Kishkindha

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Kishkindha (किष्किन्धा) was name of a Janapada and were people of the same name known to Panini and mentioned in Ramayana/Mahabharata. Kishkindha was the kingdom of the Vanara King Sugriva, the younger brother of Vali, in the Ramayana. This kingdom is identified to be the regions around the Tungabhadra lake (then known as Pampasara) near Hampi in Karnataka.

Variants

  • Kishkindha (किष्किंधा) (होसपेट तालुका, मैसूर) (AS, p.190)

Anegondi

Anegondi (अनागुंदी) previously called Kishkindha is a village in the Gangavathi taluk, Koppal district in Karnataka. [1]

History

V. S. Agrawala[2] writes that Ashtadhyayi of Panini mentions janapada Kishkindha (किष्किन्धा) under Sindhvadi (सिन्ध्वादि) (IV.3.93) (सोअस्याभिजन:,अण्। सैन्धव:) .


V. S. Agrawala[3] writes that Patanjali makes clear the social status of the sudras in his time. Firstly there were sudras who were not excluded from Aryavrata but were living within its social system. Secondly, there was another class of sudras who were living outside Aryavrata and its society. He cites as examples (1) Kishkindha-Gabdikam (2) Shaka-Yavanam and (3) Saurya-Krauncham. Of these Kishkindha may be identified with Pali Khukhunndo in Gorakhpur, Gabdikā with Gaddis of Chamba, who were deemed as living outside the limits of Aryavrata, Saurya with Saureyya or Soron in Etah district and Krauncha with the later Krauncha-dvara some where in Garhwal.

किष्किन्धा

विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है ...किष्किन्धा (AS, p.190) होसपेट स्टेशन से ढाई मील दूरी पर और बिलारी से 60 मील उत्तर की ओर रामायण में प्रसिद्ध, वानरों की राजधानी थी। होस्पेट स्टेशन से दो मील की दूरी पर अंजनी (हनुमान की माता) के नाम से एक पर्वत है और इसके कुछ ही दूरी पर ऋष्यमूक स्थित है, जिसे घेरकर तुंगभद्रा नदी बहती है। नदी के दूसरी ओर हंपी 16वीं शती ई. के ऐश्वर्यशाली नगर विजयनगर के विस्तृत खंडहर स्थित हैं।

रामायण काल में 'किष्किन्धा' वानर राज बालि का राज्य था। किष्किन्धा संभवत: 'ऋष्यमूक' की भाँति ही पर्वत था। बालि ने अपने भाई सुग्रीव को किष्किन्धा से मार कर भगा दिया था और वह ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान आदि के साथ रहने लगा था। ऋष्यमूक पर बालि श्राप के कारण नहीं जा सकता था।

वाल्मीकि रामायण में यह कथा किष्किन्धा काण्ड में वर्णित है। रामायण के अनुसार किष्किंधा में बालि और तदुपरान्त सुग्रीव ने राज्य किया था। श्री रामचन्द्र जी ने बालि को मारकर सुग्रीव का अभिषेक लक्ष्मण द्वारा इसी नगरी में करवाया था। तदुपरान्त माल्यवान तथा प्रस्त्रवणगिरि पर जो किष्किंधा में विरूपाक्ष के मन्दिर से चार मील दूर है, उन्होंने प्रथम वर्षाऋतु बिताई थी-'तथा स बालिनं हत्वा सुग्रीवमभिषच्य च वसन् माल्यवतः पृष्ठे रामो लक्ष्मणब्रवीत्', वाल्मीकि. किष्किंधा पर्व 27,1. 'एतद् गिरेमल्यिवतः पुरस्तादाविर्भवत्यम्बर लेखिश्रृंगम्, नवं पयो यत्र घनैर्मया च [p.191]: त्वद्धिप्रयोगाश्रु समं विसृष्टम्', रघुवंश 13,26. माल्यवान्-पर्वत के ही एक भाग का नाम प्रवर्षण (या प्रस्रवण) गिरि है। इसी स्थान पर श्रीराम ने वर्षा के चार मास व्यतीत किए थे- 'अभिषिक्ते तु सुग्रीवे प्रविष्टे वानरे गुहाम्, आजगाम सहभ्रात्रा रामः प्रस्रवर्ण गिरिम्, वाल्मीकि. किष्किंधा पर्व 27,1. पास ही स्फटिक शिला है, जहाँ पर अनेक मन्दिर हैं।

ऋष्यमूक पर्वत तथा तुंगभद्रा के घेरे को चक्रतीर्थ कहते हैं। मन्दिर के पास ही सूर्य, सुग्रीव आदि की मूर्तियाँ हैं। विरूपाक्ष मन्दिर से प्रायः दो मील पर तुंगभद्रा नदी के वामतट पर एक ग्राम अनेगुंडी है, जिसका अभिज्ञान किष्किंधा नगरी में किया गया है। इस परम ऐश्वर्यशाली नगरी का वर्णन वाल्मीकि रामायण में पर्याप्त विस्तार से है। इसका एक अंश इस प्रकार से है-

'स तां रत्नमयीं दिव्यां श्रीमान् पुष्पितकाननां, रम्यां रत्न-समाकीर्णा ददर्श महतीं गुहाम्।
हर्म्यप्रासादसंबाधां नानारत्नोपशोभिताम्, सर्वकामफलैर्वृक्षैः पुष्पिशै रुपशोभिताम्।
देवगंधर्वपुत्रश्च वानरैः कामरूपिभिः, दिव्यमाल्याम्बरधरैः शोभितां प्रियदर्शनैः।
चन्दनागरुपद्यानां गंघैः सुरभिगंधितां, मैरेयाणां मधूनां च सम्मोदितमहापथां।
विंध्यमेरु गिरिप्रख्यैः प्रासादैर्नैकभूमिभिः, ददर्श गिरिनद्यश्च विमलास्तत्र राघवः' किष्किंधा पर्व 33,4-8

अर्थात लक्ष्मण ने उस विशाल गुहा को देखा जो कि रत्नों से भरी थी और आलौकिक दीख पड़ती थी, और उसके वनों में खूब फूल खिले हुए थे, हर्म्य प्रासादों से सघन, विविध रत्नों से शोभित और सदाबहार वृक्षों से वह नगरी सम्पन्न थी। दिव्यमाला और वस्त्र धारण करने वाले सुन्दर देवताओं, गन्धर्व पुत्रों और इच्छानुसार रूप धारण करने वाले वानरों से वह नगरी बड़ी भली दीख पड़ती थी। चन्दन, अगरु और कमल की गन्ध से वह गुहा सुवासित थी। मैरेय और मधु से वहाँ की चौड़ी सड़कें सुगन्धित थीं।

इस वर्णन से यह स्पष्ट है कि किष्किंधा पर्वत की एक विशाल गुहा या दरी के भीतर बसी हुई थी, जिससे कि यह पूर्णरूप से सुरक्षित थी।[4]

किष्किंधा पर्व 14,6 के अनुसार ('प्राप्तास्मध्वजयंत्राढ्यां किष्किंधांवालिनः पुरीम्') इस नगरी में सुरक्षार्थ यंत्र आदि भी लगे थे।

पंपासर ताल: किष्किंधा से प्रायः एक मील पश्चिम में पंपासर नामक ताल है, जिसके तट पर राम और लक्ष्मण कुछ समय के लिए ठहरे थे। पास ही स्थित सुरोवन नामक स्थान को शबरी का आश्रम माना जाता है। महाभारत सभा पर्व 21,17 में भी किष्किंधा का उल्लेख है- 'तं जित्वास महाबाहुः प्रययौ दक्षिणापथम्, गुहामासादयामास किष्किंधा लोकविश्रुतम्'। यहाँ पर भी किष्किंधा को पर्वत-गुहा [p.192]: कहा गया है और वहाँ वानरराज मैन्द और द्विविद का निवास बताया गया है। ऋष्यमूक का श्रीमदभागवत् में भी उल्लेख है- 'सुह्यो देवगिरि-र्ऋष्यमूकः श्री शैलो वेंकटो महेन्द्रो वारिधारो विन्ध्यः' श्रीमदभागवत् 5,19,16. (अनेगुंडी, कुंकुनपुर, ऋश्यमूक, माल्यवान्, पंपसर)

ऋष्यमूक पर्वत

विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लेख किया है ...ऋष्यमूक पर्वत (AS, p.108) वाल्मीकि रामायण में वर्णित वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था। इसी पर्वत पर श्री राम की हनुमान से भेंट हुई थी। बाद में हनुमान ने राम और सुग्रीव की भेंट करवाई, जो एक अटूट मित्रता बन गई। जब महाबलि बालि ने अपने भाई सुग्रीव को मारकर किष्किंधा से भागा तो वह ऋष्यमूक पर्वत पर ही आकर छिपकर रहने लगा था। उसने सीता हरण के पश्चात् राम और लक्ष्मण को इसी पर्वत पर पहली बार देखा था- 'तावृष्यमूकस्य समीपचारी चरन् ददर्शद्भुत दर्शनीयौ, शाखामृगाणमधिपस्तरश्ची वितत्रसे नैव विचेष्टचेष्टाम्' (किष्किंधा., 1,128)

अर्थात् "ऋष्यमूक पर्वत के समीप भ्रमण करने वाले अतीव सुन्दर राम-लक्ष्मण को वानर राज सुग्रीव ने देखा। वह डर गया और उनके प्रति क्या करना चाहिए, इस बात का निश्चय न कर सका।"

श्रीमद्भागवत में भी ऋष्यमूक का उल्लेख है- 'सह्योदेवगिरिर्ऋष्यमूक: श्रीशैलो वैंकटो महेन्द्रो वारिधारो विंध्य:।' (श्रीमद्भागवत 5,19,16) तुलसीरामायण, किष्किंधा कांड में ऋष्यमूक पर्वत पर राम-लक्ष्मण के पहुँचने का इस प्रकार उल्लेख है- 'आगे चले बहुरि रघुराया, ऋष्यमूक पर्वत नियराया।'

दक्षिण भारत में प्राचीन विजयनगर साम्राज्य के खंडहरों अथवा हम्पी में विरूपाक्ष मन्दिर से कुछ ही दूर पर स्थित एक पर्वत को ऋष्यमूक कहा जाता है। जनश्रुति के अनुसार यही रामायण का ऋष्यमूक है। मंदिर को घेरे हुए तुंगभद्रा नदी बहती है। ऋष्यमूक तथा तुंगभद्रा के घेरे को चक्रतीर्थ [p.109]: कहा जाता है। चक्रतीर्थ के उत्तर में ऋष्यमूक और दक्षिण में श्री राम का मंदिर है। मंदिर के निकट सूर्य और सुग्रीव आदि की मूर्तियाँ स्थापित हैं। प्राचीन किष्किंधा नगरी की स्थिति यहाँ से 2 मील दूर, तुंगभद्रा नदी के वामतट पर, अनागुंदी नामक ग्राम में मानी जाती है।

चक्रतीर्थ

विजयेन्द्र कुमार माथुर[6] ने लेख किया है ...3. चक्रतीर्थ (AS, p.325): किष्किंधा के निकट ऋष्यमूकपर्वत और तुंगभद्रा नदी के घेरे को चक्रतीर्थ कहा जाता है.

In Ramayana

Kishkindha Kanda of Ramayana tells us that Kishkindha (also known as Kishkindhya), was the kingdom of the Vanara King Sugriva, the younger brother of Vali, in the Ramayana. This was the kingdom where he ruled with the assistance of his minister, Hanuman.

This kingdom is identified to be the regions around the Tungabhadra lake (then known as Pampa Saras) near Hampi in Karnataka. The mountain near to the lake with the name Risyamuka where Sugriva lived with Hanuman, during the period of his exile also is found with the same name.

During the time of Ramayana ie, Treta Yuga, the whole region was within the dense forest called Dandaka Forest extending from Vindhya range to the South Indian peninsula. Hence this kingdom was considered to be the kingdom of Vanaras which in Sanskrit means Forest Dwellers.

In Mahabharata

Kishkindha (किष्किन्धा) is mentioned in Mahabharata (II.28.10)/(2-32-18b).

Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 28 mentions Sahadeva's march towards south: kings and tribes defeated. Kishkindha (किष्किन्धा) is mentioned in Mahabharata (II.28.10)/(2-32-18b). [7]....And defeating in battle the Pulindas, the hero then marched southward. And the younger brother of Nakula then fought for one whole day with the king of Pandya. The long-armed hero having vanquished that monarch marched further to the south (Dakshinapatha). And then he beheld the celebrated caves of Kishkindha and in that region fought for seven days with the Vanara kings Mainda and Dwivida.

External links

References

  1. The Hindu - Anegundi bracing itself to charm tourists
  2. V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p. 498
  3. V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p. 78
  4. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.190
  5. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.108-109
  6. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.324-325
  7. तं जित्वा स महाबाहुः प्रययौ दक्षिणापथम्। 2-32-18a, गुहामासादयामास किष्किन्धां लोकविश्रुताम्।। 2-32-18b

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