China

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China (चीना)[1] China (चिना) is a gotra of Jats.[2] China (चिना) is a Gotra found among the Sikh Jats. They were one of ruling clans in Central Asia.[3] They fought Mahabharata War in Kaurava's side.

Origin

History

H.A. Rose[4] writes that- China (चिना) is a Muhammadan Jat clan found in Montgomery. China (चीना), see Chhina.

Gen. Cunningham writes in his book – “History of Sikhs” that The China, Bhuraich, Chulye are famous clans of Jats.

H. W. Bellew[5] thinks that The Shin of Gilgit and Dardistan represent the China named by Manu amongst the races of the Kshatriya class, or Rajput, who by their neglect of Brahmanism, gradually sunk to the Sudra class, the lowest of the four classes of Hindus. The China who thus lapsed from the Kshatriya to the Sudra class are named by Manu along with the Parada, Pahlava, Kirata, Darada, and Khasa ; all which races inhabited the mountainous country between Kabul and Kashmir in which Buddhism long held its strongest sway.

चीना गोत्र का इतिहास

दलीप सिंह अहलावत[6] लिखते हैं कि चीना क्षत्रिय चन्द्रवंशी सम्राट् ययाति के पुत्र अनु के वंशज हैं। ये लोग आर्यावर्त से चीन देश में गये और वहां बस्तियां बसाकर राज्य किया। ये चीना क्षत्रिय अपभ्रंश होकर चीमा कहलाये1। यह स्मरण रखना चाहिये कि चीन, यवन और शक आदि शब्द विदेशी नहीं, किन्तु भारतीय हैं और बहुत पुराने हैं। चीन शब्द के विषय में प्रो० हीरन लिखते हैं कि चीन शब्द हिन्दुओं का है और हिन्दुस्तान से ही आया है। पंचतन्त्र की एक कथा में लिखा है कि एक कौलिक विषणु का रूप धारण करके किसी राजकन्या के पास जाया करता था। वहां उस कन्या के सर्वांगसुन्दर वर्णन में “चीना नाभिः”लिखा हुआ है। वहां चीना शब्द का अर्थ गहरा है। अमरकोश में मृगों का भेद वर्णन करते हुए एक प्रकार के मृग को भी चीन कहा गया है। इन प्रमाणों से मालूम होता है कि चीन शब्द के असली अर्थों के कारण ही गहराई में रहने और तेज तबीयत होने से चीनवालों को चीनी कहा गया है। चीन में बसने वाले मूल पुरुष आर्य ही थे। चीनियों के विषय में टॉड साहब ने अपने राजस्थान के इतिहास, परिशिष्ठ, अध्याय दूसरे में इनके वंश का हाल लिखा है। उसका सारांश यह है कि - “मंगोल, तातार और चीनी लोग अपने को चन्द्रवंशी बतलाते हैं। इनमें से तातार के लोग अपने को ‘अय’ का वंशज कहते हैं। यह ‘अय’ पुरुरवा का पुत्र आयु ही है। इस आयु के वंश में ही यदु था जिसका पौत्र हय था। चीनी लोग इसी हय को हयु कहते हैं और अपना पूर्वज मानते हैं2।”

चीन वालों के पास यू की उत्पत्ति इस तरह से लिखी हुई है कि एक तारे (बुध) का समागम यू की माता के साथ हो गया। इसी से यू हुआ। यह बुध और इला के समागम जैसी बात ज्ञात होती है। इस तरह से तातारों का अय, चीनियों का यू और पौराणिकों का आयु एक ही व्यक्ति हैं। इन तीनों का आदिपुरुष चन्द्र (चन्द्रमा-सोम) था। यह अच्छी तरह सिद्ध होता है कि ये लोग चन्द्रवंशी क्षत्री हैं3

चीना जाटों ने पौराणिकों के सिद्धान्तों को अस्वीकार करके बौद्धधर्म अपनाया था। इस विरोध के कारण से ही ये व्रात्य घोषित कर दिये गये। यह महाभारत एवं मनुस्मृति में भी लिख दिया गया। उदाहरण के तौर पर - महाभारत आदि पर्व, अध्याय 85वां, श्लोक 34-35, “अनु से म्लेच्छ जातियां उत्पन्न हुईं।” मनुस्मृति अध्याय 10, श्लोक 43-45 - “पौण्ड्रक, औड्र्म द्रविड, *काम्बोज, यवन, *शक, पारद, *पल्हव, *चीना, किरात, *दरद और खश क्षत्रिय जातियां धार्मिक क्रियाओं के त्याग करने से और ब्राह्मणों के उपदेशों को न मानने के कारण शूद्रता को प्राप्त हो गईं। बहिष्कृत जो जातियां हैं चाहे वे म्लेच्छभाषायें बोलती हैं या आर्य भाषायें, वे सब दस्यु कहलाती हैं4।” किन्तु इन वंशों के प्राचीन आर्यक्षत्रिय होने पर कोई


1. क्षत्रिय जातियों का उत्थान पतन एवं जाटों का उत्कर्ष पृ० 382 लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री ।
2. वैदिक सम्पत्ति पृ० 414 एवं 426, लेखक स० प० रघुनन्दन शर्मा साहित्यभूषण ।
3. वैदिक सम्पत्ति पृ० 426, लेखक स० प० रघुनन्दन शर्मा साहित्यभूषण एवं जाट इतिहास पृ० 7-8 लेखक श्रीमदाचार्य श्रीनिवासाचार्य महाराज।
4. पूर्ण विवरण के लिए देखो जाट वीरों का इतिहास द्वितीय अध्याय (जाट क्षत्रिय वर्ण के हैं)।
* ये जाट गोत्र हैं


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-222


सन्देह नहीं है। इन क्षत्रियवंशों का राज्य शासन रहा है और ये सब महाभारत युद्ध में सम्मिलित होकर लड़े हैं। यह वर्णन उचित समय पर किया जाएगा। चीना-जाटों को ही ऐतिहासिक चीन की प्राचीन भूमि के आदिशासक मानते हैं और कुछ विद्वान् इनको चीन देश से महाभारत युद्ध में आई हुई सेना की सन्तान मानते हैं, जो कि एक भ्रम है। इस वंश का मूल चीनी नहीं है, न ये पीले रंग के हैं, न ही इनकी नाक चपटी तथा उंचाई कम है। इनकी नाक ऊंची, रंग गेहुंआ और डीलडौल लम्बा है। इनकी आकृति यही सिद्ध करती है कि ये लोग महाभारत के ही आर्यक्षत्रियों की सन्तान हैं। महाभारत वनपर्व में चीनावंश के शासन होने का वर्णन है कि “पाण्डव-चीन, तुषार, दरद और कुलिन्द्र देशों में गये जहां रत्नों और मणियों की खानें थीं।” इनमें से चीना, तुषार, दरद जाटवंश हैं और इन नाम के देशों में इनका शासन था। मि० कनिंघम ने पंजाब के जाटों की प्रधानशाखाओं में चीना और भराईचों को भी मुख्य माना है। ह्युनत्साङ्ग (Hiuen-Tsang) ने लिखा है कि चीना (चीमा) जाटों का चीनाभुकती नाम का राज्य पंजाब में था1। इस वंश के जाट मुसलमान अधिक, सिक्ख उनसे कम और हिन्दू कोई नहीं है। ये चीना (चीमा) मुसलमान जाट शाहपुर, झंग, लायलपुर, सियालकोट और जेहलम जिलों में बड़ी संख्या में बसे हुए हैं। पंजाब में चीमा सिक्ख जाट बहुत हैं।


1. Jats the Ancient Rulers P. 249 by B.S. Dahiya I.R.S.

In Mahabharata

China (चीना) find mention in Mahabharata at various places. See List of Mahabharata people and places: (II.47.19), (II.47.22),(III.48.21),(III.174.12),(V.19.15),(V.72.14),(VI.10.65),


Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 174 mentions about Pandvas journey twelfth year of their sojourn in forests having arrived reach Saraswati River: ....And crossing the difficult Himalayan regions, and the countries of China, Tukhara, Darada, Darva and all the climes of Kulinda, rich in heaps of jewels, those warlike men reached the capital of Suvahu.

ततः करमेणॊपययुर नृवीरा; यदागतेनैव पदा समग्राः
विहृत्य मासं सुखिनॊ बथर्यां; किरात राज्ञॊ विषयं :सुबाहॊः ([[Mahabharata, III.174.11)
चीनांस तुखारान थरथान :सदार्वान; थेशान कुणिन्थस्य च भूरि रत्नान
अतीत्य थुर्गं हिमवत्प्रथेशं; पुरं सुबाहॊर थथृशुर नृवीराः ([[Mahabharata, III.174.12)

Sandhya Jain[7] mentions in the list of The Mahabharata Tribes 25. China (चीना) - A northwestern tribe (Darunamlecchajatayah VI .10.64); linked with the Kiratas in the army of Bhagadatta. Sided with the Kauravas in the war (III.174.12).

यवनाश च स काम्बॊजा थारुणा मलेच्छ जातयः । सक्षथ्थ्रुहः कुन्तलाश च हूणाः पारतकैः सह (VI .10.64)
तदैव मरधाश चीनास तदैव दश मालिकाः । कषत्रियॊपनिवेशाश च वैश्यशूथ्र कुलानि च (VI .10.65)

Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 47 mentions:

चीनान हूनाञ शकान ओडून पर्वतान्तरवासिनः
वार्ष्णेयान हारहूणांश च कृष्णान हैमवतांस तदा (Mahabharata, II.47.19)

Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 48 describes Rajasuya sacrifice of Yudhisthira attended by the chiefs of many islands and countries . China (चीना) Mahabharata is mentioned (III.48.21) [8]....the Harahunas and Chinas and Tukharas and the Saindhavas and the Jagudas and the Ramathas and the Mundas and the inhabitants of the kingdom of women (Strirajya) and the Tanganas and the Kekayas and the Malavas and the inhabitants of Kasmira,...

Notable persons

Distribution

In Gurdaspur district the China Gotra population is 744. [9]

External links

See also

References

  1. Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.38, sn-760.
  2. डॉ पेमाराम:राजस्थान के जाटों का इतिहास, 2010, पृ.300
  3. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter IV, pp.341-342
  4. A glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North-West Frontier Province By H.A. Rose Vol II/C, p.171
  5. An Inquiry Into the Ethnography of Afghanistan By H. W. Bellew, The Oriental University Institute, Woking, 1891, p.150
  6. जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ-222-223
  7. Sandhya Jain: Adi Deo Arya Devata - A Panoramic View of Tribal-Hindu Cultural Interface, Rupa & Co, 7/16, Ansari Road Daryaganj, New Delhi, 2004,p.124
  8. हारहूणांश च चीनांश च तुखारान सैन्धवांस तदा, जागुडान रमठान मुण्डान स्त्री राज्यान अद तङ्गणान (III.48.21)
  9. History and study of the Jats. By Professor B.S Dhillon.ISBN-10: 1895603021 or ISBN-13: 978-1895603026. 127

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