Jaton Ke Vishva Samrajya aur Unake Yug Purush Part 2/Chapter 27

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पुस्तक: जाटों के विश्व साम्राज्य और उनके युग पुरुष
लेखक: महावीर सिंह जाखड़

प्रकाशक: मरुधरा प्रकाशन, आर्य टाईप सेन्टर, पुरानी तह्सील के पास, सुजानगढ (चुरु)


27 अमर वीरांगनायें

सिद्ध साध्वी भक्त शिरोमणी श्री रानाबाई जी

विस्तार जारी है

महारानी तोमरिस

विस्तार जारी है

राज्य श्री

विस्तार जारी है

कुमारी शैलजा

विस्तार जारी है

राजकुमारी सोमादेवी

विस्तार जारी है

जाट पुत्री-शिवदेवी

सन 1857 की क्रांति की शुरुआत मेरठ में हुई थी। जनपद के किसान नेता शाहमल जाट ने भी जमकर अंग्रेजों से लोहा लिया था। क्रांतिकारियों कों अंग्रेजों ने मौत के घाट उतारा। उन लोगों को पत्थर के कोल्हू से पीसकर चूर-चूर कर मसल दिया था। स्त्री, बूढ़े और बालकों को भी अन्न-जल के अभाव में तड़पा-तड़पा कर मारा। जाटों के अनेक गांवों को अंग्रेजों ने बागी घोषित कर दिया तथा उनकी जमीन, मकान, चल अचल संपत्ती जब्त कर ली। 1947 तक काले अंग्रेजों ने भी इन गांवों को विशेष यातनाएं दी। केवल इतना ही अन्न दिया जाता था कि वे जिंदा रह सकें। पशुओं के लिए भूषा भी ले जाते थे। अतः किसान पुत्रियों को घास खोदकर पेट भरना पड़ता था। घी-दूध बेचकर इन्हें अपना गुजारा


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करना पड़ता था। जाट-पुत्री शिवदेवी ने जब यह अत्याचार देखा तो उन्होने अंग्रेजों को मारने का निश्चय किया। उसकी सहेली किशनदेवी ने भी इस आजादी-यज्ञ में साथ देने का निश्चय किया। बड़ौत के कुछ जाट युवकों के साथ शिवदेवी ने बड़ौत में ही अंग्रेजों के तंबुओं पर हमला किया। शिवदेवी के नेतृत्व में जाटों ने 17 अंग्रेजों को तलवार के घाट उतार दिया। जबकि 25 भागकर छिपने में सफल रहे। घायल शिवदेवी अपने घावों की मरहमपट्टी कर रही थी कि बाहर से आए अंग्रेजों ने उसे घेर लिया। अंग्रेज़ सैनिक जाट सिंहनी की ओर डरते डरते बढ़े। वीर बालिका ने मरते दम तक अंग्रेजों से लोहा लेकर जाटों की उच्चतम शौर्य प्रदर्शन करने की परंपरा निभाई तथा समाज व देश को गौरवान्वित किया।

जय देवी

सन 1857 की क्रान्ति के समय जाट युवतियों ने अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया था। अंग्रेजों ने अनेक जाट स्त्री बच्चे और पुरुषों की नृशंस हत्या की। शिवदेवी की 14 वर्षीय छोटी बहन जय देवी ने यह दृश्य अपने तिमंज़िले मकान से देखा। उसने बड़ौत वासियों को कहा कि मेरे बहन के प्रति सच्ची श्रद्धाजलि यह है कि हम आजादी के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी देते रहें। जयदेवी ने प्रण किया कि जिस अंग्रेज़ ने उसकी बहन तथा वीरों पर गोलियां चलाने का आदेश दिया था उसका बदला अवश्य लूँगी। उसने गंगोल गाँव में अंग्रेजों द्वारा फांसी पर लटकाए, लिसाड़ी गाँव के 22 क्रांतिकारियों के छलनी किए शरीरों का तथा घोलाना के 14 वीरों के पेड़ों पर लटकाए हुये शवों को भी देखा, फिर भी वह डरी नहीं। वीर बालिका जयदेवी अंग्रेजों के रिसाले का पीछा करती रहती तथा गावों में घूम-घूम कर युवक-युवतियों में जोश पैदा करती। जयदेवी के साथ लगभग 200 क्रांतिकारियों का जत्था चलता था । इसने अग्रेज़ रिसाले का लखनऊ तक पीछा किया लेकिन अंग्रेजों को जयदेवी की खबर तक नहीं लगी। इस वीर बालिका ने मेरठ, बुलंदशहर, अलीगढ़, एटा, मैनपुरी, इटावा आदि जिलों में भी क्रांति की अलख जगाई।

लखनऊ में जयदेवी ने अपने क्रांतिकारी दस्ते द्वारा [Baraut|बड़ौत]] में अत्याचार करने वाले अंग्रेज़ अधिकारी के बंगले की खोज करवाली। कई दिनों तक अंग्रेज़ अधिकारी को मारने का प्रयास होता रहा। लखनऊ में उन्हें छिपकर रहने और खाने की भारी परेशानी हुई, लेकिन एक दिन बंगले में


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टहलते हुये अंग्रेज़ अफसर का सिर जयदेवी ने तलवार से उड़ा दिया। उसके अनुयायियों ने अंग्रेज़ सैनिकों को मार गिराया और बंगले को आग लगा दी । क्रांतिकारी अंग्रेजों से झुंझकर जुझार हो गए। कपड़ों पर लगे खून से अंग्रेज़ जयदेवी को पहचान कर पाये और उसकी देह को लखनऊ में पेड़ से लटका दिया गया। अंग्रेजों के भयंकर आतंक के बावजूद क्रांतिकारियों ने उनकी लाश को दफनाकर उस पर चबूतरा बनवा दिया। यह चबूतरा विधानसभा की दूरदर्शन वाली सड़क पर है। यहाँ देशभक्त आज भी सिर झुका कर श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं। बूढ़े लोग आज भी जयदेवी की लोक-कथा सुनाकर बलिकाओं में वीरता का संचार करते हैं।


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