Shivapura

From Jatland Wiki
Jump to navigation Jump to search
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Shivapura (शिवपुर) may be 1. Shibi, 2. Ahichchhatra

शिवपुर

शिबि

शिबि (AS, p.899): विजयेन्द्र कुमार माथुर [1] ने लेख किया है ... शिबि पंजाब का एक जनपद- 'शिबींस्त्रिगर्तानम्बष्ठान् मालवान् पंचकर्पटान् तथा माध्यमिकाश्चैव वाटधानान् द्विजानथ।' महाभारत, सभापर्व 32,7-8

यहाँ शिबि का त्रिगर्त (जलंधर दोआब) के साथ वर्णन है। इस जनपद को पाण्डव नकुल ने पश्चिम दिशा की विजय के प्रसंग मे जीता था। शिविपुर (या शिवपुर) नामक नगर का उल्लेख पतंजलि के 'महाभाष्य' 4,2,2 में है।

इसका अभिज्ञान वोगल ने ज़िला झंग, पंजाब-पाकिस्तान में स्थित शोरकोट नामक स्थान के साथ किया है। (एपिग्राफिका इंडिका, 1921 पृ. 16) शोर शिवपुर का अपभ्रंश जान पड़ता है। शिबिपुर का उल्लेख शोरकोट से प्राप्त एक अभिलेख में हुआ है। यह अभिलेख 83 गुप्त संवत (402-403 ई.) का है और एक विशाल तांबे के कढ़ाव पर उत्कीर्ण है, जो यहां स्थित प्राचीन बौद्ध बिहार से प्राप्त हुआ था। यह लाहौर के संग्रहालय में सुरक्षित है।

शोरकोट के इलाके को 'आइना-ए-अकबरी' में अबुल फ़ज़ल ने शोर लिखा है। यह लगभग निश्चित ही समझना चाहिए शिबि जनपद की अवस्थिति इसी स्थान के परिवर्ती प्रदेश में थी और शिबिपुर इसका मुख्य नगर था। शिबियों (सिबोई) का उल्लेख अलक्षेंद्र (सिकन्दर) के इतिहास लेखकों ने भी किया है और लिखा है कि "इनके पास चालीस सहस्त्र पैदल सेना थी और ये लोग पशुओं की खाल के कपड़े पहनते थे।"

शिबि नरेश द्वारा अपने राजकुमार बेस्तंतर को देश निकाला दिए जाने की कथा का 'बेस्संतरजातक' में वर्णन है। 'उम्मदंतिजातक' में शिबि देश के अरिठ्ठपुर तथा 'बेस्संतरजातक' में इस जनपद के जेतुत्तर नामक नगर का उल्लेख है।

ऋग्वेद [7,18,7] में सम्भवतः शिबियों का ही शिव नाम से उल्लेख है- 'आ पक्थासों भलानसो भनन्तालिनासो विषाण्निः शिवासः। आयोऽनयत्सधमा-आर्यस्य गव्यातृत्सुभ्यो अजगन्नयुधानुन्।'

[p.900]: महाभारत में शिबि देश के राजा उशीनर की कथा है। श्येन से कपोत के प्राण बचाने में तत्पर राजा श्येन से कहता है- 'राष्ट्रं शिबीनामृद्धं वै ददानि तव खेचर।' महाभारत, वनपर्व 131 21

हेमचंद्र रायचौधरी (पृ.205) के अनुसार उशीनगर (उत्तर-पश्चिम उत्तर प्रदेश) पहले शिबियों का मूल स्थान रहा होगा। बाद में ये लोग पश्चिम की ओर जाकर बस गये होंगे। शिबियों की स्थिति का पता सिंध में मध्यमिका (राजस्थान के निकट) और कावेरी तट (दशकुमारचरित) पर भी मिलता है।

अहिक्षेत्र - अहिच्छत्र

विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ...

1. अहिक्षेत्र = अहिच्छत्र (जिला बरेली, उ.प्र.) (AS, p.56): अहिच्छत्र अथवा अहिक्षेत्र उत्तर प्रदेश के बरेली ज़िले की आँवला तहसील में स्थित है। दिल्ली से अलीगढ़ 126 कि.मी. तथा अलीगढ़ से बरेली रेलमार्ग पर (चन्दौसी से आगे) आँवला स्टेशन 135 कि.मी. है। आँवला स्टेशन से अहिच्छत्र क्षेत्र सड़क द्वारा 18 कि.मी. है। आँवला से अहिच्छत्र तक पक्की सड़क है। आँवला नामक स्थान के निकट इस महाभारतकालीन नगर के विस्तीर्ण खंडहर अवस्थित हैं। यह नगर महाभारत काल में तथा उसके पश्चात् पूर्व बौद्ध काल में भी काफ़ी प्रसिद्ध था। यहाँ उत्तरी पांचाल की राजधानी थी। 'सोऽध्यावसद्दीनमना: काम्पिल्यं च पुरोत्तमम्। दक्षिणांश्चापि पंचालान् यावच्चर्मण्वती नदी। द्रोणेन चैव द्रुपदं परिभूयाथ पातित:। पुत्रजन्म परीप्सन् वै पृथिवीमन्वसंचरत्, अहिच्छत्रं च विषयं द्रोण: समभिपद्यत'।[3]

उपरोक्त उद्धरण से सूचित होता है कि द्रोणाचार्य ने पांचाल [p.57]: नरेश द्रुपद को हरा कर दक्षिण पांचाल का राज्य उसके पास छोड़ दिया था और अहिच्छत्र नामक राज्य अपने अधिकार में कर लिया था। अहिच्छत्र कुरुदेश के पार्श्व में ही स्थित था- 'अहिच्छत्रं कालकूटं गंगाकूलं च भारत'।

मौर्य सम्राट अशोक ने यहाँ अहिच्छत्र नामक विशाल स्तूप बनवाया था। जैनसूत्र 'प्रज्ञापणा' में अहिच्छत्र का कई अन्य जनपदों के साथ उल्लेख है।

चीनी यात्री युवानच्वांग जो यहाँ 640 ई. के लगभग आया था, नगर के नाम के बारे में लिखता है कि- "क़िले के बाहर नागह्नद नामक एक ताल है, जिसके निकट नागराज ने बौद्ध धर्म स्वीकार करने के पश्चात् इस सरोवर पर एक छत्र बनवाया था।"

अहिच्छत्र के खंडहरों में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण ढूँह एक स्तूप है, जिसकी आकृति चक्की के समान होने से इसे स्थानीय लोग 'पिसनहारी का छत्र' कहते हैं। यह स्तूप उसी स्थान पर बना है, जहाँ किंवदंती के अनुसार बुद्ध ने स्थानीय नाग राजाओं को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी। यहाँ से मिली हुई मूर्तियाँ तथा अन्य वस्तुएं लखनऊ के संग्रहालय में सुरक्षित हैं।

वेबर ने 'शतपथ ब्राह्मण' (13, 5, 4, 7) में उल्लिखित परिवका या परिचका नगरी का अभिज्ञान महाभारत की एकचक्रा, सम्भवत: अहिच्छत्र के साथ किया है। (वैदिक इंडेक्स 1,494) महाभारत में इसे 'अहिक्षेत्र' तथा 'छत्रवती' नामों से भी अभिहित किया गया है।

जैन ग्रन्थ 'विविधतीर्थकल्प' में इसका एक अन्य नाम 'संख्यावती' भी मिलता है। (दे. संख्यावती) एक अन्य प्राचीन जैन ग्रन्थ 'तीर्थमालाचैत्यवंदन' में अहिक्षेत्र का 'शिवपुर' नाम भी बताया गया है-'वंदे श्री करणावती शिवपुरे नागद्रहे नाणके'। जैन ग्रन्थों में अहिच्छत्र का एक अन्य नाम 'शिवनयरी' भी मिलता है।[4]

टॉलमी ने अहिच्छत्र का 'अदिसद्रा' नाम से उल्लेख किया है।[5]

2. अहिक्षेत्र = अहिच्छत्र (AS, p.57): सपादलक्ष या सिवालिक पहाड़ियों (पश्चिम उत्तर प्रदेश) में बसे हुये देश की राजधानी. डॉ भंडारकर के अनुसार दक्षिण के चालुक्य मूलत: यहीं के निवासी थे.


भारतकोश के अनुसार अहिच्छत्र उत्तर पांचाल देश का ही एक नाम था। यहां के राजा द्रुपद (द्रौपदी के पिता) थे। जब द्रोण महर्षि अग्निवेश के यहां पढ़ते थे तो द्रुपद भी इनके सहपाठी थे। द्रोण ने किरीट को पराजित कर द्रुपद को राज्य दिलवाया था, जिससे प्रसन्न होकर इन्होंने द्रोण को आधा राज्य देने की शपथ कर प्रतिज्ञा भी की थी कि जो द्रुपद के पास ही न्यास स्वरूप द्रोण ने उस समय छोड़ दिया था। शिक्षा समाप्त कर अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए जब द्रुपद से द्रोण ने आधा राज्य मांगा तो उसने उन्हें अपमानित कर वापस लौटा दिया। पांडवों को शिक्षा दे उनकी ही सहायता से द्रोणाचार्य ने गुरु दक्षिणा में द्रुपद से वचन दिया हुआ आधा राज्य छीना था। वह आधा छीना हुआ राज्य ही अहिच्छत्र था, जिसकी राजधानी रामनगर (रूहेलखंड) थी।[6]

External links

References

  1. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, pp.899-900
  2. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.56-57
  3. महाभारत आदिपर्व, 137, 73-74-76
  4. एंशेंट जैन हिम्स पृ. 56
  5. ए क्लासिकल डिक्शनरी ऑफ़ हिन्दू माइथोलॉजी एण्ड रिलीजन, ज्योग्रेफी, हिस्ट्री एण्ड लिटरेचर-सप्तम संस्करण
  6. पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 556, परिशिष्ट 'क