Bhadaani

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Bhadaani or Bhadani (भदानी, भदाणी) is a medium-size village in Jhajjar district.

Location

The names of neighbouring villages are: Chhudani (छुडाणी), Surakhpur, Chhara (छारा), Kablana (कबलाणा), Dulehra (दुल्हेड़ा), Kherka Gujjar (खेड़का गूजर).

History

An Article on history of Bhadani village.jpg


Pannas

History of Pannas. Bhadani village has three main Pannas of Jats, namely Sehrawat, Phalaswal and Deswal and some families of Rahar.

Phalaswal. Sometime in 1545 – 1575 a family of Phalaswals headed by Makhha migrated from unknown place to establish Rai Bhadani. He had three sons named Puran, Issar and Kanhiya (Nanha). To commemorate the memory of Makhha, the Phalaswal Panna was also known as Makhha Panna. In the year 1754 Hemkaran of Puran branch and Raja Ram of Issar branch migrated from Bhadani. Raja Ram shifted to Pahari Dheeraj and his family has stayed there ever since. Their land was tilled by Nanha branch for next three generations. However, in the year 1807, the Nawab allotted around 1120 Bighas of Phalaswal estate to some Brahmin families whom he had brought from Patli village, District Gurgaon and settled them in a newly created village named Bhadana on the Kheda of Phalaswals. Hence when in 1810 – 12 the third generation of Hemkaran returned to reclaim their lands they found that their own share had already been given away by the Nawab to Brahmins of Bhadana. With mutual agreement the balance land was redistributed into four equal parts between Lasvid and Arjan of Puran (Hemkaran) branch and Sewga and Laxman from Kanhiya branch. Their successors are living here ever since.

Sahrawats. The Saharawat family had migrated from Mahrauli Village of Delhi district to establish Chhoti Bhadani almost simultaneously with the Phalaswals. During the period of Great Anarchy many Sharawat families migrated to other places. Family of Munia went to Bhorgarh, District Delhi. Kishan Lal son of Ram Dayal came back from Bhorgarh on 21 December 1867 to reclaim his property. Moti, went away but came back in his own life time. Sukha from Heera Thola went away to Daryapur in Delhi and his successor Hansram came back in the year 1867 to reclaim his property. Another family had shifted to Jharoda and came back once the British rule was established. In the year 1877, Saharawats had three tholas,[what language is this?] namely Deepraj, Jadon and Heera and their successors have been living here ever since.

Deswal. The Deswal family had come here from village Aldyoka, District Gurugram and their nine generations had lived in Bhadani till 1877. Many of their families migrated from here to safer places during the Great Anarchy but most of these families returned when the law and order was re-established by the British. Their successors have been living here ever since. Deswal Pana was also known as Sarguroh pana. Surguroh in Persian means of one family.In Deswal panna there are many prominent personalities inhabited such as Dr. Nandlal who had been a personal physician of Chaudhary chotu Ram,his son major general Dr.Driyao Singh is a prominent ENT surgeon, he was married to smt.Basanti Devi Daughter of Chaudhary Siri Chand Ex vidhan sabha speaker of Haryana ,Leautinent General Khim Karan Singh (K.K. Singh) Leautinent General Rohtash Singh Deswal, prominent social worker Late Thekedar Chaudhary Indraj Singh Deswal,Dr.Yoganand shastri ex.vidhan sabha speaker Delhi.

History of Deswal Gotra in Bhadani

Deshwal Gotra ka Itihas.jpg

कप्तान सिंह देशवाल लिखते हैं -

यह गांव पहले से बड़क गौत्र का गाँव था। बड़क जाट इस गाँव को छोड़कर बाळंद गाँव जिला रोहतक में जा बसे। गाँव में बड़क गौत्र के नाम से एक तालाब बड़कां-वाला हाजिर है। गाँव में मन्दिर भी उसी समय का वर्तमान में हाजिर है जो बड़क गौत्र के जाटों ने बनवाया था। उसी समय का एक कुआँ भी तालाब पर है जो रद्द हो चुका है।

इस गाँव के बारे में बताया जाता है कि गाँव दुल्हेड़ा से चलकर एक देशवाल परिवार ने मेवात में जाकर गाँव अलदूका बसाया, जो आज भी यह गाँव आबाद है। कुछ दिनों के बाद गाँव अलदूका से किन्हीं कारणवश 5-6 पीढी (150 वर्ष) के बाद चौ. वीरभान सिंह देशवाल सन् 1750 में वापिस गाँव दुल्हेड़ा आ गये। अन्य देशवाल पूर्वज गाँव अलदूका में रह गये। चौ. वीरभान का परिवार गाँव दुल्हेड़ा की मदद से गाँव भदाणी में आ गया। यहाँ पर बड़क गौत्र के लोगों से झगड़ा हो गया। बड़क गौत्र के जाट इस गाँव को छोड़कर चले गये। इस गाँव पर देशवाल जाटों का कब्जा हो गया। इसी दौरान दूसरे गौत्र के जाट भी मदद में थे, वे भी गाँव में बस गये।

विशेषताएं -

  1. इस गाँव के पास 9000 पक्का बीघा जमीन है। गाँव में तीन गौत्र हैं। देशवाल गौत्र गाँव के तीसरे हिस्से (3000) की जमीन पर काबिज है। देशवाल गौत्र वाले लोग गाँव की पूर्व दिशा में आबाद हैं।
  2. यह गाँव जिला झज्जर से बहादुरगढ़ रोड पर 7 किलोमीटर से 2 किलोमीटर अपरोच रोड पर उत्तर दिशा में बसा हुआ है।
  3. इस गाँव का सेना में पूरा योगदान रहा है। गाँव के पाँच जनरल हुए हैं। मेजर जनरल डॉ. दरियाव सिंह देशवाल नाक, कान, गले के माहिर प्रसिद्ध डॉक्टर रहे हैं।
  4. यह गाँव राजनीति में भी पीछे नहीं रहा। इस गाँव से श्रीमती बसंती देवी हलका हसनगढ़ से विधायक रही। वह किसानों व मजदूरों के मसीहा चौ. छोटूराम की पोती थी। गाँव भदाणी में डॉ. दरियाव सिंह के साथ इसकी शादी हुई थी।
  5. यहाँ के व्यक्ति आर्यसमाजी व धार्मिक प्रवृत्ति के हैं। भगवान में आस्था रखते हैं।
  6. करतार सिंह पहलवान सन् 1965 और राजबीर सिंह पहलवान 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में शहीद हुए थे।[1]

पोरस की जाति

पोरस की जाति संबंधी उल्लेख किसी भी ग्रंथ में नहीं मिलता. इतिहास में पोरस तथा एलेग्जेंडर का युद्ध भारत में एक घटना बनकर रह गया, जिसका उल्लेख इतिहास में एक झलक भर है. ऐसी बहुत सारी घटनाएं इतिहास में हो जाती हैं, परंतु वे इतिहास में लेखकों का अधिक ध्यान आकर्षित नहीं करती. पुरातन पोरस के वंशधारों तथा उसके समान वर्षों से संबंधित लोगों की खोज होनी चाहिए. इतिहास इस विषय में मौन है कि पोरस क्षत्रिय वर्ण में कौन जाति का था. पोरस के नाम के साथ पौरव उपाधि लगाने से यह तो स्पष्ट ही है कि वह पुरू वंशी था, किंतु जाति की गहराई में जाने के लिए ईस्वी पूर्व के इतिहास में पाई जाने वाली जातियों में उसके वंशजों का अन्वेषण किए जाने से जाट क्षत्रियों में आज भी पोरसवाल विद्यमान हैं, जिनको पोरस के नाम पर अपना पूर्वज होने के लिए आज भी अभिमान है. पौरव शब्द में 'व' हटाकर ग्रीक अस (os) जोड़ने से पोरोस तथा बदलकर पोरस बना. पोरस में 'वाल' प्रत्यय जोड़ने पर पोरसवाल अथवा परसवाल बन गया. 'वाल' या 'वाला' का अर्थ है प्रथम शब्द से संबंधित जैसे कर्णवाल, कर्ण से संबंधित है.

रोहतक में स्थित भदानी गांव आधा पोरसवाल जाटों का है. इस गांव के एक वंशधर दिल्ली के पश्चिम की ओर एक पहाड़ी पर बस गए. उनकी परंपरा में धीरजराव बड़े प्रसिद्ध पुरुष हुए. जब दिल्ली की आबादी उसकी चारदीवारी के बाहर चारों ओर बढ़ी तब जहां आज सदर बाजार है, वहां जाटों की आबादी की यह पहाड़ी- धीरज की पहाड़ी के नाम पर प्रसिद्ध हुई.

पोरस के भतीजे को भी ग्रीक लेखकों ने पोरोस/पोरस ही लिखा है. स्ट्रेबों लिखता है कि इंडिया के पोरोस/ पोरस नाम के दूसरे राजा ने रोमन सम्राट अगस्टस सीजर की कोर्ट में अपना राजदूत भेजा. अतएव ग्रीक लेखकों के अनुसार पोरोस न तो किसी व्यक्ति का नाम, न ही किसी राजवंश का नाम है. यह जाति/वंश का नाम है जो इंडिया के जाटों में पाया जाता है.

पारसियों के धर्मग्रन्थ अवेस्ता में इस जातिवंश को पोरु लिखा है. पोर, पौर तथा पुरु सभी शब्द एक ही हैं, अंतर स्थान तथा भाषा भेद के कारण है. स्थान तथा भाषा परिवर्तन के कारण शब्द का उच्चारण बदल जाता है जैसे वोट बंगाल में भोट, हिंदी में चक्रवर्ती बंगाल में चक्रबोर्ती जैसे हिंदी में पोरस तथा ग्रीक में पोरोस. परसवाल में है प, फ में बदल जाता है जैसे पत्थर से फत्थर. अतएव परसवाल से ग्रामीण भाषा में फरसवाल बन गया. भारतवर्ष में किसी भी जाति में जाटों को छोड़कर परसवाल नहीं पाए जाते, केवल जाट ही परसवाल है. इस वंश के बहुत सारे काम हैं जैसे कि बुलंदशहर उत्तर प्रदेश में लोहरका, जालंधर में शंकरगांव, गाजियाबाद में सुल्तानपुर, बिजनौर में कादीपुर आदि.

साभार - यह भाग जाट समाज पत्रिका आगरा, जून-2019, में प्रकाशित लेखक तेजपाल सिंह के पोरस पर लिखे गए लेख के पृ. 13 से लिया गया है.

Jat Gotras

दुल्हेड़ा बाराह संगठन

यह गाँव दुल्हेड़ा बाराह का सदस्य है। यह 12 गांवों का संगठन है जिसे दुल्हेड़ा बाराह खाप भी कहते हैं। आजकल प्रो० उमेदसिंह देशवाल (दुल्हेड़ा निवासी) इसके प्रधान हैं। यह संगठन समय-समय पर सामाजिक हित में फैसले करता आ रहा है जिनका इसके आधीन आने वाले सभी गाँव पालन करते हैं। इन गाँवों के नाम इस प्रकार हैं -

1. दुल्हेड़ा, 2. खेड़का गुज्जर, 3. गोयला कलाँ, 4. छुडाणी, 5. भदाणी, 6. भदाणा, 7. कबलाणा, 8. गंगड़वा, 9. गुभाणा, 10.माजरी, 11. जरगदपुर 12. अस्थल धाम - यह एक धार्मिक एवं ऐतिहासिक मठ/मंदिर है जिसे छत्रपति शिवाजी ने बनवाया था। यह दुल्हेड़ा और खेड़का गुज्जर के बीच में बसा है।

इन 12 गाँवों का आपस में भाईचारा है और इनमें आपसी रिश्ते (ब्याह-शादी) नहीं होते।

Notable persons

Photo Gallery

External Links

References


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