Hira Singh Chahar

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लेखक:लक्ष्मण बुरड़क, IFS (R)
Hira Singh Chahar

Hira Singh Chahar (हीरासिंह चाहर) (17.1.1901-30.6.1993) was a social reformer, folk-singer and freedom fighter from village Paharsar in Rajgarh tahsil of Churu district in Rajasthan.

Early life

Smt Madi Devi Wife Of Hira Singh Chahar

He was born on 17 January 1901 in the family of Laxman Ram Chahar. His mother was Smt. Padma Devi. He went to Lahore in 1920 and established an Ice-Factory there. He came there in contact with Arya Samajists. He was married to Madi Devi Manjhu from village Galad.

Arya Samaj

He joined Arya Samaj at the age of fourteen and spread the doctrine of Arya Samaj in remote villages of Rajasthan. He started a campaign to remove social evils from the society through folk-songs. His poems played a wonderful role in awakening the Jats. He devoted all his life for the betterment of Jat community.

In 1930 he joined the Lahore Congress Adhiveshan where he was influenced by Mahatma Gandhi and joined the Non violence movement. He was badly perturbed when found the farmers of Marwar being exploited by the Jagirdars. He left Lahore in 1932 and came to village Paharsar.

After moving back to Paharsar, he immediately got into action and started tours in local Bikaner रियासत to spread the message of the importance of freedom struggle being spearheaded by Mahatma Gandhi ji and message of Arya Saamaj among the farmers. People started talking about him, and local रियासत officers started getting alarmed by his popularity, which was due to his simple way to communicate in local language and message understandable by the farmers.

Movement against Jagirdari system

He strongly opposed the exploitation of farmers by the Jagirdars. People started talking about him, and local रियासत officers started getting alarmed by his popularity, which was due to his simple way to communicate in local language and message understandable by the farmers.

It didn’t take long for Bikaner King Shri Ganga Singh to get alarmed. He was expelled from Churu by ruler Ganga Singh of Bikaner. He joined the freedom movement in Marwar under the leadership of Baldev Ram Mirdha and started working under the banner of Kisan Sabha.

He organized a kisansabha in Dabra village on 13 March 1947. The jagirdar threatened that if Dabra kisansabha is organized, Hira Singh will not remain alive. Irrespective of threats the kisansabha started, the jagirdar created problems and there was a struggle between both in which Hira Singh was injured.

Nagaur – Marwar area, became his core activity center. In Bikaner, he came in contact and worked with Choudhary Kumbha Ram Arya, Choudhary Hans Raj Arya and in Nagaur, he worked with Shri Mool Singh ji, Shri Baldev Ram Mirdha, and Shri Mathuradas Mathur. He also came in contact with चौधरी किशनाराम रोझ of Choti Khatu, चौधरी हरदीन राम रिणवां of भंवरिया, Degana.

His family

He was married to Smt. Madi Devi (Manju) of village Galad. He had two brothers: Lekh Ram Hawaldar and Adram and two sisters. [1]

He has four sons:

1. Onkar Singh Chaudhary (born 12.11.1931) is a social worker and journalist at village Paharsar in Rajgarh tahsil of Churu district in Rajasthan.
2. Rati Ram Thekedar (15.4.1934 - 6.1.2011) - Dabri Bhadra,
3. Munshi Ram Chahar (25.5.1940 से 9.5.2016) settled at Pahadsar.
4. Hajari Lal Chahar (born: 1.1.1947), Retd. from Army Medical Corps (AMC),

He has two daughters:

1. Parameshwari Devi (born:15.10.1928) married to Late Birbal Ram Punia of Dabri Hanumangarh
2. Rami Devi (12.6.1944) married to Banwari Lal Punia of Mangla Churu
Hira Singh Awarded with Tamra Patra by the Government of Rajasthan

Awards

For his contribution towards the Freedom movement, Movement for Jagirdari abolition, and his efforts to educate and awaken the people, he was awarded with a tamra patra and title of freedom fighter on 2 October 1987 by the Government of Rajasthan. The Chief Minister of Rajasthan provided him the honour at District Collectorate Churu. [2]

निम्नलिखित "ताम्र पत्र" पर अंकित है:

"राष्ट्र के स्वतंत्रता संग्राम और राजस्थान के रियासती आंदोलन एवं सामंती उत्पीड़न के मुक्ति संघर्षों में सक्रिय योगदान, त्याग और बलिदान के लिए यह सम्मान पत्र मुख्यमंत्री, राजस्थान ने भेंट किया." २ अक्टूबर १९८७

Death

He died on 30 June 1993.

Gallery

हीरासिंह चाहर का जीवन परिचय

स्वतन्त्रता सेनानी एवं भजनोपदेशक चौधरी हीरासिंह चाहर एक सच्चे समाज सेवक एवं देश भक्त थे। उनका परिवार आज उनके पिता व पितामह की राह पर चलते हुए समाज में शिक्षा की कमी को दूर करने, समाज में फैली कुरीतियों का उन्मूलन करने व जनजागृती पैदा करने के अभियान में जुड़े हुए हैं।

इस कार्य में हीरा सिंह के जेष्ठ पुत्र ओंकार सिंह चाहर बैंक से सेवानिवृति के बाद समाज की नामी संस्थाओं व पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से समाज में जन जागृति, सामाजिक संगठन एवं शिक्षा के प्रचार प्रसार में अमूल्य योगदान दे रहे हैं।

आपका पौत्र ओमप्रकाश चौधरी इंजीनियर है जो अमेरिका व भारत में अपनी फर्म Opal Soft Inc. San Jose USA द्वारा सॉफ्टवेयर के व्यापार के साथ-साथ अपनी संस्कृति के प्रचार से भारत का नाम रोशन कर रहे है। ‘हीरा’ स्वरुप चौधरी हीरा सिंह के संक्षिप्त जीवन परिचय से प्रेरणा प्राप्त कर अपने समाज को मजबूत संगठित व आगे बढ़ाने में भरपूर योगदान दे रहे हैं।

हीरासिंह चाहर का जन्म: राजशाही युग में अपनी ओजपूर्ण कविताओं, भजनों व भाषणों द्वारा पूरे राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, दिल्ली में शोषण, अन्याय, अत्याचार और गुलामी के विरुद्ध बिगुल बजाया था। तत्कालीन बीकानेर रियासत के गांव पहाड़सर, हाल तहसील राजगढ़, जिला चूरु के मूल निवासी लक्ष्मण राम व माता श्रीमती पदमा देवी गोदारा की पवित्र कोख से 17 जनवरी 1901 को जन्मे हीरा सिंह चाहर रूढ़िवादी समाज में बाल्यकाल बिताते मात्र 15 वर्ष की उम्र में ही आर्य समाजी संस्कार अपनाकर रूढ़िवाद के खिलाफ खड़े हो गए।

स्कूली शिक्षा: साधनों के अभाव में नहीं प्राप्त कर सके परंतु सामाजिक शिक्षा ग्रहण करते हुए प्रगतिवादी, विचारक, समाज सुधारक व भजनीक का दर्जा पाया। मां सरस्वती की कृपा से अपने धारदार भजनों से अंधविश्वासी जनसमूह को जन जागृति की राह पर चलना सिखाया।

विवाह: आपका विवाह गांव का गालड हनुमानगढ के प्रतिष्ठित मांजू परिवार की श्रीमति माड़ी देवी (2.3.1907-14.3.1980) के साथ 1925 ई. में हुआ। आपकी पत्नी एक धर्मपरायण, अतिथि सत्कारी, कुशल गृहणी का धर्म निभाते, अपने चार बच्चों व दो लड़कियों में सुसंस्कार बनाने में अहम भूमिका निभाई। आपकी पत्नी जीवन भर अपने परिवार की चाहिती बन खेती-बाड़ी व पशुपालन की विशेषज्ञ बनी। उन्होने अंतिम सांस दिनांक 14 मार्च 1980 को लिया और स्वर्गवासी हुई।

हीरासिंह चाहर के भाई': आपके दो छोटे भाइयों में हवलदार लेखराम, 78 वर्ष की आयु में दिनांक 13 मई 1992 को स्वर्गवासी हुए। उनकी पत्नी श्रीमती पार्वती देवी 88 वर्ष की आयु में 2 नवंबर 2002 को स्वर्गवासी हुई। दूसरा भाई आदराम चाहार अनपढ़ रहते हुये कृषि में महारथ हासिल की। उन्होने कृषि में कार्य कर अपने परिवार को पैरों पर खड़ा किया। वे 70 वर्ष की आयु में 21 जून 1994 को स्वर्गवासी हुए। जबकि उनकी पत्नी श्रीमती परमेश्वरी देवी बच्चों की छत्रछाया बनी हुई है।

कार्यक्षेत्र: अपने परिवार के पालन पोषण का कर्तव्य निभाने आप 1920 में लाहौर जा कर एक बर्फ फैक्टरी द्वारा कारोबार शुरू किया। वहां वे आर्य समाज के विद्वानों व अनेक राजनेताओं के संपर्क में आए और सामाजिक शिक्षा ग्रहण कर प्रगतिवादी विचारक बन रूढ़िवादी समाज को ललकारते हुए कहने लगे....

आग लगी है इस दिल में, दुनिया में आग लगाने दो।
नंगे जलते पैरों से, इस भूतल पर राख़ बिछाने दो॥
इन नौ खंडों महलों के नीचे, मुझे कुटिया एक बनाने दो।
सदियों से सोईं हुई शक्ति की अब तो ज्योति जलाने दो॥

स्वतंत्रता संग्राम में पदार्पण 1930 ई.: आप 1930 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में शामिल हुये। उसी के प्रतिफल गांधीजी के असहयोग आंदोलन में शरीक हो गए। स्वतंत्रता के जन्म सिद्ध अधिकार को ध्यान में रखते हुए आजादी के दीवाने शहीदे आजम भगत सिंह से मुलाकात हुई। उनके भी सहभागी बन आजादी के जंग में कूद पड़े। इसी आजादी की विचारधारा का प्रचार करते अपने गांव पहाड़सर आए। लोगों के बहकावे में आकर तत्कालीन बीकानेर नरेश महाराजा गंगासिंह ने भयभीत होकर अपनी रियासत बीकानेर से निकालने का आदेश दे दिया।

आप के समय साथ-साथ श्री खूबीराम चौधरी, तहसील भादरा तथा श्री रघुवर दयाल बीकानेर निवासी को भी अपनी बीकानेर रियासत से निकाला गया था। यह देश निकाला इन क्रांतिकारियों के लिए निरुत्साह की अपेक्षा प्रेरणा का स्रोत बना। हीरा सिंह रियासत के सामने घिघियाने की अपेक्षा राष्ट्रीय स्वतन्त्रता को लक्ष्य मानकर मारवाड़ का रुख किया।

मारवाड़ में किसान सभा के झंडे तले किसान हितेषी नेता श्री बलदेव राम मिर्धा, चौधरी मूलचंद सिहाग, बाबू गुल्ला राम, चौधरी शिवकरण आर्य नागौर, वकील लिखमाराम, वकील हरिराम बगड़िया, वकील हेमसिंह कामरेड नागौर, नाथूराम मिर्धा, परसराम मदेरणा, रामनिवास मिर्धा, रामदान डूकिया बाड़मेर आदि अनेक समाज सेवियों के साथ मिलकर किसान शक्ति को जागृत करने का बीड़ा उठाया। हीरा सिंह (जनता) व बलदेव राम मिर्धा (प्रशासन) के सानिध्य में “सिंह” व “हीरा” की क्षमता लेकर दोनों गरजे। जाट समाज व किसान सभा के कर्णधारों को चौधरी हीरा सिंह की विचारधारा रास आई। वे अपनी धारदार कलम व खनकती पैनी आवाज सामंतशाही जागीरदारों के शोषण अत्याचार, अंधविश्वासी कुरीतियों के विरुद्ध आग उगलने लगे।

संक्षिप्त जीवन: जागीरदारों ने डकेतों, बदमाशों, गुंडों के सहारे उत्पीड़न की घटनाओं में डाबड़ा कांड, मल्हार सिवाना लेवी कांड, भंवरिया खाटू डकैती कांड को अंजाम दिया। लेकिन किसानों के साहस और बलिदान के आगे उन्हें मुंह की खानी पड़ी। जीत किसानों की हुई। चौधरी हीरा सिंह ने किसानों का मनोबल बढ़ाने हेतू चुनौती स्वीकार करते हुए डटकर मुकाबला किया। यही उनके असीम साहस और आत्मबल की शक्ति को दर्शाता है।

ओजस्वी प्रचारक चौधरी छोटूराम के जोधपुर आगमन पर सम्मेलन का मंच संचालन चौधरी हीरा सिंह ने सफलतापूर्वक किया। समाज सुधार की बैठकों, शिक्षा प्रचार का अलख जगाने बोर्डिंग हाउस की स्थापना हेतु चंदा उगाही कार्य गांव-गांव ढाणी-ढाणी जाकर किसानों में जागृति कार्यों को बखूबी निभाया। जनसेवक भजनोपदेशक के रूप में आप अपनी पहचान राजस्थान सहित उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, पंजाब और दिल्ली में भी बना चुके थे। मां सरस्वती की कृपा से जैसे ही आप मंच पर खड़े होते तो उसी समय स्थिति अनुसार भजन पढ़ कर सुनाते थे। जनता का मनमोहन कर भीड़ को घंटों बांधे रखते। मारवाड़ के बुजुर्ग आज भी उनकी कही ज्ञानवर्धक बातों को याद करते नहीं अघाते।

पुस्तक प्रकाशन: अपनी पुस्तक 'पाखंड कतरनी 1935' व 'भजन किसान खंड 2, 1947' में प्रकाशन किया। आप सदा राजनीति से दूर जन सेवक के रूप में, स्वतंत्रता के बाद भी, समाज सेवा में लगे रहे। नागौर पशु मेले में 40 वर्षों से बैठकों का मंच संचालन करते रहे। मेला निरंतर भरता रहा है लेकिन हीरासिंह की अनुपस्थिति आज भी मारवाड़ के लोगों को अखरती है।

अपनी धारदार कविता द्वारा इस समय के मारवाड़ यथास्थिति दर्शाते हुए उन्होंने भविष्यवाणी की तर्ज पर कुछ इस प्रकार कहा था....

मैंने देखी है मारवाड़ के कृषकों के कर में हथकड़ियाँ।
उन के आंगन में देखी है चंद जली बुझी सी फुलझड़ियां।
कुछ फूल खिले पर महक न सके वे कुछ ही घड़ियां।
जागीरों के साए में जुड़ती रही जुल्म की कड़ियां।

तब हीरासिंह दहाड़ उठा –

जागीरों में जगे किसान, अब जीत होगी कृषकों की,
आज नहीं तो कल सही, बात कही मैंने परसों की।

ऐसे ओजस्वी भजनों को सुनने पर सभा में तालियों की गड़गड़ाहट के साथ ही आजादी पर मर मिटने वालों के हजारों हाथ खड़े होते थे। गांव-गांव किसान जागृति की लहर फैलती गई। जागीरदारों से जनसाधारण घृणा करने लगा। जागीरदारों द्वारा डकैतों, बदमासों, गुंडों का हथकंडा अपनाया गया जो उनके ही विरुद्ध होने लगा।

13 मार्च 1947 को डाबड़ा आंदोलन में जागीरी जुल्म शोषण की पराकाष्ठा को लांघ गया जिसमें हीरासिंह चश्मदीद गवाह के रूप में उपस्थित थे। उन्होंने शहीदों के शवों का संयुक्त रुप से दाह संस्कार कराया। वह घायलों को मौलासर (डीडवाना) व जोधपुर के अस्पताल पहुंचाकर समुचित इलाज का इंतजाम करवाया। परंतु इस शहीद कांड की अग्नि में "हीरा" स्वर्ण की भांति तपकर तनिक भी विचलित न हो अगले दिन से ही अनेक स्थानों पर सभाओं का ऐलान कर शासन को बेनकाब करने का बीड़ा उठाया।

उन दिनों साधनों की कमी के कारण पैदल, बैलगाड़ी या ऊंट के सहारे ही गाँव-गाँव पहुंचा जा सकता था। कई बार डाकुओं का सामना भी करना पड़ता था। इस प्रकार संघर्षमय जीवन जीते सदा किसान हित निस्वार्थ भाव, सामाजिक सुधार में गहरी रुचि रखते हुये सादा जीवन उच्च विचार के पक्षधर, स्पष्टवादी, मिलनसार, परिश्रमी आदि गुणों से परिपूर्ण चौधरी हीरा सिंह के कर्तव्यपरायण जीवन से प्रेरणा लेकर उनके अधूरे छोटे कार्यों को गति प्रदान कर उनके पद चिन्हों पर चलकर ही उन्हें हम सच्ची श्रद्धांजलि दे सकेंगे। ऐसे महापुरुष को शत शत नमन!

स्वतंत्रता सेनानी घोषित 1981: चौधरी हीरा सिंह को स्वतंत्रता संग्राम राजस्थान के रियासती आंदोलन एवं सामंती उत्पीड़न के मुक्ति संघर्षों, त्याग, बलिदान के योगदान के उपलक्ष में 2 अक्टूबर 1987 को ताम्रपत्र प्रदान कर स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा मिला। राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया द्वारा दिये निर्देश का पालन करते हुए उन्हें चूरु जिलाधीश कार्यालय में विशेष समारोह में सम्मानित किया गया। स्वतंत्रता सेनानी की मान्यता 2 अक्टूबर 1981 से थी।

स्वर्गवास 30 जून 1993 - अंतिम समय तक स्वस्थ जीवन जीते किसी को अपनी सेवा करने का मौका दिए बिना दिनांक 30 जून 1993 को दिन के 11:10 पर अंतिम सांस लेकर गांव पहाड़पुर में सभी पारिवारिक सदस्यों को बिलखते छोड़ परलोक सिधारे। उसी दिन दाह संस्कार गांव के परिवारजन, मित्रगण रिश्तेदार सम्मिलित हुए। अपने श्रद्धासुमन अर्पित कर प्रार्थना में उनकी आत्मा को शांति वह इस दुख को सहने की शक्ति की याचना की।

स्वर्गीय हीरा सिंह मेमोरियल चेरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना: चौधरी हीरा सिंह की यादगार को कायम रखने हेतु उनके आश्रितों द्वारा 2001 में उक्त ट्रस्ट की स्थापना ग्राम डाबड़ी तहसील भादरा हनुमानगढ़ में की गई थी जिसके अंतर्गत समय-समय पर सामाजिक सेवा के कार्यक्रम आयोजित कर समाज के कमजोर निचले तबके के लोगों के स्वास्थ्य शिक्षा व सामाजिक महत्व के क्षेत्र में लाभ पहुंचाया जा रहा है।

संदेश: आपके अनुसार राजस्थान का परिश्रमी जाट समाज आज भी पिछड़ा हुआ है। स्त्री शिक्षा को बढ़ावा, छात्रावास निर्माण, समाज में फैली हुई कुरीतियां, अंधविश्वास और पाखंड से बचाव से मुक्ति हेतु युवाओं, समाजसेवियों को आगे आना होगा। आज की युवा पीढ़ी को बुजुर्गों का सम्मान व उनके उच्च आदर्शों के अपने समाज में संगठन, एकता, प्रेम, भाईचारा व पारस्परिक सौहार्द का वातावरण बनाने का प्रयास जारी रखना होगा। वर्तमान परिस्थितियों के युग में व्यवसायिक, औद्योगिक, तकनीकी शिक्षा, व कंप्यूटर शिक्षा में अधिक ध्यान दें। परिश्रम व लगन के साथ अपने लक्ष्य को प्राप्त कर अपने परिवार व समाज का नाम रोशन करें ताकि सामाजिक विकास का सपना साकार हो सके।

सौजन्य: - लेखक: ओंकार सिंह चाहर, कर्मठ समाजसेवी पत्रकार, छ-5, भगत की कोठी विस्तार योजना, पाली रोड, जोधपुर-342005, फोन: 0291-2722263, मोब: 9001064615 के जाट कीर्ति संस्थान चुरू द्वारा प्रकाशित उद्देश्य-2, जून-2013 के पृष्ठ 104-105 पर छपे लेख पर आधारित। इस लेख में दिये गये चित्र श्री ओंकार सिंह चाहर के पुत्र श्री राम निवास चौधरी द्वारा ईमेल से उपलब्ध कराये गए हैं। (Email: Ram Niwas Choudhary<ramniwasc@yahoo.com>)

जाट जन सेवक

रियासती भारत के जाट जन सेवक (1949) पुस्तक में ठाकुर देशराज द्वारा चौधरी हीरासिंह का विवरण पृष्ठ 154-155 पर प्रकाशित किया गया है। ठाकुर देशराज[3] ने लिखा है .... चौधरी हीरासिंह- [पृ.154]: तहसील राजगढ़ के पहाड़सर गांव के चाहर गोत्र के एक दूसरे प्रसिद्ध जाट भजनीक हैं चौधरी हीरासिंह जी। आपके


पिताजी का नाम चौधरी लक्ष्मणराम जी था। संवत 1962-63 में आपका जन्म हुआ था। शहीदे धर्म महाशय राजपाल जी लाहौर के नाम से सारा आर्य जगत परिचित है। उन्हीं के एक रिश्तेदार भीमसेन जी खन्ना ने आपको भजनोपदेशक बनाया। आप उसके बाद बराबर आर्य समाज का काम करते रहे। पंडित दतूराम जी के साथ आपने सीकर जाट महायज्ञ को सफल बनाने के लिए भी काम किया। उसके चार पांच साल बाद से आप मारवाड़ में जाट बोर्डिंग और जाट सभा तथा किसान सभा का काम कर रहे हैं।

आपके दो लड़के हैं ओंकार पढता है और रतिराम भजनीक बन गया। आप के भजनों को साधारण समझकर लोग अत्यंत पसंद करते हैं। भरतपुर में आपने किसान सभा के उम्मीदवारों को सफल बनाने के लिए काम किया था।

आप खुश मिजाज हैं और नेक तबीयत के आदमी हैं। इसलिए हर दिल अजीज समझे जाते हैं। कौम की सेवा ही आपका मुख्य ध्येय है। देश की कोई भी हलचल उन्हें उनके उस रास्ते से अब तक नहीं डिगा सकी है।

जीवन परिचय

ठाकुर देशराज[4] ने लिखा है ....भजनोपदेशकों में चौधरी हीरा सिंह जी व पंडित तलूराम जी ने बड़ी ही दिलचस्पी से चौधरी मूलचन्द सियाग (1887 - 1978) के साथ काम किया और गांव गांव में विद्या प्रचार व कुरीति निवारण का संदेश पहुंचाया। आप बड़े ही लगनशील व परिश्रमी हैं जिसमें हीरा सिंह जी अभी उसी रफ्तार से रात दिन आपके साथ सेवा कार्य व दौड़ धूप कर रहे हैं।

डाबड़ा काण्ड: 13 मार्च 1947

इस काण्ड के प्रत्यक्ष दर्शकों में प्रस्तावित 13 मार्च 1947 की सभा को संबोधित करने वालों में समाज सुधारक और भजनोपदेशक चौधरी हीरासिंह चाहर भी थे जो इस काण्ड की पूर्णावधि के समय अपने साथियों के साथ जीप से डाबड़ा पहुंचे थे। तब जाकर पाँचों शहीदों का सामूहिक दाह संस्कार हो सका था और घायलों का मौलासर अस्पताल व जोधपुर में समुचित इलाज हो सका था।

चौधरी हीरासिंह चाहर ने ऐसे वीर योद्धाओं को सत-सत नमन करते ये पंक्तियाँ कहीं थी -

मैंने देखी है मारवाड़ में, कृषकों के कर में हथकड़ियाँ ।
उनके आँगन में देखी है, चंद जली बुझी सी फुल झड़ियाँ ॥
कुछ फूल खिले पर, महक सके कुछ घड़ियाँ ।
जागीरों के साये में, जुड़ती रही जुल्मों की कड़ियाँ ॥
तब हरिसिंह दहाड़ उठा, जागीरों में जंग , अब जीत कृषकों की।
आज नहीं तो कल सही, बात कही मैं परसों की ॥[5]

हीरा सिंह मेमोरियल चेरिटेबल ट्रस्ट

हीरा सिंह की याद में उनके आश्रितों ने 2001 से "स्वर्गीय हीरा सिंह मेमोरियल चेरिटेबल ट्रस्ट" डाबड़ी तहसील भादरा जिला हनुमंगढ़में बनाया है। इसके अंतर्गत कई सामाजिक सेवा के कार्यक्रम आयोजन किये जाते हैं। इससे समाज के कमजोर, निचले तबके के लोगों को स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक महत्व के क्षेत्रों में लाभ पहुँचाया जाता है। ट्रस्ट द्वारा हर वर्ष काव्य पुरस्कार समारोह भी जाट समाज पत्रिका आगरा द्वारा आयोजित कर पारितोषिक वितरण किया जाता है। [6]

सम्मान

स्व चौधरी हीरासिंह चाहर निवासी पहाड़सर (राजगढ़) को भजनोपदेशक के रूप में मारवाड़ क्षेत्र में समाज-जागृति और समाज- सुधार में सक्रिय योगदान के लिए उनके मरणोपरांत जाट कीर्ति संस्थान चुरू द्वारा 31.8.2017 को ग्रामीण किसान छात्रावास रतनगढ में सम्मान प्रदान किया गया.

See also

Further reading

References

  1. Dharati Putra: Jat Baudhik evam Pratibha Samman Samaroh Sahwa, Smarika 30 December 2012, by Jat Kirti Sansthan Churu, p.48
  2. Dharati Putra: Jat Baudhik evam Pratibha Samman Samaroh Sahwa, Smarika 30 December 2012, by Jat Kirti Sansthan Churu, p.49
  3. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.154-155
  4. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.186
  5. Dharati Putra: Jat Baudhik evam Pratibha Samman Samaroh Sahwa, Smarika 30 December 2012, by Jat Kirti Sansthan Churu, p.46
  6. Dharati Putra: Jat Baudhik evam Pratibha Samman Samaroh Sahwa, Smarika 30 December 2012, by Jat Kirti Sansthan Churu, p.49

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