजदार: "महाभारत कालीन जाट वंश", जाट समाज, आगरा, जुलाई 1995, पृ 8
  13. डॉ भंवर लाल द्विवेदी: अवंतिका माहात्म्य, २००४, पृ. १३१
  14. डॉ भंवर लाल द्विवेदी: अवंतिका माहात्म्य, २००४, पृ. १३१-१३२
  15. डॉ भंवर लाल द्विवेदी: अवंतिका माहात्म्य, २००४, पृ. ४

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