Chhattisgarh

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Map of the districts of Chhattisgarh, coloured by division: Blue - Surguja division, Green - Bilaspur division, Yellow - Durg division, Orange - Raipur division, Red - Bastar division
Map of Chhattisgarh

Chhattisgarh (छत्तीसगढ़) is a state in central India, formed when the sixteen Chhattisgarhi-speaking southeastern districts of Madhya Pradesh gained statehood on 1 November 2000. Raipur serves as its capital. The most famous monuments of Chhattisgarh are Ratanpur Fort, Kawardha Palace, Shiva Bhoramdeo Temple, Sirpur and Khadia Dam.

Variants

Districts and tahsils of Chhattisgarh

Presently Chattisgarh state consists 19 districts:

District Tahsils in district
Bastar Jagdalpur, Keshkal, Kondagaon, Narayanpur
Bijapur
Bilaspur Bilaspur, Bilha, Kota, Lormi, Masturi, Mungeli, Pendraroad, Takhatpur
Dantewada Bhopalpattanam, Bijapur, Dantewada, Konta
Dhamtari Dhamtari, Kurud, Nagri
Durg Bemetra, Berla, Dhamdha, Dondiluhara, Durg, Gunderdehi, Gurur, Nawagarh, Patan, Saja, Sanjaribalod
Janjgir-Champa Champa, Dabhara, Jaijaipur, Janjgir

Malkharoda, Nawagarh, Pamgarh, Sakti

Jashpur Bagicha, Jashpur, Kunkuri, Pathalgaon
Kanker Antagarh, Bhanupratappur, Charama, Kanker, Narharpur, Pakhanjur,
Kabirdham Kawardha, Pandariya
Korba Kartala, Katghora, Korba, Pali
Koriya Baikunthpur, Bharatpur, Manendragarh, Sonhat
Mahasamund Basna, Mahasamund, Saraipali
Narayanpur
Raigarh Gharghoda, Kharsia, Lailunga, Raigarh, Sarangarh, Dharamjaigarh
Raipur Abhanpur, Arang, Baloda Bazar, Bhatapara, Bilaigarh, Bindranawagarh, Deobhog, Kasdol, Palari, Raipur, Rajim, Simga, Tilda
Rajnandgaon Ambagarh, Chhuikhadan, Dongargaon, Dongargarh, Khairagarh, Manpur, Mohla, Rajnandgaon
Surajpur
Surguja Ambikapur, Lundra, Pal, Pratappur, Rajpur, Samari, Sitapur, Surajpur, Wadrafnagar

Origin of name

Chhattisgarh takes its name from 36 (Chhattis) + Forts that constitute this region[1]. They are :

Places of Historical importance

History

Places of interest of Ancient History or Nagavanshi rulers in Chhattisgarh are:

Rivers in Chhattisgarh

Kotari River in Kanker district

Here is the list of Rivers in Chhattisgarh

  • Arpa (river)

छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ (AS, p.348): पूर्ववर्ती मध्य प्रदेश के रायपुर-बिलासपुर जिलों तथा परिवर्ती क्षेत्र में सम्मिलित इलाका छत्तीसगढ़ कहलाता है. यह प्राचीन दक्षिण कौशल या महाकौशल है. यहां की बोली उत्तर प्रदेश की अवधि (प्राचीन उत्तर कौशल के क्षेत्र की भाषा) से मिलती जुलती है. उत्तर और दक्षिण कोशल में नामों की समानता के अतिरिक्त सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी सदा से रहा है. यह संभव है कि उत्तर कौशल के जन समूह प्राचीन और मध्यकाल में दक्षिण कोशल में जाकर बस गये हों. [2]

छत्तीसगढ़ परिचय

छत्तीसगढ़ भारत का 26वाँ राज्य है। भारत में विशेषत: दो ऐसे क्षेत्र हैं, जिनका नाम विशेष कारणों से धीरे धीरे बदल गया। पहला 'मगध', जो बौद्ध विहारों के कारण 'बिहार' बन गया और दूसरा 'दक्षिण कौशल', जो 'छत्तीस गढ़ों' को अपने में समाहित रखने के कारण 'छत्तीसगढ़' बन गया। ये दोनों ही क्षेत्र प्राचीन काल से भारत को गौरवान्वित करते रहे हैं। 'छत्तीसगढ़' पौराणिक काल से ही विभिन्न संस्कृतियों के विकास का केन्द्र रहा है। यहाँ के प्राचीन मन्दिर तथा उनके भग्नावशेष बताते हैं कि यहाँ वैष्णव, शैव, शाक्त और बौद्ध के साथ ही साथ अनेक आर्य तथा अनार्य संस्कृतियों का समय-समय पर प्रभाव रहा है।

गठन: छत्तीसगढ़ राज्य का गठन 1 नवंबर 2000 को हुआ था। छत्तीसगढ़ पूर्व में दक्षिणी झारखण्ड और उड़ीसा से, पश्चिम में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से, उत्तर में उत्तर प्रदेश और पश्चिमी झारखण्ड और दक्षिण में आंध्र प्रदेश से घिरा है। छत्तीसगढ़ का भू-भाग सम्पूर्ण भारत के भू-भाग का कुल 4.14% है। इस प्रकार छत्तीसगढ़ राज्य क्षेत्रफल के हिसाब से देश का 10वाँ बड़ा राज्य है। जनसंख्या की दृष्टि से इस राज्य का भारत में 17वाँ स्थान है।

इतिहास: मध्य प्रदेश से बनाया गया यह राज्य भारतीय संघ के 26 वें राज्य के रूप में 1 नवंबर, 2000 को पूर्ण अस्तित्व में आया। इससे पूर्व छत्तीसगढ़ 44 वर्ष तक मध्य प्रदेश का एक अंग रहा था। प्राचीन काल में इस क्षेत्र को 'दक्षिण कौशल' के नाम से जाना जाता था। इस क्षेत्र का उल्लेख रामायण और महाभारत में भी मिलता है। छठी और बारहवीं शताब्दियों के बीच सरभपूरिया, पांडुवंशी, सोमवंशी, कलचुरी और नागवंशी शासकों ने इस क्षेत्र पर शासन किया। कलचुरी और नागवंशी शासकों ने इस क्षेत्र पर लम्बे समय तक शासन किया। कलचुरियों ने छत्तीसगढ़ पर सन् 980 से लेकर 1791 तक राज किया। सन् 1854 में अंग्रेज़ों के आक्रमण के बाद महत्त्व बढ़ गया। सन् 1904 में संबलपुर उड़ीसा में चला गया और 'सरगुजा' रियासत बंगाल से छत्तीसगढ़ के पास आ गई।

संदर्भ: भारतकोश-छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में जाट राज्य

चक्रकोट राज्य

चक्रकोट राज्य : चक्र नमक नागवंशी जाट राजा ने बस्तर में चक्रकोट राज्य की स्थापना की जिसका विस्तार इंद्रावती नदी के किनारे-किनारे उड़ीसा में कोरापुट और कालाहांडी जिलों तक था. चक्रकोट बस्तर के पश्चिम में इंद्रावती नदी के बाएं तट पर स्थित था. जिसको वर्तमान में चित्रकूट नाम से जाना जाता है. चित्रकूट का झरना वर्तमान में एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है. बस्तर के उत्तर में स्थित राजनांदगांव के खैरागढ़ तहसील में तेजाजी के नागवंशी पूर्वज का शासन रहा है. राजनांदगांव में भी दो प्रिंसली स्टेट जाट राजाओं के रहे हैं.

राजनांदगांव में नांदगांव और छुईखदान जाट रियासतें

आमतौर पर यही धारणा है कि साधु संतों की भूमिका केवल धर्म का प्रचार-प्रसार करने तक ही सीमित रही है परंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि स्वतंत्र भारत जिन 562 छोटी-बड़ी रियासतों से मिलकर बना है, उनमें से दो रियासतों पर दहिया गोत्र के बैरागी जाट साधुओं ने लगभग 200 वर्ष तक शासन किया है और वे कुशल राजा एवं योद्धा रहे हैं। ब्रिटिश कालीन भारत में जिन रियासतों पर बैरागी जाट साधुओं का शासन रहा है उनके नाम हैं- नांदगांव और छुईखदान। ये दोनों ही रियासतें वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य के राज नांदगांव जिले में हैं।

इन दोनों ही रियासतों के राजा संयुक्त पंजाब (वर्तमान हरयाणा) से गए थे और दोनों ही रियासतों के साधु राजा निर्मोही अखाड़े तथा निंबार्क संप्रदाय से संबंध रखते थे। छुईखदान रियासत की स्थापना वर्ष 1750 में रूप दास दहिया नाम के एक बैरागी जाट संत ने की थी। वह वीर बंदा बैरागी के प्रथम सैनिक मुख्यालय हरियाणा के सोनीपत जिले के सेहरी खांडा गांव से संबंध रखते थे तथा मूलत: दहिया गोत्र के जाट थे और बैरागी सम्प्रदाय के अनुयाई थे। वर्ष 1709 में जब महान योद्धा वीर बंदा बैरागी ने सेहरी खांडा के निर्मोही अखाड़ा मठ में अपनी सेना का गठन किया तो उस समय महंत रूप दास केवल 11 वर्ष के थे।

11 वर्ष के इस साधु बालक ने वीर बंदा बैरागी से युद्ध विद्या सीखी और इसके बाद वह नागपुर जाकर मराठा राजाओं की सेना में शामिल हो गए। महंत रूप दास एक कुशल योद्धा बने और वर्ष 1750 में मराठों ने उनको कोंडका नामक जमींदारी पुरस्कार के रूप में दी। कृष्ण भक्त होने के कारण महंत रूप दास ने अपनी पूरी रियासत में पारस्परिक अभिवादन के लिए ‘जय गोपाल’ शब्दों का प्रयोग किया।

देश की स्वतंत्रता प्राप्ति तक बैरागी जाट साधुओं ने इस राज्य पर शासन किया और 1 जनवरी 1948 को छुईखदान रियासत का स्वतंत्र भारत में विलय हो गया। विलय की संधि पर आखिरी राजा महंत ऋतुपरण किशोर दास ने हस्ताक्षर किए। वर्ष 1952 तथा 1957 के आम चुनाव में महंत ऋतुपरण किशोर दास मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए। छुईखदान में बैरागी जाट राजाओं का राजमहल आज भी बहुत अच्छी स्थिति में है।

बैरागी जाट साधुओं की दूसरी रियासत थी नांदगांव जिसकी राजधानी राजनांदगांव में थी। नांदगांव रियासत की स्थापना महंत प्रह्लाद दास दहिया ने वर्ष 1765 में की। प्रह्लाद दास बैरागी, अपने साथियों के साथ सनातन धर्म का प्रचार करने के लिए पंजाब से छत्तीसगढ़ आए थे। अपनी यात्रा का खर्च निकालने के लिए ये बैरागी साधु, पंजाब से कुछ शाल भी अपने साथ ले आते और उन्हें छत्तीसगढ़ में बेचकर अपनी यात्रा का खर्च चलाते।

बिलासपुर के पास रतनपुर में मराठा राजाओं के प्रतिनिधि बिंबाजी का महल था। स्थानीय लोग बिंबाजी को भी राजा के नाम से ही जानते थे। बिंबाजी, महंत प्रह्लाद दास बैरागी के शिष्य बन गए और उन्हें अपनी पूरी रियासत में 2 रुपए प्रति गांव के हिसाब से धर्म चंदा लेने की इजाजत दे दी। धीरे-धीरे ये बैरागी साधु अमीर हो गए और उन्होंने आसपास के कई जमींदारों को ऋण देना आरंभ कर दिया। जो जमींदार ऋण नहीं चुका पाए उनकी जमींदारी इन साधुओं ने जब्त कर ली और धीरे-धीरे चार जमींदारी उनके पास आ गई जिनको मिलाकर नांदगांव रियासत की स्थापना हुई।

ये बैरागी जाट राजा बहुत ही प्रगतिशील थे। उन्होंने जनता की भलाई के लिए अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए। इन बैरागी जाट राजाओं ने वर्ष 1882 में राजनांदगांव में एक अत्याधुनिक विशाल कपड़े का कारखाना लगाया। इससे पहले वर्ष 1875 में उन्होंने रायपुर में महंत घासीदास के नाम से एक संग्रहालय भी स्थापित किया, जो आज भी भारत के 10 प्राचीनतम संग्रहालयों में से एक है।

Source - Niyati Bhandari, Punjabkesari, 29 May, 2020

External links

References

  1. Dr. Bhagvan Singh Verma, " Chhattisgarh ka Itihas " {in Hindi}, Madhya Pradesh Hindi Granth Academy, Bhopal(M.P.), 4th edition(2003), P.7
  2. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.348