Jat Jan Sewak/Alwar

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पुस्तक: रियासती भारत के जाट जन सेवक, 1949, पृष्ठ: 580

संपादक: ठाकुर देशराज, प्रकाशक: त्रिवेणी प्रकाशन गृह, जघीना, भरतपुर

अलवर के जाट जन सेवक

अलवर का प्राचीन इतिहास

[पृ.74]: अलवर राज्य में जाटों की आबादी लगभग चालीस हजार है। पंजाब में 2500 ईसा पूर्व कठ लोगों का एक गणराज्य था। जिनके यहाँ बालकों के स्वास्थ्य और सौन्दर्य पर विशेष ध्यान दिया जाता था। सिकन्दर महान से इन लोगों को कड़ा मुक़ाबला करना पड़ा। उसके बाद उनका एक समूह बृज के पश्चिम सीमा पर आ बसा। वह इलाका काठेड़ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अलवर के अधिकांश जाट जो देशवाशी नहीं हैं उन्हीं बहादुर कठों की संतान हैं।

अलवर के जाट जन सेवकों की सूची

अलवर में जाट कौम की अपने-अपने तरीकों से जिन महानुभावों ने सेवा की और कौम को आगे बढ़ाया उनकी सूची सुलभ संदर्भ हेतु विकि एडिटर द्वारा इस सेक्शन में संकलित की गई है जो मूल पुस्तक का हिस्सा नहीं है। इन महानुभावों का मूल पुस्तक से पृष्ठवार विस्तृत विवरण अगले सेक्शन में दिया गया है। Laxman Burdak (talk)

  1. चौधरी नानकचन्द जाखड़, अलवर....p.74-79
  2. चौधरी रामस्वरूप सिंह महला, बहरोड़, अलवर....p.79-82
  3. सूबेदार सिंहासिंह ठाकुरान, सिरोहड़, अलवर....p.82-83
  4. चौधरी रामदेवसिंह कासिनीवाल, नगली, अलवर....p.83-85
  5. कप्तान रामसिंह शेषम, ----, अलवर....p.85-86
  6. कर्नल गोकुलराम महला, बहरोड़ जाट, अलवर....p.86-87
  7. ब्रिगेडियर घासीराम महला, बहरोड़ जाट, अलवर....p.88
  8. हुकमसिंह कासिनीवाल नगली, नगली, अलवर....p.89-90
  9. मास्टर सिंहाराम झूंथरा, जसाई, अलवर....p.90-91
  10. मास्टर रामहेत वालानिया, मानखेड़ा, अलवर....p.90-91

अलवर के जाट जन सेवकों की विस्तृत जानकारी

1. चौधरी नानकचन्द [पृ.74]: शिशिर ऋतु के प्रभात में बात सन् 1923 ई. की है जब मैंने सुनहरे रंग और उठती जवानी के उस नौजवान को भरतपुर आर्य समाज में वहां के पदाधिकारियों से बातें करते देखा, जो आज तमाम राजपूताना के जाट हलकों में चौधरी नानकचंद जी के नाम से मशहूर हैं।

इकहरे बदन का यह नौजवान अपनी बहन के लिए इधर कोई वर तलाश करने आया था।

यह उनका मेरे लिए प्रथम दर्शन था। मैं उन्हें तभी से जान गया। वह मुझे नहीं जानते क्योंकि उन दिनों मैं सार्वजनिक स्थिति में बहुत छोटा था। केवल ₹10 माहवार का समाजी पाठशाला का अध्यापक मात्र।


[पृ.75]: मुझे वह शायद सन् 1931 से जानने लगे थे जबकि जाट-वीर में मेरी गिरफ्तारी के 108 दिनों की कहानी प्रकाशित हो रही थी।

चौधरी नानकचंद जी का जन्म अब से 46 वर्ष पूर्व है अर्थात सन् 1901 में हुआ था। आपके पिता चौधरी हरिगोविंद जी साधारण स्थिति के जमीदार थे और अलवर में मिस्त्री का काम करते थे। गोत्र उनका जारपड़1 था। बाल्यकाल में आपने सरकारी स्कूलों से एंग्लो वर्नाकुलर मिडिल तक की शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद आप कुछ दिनों तक घर रह कर दिल्ली चले गए और वहां सन 1922 रायसीना में सब ओवरशियर हो गए। इस से पहले आप अलवर सर्वेयार और असिस्टेंट ट्रस्टमैन रह चुके थे।

अलवर के जाटों का भी भाग्य है वह आपको दिल्ली से फिर अलवर खींच लाया। यहां पर आप स्वतंत्र धंधे, ठेकेदारी द्वारा अपना, अपने परिवार का पालन पोषण करने लगे। समाज सुधार की ओर आपकी रुचि उस समय से थी जब से कि आपने होश संभाला है। सन 1923-24 में आप आर्य समाज अलवर के उपमंत्री थे। इसके बाद मंत्री और प्रधान भी रहे हैं। और इस समय तमाम अलवर राज्य के लिए आर्य समाज का जो आर्य प्रतिनिधि सभा संगठन है उसके आप प्रधान हैं।

अपनी कौम की उन्नति के लिए आपके दिल में सच्चा प्रेम है। सन् 1925 को पुष्कर जाट महोत्सव के बाद से हो आप कौम की सेवा में किसी न किसी रूप में संलग्न हैं।

अलवर में श्री सवाई जयसिंह जी महाराज शासनकाल आतंक काल के नाम से मशहूर है। निमूचाण कांड के


नोट: 1. जारपड़ शब्द गलती से प्रिंट हुआ है इसका सही रूप जाखड़ है। श्री आजाद चौधरी समाजसेवी अलवर (मो: 9784131700) से इस तथ्य की पुष्टि की गई। Laxman Burdak (talk)


[पृ.76]: बाद से प्रभु (;) जयसिंह जी के अच्छे कार्यों को भी कभी दाद नहीं मिली। अपने अंदर की अनेक कमियों के डरने उन्हें कभी भी अपने राज्य के अंदर सार्वजनिक जीवन को पनपने देने की हिम्मत नहीं होने दी। यही नहीं उन्होंने भरसक सार्वजनिक जागृति को कुचला ही फिर चाहे वह धार्मिक और सामाजिक ही क्यों न रही हो। आर्य समाज अलवर के बहादुर सिपाही लाला दुर्गाप्रसाद जी को जो यातनाएं उठानी पड़ी उस से अलवर की नवचेतना को बराबर धक्का लगता रहा है। इस बीच में कोई सभा संगठन जाटों का बनाने की अपेक्षा चौधरी नानकचंद जी ने यह उचित समझा कि उनमें शिक्षा प्रचार किया जाए क्योंकि वे समझते थे कि अनपढ़ लोगों का और अज्ञान में सिर से पैर तक जकड़े लोगों का संगठन आतंक काल में चलना कठिन ही है। अतः उन्होंने खानपुर नामक गांव में एक जाट पाठशाला की नींव डाली। इस पाठशाला को कायम हुए 12-13 साल हो गए। अनेक कठिनाइयों के आते रहने पर आपने इसे चलाया है। इस स्कूल की स्थापना 5 मई सन् 1933 को हुई थी। आरंभ में बड़ी मुश्किल से लड़कों को एकत्रित किया गया।

जिस क्षेत्र में यह पाठशाला है उसमें जाने का मुझे अवसर प्राप्त हुआ है। यहां के लोग सहज विश्वास किसी पर नहीं करते। अत्यंत ही अंधविश्वास और रूढ़िवादी हैं। मैंने 1927 और उसके बाद सन 1942 में यहां के लोगों से साक्षात किया है। उन पर चमकती दुनिया का कोई भी असर मुझे दिखाई नहीं दिया।

चौधरी नानकचंद जी जबसे जाट महासभा के संसर्ग में आए उनकी नीति गर्म लोगों के साथ कभी नहीं


[पृ.77] रही। अधिकतर उन्होंने ठाकुर झम्मनसिंह जी के "रास्ता साफ करके चलने" के उसूल को अपनाया है। वह कछुए की चाल चले हैं किंतु निरंतर और बिना रुके और यही कारण है कि आज उन्होंने एक लंबी मंजिल बुढ़िया और घुड़सवार की गति के संतुलन से तय करती है।

5 मार्च 1946 को मैं अचंभित रह गया जब मैंने देखा जाट धर्मशाला के लिए इन गिने आदमियों ने जिनकी आमदनी 2-4 को छोड़कर पेट भरने लायक ही है ₹2700 तुरंत दे दिये और धर्मशाला का सिलारोहण समारोह भी हो गया।

आज का अलवर बदल गया है। उसके शासक महाराजा श्री तेजप्रतापसिंह जी जमाने के साथ चलने की कोशिश करते हैं। उनके महकमा राजस्व ने जाट जमीदारों पर लगान के समय एक आना प्रति रुपया जाट धर्म शाला के लिए वसूल करने का भार अपने ऊपर ले लिया है और यह काम हो भी रहा है।


आरंभ में आपका ख्याल यह था कि तमाम भारत में काम करने के लिए एक ही संगठन रहे और हम सब अखिल भारतीय जाटसभा को ही मजबूत बनावें। वही सारे भारत में उन्नति का काम करे किंतु उधर से आप जैसी आशा रखते थे उसके पूरी न होने पर आपने मार्च सन 1936 में "अलवर राज्य जाट क्षत्रिय सेवा संघ" की नींव डाली। जिसका पहला अधिवेशन सोडावास (निजामत मुंडावर) में हुआ। अलवर राज्य में जाटों का यह पहला शानदार उत्सव था जिसमें 202 गांव के जाट प्रतिनिधि शामिल हुए। इसके बाद का कांकरा में दूसरा अधिवेशन हुआ जिसमें राय साहब


[पृ.78]: चौधरी हरीरामसिंह जी कुरमाली इस अधिवेशन के अध्यक्ष थे और बांके वीर गायक चौधरी ईश्वरसिंह थे इस उत्सव के जागनिक। जिन्होंने अपने वीररस से पूरे भजनों से इलाके के लोगों को एक बार की जगा डाला।

यह पहला अवसर था इस इलाके में एक जाट महिला मेरी पत्नी ठकुरानी त्रिवेदी देवी को मंच से बोलते हुए देखा। अब तो इस 10 वर्ष के अरसे में अलवर स्वयं इस योग्य हो गया है कि उसकी जाट पुत्रियां मंच पर खड़े होकर बोल सकती हैं। 5 मार्च सन 1946 को जब चौधरी नानकचंद जी की सुपुत्री और सूबेदार सिंहासिंह जी की पुत्रवधू सत्यवती ने मंच से कन्या शिक्षा पर एक गीत गाया तो मुझे लगा कि अलवर का जाट जमाने के साथ चलने की तैयारी कर रहा है। अब वह अधिक पीछे नहीं रहेगा।

अपने 10 वर्ष के जीवनकाल में 'अलवर राज जाट क्षत्रिय सेवा संघ' द्वारा चौधरी नानकचंद जी और उनके साथियों ने अलवर राज्य के जाटों की बहुत कुछ रचनात्मक सेवा की है। पाठशालाएं खोली गई हैं। विद्यार्थियों को छात्रवृत्तियां दी गई हैं। फिजूलखर्चियों को रोका गया है। कुरीतियां छुड़ाई गई हैं। जागृति और संगठन पैदा किया गया है। चौधरी नानकचंद जी एक खूबी यह भी है कि वे कहने से ज्यादा करते हैं और जिन ऊसूलोन पर दूसरों को चलने के लिए कहते हैं उन पर खुद भी अमल करते हैं। उन्होंने अपनी संतानों को अपने अनुरूप बनाने की कोशिश की है। अपनी लड़की की शादी अत्यंत साले ढंग से और तरुण अवस्था में की है।

अपनी सीमित आमदनी में से वह कौम के काम में


[पृ.79]: भी खर्च करते हैं और अतिथि सेवा में भी। इसके अलावा दूसरी संस्थाओं को भी वे रूखा जवाब नहीं देते।

मिष्ट भाषण, यथाशक्ति जनसेवा, शांत स्वभाव, निश्चल बर्ताव उनकी ऐसी आदतें हैं जो संपर्क में आने वाले को सहज ही अपनी ओर खींचती हैं। यही कारण है कि अलवर जैसे शहर में जहां जाट और जमीदार दोनों की संख्या अत्यंत कम है आप अपने वार्ड से म्युनिसपलिटी के सन् 1945 के चुनाव में अपने लखपति प्रतिद्वंदी को हराने में सफल हुए हैं। प्रजामंडल के बहुमत प्रांत बोर्ड ने आपको इमारती कमेटी का चेयरमैन चुना है।

आपके परिवार में आप और आपकी धर्मपत्नी के अलावा तीन भाई दो बहने और एक पुत्री तथा भाइयों के बाल बच्चे हैं। छोटे भाइयों में रणवीरसिंह जी भी ठेकेदार हैं और आपके सभी जनसेवी और पारिवारिक कार्य में आपका हाथ बटाते रहते हैं। 2. लेफ्टिनेंट चौधरी रामस्वरूपसिंह - [पृ.79]: यह बहुत कम लोगों को पता होगा कि कछवाहों की धाक की कुछ भी परवाह न करके पुष्कर का डंके की चोट स्नान करने वाला और दिल्ली का अनुपम विजेता! हां उस दिल्ली, जिसमें घुसने से मराठे डरते थे और जिसके मुगल सिंहासन के आगे राजपूत करबद्ध अभिवादन करते, का विजेता महाराज जवाहरसिंह लंगड़ा था।

मुझे भी चौधरी राम स्वरूपसिंह जी बहरोड के बारे में, जबकि लोगों से मैं उनके कुछ समाज सुधार संबंधी कार्यों की प्रशंसा सुना करता था, यह पता नहीं था कि


[पृ.80]: चौधरी रामस्वरूपसिंह एक टांग से लंगड़े थे। इस फौजी सरदार को देखकर हम सहज ही अनुमान करते है कि यह यौद्धा जाति का सच्चा वारिस (प्रतिनिधि) है।

मैंने (ठाकुर देशराज) इन्हें अत्यंत निकट से सन् 1937 में कांकरा जाट उत्सव में ही देखा था। इससे पहले शेखावाटी में मैं उनके नाम की चर्चा कई बार सुन चुका था।

आपका जन्म बहरोड़ जाट गाँव में महला गोत्र के चौधरी जीवराज के यहाँ विक्रम संवत 1924 में हुआ। आपके पिता पुराने ढंग के जमीदार थे। उस समय शिक्षा का कोई साधन नहीं था। आपकी शिक्षा का कोई प्रबंध नहीं हो सका।

18 वर्ष की उम्र में, जबकि आपके दूध के दाढ़ भी भलीभाँति न उखड़ पाये हों, आप फौज में भर्ती हो गए।

देखा यह गया है कि हमारे तमाम पुराने जाट सरदार जो फौज में गए वहाँ से आर्य समाजी होकर लौटे है। और साथ ही कुछ न कुछ शिक्षित होकर भी। रोहतक के जाट लोगों ने फ़ौजों में आर्य समाज का जो प्रचार किया उससे प्रत्येक इलाके में दृढ़ आर्यों की बढ़ोतरी हुई। उनकी तरह चौधरी रामस्वरूप सिंह भी फौज से लौटने पर समाज सुधार, कौमी सेवा और शिक्षा के महत्व की अनेक पवित्र भवनाएं लेकर लौटे।

फौज में वे सिपाही के पद पर भर्ती हुये थे और अपने पौरुष तथा रणचातुर्य से लेफ्टिनेंट का ओहदा प्राप्त किया। कल बीतने वाले युद्ध में लेफ्टिनेंटी की बड़ी सस्ती बटाई हुई थी। बनियों के छोरे भी घर से लेफ्टिनेंट बनाकर फौज में


[पृ.81]: लिए गए थे। किंतु उस लेफ्टिनेंटी का मौल बड़ा तगड़ा था। बाजी पर बाजी मारने पर वर्षों में यह ओहदा प्राप्त होता था।

अलवर की जाट जागृति के लिए अलंकार के रूप में कहना हो तो मैं यह कह सकता हूं कि वहां की जागृति के चौधरी नानकचंद जी दिमाग हैं तो चौधरी रामस्वरूपसिंह जी दिल और यह भी सच है कि दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। अलवर की जाट जागृति में आपने बहुत काम किया। आरंभ से ही आप "अलवर राज्य जाट क्षत्रिय सेवा संघ" के प्रधान हैं। आपकी लोकप्रियता ही है कि लगातार 4 बार इसके प्रधान चुने गुए। सभी लोग आपमें समान आदर और श्रद्धा रखते हैं।

अपनी संतानों को पढ़ने और योग्य बनाने में आपने भरपूर प्रयत्न किया है। आपके 2 भाई हैं और 3 पुत्र हैं: 1. लेफ्टिनेंट कर्नल घासीराम, 2. कुँवर सूरजभान, 3. ओमप्रकाश सिंह

चौधरी रामस्वरूप सिंह समय के बड़े पाबंद हैं। मीटिंग में ठीक समय पर पहुँचते हैं और ठीक समय पर काम चाहते हैं। अलवर की जाट धर्मशाला का शिलारोहण 5.3.1946 को आप के ही हाथों हुआ था।

आपमें वे सभी गुण मौजूद हैं जो पुराने जाट सरदारों में मिलते हैं। कम बोलना और सीधा साफ कहना। सीधी भाषा में कहना। गलतियों से बचना और बिरादरी के आगे झुकना। यह उनकी मुख्य आदतें हैं।

अपनी सेवाओं का कौम से कोई बदला लेना जहां


[पृ.82]: उनके दिमाग में नहीं है, वहाँ वे अपने कामों का विज्ञापन नहीं चाहते हैं।

राजनीतिक प्रवृतियों की ओर उनका झुकाव नहीं है। वह केवल कौम में सामाजिक सुधार और शिक्षा प्रचार पर ही जोर देते हैं। यह बात नहीं कि राजनीतिक पार्टियों से किसी भय और आशंका के कारण दूर रहना चाहते हैं बल्कि सच यह है कि उनका स्वाभाविक ध्यान ही उधर नहीं है।

अभिमान उन्हें छू नहीं गया है। रहन सहन उनका सादा है। चेहरे से वह सहज ही पहचाने जा सकते हैं उनकी मूंछें, पगड़ी और चाल-ढाल को देखकर अनजान भी यह कह सकता है यह सज्जन कोई जाट और फौजी जाट सरदार हैं।

3. सूबेदार सिंहासिंह जी- [पृ.82]: अबकी बार जब 5 मार्च 1948 को मैं अलवर गया चौधरी नानकचंद जी के घर पर एक नई उम्र के लड़के से भी परिचय हुआ। वह गुरुकुली ढंग के सफेद धोती कुर्ता पहने था। मैंने उससे कहा तुम्हारा परिचय? उसने सहज गंभीर भाव से बताया कि मैं आर्य महाविद्यालय किरठल में पढता हूँ। इस वर्ष विशारद की परीक्षा दूँगा। अलवर राज्य में ही सिरोहड़ गाँव का हूँ। मेरे पिताजी को आप जानते होंगे वे सूबेदार हैं। मुझे अचानक याद आ गया ओह ! तुम सूबेदार सिंहासिंह के पुत्र हो। उन्हें तो मैं 1936 ई. से, जब वहां कांकरा में जाट संघ का दूसरा सालाना जलसा हुआ था, जानता हूं। पूछने पर उस युवक ने बताया कि उनके 3 भाई हैं - 1. शिवलाल जो घर पर जमीदारी करते हैं।


[पृ.83]: 2. उनसे छोटे रामजीलाल हैं जो आगरा यूनिवर्सिटी में एमए, एलएलबी में पढ़ते हैं। 3. तीसरा मैं हूँ।

पीछे मुझे मालूम हुआ कि रामजीलाल के साथ चौधरी नानकचंद की सुपुत्री सत्यवती का विवाह हुआ है। बिना किसी भी प्रकार के दहेज का अनुकरणीय उदाहरण था।

सूबेदार सिंहासिंह इस समय अलवर 'राज्य जाट क्षत्रिय संघ' के उपप्रधान हैं। आप ठाकुरान गोत्र के जाट हैं। आपके पिता का नाम चौधरी रंजीतसिंह था। संवत 1942 में आपका जन्म हुआ. आप से छोटे तीन भाई और हैं। सन् 1904 में आप फौज में भर्ती हुए। सन् 1915 में मेसोपोटामिया के रण क्षेत्र में भेजे गए। इस युद्ध में अच्छी सेवा करने के सिलसिले में आप जमादार बनाए गए। सीमा प्रांत के पठान विद्रोह को दबाने के लिए जो सेनाएं गई उनमें आप भी थे। वहां आपको सूबेदार बनाया गया और IDSM का मेडल बहादुरी में मिला। 1925 में पेंशन ले ली। तब से आप अपने गांव में रहते हैं और कौम की सेवा करते हैं। इधर जब कौमी जागृति का बिगुल बाजा आप जाट क्षत्रिय संघ में शामिल हो गए 1940 में आपने अपने यहाँ उसका दूसरा वार्षिकोत्सव मनाया।

आप पक्के समाज सुधारक हैं। ब्याह-शादियों में कम से कम खर्च करते हैं। अलवर की जाट जागृति में भरपूर हाथ बटाते हैं।

4. चौधरी रामदेव जी - [पृ.83]: सन् 1931 में मैं जाट-वीर का संयुक्त संपादक था।


[पृ.84]: वास्तव में तो 'पीर बवर्ची भिश्ती खर' की लोकोक्ति के अनुसार उस समय जाट-वीर के लिए सम्पादक, मेनेजर, डिस्पेचर, चपरासी आदि के सभी काम मुझे ही करने पड़ते थे। मैं हर हफ्ते अखबार रवाना करते समय अलवर को जाने वाले जतवीरों की सूची में चौधरी रामदेव जी नगली के नाम की चिट्ठी अनेकों बार मेरी आँखों के सामने से गुजरी। बस नाम से मैं चौधरी रामदेव जी को तभी से जानता हूँ। सन् 1931 ई. से 1936 ई. तक कई बार उनसे पत्र व्यवहार हुआ लेकिन दर्शन उनके 1933 में सोडावास में ही हुए।

चौधरी रामदेवसिंह कासिनीवाल गोत के जाट हैं। अलवर राज्य में इस गोत के सिर्फ 5 गांव हैं। कुछ गांव संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) में हैं।

आपका जन्म संवत 1946 में चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को हुआ था। पिता का नाम चौधरी कल्लूराम जी था। आपने आरंभ में रसगन में शराफी की तालीम पाई। शराफी दुकानदारों की खास लिपि है। भाषा-भेष का आदमी पर खासा असर पड़ता है। चौधरी रामदेव जी की हल्की बनियाशाही पगड़ी को देखकर यह सच भान होता है कि यह कोई महाजन है। लिबास के साथ ही उन्होंने गंभीरता से सोचना और ठंडा मिजाज रखना तथा गम खाना भी बनियों से हासिल किया।

मैंने उनकी सहन शक्ति का परिचय सिरोहड़ जाट उत्सव में पाया था जब सिरोही (पटियाला) राज्य के चौधरी झाबरमल जी अपनी लड़की कमला को चौधरी रामदेव जी द्वारा कोई सीख की बात कहे जाने पर नाराज हो गए थे। चौधरी रामदेव जी ने उनकी तमाम अप्रिय बातों को बर्दाश्त किया।

अलवर राज्य के पुराने जाट जनसेवकों में आप ही ऐसे हैं जिन्होंने घर पर रहकर और जमीदारी करते हुए भी


[पृ.85]: अपने बाल बच्चों को तालीम देने की पूरी कोशिश की है। आपके 3 लड़के हैं - बड़े हरदयालसिंह, मंझले हुक्म सिंह और छोटे हरिसिंह जो इस समय मेट्रीक में पढ़ रहे हैं।

5. कप्तान रामसिंह - [पृ.85]: कुंवर नेतराम सिंह गौरीर (जयपुर वालों) को अपनी बड़ी पुत्री के लिए लड़के की आवश्यकता थी। कुंवर हुकमसिंह रईस आंगई ने उन्होंने अलवर में सरदार बहादुर नत्थासिंह के यहां कोई लड़का बताया। बात सन 1932-33 की है मैं और नेतराम सिंह अलवर गए। यह पहला अवसर था जब मैंने कप्तान रामसिंह और उनके बूढ़े पिता सरदार बहादुर नत्थीसिंह के दर्शन किए। शादी का मामला तो नहीं पटा किंतु मैंने देखा राजस्थान में सैनिक दृष्टि से इतनी बड़ी तरक्की करने वाला यह पहला खानदान है। इसके बाद सन् 1936 में चौधरी नानक चंद के साथ मैं दोबारा कप्तान रामसिंह से मिला। हमारा अभिप्राय उन्हें कौमी सेवा के पद पर खींच लाने का था। उस समय हमें सिर्फ आश्वासन मिला। 5 मार्च 1946 को मैंने उन्हें सक्रिय जातीय सेवा में देखा। इस समय वह दिल खोलकर कौम की तरक्की के कामों में हिस्सा लेते हैं।

आपके पिताजी सरदार बहादुर चौधरी नत्थासिंह जी सीआईआई, ओबीआई, अलवर राज्य के सेनापति थे। गोत्र आपका शेषम है जिसे लोग उच्चारण भेद से शेखम बोलते हैं। आपका जन्म दूसरी जुलाई 1890 में हुआ ।आपने मैट्रिक तक तालीम हासिल की। आरंभ


[पृ.86]: में आप स्वर्गीय महाराज अलवर के अंगरक्षक ADC थे। बाद में मोटर गैरेज ऑफिसर बना दिए गए। इस के बाद आप स्टेट के गेस्ट हाउस के ऑफिसर नियुक्त हुए। इस समय पेंशन पा रहे हैं। आपके बड़े भाई पूर्णसिंह अलवर राज्य सेना में कर्नल के पद पर थे। आपके दो पुत्र हैं - बड़े पुत्र समुद्रसिंह जय पलटन में मेजर है। छोटे एफ़ए में पढ़ रहे हैं।


कप्तान साहब पिछले वर्ष से 'अलवर राज्य जाट सेवा संघ' के प्रेसिडेंट हैं और तन, मन, धन से कौम की सेवा करते हैं। अभी 5 मार्च 1946 को अलवर जाट धर्मशाला के शिलारोहण उत्सव पर उनके बड़े पुत्र समुद्रसिंह ने 300 रूपय धर्मशाला के लिए दान दिया।

कप्तान राम सिंह का घराणा राजस्थान के बड़े जाट घरानों में से एक है। उनकी रिश्तेदारियां धौलपुर और भरतपुर के राजपरिवारों और राज रिश्तेदारों के यहां हैं।

6. कर्नल गोकुलराम जी - [पृ.86]: सन् 1933 के दिसंबर महीने की बात है। हिंदी महीना माघ था। बसंत का सुहाना समय सीकर जाट महायज्ञ हो रहा था। मीलों तक जाट स्त्री-पुरुष फूस की छावनी डाले पड़े थे। दस दिन से वेद मंत्रों के उच्चारण और स्वाही बाट से वायुमण्डल सुगंधित हो उठा था और उन्हीं 10 दिनों के एक सुहानी प्रभात में चौधरी रिछपाल सिंह ने मेरे सामने एक गौरे बदन और मझले कद के सुंदर नौजवान को ला खड़ा किया और कहा यह गोकुलरामजी हैं। वह


[पृ.87]: बहरोड जाट गांव अलवर जिले के रहने वाले हैं। दिल्ली में बीए की पढ़ाई कर रहे हैं। किसी दिन आपके मिशन के उतशाही मिशनरी बनेंगे। मुझे स्वयं लगा कि मैं एक हौनहार नौजवान से बातें कर रहा हूँ।

कप्तान गोकुलराम का जन्म 15 अप्रैल सन् 1912 में हुआ। इनके पिता चौधरी मंगतूराम (महला गोत्र) फौज में सिपाही थे। सन् 1914 के महायुद्ध में वह वीरगति को प्राप्त हो गये। सिपाही मंगतूराम की वीर पत्नी ने विधवा होने के बाद अपने नन्हें बच्चे गोकुलराम का सिर्फ पालन पोषण ही नहीं किया उसे उचित शिक्षा भी दिलाई। यह माता की तपस्या का फल था कि उसका बेटा आज एक सरदार है और एक दिन अलवरी जाट जनता का अगुआ होगा।

जिस समय सन् 1940 में सिरोहड़ में अलवर राज्य जाट कांफ्रेंस हो रही थी उस समय कप्तान गोकुलराम सुदूर समुद्र पार रणक्षेत्र में काम कर रहे थे। वहीं आपने अपनी एक माह का वेतन अलवर में जाट बोर्डिंगजाट धर्मशाला के बनाने के लिए भेज कर लोगों का उत्साह बढ़ाया।

कर्नल गोकुलराम गंभीर स्वभाव के व मननशील नौजवान हैं। कौम की वर्तमान दशा से उनके दिल में दर्द है और वह महसूस करते हैं कि जाति को जगना चाहिए। इससे भी अधिक उनके स्वभाव में नम्रता है जो मनुष्य का भूषण है। दूसरों की सेवाओं की कद्र करने की उनमें भावना है जो सहज ही कार्यकर्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करती है।

आपके इस समय सन् 1946 तक तीन संताने हैं जिनमें दो पुत्र और एक पुत्री है।


7. लेफ्टिनेंट कर्नल घासीरामजी - [पृ.88]: बड़ा होने पर जो दूसरों को यह महसूस नहीं होने देता कि बड़ा होने वाला स्वयं अपने को बड़ा समझने लगा है वह आदमी वास्तव में संयमी है।

कर्नल घासीराम आज से 8 साल पहले जब कप्तान थे मैंने उन्हें सिरोहड़ मैं देखा था। सफ़ेद कमीज और सफ़ेद धोती कंधे पर सफ़ेद तौलिया उस समय यह उनका लिबास था। हमारे पहुंचते ही वह स्वयं सेवक की भांति मेरे पास आए और बड़ी नम्रता से उन्होंने हमारे नहाने और ठहरने का प्रबंध किया। लंबा कद, ऊंचा माथा, गोल चेहरा और बड़ी-बड़ी आँखें तथा उनमें भी विनम्रता यह उस समय के कप्तान घासीराम की छाया थी जो मुझे बराबर याद रही। मेरे मन ने उस समय कहा था कि यह नौजवान अवश्य बड़ा आदमी होगा। और यह प्रसन्नता की बात है कि वह मत्स्य राज्य सेना में इस समय छोटी उम्र में लेफ्टिनेंट कर्नल और कमांडिंग अफसर हैं। उसके गुण और कार्य तत्परता बतलाती है और आगे वह और भी लंबे कदमों से बढ़ेगा।

लेफ्टिनेंट चौधरी रामस्वरूप जी के सुपुत्र होने का सौभाग्य कर्नल घासीराम को प्राप्त है। सुसंस्कारों में एक सुधारक पिता की देखरेख में पलने और शिक्षित होने वाले युवक से जो आशाएं कौम कर सकती है वही उनमें भी हैं। आप कौम की सेवा में हार्दिक सहयोग और सेवाएं देते हैं।

निश्चय ही एक दिन कर्नल घासीराम और कर्नल गोकुल राम की यह जोड़ी अलवर की देहाती जनता के लिए


[पृ.89]:अंगद-हनुमान जैसी उपयोगी सिद्ध होगी।

8. श्री हुक्मसिंहजी नगली - [पृ.89]: आप चौधरी रामदेवजी नगली के द्वितीय पुत्र हैं और अंडर ग्रेजुएट हैं। पहले आप अलवर राज्य के कॉपरेटिव डिपार्टमेंट में सब इंस्पेक्टर थे। आजाद बाप की संतान और आजादी की हवा में आजादी के साथ में चलने के कारण आप आजाद ख्याल के नौजवान हैं।

सिरोहड की जाट कॉन्फ्रेंस में हुकमसिंह कासिनीवाल नगली को देखने के बाद मैंने चौधरी नानकचंद जी से कहा था कि आपको अपना एक लेफ्टिनेंट चाहिए और मुझे यहां जिस नौजवान ने अपनी कार्यशीलता और एक अकथ परिश्रम ने आकर्षित किया है वह हुक्मसिंह है। आप इसे आगे बढ़ाइए पीछे एक दिन मैंने सुना कि हुक्मसिंह ने अपनी नौकरी पर सिर्फ कौमी सेवा के लिए लात मार दी।

नौकरी छोड़ने के बाद हुकमसिंह ने खादी उत्पादन का कार्य संभाला। वह अपने हाथ से कातना-बुनना जानते हैं। उनकी प्रकृति ने उन्हें जाती सेवा के साथ ही साथ राजनीतिक क्षेत्र में भी डाला है। वह इस समय अलवर राज्य प्रजामंडल को भी सहयोग देते हैं।

इस वर्ष 5 तारीख को मेरी उनके साथ ज्यादा घनिष्ठता हो गई मैंने उन्हें जाति की समस्याओं को समझने में जागरूक पाया। वे किसान दृष्टिकोण से देहाती समस्याओं को सोचते हैं और मनन भी करते हैं। अलवर राज्य प्रजामंडल में जहां शहरी दिमागों का बाहुल्य है वहां मित्र राष्ट्रों के संगठन की भांति अमेरिका और ब्रिटेन के


[पृ.90]:गिरोह के साथ जिस प्रकार सिद्धांतों को लेकर रूस भी है उसी भांति शहरी राजनीतिक महत्वकांक्षा के मोह के साथ अपने उद्देश्यों को लेकर अलवर प्रजामंडल में हमारे हुक्मसिंह हैं।

उनका अपना रंग है और वह रंग पक्का है। दूसरा सहज ही जो भी उनके रंग के विरोध में हो उनपर रंग नहीं चढ़ा सकता है। यह मैंने 1946 की मुलाकात की बातचीत में देख लिया है। मैं यह कह सकता हूं कि अलवर के तमाम जाट कार्यकर्ताओं में वे वर्तमान घटनाओं और उनके द्वारा जाट कौम पर पड़ने वाले असर को ज्यादा ध्यान से देखते हैं। इसमें संदेह नहीं वे चौधरी नानकचंद जी के प्रति बहुत श्रद्धा और आदर रखते हैं।

9. मास्टर सिंहाराम और 10. रामहेतजी - [पृ.90]:चौधरी नानकचंद जी के निजी संपर्क में आने वाले और उनकी सहायता देने वाले लोगों को यदि हम याद नहीं करें तो समझा जाएगा कि हम उन सेवाओं को भूलते हैं जो मध्य और छोटी स्थिति के उत्साही नौजवानों द्वारा की जाती है।


शिक्षा के क्षेत्र में मास्टर रामहेत जी चौधरी चौधरी नानक चंद जी के साथ 12-13 साल से हैं। आपका जन्म सन् 1909 में मान खेड़ा में चौधरी चरणमल जी वालानिया के घर हुआ था।

मास्टर सिंहाराम जसाई निजामत मुंडावर के चौधरी हरदेव सिंह के सुपुत्र हैं। आपका गोत झूंथरा है। 1919 में आपका जन्म हुआ। आर्थिक कठिनायियों से मां-बाप आपको


[पृ.91]:सिर्फ हिंदी मिडिल करा सके। लेकिन आपने अपने परिश्रम से प्राइवेट तौर पर पढ़ कर एंगलो मिडिल नॉर्मिल और हिंदी मध्यमा (विशारद) पास कर लिया। इस समय "अलवर राज्य जाट क्षेत्रीय सेवा संघ" की अंतरंग कमेटी के मेंबर हैं। अपने क्षेत्र में अपनी उत्तम भाषण शैली से लोगों को जागृत करते हैं।

अलवर के अन्य जाट जन सेवक

[पृ.91]

किसी भी संस्था में जो लोग काम करते हैं उनमें से बड़े-बड़े लोगों से आम जनता परिचित हो जाती है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपनी संपूर्ण श्रद्धा से या जो कुछ उनसे बन पड़ता है सेवा करते रहते हैं। "अलवर राज्य जाट क्षेत्रीय सेवा संघ" में ऐसे अनेकों सहायक कार्यकर्ता हैं उन्ही में से कुछ एक का परिचय चौधरी नानक चंद जी ने इस प्रकार भेजा है:

  • 1. चौधरी मनसुखरामजी - आप सोडावास के रहने वाले हैं और मुनीमजी कहलाते हैं। "अलवर राज्य जाट क्षेत्रीय सेवा संघ" को कायम करने और उसका पहला अधिवेशन सोडावास में कराने में आपका पूरा सहयोग रहा।
  • 2. चौधरी कल्लूरामजी - आप दूनवास के रहने वाले हैं "अलवर राज्य जाट क्षेत्रीय सेवा संघ" की स्थापना और उसका आरंभिक जलसा कराने में आपका भी पूरा सहयोग रहा।
  • 3. चौधरी नंदलालसिंह के सुपुत्र चौधरी भोरेलालजी - आप निजामत लक्ष्मणगढ़ में गंडूरा गांव के रहने वाले हैं।
  • 4. भमरसिंहजी सुपुत्र चौधरी नेतरामजी - आप निजामत लक्ष्मणगढ़ में गंडूरा गांव के रहने वाले हैं।
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  • 6. श्री नारायणजी सुपुत्र चौधरी मोहनलालजी बांबोली
  • 10 मोहनलालजी सुपुत्र चौधरी जीवनरामजी रोड़ा बड़ा भिवानी अलवर

ये सभी और इनके अलावा और भी संघ को सहायता देकर जाती माता की सेवा में सहयोग देते हैं।

अलवर जाट जागृति की मुख्य घटनाएं

  • 5 मई 1933 ई. - इस दिन खानपुर गांव में जाट पाठशाला स्थापित की गई
  • 2-3 मार्च 1936 ई. - इन दो भाग्यशाली दिनों में 202 गांव के प्रमुख जाटों की एक सभा सोडावास में हुई इन्हीं दिनों में "अलवर राज्य जाट क्षेत्रीय सेवा संघ" की स्थापना हुई
  • अप्रैल 1940 - इस दिन सिरोहड में सूबेदार सिंहा सिंह के स्वागत प्रबंधन में संघ का एक शानदार जलसा हुआ जिसमें जाट धर्मशाला और जाट बोर्डिंग हाउस अलवर शहर में बनाना तय हुआ।
[पृ.93]
  • अप्रैल 1945 - दहेज घूंघट और अनमोल पन के पाखंड को तोड़ मरोड़कर रामजीलाल सत्यवती विवाह संस्कार हुआ
  • नवंबर 1945 - संघ के प्राण चौधरी नानक चंद म्युनिसिपेलिटि में जबरदस्त चुनाव संग्राम में विजय हुए
  • 5 मार्च 1946 - यह शुभ दिन है जब वह अलवर को जाट जागृति में प्रत्यक्षता का रूप धारण किया और जाट धर्मशाला का उत्साह और उमंग भरे दिनों से शिलारोहण समारोह संपन्न किया गया।

अलवर राज्य में जाटों की स्थिति

अलवर राज्य में जाटों की आबादी कहीं इकट्ठी नहीं है। बिखरी हुई आबादी है इसलिए वह राजनीतिक स्थिति अच्छी बनाने में अधिक समर्थ उस समय तक नहीं हो सकेगा जब तक की वह अन्य किसानों को अपने साथ नहीं लाएगा। वैसे अलवर का जाट ठंडा है। युग किधर जा रहा है इससे बेखबर सा है। फिर भी वह संगठित होगा और आगे बढ़ेगा क्योंकि वह प्रमादी नहीं है।


अलवर अध्याय समाप्त

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