Skandnabh

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Skandnabh Skanda or Skandhanabha (स्कंधनाभ) was Chandravanshi Jat Ruler of Scandinavia country in Europe in 500 BC.

जाट योद्धा स्कन्दनाभ

जाट योद्धा स्कन्दनाभ - ये चन्द्रवंशी जाट थे जो सबसे पहले अपने दल के साथ 500 ईसा पूर्व एशिया माइनर से होते हुए यूरोप पहुंचे तथा इसी नाम पर स्कंदनाभ राज बनाया जो बाद में स्कैण्डीनेविया कहलाया तथा जटलैण्ड की स्थापना की जिसे आज भी जटलैण्ड ही कहा जाता है। इसके बाद बैंस, मोर, तुड् आदि अनेक गोत्रीय जाट गए जो पूरे यूरोप में फैले जिन्हें बाद में गाथ व जिट्स आदि नामों से जाना गया।

स्केण्डनेविया

स्केण्डनेविया का मानचित्र

इतिहास लेखकों ने अनुमानिक तौर से बताया है कि स्केण्डनेविया में ईसा से 500 वर्ष पूर्व जाट लोगों ने प्रवेश किया था। इनके नेता का नाम ओडिन लिखा हुआ है। कर्नल टाड ने उसे बुध माना है, साथ ही बुध की व्याख्या करते हुए उसे चौथा बुध महावीर (जैनों के 24 वें तीर्थंकर) बतलाया है। भगवान महावीर ज्ञातृ (जाट) थे, यह तो हम पिछले किसी अध्याय में बता चुके है। लेकिन यह कठिन जान पड़ता है कि स्कंधनाभ (स्केण्डनेविया) में जाने वाले जाटों के नेता महावीर ही थे। स्केण्डनेविया को स्कंधनाभ शब्द से बना हुआ मानकर उसे सैनिकों का देश बताया गया है। कर्नल टाड भी ऐसा ही अर्थ करते हैं किन्तु चौधरी धनराज डिप्टी कलक्टर ने जनवरी सन् 1926 ई. में ‘महारथी’ में लेख लिखकर बताया है कि बाणासुर का पुत्र स्कंध कृष्ण से हारकर स्कंधनाभ चला गया था, किन्तु धनराजजी की यह कल्पना निर्मूल है। कृष्ण ईसा से 3000 वर्ष पहले हुए हैं और स्कंधनाभ में भारतीय लोग ईसा से 400 वर्ष पहले पहुंचे हैं। वहां के धर्म-ग्रन्थ ‘एड्डा’ के आधार पर भी धनराज जी की कल्पना कोरी कल्पना ही रह जाती है। जबकि स्केण्डेनेविया के प्रसिद्ध इतिहासकार मि. जन्स्टर्न - स्वयम् अपने को ओडिन की संतान मानते हैं। स्कंध और ओडिन का कोई शब्द सामंजस्य भी नहीं है। हां ओडिन और उद्धव शब्द का सामंजस्य है। बहुत संभव है, ये लोग उद्धव वंशी जाट हों। कर्नल टाड, सुरापान की आदत का मिलान करके स्कंधनाभीय लोगों को जित (जाटों) कुल से उत्पन्न हुआ बताते हैं। पर्शिया मे बहुत दिन रहने के कारण उन्हें अंगूरों के रस (सुरा) की आदत पड़ गई हो ऐसा हो सकता है किन्तु भारत के जाटों में शराब का रिवाज बहुत ही कम है। इस समानता के सिवाय कर्नल टाड के जाटों और स्कंधनाभ वालों के सम्बन्ध में और भी बातें लिखी हैं। यथा - स्कंधनाभ वालों के प्राचीन ग्रन्थों में लिखा है कि वे पहले शव के देह को जलाते नहीं थे, पृथ्वी में गाड़ देते थे अथवा पर्वत की कन्दरा में डाल देते थे। बोधेन की शिक्षा से विशेष अवस्था को प्राप्त हो, वे लोग उस समय से मृतक देह को जला दिया करते थे। कहते हैं कि मृत के साथ में उसकी विधवा स्त्री भी जल जाती थी। हेरोडोटस कहता है कि - ये सब प्रथाएं शाकद्वीप से वहां पर गईं।

बोधेन के साथ स्कंधनाभ में जाने वाले लोगों में एक बलदार नाम भी थी। उसकी स्त्री नन्ना उसके साथ सती हुई थी। अनेक स्त्रियों में से सती पहली ही स्त्री होती थी, यह उनका नियम था।

हेरोडोटस कहता है कि -

"शाक द्वीप के निवासी जब मरते थे तो उनके प्यारे घोड़े उनके साथ जलाए जाते थे और स्कन्धनाभ के जित (जाट) मरते थे, तब उनके घोड़े गाड़ दिए जाते थे।"

जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-182


स्कन्धनाभ वाले और जक्षरतीस के किनारे रहने वाले जित लोग सजातीय मृतक पुरूष की भस्म पर ऊंची वेदिका बनाया करते थे।
शाक द्वीप के जिट लोगों में शस्त्र-पूजा की विधि भारत के राजपूतों के समान है। जिस समय जिट (जाट) लोगों की बलाग्नि से सारा यूरोप संताप पा रहा था, उस काल में यह प्रथा विशेष उन्नति पर पहुंच गई थी। कहते है कि, प्रचंड जिट वीरों ने आटेला और अथेन्स नगर में महा घूम-धाम के साथ अपने अस्त्र-शस्त्रादिकों की पूजा की थी।"1


इन उद्धरणों को देखकर कर्नल टाड ने हेरोडोटस के इस मत की पुष्टि करते हुए कि जाट शाकद्वीपी हैं, यह सिद्ध किया है कि जाट और राजपूत एक ही हैं। उनके सारे अवरतणों, आलाचनाओं का केवल यही सार है। यह तो हम पिछले पृष्ठों में काफी बता चुके हैं कि शाकद्वीप (ईरान) के जाट भी इण्डो-आर्यन थे। स्कन्धनाभ में जो असि - जाट पहुंचे वे भी भारतीय सभ्यता के मानने वाले थे। चाहे वे कास्पियन सागर के तट से गए, चाहे जगजार्टिस के किनारे से। उनके बलदार, गौतम, नन्नू, बुद्ध, प्रभृति ईरानी नाम न थे, किन्तु भारतीय नाम थे। न वे यजदमद थे न हुरमुजत या जमशेद। शाकद्वीप के आदि-निवासी जरदुष्ट अहुर मज्द के अनुयायी न होकर वे वैदिक अथवा बौद्ध धर्मावलम्बी थे। इस बात को हेरोडोटस स्वयम् मानता है कि जाट एकेश्वरवादी थे।2 ईरान के आदिम निवासी आज तक भी अपने मुर्दो को जलाते नहीं हैं। मुर्दे जलाने वाले शाकद्वीप के जिट वहां के आदिम निवासी न होकर प्रवासी तथा उपनिवेश-संस्थापक थे। ईरान के डेरियस अथवा दाराशाह ने तथा अन्य भी आदिम ईरान वासियों ने इन्हें निकालने की भी कोशिश की थी।

स्कन्धनाभ में बस जाने के समय उनका नाम असि भी पड़ गया। यह नाम उस समय पड़ा जबकि इन्होंने जटलैण्ड व यूटलैण्ड नामक नगर बसाए। ‘एड्डा’ में लिखा है - स्कन्धनाभ में प्रवेश करने वाले जेटी अथवा जट लोग असि नाम से विख्यात थे, उनकी पूर्व बस्ती असिगई थी। असिगब व असीगढ़ नीमाड़ (भारत में) हैं।

स्कैण्डनेविया की धर्म पुस्तक ‘एड्डा’ में उल्लेख

ठाकुर देशराज[1] के अनुसार - स्कैण्डनेविया की धर्म पुस्तक ‘एड्डा’ में लिखा हुआ है कि - "यहां के आदि निवासी जटेस और जिटस पहले आर्य कहे जाते थे तथा वे अलीगढ़ असीरगढ़ (Asirgarh) के निवासी थे।" (जो कि मालवा के निमाड़ जिले में है। - लेखक) {वास्तव में इस स्थान का नाम असीरगढ़ (Asirgarh) है जो वर्तमान में मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में है- Laxman Burdak (talk) } मिस्टर पिंकाटन (John Pinkerton) का विचार है कि - ईसा से 500 वर्ष पूर्व डेरियस के समय में यहां (स्कैंडिनेविया) ओडन नाम का एक आदमी आया था जिसका उत्तराधिकारी गौतम था। इनके अतिरिक्त स्कैंडिनेविया की धारणाएं भी धार्मिक हिन्दू कथाओं से मिलती-जुलती हैं। इनके दिवस विभाग आदि सभी हिन्दुओं के ढंग पर हैं। अतः स्कैंडिनेविया निवासी काउण्ट जोर्नस्टर्न का कथन अक्षरशः सत्य प्राचीन होता है कि - हम लोग भारत से आये हैं।

स्कैण्डनेविया संस्कृत शब्द स्कंधनाभ का अपभ्रन्श हैं। स्कंधनाभ का अर्थ है - मुख्य सैनिक। इससे भी यही ध्वनि निकलती है कि इस देश को भारतवर्ष की सैनिक-जाति-क्षत्रियों ने बसाया।

मि. रेम्यूसेट का दावा है कि - कुल मध्य ऐशिया ही यादवों की बस्ती है। प्रोफेसर पी. कॉ कहते हैं - फारस, कोल, कीच और आरमीनिया के प्राचीन नक्शे भारत वासियों के उपनिवेश होने के स्पष्ट और आशचर्यजनक सबूतों से भरे पड़े हैं। काउन्ट जोर्नस्टर्न कहते हैं - रोम की इट्रस्कन जाति भी हिन्दूओं में से है। कर्नल टाड कहते हैं - जैसलमेर के इतिहास से पता चलता है कि हिन्दू जाति के बाल्हीक खानदान ने महाभारत के पश्चात् खुरासान में राज्य किया। मि.पी. कॉक का मत है कि - महाभारत का युद्ध समाप्त होते ही कुछ लोग यहां से निकाल दिए गए तथा कुछ लोग प्राण-रक्षा के कारण जान लेकर भागे थे। उनमें से कतिपय आदि सभ्यता के पटु थे और कुछ व्यवसायी योद्धा थे।..... अधिकतर लोग यूरोप में और अमरीका में जाकर बसे । महाभारत के लोग भिन्न भिन्न मार्ग से गए। कुछ तो पूर्व की ओर से, श्याम, चीन, भारतीय द्वीप-समूह में, कुछ लोग पश्चिमोत्तर से तुर्किस्तान, साइबेरिया, स्कैण्डनेविया, जर्मनी, इंगलिस्तान, फारस, ग्रीक, रोम आदि की ओर जा बसे और कुछ लोग पश्चिम से पूर्वी अफ्रीका


1. आर्यों का मूल स्थान 14 वां अध्याय।


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-98


और वहां से मिश्र को गए। ( देखो मासिक पत्र 'स्वार्थ' के संवत 1976 माघ, फाल्गुन के अंक 4 , 5 में (प्राचीन भारत के उपनिवेश) नामक लेख ले. बा. शिवदास गुप्त.)

External links

References


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