Mansukh Ranwa

From Jatland Wiki
Jump to navigation Jump to search
Author: Laxman Burdak लक्ष्मण बुरड़क
Mansukh Ranwa (1967-2011)

Mansukh Ranwa (1967-2011) (मनसुख रणवां) (also Mansukh Ranwa Manu) was a Hindi poet and author from Sikar district in Rajasthan. He was born on 1 January 1967 at village Dholpalia in Sikar district in the family of Jala Ram Ranwa, a hindu Jat of Ranwa gotra. His mother was Smt Chhoti Devi. He had published many books and more than 70 poems in Hindi books and magazines.

Education

He did M.A. (English), M.A. (Hindi), B.Ed. and L.L.B.

Books authored by Mansukh Ranwa

Amar Shaheed Lothoo Jat (अमर शहीद लोटू जाट)

Amar Shahid Lothu Jat.jpg

Mansukh Ranwa is the first author who has first time published history of freedom fighter Lothoo in the form of a book- “Amar Shaheed Lothoo Jat’’ (अमर शहीद लोटू जाट) in Hindi in year 2000. Otherwise it was only through the Bhopas that folk songs of Lothoo were sung in Rajasthan. Most of the facts about Lothoo were known to only local public from the ‘phad’, which Bhopa community read loudly in public places as folk songs with the story depicted on canvas. The role of Lothoo has not been properly assessed in the history of first freedom movement of India. The efforts of Mansukh Ranwa in writing a research book on such a great freedom fighter, whose history and achievements were lost in the dark, are worth praising. Dr Gyan Prakash Pilania has written forward of this book.

Kshatriya Shiromani Vir Tejaji (क्षत्रिय शिरोमणि वीर तेजाजी)

Kshatriya Shiromani VeerTejaji.jpg

Kshatriya Shiromani Vir Tejaji (क्षत्रिय शिरोमणि वीर तेजाजी) in Hindi is his second research book published in 2001 on Vir Tejaji, who is considered to be folk-deity and worshiped in entire Rajasthan, Uttar Pradesh, and Madhya Pradesh by all communities. Tejaji was a great warrior born in the family of Dhaulya gotra Jats. His father was Chaudhary Taharji (Thirraj), a chieftain of Khirnal (Kharnal) in Nagaur district in Rajasthan. Author has included facts in the book about nagavansh, to which Tejaji belonged, who had been rulers in the desert region of Rajasthan for centuries and whose history is lost in the dark. He has documented facts about Tejaji, prevalent in folk-songs, life and culture of local people in the form of this book.

Mahavir Chakradhari Digendra Kumar (महावीर चक्रधारी दिगेंद्र कुमार)

Front cover of the book - Mahavir Chakradhari Digendra Kumar

The book Mahavir Chakradhari Digendra Kumar (महावीर चक्रधारी दिगेंद्र कुमार) in Hindi is his third research book, published by Kalpana Publication, Shop No. 57 Upper Storey, Nahargarh Road, Jaipur, First Edition 2008, ISBN: 81-89681-09-5.

It is about the acts of bravery of Digendra Kumar, recipient of Mahavir Chakra in the Kargil war in 1999. Naik Digendra Kumar (Paraswal) - Maha Vir Chakra, comes from village Jhalara, tehsil Neem Ka Thana, district Sikar Rajasthan. Nation's second highest wartime gallantry award Maha Vir Chakra was awarded to Naik Digendra Kumar on 15th August 1999 for his acts of bravery in Kargil War in occupying Tololing hill on 13 June 1999. He was in 2 Rajputana Rifles of the Indian Army.

Digendra Kumar was born on 3 July 1969 in the family of Shivdan Singh Paraswal. His mother was Rajkaur. Shivdan Singh was a strong follower ofArya Samaj.

Digendra Kumar joined 2 Rajputana Rifles and became the Best Commando of the Indian army. He was awarded Sena Medal in 1993 for his anti-terrorist operations in Kupwada area of Jammu-Kashmir. In 1994 his services were appreciated for recapturing Hazratbal Dargah from the terrorists. In 1998 he was sent in Indian Peace Keeping Force and took part in 'Operation of Pawan' in Shrilanka where his acts of bravery were highly appreciated.

Uphan (उफान-काव्यसंग्रह)

Uphan (उफान-काव्यसंग्रह) is his third book published in 2002 in Hindi which includes 56 poems about nature, society, life and culture of a common man.

राजस्थान के संत-शूरमा एवं लोक कथाएं

राजस्थान के संत-शूरमा एवं लोक कथाएं

पुस्तक: राजस्थान के संत-शूरमा एवं लोक कथाएं

प्रकाशक: कल्पना पब्लिकेशन, दूसरी मंजिल, दुकान न. 157, चांदपोल बाजार, जयपुर-302001, संस्करण 2010, ISBN 978-81-89681-41-8

पुस्तक की समीक्षा: मनसुख रणवा का ‘राजस्थानी लोक कथाएँ’ कहानी संग्रह उनके राजस्थान की जमीन और भाषा से जुड़े होने का जीवन्त प्रमाण है। लेखक कलम की शक्ती को समाज की संरचना, सुनियोजन व सुधार हेतू प्रयोग कर समाज में चेतना का संचार करता है। समाज का चित्रण कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत कर लोक जीवन को समझाने में मदद करता है। जिस समाज और राष्ट्र में लेखक की लेखनी एवम् सहादत की पूजा होती है , वह एक जीवन्त समाज कहलाता है। प्रबुद्ध लेखक मनसुख रणवा ने अपने सामाजिक कर्तव्य बोध से प्रेरित होकर इस रचना का निर्माण किया है जो राजस्थान के लोक जीवन को समझने में बहुत सहायक होगा। इन लोक कथाओं का नायक मुख्यत: जाट है यद्यपि कहानियों में समाज के सभी लोगों का जिक्र भी किया गया है।


इस संकलन की कहानियों में जीवनानुभवों का निचोड़ है। कलेवर में छोटी किन्तु सोच में सशक्त कहानियाँ लोकाभिमुख होने की वजह से बहुत प्रारम्भ में ही पाठक की पकड़ को मजबूत बना देती हैं। कथ्य की ताकत वस्तु विधान और भाषा दोनों रूपों में अपनी विशेषता प्रकट करती है। कौतुहल और रवानगी से भरी इन कहानियों में जाट एक चरित्र भी है और प्रतीक भी। चरित्र के रूप में वह सरल, भोला, हँसमुख, सहज विश्वासी, दूसरों की मदद में अग्रणी है और प्रतीकात्मक दृष्टि से प्रबल, साहसी, बुद्धिमान, सत्यवादी, श्रमशील और जीवनेच्छा से भरा है।

प्रस्तुत कहानियों में हास्य का पुट भी है। हास्य की फ़ुहार पाठकों के होठों पर मुस्कान ला देती है। कहानी पढने पर उसमें हास्य की गुदगुदाहट, खिलखिलाहट मह्सूस की जा सकती है।कहानियों में रोज रोज के जीवन से उठाई गई छोटी-छोटी घटनायें हास्य पैदा करती हैं। मुस्कान कहीं से उधार लेने की जरुरत नहीं। अपने प्रदेश की मिट्टी की महक और लोक संस्कृति की झलक ही पर्याप्त है।

कहानी संग्रह की इन प्रशंसनीय कहानियों में जाट के अलग-अलग चेहरे हैं जो यह दर्शाते हैं कि जीवन की पाठशाला में अनुभवों की किताब से ही सफल और श्रेष्ठ परिणाम मिलते हैं। कुछ कहानियां बरबस ध्यान आकर्षित करती हैं नीचे अदधृत की जा रही हैं:

  • 'जाट की जैळी' (पृ.113) कहानी में सचमुच में जाट बीरबल की बुद्धीमत्ता को मात देता है। कहानी में अकबर बादशाह को जाट के जादू का लोहा मानना पड।
  • 'शेर का शिकार' (पृ.125) में जाट शेर को सहज ही पिराणी से मार डालता है। चतुर ठाकुर की बात मानकर हरद्वार भी हो आता है। जाट ने ठाकुर की चालाकी पकड़ ली और चतुर ठाकुर की राजा के सामने पोल खोलने में नहीं चूकता है।
  • 'झाड़ू का कमाल' (पृ.130) कहानी में कोलिडा का झाड़ू जाट अकबर बादशाह के सामने भी सत्य कहने से नहीं डरता है।
  • 'डोकरी की सीख' (पृ.134) कहानी में डोकरी की सलाह साधारण प्रतीत होती है पर यह सीख युद्ध-कोशल का एक अचूक नुश्खा है।
  • 'चौधरी का फ़ैसला’ (पृ.141) कहानी में जाट ने पंडित के लालची बेटे को सम्पति न देकर अच्छा न्याय किया।
  • 'नटणी पर भारी जट विद्या' (पृ.143) कहानी में इतनी बडी और गंभीर समस्या का समाधान जाट ने चुटकी में निकाल लिया और राजा को मानना पडा कि नट्ट विद्या आ जाती है पर जट्ट विद्या नहीं आती।
  • 'जाट रै जाट - सौलह दूनी आठ' (पृ.154) में ब्राह्मण को जाट के तर्कों के आगे हार माननी पड़ी।
  • 'एक दाना अन्न' (पृ.157) कहानी में बनिये की चतुराई और जाट की दरियादिली गुदगुदी पैदा करने वाली है।
  • 'जाट का जादू' (पृ.165) कहानी में जाट द्वारा अकबर के दरबार में पीपे में में बंद मतीरे को निकालने का आव्हान उसके मौलिक सोच का आभाष दिलाता है.
  • 'जाट दादा' (पृ.170) कहानी में हमेशा की तरह जाट दूसरे की सहायता के लिए तैयार रहता है। गरीब मुसलमान के भले के लिए उसने काजी का रोल किया और खत्म की काजी की दादागिरी।
  • 'नौजवान की चतुराई' पृ.173) में जाट बणिये के झांसे में आ जाता है पर बदला लेने में नहीं चूकता है।
  • 'जाट की सीख' (पृ.176) कहानी में जाट ने ढोंगी पंडित को अच्छा सबक सिखाया। पंडित ने जाट से सीख ली और हमेशा के लिए ठगना छोड़ दिया ।
  • 'झंवर का चौधरी' (पृ.181) हमें तत्समय के ऐतिहासिक तथ्यों से अवगत कराता है और प्रचलित न्याय व्यवस्था के बारे में जानकारी देती है।
  • 'लैटूरा' (पृ.185) कहानी सोचने को मजबूर करती है कि नाम में कुछ नहीं रखा।
  • भोळा बामण (पृ.189) कहानी में झलकता है कि कैसे बामण सहज ही दूसरों पर विश्वास कर घाटे में रहता है।

अनुक्रमणिका :

1. करमा बाई (पृ.1),
2. करणी माता (पृ.5),
3. काली बाई (पृ.7),
4. गोगापीर (पृ.8),
5. गुरुगोबिंदगिरि (पृ.10),
6. जसनाथजी (पृ.12),
7. जाम्भोजी विश्नोई (पृ.19),
8. टीलू बाबा (पृ.21),
9. शूरवीर तेजाजी (पृ.23),
10. बगड़ावत देवनारायण (पृ.28),
11. महान संत दादू दयाल (पृ.34),
12. भक्त शिरोमणि धन्ना जाट (पृ.37),
13. सन्त नागरीदास (पृ.43),
14. पाबूजी (पृ.44),
15. राजत्यागी संत पीपाजी (पृ.47),
16. शूरवीर बिग्गाजी (पृ.49),
17. मरूधरा मन्दाकिनी मीराबाई (पृ.50),
18. बाबा रामसा पीर-रामदेव (पृ.52),
19. सती रानाबाई (पृ.55),
20. रिक्ताराम देवता (पृ.58),
21. मेवाती बाबा लालदास (पृ.59),
22. झोरड़ा देव - हरीराम बाबा (पृ.62),
23. अमर शहीद लोठू जाट (पृ.64),
24. समरवीर गोकुलसिंह (पृ.67),
25. मेवाड़ी देशभक्त- महाराणा प्रताप (पृ.69),
26. दरिद्रनारायण - बदरीनारायण सोढाणी (पृ.71),
27. वीर दुर्गादास राठोड़ (पृ.74),
28. पृथ्वीसिंह गोठड़ा (पृ.77),
29. सूरजभान डांगी बीबासर (पृ.78),
30. महारानी किशोरी (पृ.79),
31. अजय दुर्ग लोहागढ़ (पृ.81),
32. हर्ष-जीण का अमर प्रेम (पृ.83),
33. लिछमा गुर्जरी का मायरा (पृ.86),
34. राजा सुलतान का मायरा (पृ.91),
35. नानी बाई का मायरा (पृ.95),
36. ढोला-मरवणी प्रेमकथा (पृ.97),
37. सती फूलां बाई (पृ.100),
38. सोना का स्वाभिमान (पृ.103),
39. सोवणी सुनारी (पृ.107),
40. माँ का कर्ज (पृ.109),
41. भाइयों का प्रेम (पृ.111),
42. जाट की जेळी (पृ.113),
43. पीलसौत का ताप (पृ.121),
44. जोधपुर ठाकुर की दरियादिली (पृ.123),
45. शेर का शिकार (पृ.125),
46. बाड़े की इज्जत (पृ.128),
47. झाड़ू का कमाल (पृ.130),
48. बादशाह अकबर (पृ.132),
49. डोकरी की सीख (पृ.134),
50. चौधरी का अकूड़ा (पृ.136),
51. पंच परमेशवर (पृ.137),
52. ब्राह्मण दादा की गिरगिराट (पृ.138),
53. खेत का मतीरा (पृ.139),
54. चौधरी का फैसला (पृ.141),
55. अक्लवान किसान (पृ.142),
56. नटणी पर भारी जट्ट विद्या (पृ.143),
57. सुख की नींद (पृ.144),
58. दान-दक्षिणा का औचित्य (पृ.145),
59. जट्ट-विद्या (पृ.147),
60. महाराजा गंगा बाबा (पृ.149),
61. वंश की मर्यादा (पृ.150),
62. गम बड़ा भाई गम बड़ा (पृ.152),
63. जाट रै जाट - सौलह दूनी आठ (पृ.154),
64. सौ सिर का प्राणी (पृ.155),
65. बाप का फर्ज (पृ.156),
66. एक दाना अन्न (पृ.157),
67. अजमेर रियासत के श्रीकृष्ण (पृ.159),
68. दान का फल (पृ.160),
69. लंगी पड़ी महंगी (पृ.161),
70. टपूकड़ा (पृ.162),
71. बनिया का बेटा (पृ.163),
72. भील राजा का न्याय (पृ.164),
73. जाट का जादू (पृ.165),
74. बनिज करे बणिया (पृ.166),
75. एक बेटी गयी काम से (पृ.167),
76. दान दाता बनिया (पृ.168),
77. मुँहफट परिवार (पृ.169),
78. जाट दादा (पृ.170),
79. अक्ल का सौदागर (पृ.171),
80. पाखण्ड का दुश्मन (पृ.172),
81. नौजवान की चतुराई (पृ.173),
82. साधु (पृ.175),
83. जाट की सीख (पृ.176),
84. कुँजड़े की करामात (पृ.177),
85. कुम्भा की कलम (पृ.178),
86. जिद्दी जाटणी (पृ.180),
87. झंवर का चौधरी (पृ.181),
88. एक कुंए वाला किसान (पृ.182),
89. सेठ के घर महालक्ष्मी (पृ.183),
90. लैटूरा (पृ.185),
91. अंधविश्वासी सेठ-सेठानी (पृ.186),
92. चतुर ठाकुर (पृ.187),
93. छपन्या काल (पृ.187),
94. ढाढ़ी की ढोलक (पृ.188),
95. कलाकार सेठ (पृ.189),
96. भोळा बामण (पृ.189),
97. बणिया के बेटा (पृ.190),
98. अज्ञानी लड़का (पृ.191),
99. घर में मालकिन (पृ.192),
100. बिलाई मौसी (पृ.193),
101. नुमान भक्त (पृ.193),
102. होशियार सेठाणी (पृ.194)
लक्ष्मन राम बुरड़क
भोपाल (मध्य प्रदेश)

Other books

Maru Manak Kumbha Ram - Book Cover.jpg
  • मरू माणक कुम्भाराम: लेखक मनसुख रणवां, कल्पना पब्लिकेशन जयपुर, 2006, ISBN 81-89691-08-7
सर छोटूराम
  • सर छोटूराम
  • प्रकाशक: कल्पना पब्लिकेशन, दूसरी मंजिल, दुकान न. 157 , चांदपोल बाजार, जयपुर-302001 , 2013, ISBN 978-81-89681-68-5

Contact details

  • Address - Jyoti Nagar Colony, Piprali Road, Sikar - 332001
  • Phone - 01572-240746, Mob - 9413134209

Death

He died in a road accident on 15 October 2011.

See also

Abhilasha Ranwa

मनसुख रणवा का परिवार

श्रीमती दुर्गा रणवा की पुस्तक 'शिक्षा संत स्वामी केशवानन्द'

मनसुख रणवा के परिवार में उनकी पत्नी दुर्गा रणवा, पुत्री अभिलाषा रणवा और पुत्र अभिषेक हैं। मनसुख रणवा की तरह उनकी पुत्री और पत्नी भी निडर और समाज सेवा में तत्पर रहती हैं।

वर्ष 2015 में श्रीमती दुर्गा रणवा की पुस्तक 'शिक्षा संत स्वामी केशवानन्द' प्रकाशित हुई है। यह पुस्तक मनसुख रणवा 'मनु' स्मृति संस्थान, ज्योतिनगर, सीकर द्वारा प्रकाशित की गई है।

लोठू निठारवाल स्मारक

स्वर्गीय मनसुख रणवां ने गाँव बठोठ में राजस्थान के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी लोठू निठारवाल की यादगार में एक स्मारक जन सहयोग से बनाने का अभियान शुरू किया था जो उनके असामयिक निधन से अधूरा रह गया था । स्थानीय लोगों की मदद से इस स्मारक का काम पूरा हुआ । 15 जून 2013 को इस स्थल पर हजारों की संख्या में जाट भाई इकट्ठे हुए और 20 लाख की लागत से लोठू जाट की मूर्ती स्थापित की।

21 वीं सदी का भारत

स्वर्गीय मनसुख रणवां 'मनु' की इस शीर्षक की कविता नीचे दी गयी है:

21 वीं सदी का भारत
राम के भारत में मैनें, अजब खेला होते देखा,
रोज यहाँ इंसानों को, जीते जी मरते देखा।
सोने की चिड़िया को आज मैनें, पिंजरे में तड़पते देखा,
सफेदपोश गिद्धों को, भारत माँ के आँचल को नोचते देखा।
प्रजातंत्र को आज मैंने, फाँसी के फंदे से लटकते देखा,
जेल में बैठे अपराधियों को, यहाँ चुनाव जीतते देखा।
एक बूढ़े नौजवां को, परिणय सूत्र में, मैनें बंधते देखा,
सीता-सावित्री का चीरहरण, खुल्लमखुल्ला होते देखा।
शराब की बोतल में बैठा, आज एक इंसान देखा,
पिता के कन्धों पे पुत्र का, जनाजा आज मैनें देखा।
एक मछली के पेट में मैनें, महासागर को तड़पते देखा,
नेताओं की जेबों में, मैंने आज भारत का भविष्य देखा।
भारत में कागजी पर्यावरण को, यहाँ खूब फलते-फूलते देखा,
बड़े-बड़े शहरों में मैनें, दिन को रात में बदलते देखा।
ओलम्पिक खेलों में भारत को मैनें, सदा औंधे मुंह गिरते देखा,
अन्नदाता किसान को मुश्किलों में, मैनें आत्मदाह करते देखा।
भारत माँ के सपूतों को, बिना युद्ध यहाँ शहीद होते देखा।
देशभक्ति का दंभ भरने वालों को, मात्र राज की खातिर मरते देखा।
मनु की नगरी में मैनें आज, इंसानियत को मरते देखा।
कुत्ते की वफा को वर्तमान में, मैनें केवल निभते देखा।
सपने में मैनें आज, 21वीं सदी का भारत देखा।
एक बार फिरंगियों को, फिर भारत में आते देखा।
इंसानियत के जन्म दाता भारत में, इंसानियत को वापस बहाल करो,
दुश्मन की छाया ना पड़े धरा पे, ऐसा मजबूत तुम इंतजाम करो।

Gallery

External links

References


Back to The Authors