Jat Jan Sewak/Parishisht-G

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पुस्तक: रियासती भारत के जाट जन सेवक, 1949, पृष्ठ: 580

संपादक: ठाकुर देशराज, प्रकाशक: त्रिवेणी प्रकाशन गृह, जघीना, भरतपुर

परिशिष्ट (ग):मध्यभारत, बुंदेलखंड व पंजाब के जाट जन सेवक..

परिशिष्ट (ग):मध्यभारत, बुंदेलखंड व पंजाब के जाट जन सेवक

[पृ.547]: पुस्तक के छपते छपते हमारे पास मध्य भारत की कुछ रियासतों और कुछ पंजाब की रियासतों के जन सेवी जाट सरदारों के और परिचय प्राप्त हुए हैं। उन्हें हम इस परिशिष्ट में दे रहे हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि इन राज्यों में सिर्फ इतने ही जाट जनसेवक हैं किंतु काफी कोशिश करने पर अन्य लोगों के प्राप्त नहीं हो सके।

गहली (नारनौल, हरयाणा) के सरदार

[पृ.548]: लगभग 600 वर्ष का अरसा हुआ जब बडसरा गोत्र के जाटों ने पटियाला की दक्षिणी हद पर गहली नाम का एक गांव मारवाड़ के ख्याला ग्राम से आए हुए लोगों ने आवाद किया। उस समय यहां नवाब झज्जर का शासन था। गदर के बाद यह इलाका पटियाला को मिल गया। गहली बसाने वालों में कई पीढ़ी के बाद चौधरी मनसुखराम जी हुये। उनके छोटे भाई रामलाल, जयमल सिंह थे। चौधरी मनसुखराम जी के जीसुखराम जी हुए। जिनके चौधरी हीरासिंह, कन्हैयालाल और भगवान सिंह जी हुए। चौधरी हीरासिंह जी के अमरसिंह जी और सज्जन सिंह दो लड़के हैं। अमर सिंह जैलदार हैं। उनका जन्म संवत 1972 विक्रमी (1915 ई.) का है। तालीम उन्होंने स्कूल में मिडिल तक ही पाई। किंतु वह काफी होशियार आदमी है। इस समय (1948) तक उनके एक लड़का भूपेंद्रसिंह हैं।

चौधरी कन्हैयालाल जी के चौधरी ओंकारसिंह और लालचंदजी दो पुत्र हुए। जिनमें ओंकारसिंह जी एमटी में सूबेदार हैं और लालचंद जी घर का काम संभालते हैं। चौधरी भगवानसिंह के चार पुत्र हैं जिनमें हरिसिंह जी फौज में हवलदार मेजर हैं। और उनसे छोटे सुभाषचंद्र और कपूरसिंह हैं। यह भी दोनों फौज में है। इनसे छोटे रघुवीरसिंह पढ़ते हैं।

आप लोग काफी जमीदार हैं। आस-पास के इलाके के लोगों और सरकार में आपकी काफी इज्जत है। चौधरी भगवानसिंह जी एक सुयोग्य वकील है।

शेखावाटी की जागृति से लेकर सत्याग्रह के समय तक


[पृ.549]: आपके परिवार ने काफी मदद की थी और शेखावाटी के तमाम बड़े घरानों में आपकी रिश्तेदारियां हैं।

गहली के जाट सरदार जयमल सिंह और रामलाल सिंह थे। जिनमें जयमल सिंह के जाबरसिंह और उनके चंद्रसिंह और प्रताप सिंह हैं। चौधरी रामलाल जी के चेतराम और रतिराम नाम के दो लड़के हुए। जिनमें चेतराम जी के शिवनारायण, रामस्वरूप, गज्जूसिंह और गणपतसिंह हुए। रतिराम जी के तीन लड़के चुन्नीलाल, छब्बूसिंह और जय नारायण सिंह है। आप भी सभी कौम परस्त और पड़ोसी इलाकों की जाट प्रगतियों में भाग लेने वाले प्रभावशाली आदमी हैं।

चौधरी हरिसिंह जी उदयपुर

[पृ.549]: उदयपुर का जो इलाका अजमेर मेरवाड़ा से मिलता है उसमें जाटों की अच्छी आबादी है। उदयपुर शहर में तो बहुत थोड़ी आबादी है। उदयपुर के सबसे अधिक शिक्षित जाट सरदार हैं चौधरी हरिसिंह जी। आपके छोटे भाई भगतसिंह जी थे। आपने LLB करने के बाद उदयपुर राज्य में डिप्टी हाकिम से अपना स्थान शुरू किया और बराबर तरक्की करते रहे। जवानी के आरंभिक दिनों में कौम का काफी काम किया है। झुंझुनू महोत्सव में आपने खूब योग दिया था। जयपुर, पुष्कर आदि जाट उत्सवों को सफल बनाने की आपने हमेशा कोशिश की।

आप एक विचारक और उन्नत-मना नौजवान हैं।

आपका कौम में अच्छा समान है और सभी लोग आपसे स्नेह करते हैं।

आपके अलावा उदयपुर में दूसरे नौजवान नरेंद्र पाल


[पृ.550]: सिंह और वीरेंद्र सिंह हैं, जो भीलवाड़ा और नाथद्वारा के क्षेत्र में जागृति का काम करते हैं। राष्ट्रीय क्षेत्र में आपकी काफी दिनों से लगी हुई है।

बुंदेलखंड (मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश)

[पृ.550]: मध्य भारत के पड़ोस में बुंदेलों का देश है। जो बुंदेलखंड के नाम से मशहूर है। बुंदेलों से पहले यहां खंगार और जाटों की भी रियासतें थी। प्रसिद्ध गढ़कुंडार के अधिपति खंगार थे और इंदरगढ़ के मालिक जाट थे।

इंदरगढ़ के मातहत एक समय 84 गांव थे। इस राज्य को खत्म करने के लिए बुंदेलों ने कई बार कोशिश की किंतु वह सफल नहीं हुए क्योंकि यहां का किला जिसके चारों और पानी की गहरी खाई थी और परकोटा पक्का और काफी उत्साह और मजबूत था। उसे सहज ही जीत लेना आसान न था। आखिर उन्होंने दतिया को अपनी राजधानी बनाया और यही से बैठकर इंदरगढ़ के जाट अधिकारियों से युद्ध जारी रखा। इंद्रगढ़ का अंतिम बहादुर अधिपति जाट वीर दलपति था, जिसके बारे में यहां पर लोकोक्ति मशहूर है कि “दलपतियारे दलपतिया। अढ़ाई टटू से हराई दतिया।“ इंदरगढ़ का जाट घराना जबरिया गोत्र1 का था।


नोट - 1. जबरिया गोत्र का उल्लेख किसी अभिलेख में नहीं है। लेफ्टिनेंट जनरल खेमकरण सिंह का गोत्र दोंदेरिया था। उन्होने इंदरगढ़ के जाट शासकों के बारे में खोजपूर्ण लेख लिखे हैं। इससे स्पष्ट होता है कि इन शासकों का गोत्र दोंदेरिया था। Laxman Burdak (talk) 22:22, 14 January 2018 (EST)

दतिया (मध्य प्रदेश) के जाट जन सेवक

[पृ.550]: ग्वालियर से आगे जीआईपी लाइन पर 60


[पृ.551]: मील के फैसले पर एक बुंदेल राज्य है इसमें सैनवार, लालऊ, हंसेलिया, हतींगरवार, राजीरिया, कैथोलिया, डठूरे आदि गोत्र के जाटों के राज्य को ही समाप्त नहीं किया किंतु उनके जागीरदारी और जमीदारी के हकों पर भी पानी फेर दिया। फिर भी यहां के जाटों ने बड़ी हिम्मत के साथ अपने को संभाले रखा है। अत्यंत बुरी हालत में पहुंचने से बचाया है और मौजूदा समय में उठने की भी कोशिश की है।

1. ठाकुर भूपसिंह - [पृ.551]: दतिया में सबसे अधिक लोकप्रिय जाट जिन्हें ग्वालियर धौलपुर से लेकर झांसी तक के लोग जानते हैं वह हैं ठाकुर भूपसिंहइंदरगढ़ से 17 मील पूर्व में खेरी चाचू नामक एक गांव है। आप वही के रईस ठाकुर किलोलसिंह जी के पुत्र हैं। आपका जन्म संवत 1946 विक्रमी (1889 ई.) में भादवा महीने में हुआ है। आपने अपने गांव के करीब सेंथरी में पंडित गजाधर प्रसाद जी कान्यकुब्ज से शिक्षा प्राप्त की। आप का गोत्र क्या कैथोलिया है।

आज से लगभग 700 वर्ष पहले आप के पूर्वज कैथोल से मध्य भारत के पंचमहाल इलाके में आकर आबाद हुए। वहां से चोमू खेड़ी फिर वीरमढा वहां से खेरी में आकर आबाद हुए। पहले यह गांव बख्शी की खेड़ी नाम से फिर खेरी चाचू के नाम से और अब भूपसिंह की खेरी के नाम से मशहूर है। ठाकुर बक्सी सहाय एक अत्यंत प्रसिद्ध व्यक्ति इस इलाके में हुए हैं। मगरौरा राज्य और कड़वास राज्य में भी आपके रिश्ते हुए हैं।

ठाकुर भूपसिंह जी की लोकप्रियता का पता इससे चलता है कि वह दतिया राज्य की नव स्थापित लेजिस्लेटिव


[पृ.552]: काउन्सिल के 3 वर्ष तक सदस्य रहे हैं।

आप बहु-बुद्धि व्यक्ति हैं। आपका दिमाग खेती की उन्नति और व्यापार दोनों और चलता है। खेती को आधुनिक रूप देने के लिए अपने गांव की जमीदारी के कुएं में इंजन लगाया हुआ है। अन्न की खेती के साथ ही टमाटर और पपीते जैसे साग सब्जी आदि पैदा करके ग्रामीणों के सामने अच्छी खेती का पाठ रखते हैं। किसानों अथवा देहातियों के पास खेती के अलावा दूसरा सहायक धंधा पशुपालन का होता है। आप एक बड़ी संख्या में गाय और भैंस में रखते हैं।

व्यापारिक रुचि के कारण आपने पहले डबरा मंडी में आढ़त की दुकान खोली। दूसरे कई वर्ष बाद दतिया में फ्लोर मिल कायम की और अब आइस फैक्ट्री लगा रहे हैं। दतिया में आपकी एक बगीची और पक्के मकान हैं। आप सेवड़ा नामक स्थान में भी एक फ्लोर मिल खोलने का विचार कर रहे हैं। आपका विचार ग्वालियर और आगरा में भी अच्छे साथी मिलने पर कुछ कारोबार आरंभ करने का है।

आपके हृदय में देशभक्ति और परस्ती आरंभ से ही है। बुंदेलखंड और मध्य भारत के प्राय सभी साहित्यिक और राष्ट्रप्रेमी लोगों से आपका परिचय है। भारत के प्रसिद्ध कवि श्री मैथिलीशरण जी चिरगांव के साथ आपके घनिष्ट संबंध हैं।

आप की संतानों में दो पुत्रियां और एक पुत्र हैं। इन बच्चों की मां इन्हें बहुत ही छोटे छोड़कर स्वर्ग सिधार गई। तब से इनका लालन-पालन ठाकुर मिहीलाल जी पहलवान की धर्मपत्नी श्रीमती कमला देवी जी करती हैं। आप उन बच्चों की पोशिका और शिक्षिका दोनों ही हैं। सभी बच्चे


[पृ.553]: कमला देवी की बदौलत विनम्र और समझदार हैं। इनमें से बड़ी पुत्री रामश्री देवी जी का विवाह जाट महासभा के प्रसिद्ध उपदेशक राजवैद्य ठाकुर भोला सिंह जी के सुपुत्र डॉक्टर रतन सिंह के साथ और छोटी लड़की सूरज देवी का विवाह चित्तौरा के राणा वंशी ठाकुर रघुवीर सिंह जी के पुत्र ठाकुर निहाल सिंह जी के साथ हुआ है। वह दोनों ही नौजवान सुरक्षित हैं।

ठाकुर भूपसिंह जी के पुत्र हरिसिंह जी दतिया में शिक्षा पा रहे हैं। इसमें संदेह नहीं बुंदेलखंड और मध्य भारत के जाटों को जगाने, संगठन करने और उनमें जातीयता पैदा करने के लिए ठाकुर भूपसिंह जी ने काफी प्रयत्न किए हैं। जहां तक आप से बन पड़ा है आपने बाहर के जाट महोत्सव में भाग लिया है तथा जाट अखबारों की आर्थिक सहायता देते है। आपसे सभी जातियों के लोग प्रेम करते हैं। आप अत्यंत मिलनसार और नम्र आदमी है। यह आप की विशेषताएं हैं।

2. ठाकुर कोकसिंह जी - [पृ.553]: दतिया में सेवड़ा तहसील में थरेट एक प्रसिद्ध गांव है जो दतिया-सेवड़ा रोड पर अवस्थित है। आपके पूर्व पुरुष चौदवी सदी में लाल गांव से इधर उधर आकर आबाद हुए। मानसहाय जी इसमें एक अत्यंत प्रसिद्ध पुरुष थे। इन्हीं के वंश में आगे चलकर ठाकुर कमलसिंह जी हुये।

ठाकुर कमलसिंह जी एक प्रसिद्ध पुरुष थे और उनका नाम दूर-दूर तक फैला हुआ है।

यह कहा जा सकता है कि मध्य भारत और बुंदेलखंड में जाटों में सबसे पहले जागृति की बात सोचने वालों में ठाकुर


[पृ.554]: भूपसिंह जी के साथ ही आपका नाम आता है। उन्होंने अपनी उम्र में काफी धन संचय किया और अपने जमीदारी की तरक्की की।

वे प्राय सभी जाट उत्सवों में ठाकुर भूपसिंह जी के साथ शामिल हुए। सुदूर राजस्थान के झुंझुनू और सीकर के उत्सव में भी भी गए। 'जाट जगत' आगरा को उन्होंने आर्थिक सहायता देकर अपना कर्तव्य निभाया था।

मध्य भारत और बुंदेलखंड के बड़े बड़े घरों में आपकी रिश्तेदारियां हैं। उनके बड़े पुत्र श्री कोकसिंह जी हैं जो अंग्रेजी और हिंदी में अच्छी योग्यता रखते हैं। दूसरे छोटे पुत्र सावलसिंह हैं जो पढ़ रहे हैं।

श्री कोकसिंह का जन्म संवत 1984 विक्रमी (1927 ई.) में हुआ है और सोवरनसिंह जी का जन्म संवत 1983 में हुआ है। श्री कोकसिंह जी का विवाह मलऊआ के ठाकुर भगवतसिंह जी की सुपुत्री के साथ हुआ है।

हमारे यहां की कहावत है कि जो लड़के अपने पिता के संचय किए हुये धन और यस को बढ़ाते हैं वह सपूत कहलाते हैं। इन मानों में आप अपने यशस्वी पिता के सुयोग्य और सुपुत्र सिद्ध हुए हैं। आप की अवस्था अभी आरंभिक युवापन में है किंतु जवानी में जो बुराइयां आदमियों में अक्सर पैदा हुआ करती है वह आपको छू भी नहीं गई है।

आपने पिता द्वारा छोड़ी हुई संपत्ति और कीर्ति को बढ़ाया है यही कारण है कि लोग आपसे स्नेह करते हैं। स्वभाव आपका मीठा मिलनसार और चित्त प्रसन्न और सौम्य है। आप कौम को उन्नति के लिए तो सदैव प्रयत्नशील


[पृ.555]: रहते ही हैं दूसरे देश सेवा के कामों में भी भाग लेते हैं। दतिया के पिछले राष्ट्रीय आंदोलन में आप ने भाग लेकर अपनी देश भक्ति का परिचय दिया था।

3. ठाकुर रामसिंह जी - [पृ.555]: दतिया राज्य की सेवड़ा तहसील में पचोखरा गांव में ठाकुर रामसिंह जी की जन्म भूमि है। गोत दांदक है। आप एक धनवान जमीदार हैं और कौम के कामों से हित रखते हैं। आप की अवस्था लगभग 42 साल है। आपके पिता ठाकुर कमोदसिंह जी थे।

4. ठाकुर हरदेवसिंह और 5. देवसिंह - [पृ.555]: दतिया राज्य की सेवड़ा तहसील में जाटों का बरानायका एक गांव है। उसी में ठाकुर मनोहर सिंह जी के सुपुत्र ठाकुर हरदेवसिंह जी और ठाकुर खमानसिंह जी के सुपुत्र देवसिंह जी हैं। आप दोनों ही जवान आदमी हैं। दोनों ही जमीदार हैं। जाती सेवा के कामों में रुचि लेते हैं।

6. ठाकुर मनोहरसिंह जी – [पृ.555]: तहसील सेवड़ा राज्य दतिया में इतडोरा गांव है। ठाकुर मनोहर सिंह जी यही के एक प्रतिष्ठित जाट रहीस है। गोत्र आपका डबरिया है। उमर लगभग 60 साल होगी। इसी गांव में ठाकुर गंगासिंह जी भी एक रईस और बाइज्जत आदमी है आपकी भी गोत्र डबरिया है। आपके पिता ठाकुर रणधीर सिंह जी थे।


7. ठाकुर लक्ष्मणसिंह – [पृ.556]: पचोरा तहसील में सेवड़ा राज्य दतिया का एक प्रसिद्ध गांव है। यही के प्रसिद्ध रईस ठाकुर लक्ष्मणसिंह जी हैं। अवस्था आपकी लगभग 35 साल है। गोत्र आपका सेनवाल है। ठाकुर यशवंतसिंह आपके पिताजी थे।

8. ठाकुर गणेशसिंह – [पृ.556]: दतिया राज्य की सेवड़ा तहसील में खड़ऊआ नाम के गांव में दांदक गोत्र के ठाकुर गणेशसिंह जी एक प्रसिद्ध जाट सरदार हैं। अवस्था आपकी लगभग 50 साल होगी। इसी गांव में इसी गोत्र के दूसरे जाट सरदार ठाकुर भवानीसिंह जी के सुपुत्र ठाकुर चित्तर सिंह जी हैं। आपकी उम्र 25 साल के आसपास है। दोनों ही संपन्न आदमी हैं।

9. ठाकुर देवसिंह - [पृ.556]: ठाकुर भूपसिंह के गांव खेड़ी में उन्हीं के गोत्र में एक ठाकुर देवसिंह जी हैं। आपको मध्य भारत, बुंदेलखंड और मालवा के प्राय सभी जाट घरानों का परिचय है। आप 40 साल की उम्र के आदमी हैं आपके पिता ठाकुर बरजोरसिंह जी थे।

10. ठाकुर प्रतापसिंह – [पृ.556]: लहरा नाम का जाटों का एक गांव सेवड़ा तहसील में है। यहां पर ठाकुर प्रतापसिंह जी एक मशहूर जाट सज्जन है। आपके सुपुत्र हुकमसिंह एक शिक्षित नौजवान हैं। ठाकुर प्रतापसिंह जी शिकार के प्रसिद्ध खिलाड़ी हैं।

इंदौर (मध्य प्रदेश) के जाट जन सेवक

[पृ.557]: हमें यह खेद के साथ स्वीकार करना पड़ता है कि इंदौर जाने का हमें अवकाश प्राप्त नहीं हुआ। हालांकि होल्कर राज्य में भी जाटों का फैलाव है। अनेकों प्रमुख जाट घराने वहां पर हैं। उनके पास जागीरें भी है। नीमच के पास केसरपुरा के ठाकुर रामबक्ष जी के पास इस राज्य में एक गांव है। यहां के कई भाई अच्छे कौमी सेवक हैं। इनमें से अंताजी ठेठ इंदौर में ही रहते हैं। देहातों में कुछ एक के संबंध की संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार है।

1. ठाकुर मोतीसिंह - [पृ.557]: इंदौर में पनवारी गांव में भरकूट गोत्र के ठाकुर मोती सिंह जी हैं। आप एक सुशिक्षित नौजवान आदमी है। और जाट जाति की उन्नति और एकता के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। आपका अपनी बिरादरी में काफी मान है।

2. ठाकुर महाराजसिंह – [पृ.557]: इंदौर राज्य में तराना एक तहसील स्थान है यहां के ठाकुर सीताराम जी के सुपुत्र ठाकुर महाराजसिंह जी है। आप एक नौजवान आदमी हैं। गोत्र आपका जाँडू है। आपने कई बार इस बात की कोशिश की है कि इंदौर के जाट अपने संगठन और सुधार का काम आरंभ करें।

3. ठाकुर नारायणसिंह – [पृ.557]: इंदौर राज्य में ही देवली पोस्ट तराना इंदौर गांव है। वही के ठाकुर नारायणसिंह हैं। गोत्र आप का हँसेलिया है। आप एक बाअसर आदमी हैं। गांव के लोग आप को मानते हैं। और अपनी कौम को ऊंचा देखने के इच्छुक हैं।

4. मास्टर कन्हैयालाल - [पृ.558]: आप सोगरवार है। आपका गांव पनवारी है और देवली में अध्यापक है। आप शिक्षित और सभ्य आदमी हैं। आप को इस बात की चिंता रहती है कि जाटों में शिक्षा और सुधार कैसे फैले।

टीकमगढ़ (मध्य प्रदेश)

[पृ 558]: बुंदेली रियासत टीकमगढ़ में अनेकों प्रसिद्ध जाट हैं। इनमें नहरौली, कुंजरी, ढुरमई, सैधूरी आदि जाटों के प्रसिद्ध गांव हैं। इनमें कई ऐसे घराने हैं जिनके प्रमुख कौम और मुल्क का काम करते हैं।

नहरौली गांव में घूरेसिंह जी एक प्रसिद्ध जाट सरदार है। आपके पिताजी का नाम ठाकुर अमोलक सिंह जी था। गोत्र आपका वातरे है। इसी खानदान के यहां के दूसरे सज्जन ठाकुर रनजोरसिंह जी हैं। आप दोनों ही सरदार प्रभावशाली आदमी हैं।

यहां पर ठाकुर पंचमसिंह जी हैं जो कूरोल से वहां जाकर आवाद हैं और एक प्रतिष्ठित आदमी है।

समथर – [पृ 558] बुंदेलखंड में समथर एक गुर्जर राज्य है। यहां पर भी जाटों के कई गांव हैं जिनकी पूरी जानकारी प्राप्त नहीं की जासकी है।

समथर शहर में ठाकुर परशुराम जी एक प्रतिष्ठित जाट सरदार है। जब आप समथर इन्फेंट्री में जमादार थे


[पृ.559]: महाराज समथर की आप पर विशेष कृपा है। आप देहात से आने वाले जाटों को दुनिया की गतिविधि से सूचित करते रहते हैं और समाज सुधार के लिए भी प्रेरित करते हैं।

मध्य भारत के जाट

[पृ.559]: चंबल, माही, सिंधु और शिप्रा आदि नदियों से आच्छादित भू भाग का नाम मध्य भारत है। प्राचीन काल में अवंति, भोज, निषद, गोप आदि लोगों के प्रसिद्ध जनपद थे और उनके बाद मौर्य, मालव, शक, गुप्त आदि वंशो ने इस भूभाग पर राज्य किया था। चंड महासेन, पुष्यमित्र, अग्निमित्र, शूद्रक, नल और विक्रमादित्य जैसे प्रातः स्मरणीय महापुरुषों को जन्म देने का इस भूमि को सौभाग्य प्राप्त है।

इस पवित्र देश का महान इतिहास है। उस इतिहास में जाटों का भी बड़ा साझा है। ईसवी सन से पहले के यहां के प्रसिद्ध पुरुषों में कौन-कौन जाट थे इस विवादास्पद विषय को छोड़कर इस पुस्तक में हम केवल उन्हें इतिवृत्त को देना चाहते हैं जिनके अवशेष अभी मौजूद हैं। आज कल इस प्रदेश में ग्वालियर और इंदौर 2 बड़े राज्य शामिल हैं। इनके अलावा देवास, धार, झाबुआ आदिवासी छोटे राज्य हैं। हम सभी जगह तो नहीं पहुंच सके किंतु जो भी कुछ घूम फिर कर हमने सामग्री यहां के जाटों के बारे में संग्रह की है उसे यहां देते हैं।

ग्वालियर राज्य (मध्य प्रदेश)

चंबल और सिंध के बीच जाट राज्य

[पृ.560]: यहां बहुत पहले गोप लोग रहा करते थे। प्राचीन संस्कृत साहित्य में जिस गोपाचल (गोपगिरि) का वर्णन है उसी गोप गिरि पर इस राज्य की राजधानी का गढ़ बना हुआ है। अहीर लोगों की चार बड़ी शाखाएं हैं- यादव, नंद, गोप और आभीर। यहां पर गोप-अहीरों का बाहुल्य था। उन्हीं के नाम पर यह पहाड़ गोपगिरि कहलाता था। साधारण भाषा में गोप को ग्वाल भी कहते हैं। गोपगिरि से लोग इस पहाड़ को ग्वालगिरि और फिर ग्वालियर कहने लग गए। अहीर लोग अब भी ग्वालियर राज्य में काफी तादाद में है। कुछ समय के बाद इस भू भाग पर गुर्जरों का प्रभुत्व हुआ। उनके बाद तेवरों का। गोपगिरि पर बने हुए महलों में मान मंदिर (तेंवर राजा मानसिंह के महल) और गुजरी महल प्रसिद्ध हैं।

एक समय आया कि ग्वालियर के तीन चौथाई भाग पर जाटों का आधिपत्य हो गया। गोहद, पिछोर और कैलोर उनके राज्यों के मुख्य केंद्र थे। चंबल से लेकर सिंधु की भीतरवार तक उनका प्रभुत्व था।

आज भी उनके अवशेष मगरौरा, कड़वास, किटोरा, कैलोर, मोहनगढ़, पिछोर आदि जागीरों के रूप में मौजूद हैं।

ग्वालियर राज्य और उसके आसपास के जाटों के फैलाव और उपनिवेश का इतिहास दो धाराओं में प्रवाहित है। चंबल से लेकर ग्वालियर तक के तमाम प्रसिद्ध जाट घराने बृज और उसके आसपास से गए हुए हैं। और सिंधु नदी से ग्वालियर तक तमाम जाट घराने पंजाब से गए हुए हैं। सिंधु नदी ग्वालियर से 40 कोस दक्षिण पूर्व में विदिशा से प्रभावित होकर बहती है। वहां की आम बोलचाल में सैंध


[पृ.561]: कहलाती है और भारत की महान सिंध नदी से यह भिन्न है।

भाट ग्रन्थों का कहना है शिव के प्रसिद्ध गण वीरभद्र की चार स्त्रियां थी। उनमें आशादेवी से सोनभद्र और स्वर्णभद्र, भद्रादेवी से पवनभद्र, अलका देवी से झषभद्र, और मायादेवी से धीरभद्र नामक पुत्र उत्पन्न हुए।

धीरभद्र के पुत्र रुद्रदेव ने कश्मीर में रूद्रकोट नाम का नगर बसाया। रूद्रभद्र के आगे ब्रह्मभद्र, कर्णभद्र, जयभद्र, ताम्रभद्र, ज्ञानभद्र, चक्रभद्र पीढ़ी दर पीढ़ी राजा इस वंश में हुए। चक्रभद्र के 2 पुत्र नागभद्र और वज्रभद्र।

नागभद्र को कर्कोटक नाग की बेटी ब्याही गई। उससे उत्पन्न होने वाले तक्षक कहलाए और तक्षशिला नगरी बसाई।

नागभद्र के दूसरे भाई वज्रभद्र क्रीटभद्र, चंद्रभद्र, रोरभद्र, कोकभद्र, तमालभद्र, मेपभद्र, पुलिंगभद्र, पीढ़ी दर पीढ़ी राजा हुए। इनमें पुलिंगभद्र ने कश्मीर से हटकर गंगा किनारे मायापुरी नामका नगर बसाया जो आगे चलकर हरिद्वार के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

इनसे आगे इस वंश में तुंगभद्र, पूर्णभद्र, तेजभद्र, राजभद्र, मेघभद्र और (द्वितीय) स्वर्णभद्र हुए। स्वर्णभद्र की 40 वी पीढ़ी में राणा हरिआदित्य हुए। मायापुरी नगरी इन्हीं के नाम पर हरिद्वार के नाम से प्रसिद्ध हुई। हरिआदित्य भीम द्वारा पांडवों की राज सूर्य दिग्विजय में मारे गए।

राणा हरिआदित्य जी की 16वीं पीढ़ी के राजा पेजसर ने हरिद्वार को छोड़ दिया और यमुना के तटवर्ती इलाके में उनकी संतान के लोगों ने आबादी की।


[पृ.562]: उधर संघ विजय ने 270 वर्ष पंजाब पर सिकंदर के हमले में तक्षक वंशी राजा वीरसिंह लड़ते हुए मारे गए। उनके दो पुत्र थे: 1. अमरसेन और 2. मदनसेन। अमरसेन अभिसार का अधिपति था। ज्ञात होता है कि यूनानी लेखकों ने अमरसेन (अभिसार) को ही आम्भी लिखा है।

अमरसेन (अभिसार) के दो पुत्र विजयदेव और स्वर्णदेव थे। इससे आगे की कई पीढ़ियों का पता नहीं चलता।

संवत 875 (818 ई.) में करकदेव अभिसार (पंजाब) को छोड़कर दौंदरखेड़े में आ गए और यह लोग दोंदेरिया नाम से मशहूर हुए।

10 वीं सदी में इन लोगों ने निषध (नरवर) देश और सिंध नदी के आसपास के 96 गांव पर कब्जा कर लिया और धीरे-धीरे कई किले बना लिए।

दौंदेरिया लोगों के साथ और खानदान इधर आए जिनमें से कुछ ने किटोरा राज्य की नींव डाली। उधर गोहद की ओर वीरभद्र की उस शाखा से लोगों ने जो हरिद्वार में थे और यमुना तट पर आ चुके थे अपना राज्य जमाया और गोहद राज्य में एक बड़ा इलाका शामिल कर लिया।

18 वीं सदी के आरंभ में शिंदे लोगों का प्रभाव बढ़ा। महादजी सिंधिया से इन तमाम जाटों को भिड़ना पड़ा और आखिर में राज्यों को जागीरों के रूप में स्वीकार करके इन्हें समझौते करने पड़े।

इतिहास लंबा है किन्तु उसे हम संक्षिप्त करते हुये शेष रही हुई जाट जागीरों के सरदारों और ग्वालियर राज्य के अन्य प्रतिष्ठित जाट जनसेवी घरानों के प्रमुखों के जीवन परिचय देकर इस वृतांत को समाप्त करते हैं।

मगरौरा स्टेट (ग्वालियर, मध्य प्रदेश)

[पृ.563]: शिवि जाटों का वह जत्था जो कश्मीर से अभिसार में आ गया था, हरिद्वार आया। यह हम बता चुके हैं। हरिद्वार से यह लोग ब्रज के दोंदरखेड़े में आए। वहां से मध्य भारत के केहू नामक स्थान पर, जो ग्वालियर राज्य में है, आए। नरवर उस समय यहां की राजधानी थी। इन लोगों ने उसके राज्य के कुछ हिस्से को दबा लिया। भाट ग्रंथों में उस समय नरवर का राजा विजय बताया गया है और जाटों के अधिपति का नाम चंद्रचकवे कहा गया है। राजा विजय ने चंद्रचकवे के मुकाबले के लिए 9 राव मय सेना के भेजे। चंद्र चकवे ने जब इस समाचार को सुना तो उन्हें मार्ग में नाजिरी बाग के पास, जोकि सिंधु नदी पर अवस्थित है, जा दबाया और उनके सिर काट लिए। उस समय का यह दोहा प्रसिद्ध है- “नाजिरी बाग पे बागें उठी, जहां पागें डरी रही कैऊ कुरी की”।

यह घटना 10 वीं सदी के आसपास की है। उसके बाद इन लोगों ने कैऊ के बजाय उसके पास ही पहाड़ी पर एक किला बनाया गया। एक नगर आवाद किया जो पिछोर के नाम पर प्रसिद्ध किया। पिछोर का अर्थ है पीछे की ओर है क्योंकि पहाड़ की एक और केऊ गांव था। उसके पीछे की ओर बसाने से पिछोर हुआ।

इसके बाद कई पीढ़ियां बीतने पर दिल्ली की हकूमत के साथ संबंध जोड़ लिए। वहां से फरमान और सनदें तथा महाराजा का खिताब हासिल किया। पंच हजारी का ओहदा प्राप्त किया। आगे चलकर इसी खानदान से राव हमीर हुए। उनकी प्रसिद्धि हुई। उन्हीं के नाम पर पिछोर राव हमीर की पिछोर


[पृ.564]: के नाम से प्रसिद्ध है। राव हमीर का दतिया नरेश युद्ध हुआ जिसमें आप की विजय हुई। इस राज्य में उस समय 365 गांव थे और 7,00,000 आमदानी थी।

इसके बाद सिंधिया का प्रभाव बढ़ा। महादजी सिंधिया पिछोर पर चढ़कर आए और 6 महीने तक लड़ते रहने के बाद संधि हुई जिसमें 67 गांव इस खानदान के पास कायम रख कर बाकी ले लिए। 1782 ई. (1839 विक्रमी) की यह घटना है।

जिन दिनों महादाजी सिंधिया शाह आलम की मदद के लिए गुलाम कादिर से लड़ने दिल्ली तो उसमें राजा पहाड़सिंह जी, जोकि हमीरसिंह जी के पोते थे, लड़ने गए। उसमें आपके युद्ध कौशल की सिंधिया ने सराहना की।

इसके बाद पिंडारियों के उपद्रव शुरू हो गए। उसमें महाद जी के लड़के दौलतराव सिंधिया के साथ राजा पहाड़सिंह ने बड़ी बहादुरी दिखाई।

राजा पहाड़सिंह और दौलतराव सिंधिया में अनबन हो जाने से उन्होंने पहाड़सिंह जी पर बुरहानपुर जाने आने आदि का सवा लाख खर्च बांध दिया और उनके पास सिर्फ 14 गांव रहने दिये। बाकी के लिए यह लिख दिया कि सहकारान की अदायगी में लगा दिए।

संवत 1873 (1816 ई.) में इसी कारण से पिछोर को छोड़कर उसके दक्षिण में एक पहाड़ी पर गढी कायम कर ली और मगरौरा नाम का नगर बसाया। यह छतरसिंह ने, जो कि पहाड़सिंह जी के पुत्र थे, किया।

इसी खानदान की दूसरी शाखा राव बलवंतसिंह जी


[पृ.565]: की है जोकि राणा पहाड़सिंह जी के छोटे भाई हीरासिंह जी की संतान में से हैं। जिनको 3 ग्राम जागीर के हैं जिनकी दाखिल-खारिज अलग है। राव बलवंतसिंह जी के दो लड़के यशवंतसिंह और जितेंद्रसिंह है।

राजा छत्तरसिंह जी की चौथी पीढ़ी में राजा भागवंतसिंह जी थे। इन्होंने ग्वालियर राज्य में सबसे पहले जाट सभा कायम की। महासभा में भी महाराजा धौलपुर के बाद एक दिन प्रेसिडेंटशिप की। हिंदी के अच्छे साहित्यक थे।

आपही के पुत्र वीरेंद्रसिंह जी हैं। आपका जन्म संवत 1967 (1910 ई.) कार्तिक मास का है। आपके दो पुत्र सुरेंद्रसिंह और कोकसिंह हैं। सुरेंद्र सिंह जी इस खानदान के तीसरी साख इंद्रसिंह जी के पुत्र लोकपालसिंह जी हैं, जो उसमें गोद चले गये। जिसका दाखिल-खारिज अलग है।

किरोरा स्टेट (भिंड, मध्य प्रदेश)

[पृ.565]: पंजाब से नीचे के देशों की ओर आने वाले शिवी वंशी जाटों का एक समूह बृज की पवित्र भूमि में आकर आबाद हुआ और किरार लोगों से उन्होंने हंसला को छीन कर अपना आधिपत्य कायम किया।

एक समय आया कि यह हंसेलियां वीर मध्य भारत में फैला। विदिशा निषिध देश के प्रभावशाली राज्य वंश खत्म हो चुके थे। अतः गोपगिरि के दक्षिण में इन लोगों ने अपना एक छोटा सा राज्य कायम कर लिया।

इनकी अनेकों पीढ़ियां शांति के साथ इस देश की जनता की रक्षा करते हुए अपनी कीर्ति को बढ़ा रही थी कि मराठे लोग प्रभाव में आए और महादजी सिंधिया की


[पृ.566]: अधीनता भी स्वीकार करनी पड़ी। सिंधिया के साथ जो संधि इस खानदान की हुई वह सम्मानपूर्ण थी।

इनकी दूसरी संधि जो ग्वालियर राज्य के कागजात में दर्द है, महाराजा दौलतराव सिंधिया से हुई। दौलतराव ने इनकी ताकत और समृद्धि को काफी करके संधि की।

उस समय के इस खानदान के सरदार अमानसिंह के पास किरोर और किटोरा आदि 10-12 गाँव ही रहने दिए गए थे और इसके एवज में 10 सवारों की सहायता सिंधिया सरकार के उपयोग के लिए इनके जिम्मे में रही।

राजा अमानसिंह जी के तीन बेटे हुए: रणधीरसिंह, मंगलसिंह और चतुरसिंह। उन्होंने आपस में रियासत को बांट लिया। राजा रणधीरसिंह जी ने अपनी बुद्धिमानी से उस लाग को भी खत्म करना करा लिया जो उनके जिम्मे 10 सवारों की थी।

रणधीरसिंह जी एक प्रभावशाली और तेजस्वी सरकार थे उनके पीछे अपरबलसिंह जी हुए जिनके पुत्र भगवंतसिंह जी भी काफी लोकप्रिय रईस हुए हैं। उनके पुत्र गंभीरसिंह जी और पौत्र केसरीसिंह जी हुए।

रणधीरसिंह जी के दूसरे दोनों भाई निसंतान स्वर्गवासी हुए इसलिए यह एस्टेट फिर संगठित हो गई। राजा केसरीसिंह के 2 पुत्र श्री विचित्रसिंह जी और रामसिंह जी हुए।

राजा विचित्रसिंह जी का जन्म संवत 1970 विक्रमी (1913 ई. ) का है। आपने सिंधिया स्कूल ग्वालियर से शिक्षा प्राप्त की है। आप एक सुयोग्य और जिंदादिल रईस हैं। आप इलाके में अत्यंत लोकप्रिय हैं। शिकार के चतुर खिलाड़ी हैं।


[पृ.567]: जनता आपको स्नेह करती है और आपकी उदारता काफी मशहूर है। ग्वालियर राज्य जाटसभा के महारथियों में आपका स्थान है। तमाम जाति में आपके लिए प्रेम है।

कड़वास स्टेट (भिंड, मध्य प्रदेश)

[पृ.567]: शिवि वंशी वीरभद्र की एक शाखा बमरोलिया जाटों की है। गोत्र इनका है राणाउत्तर प्रदेश के बमरोली गांव से मध्य भारत में जाने के कारण बमरोलिया गोत्र हुआ।

गोहद के राणाओं की यह एक शाखा है। गोहद मध्य भाग में मराठों के पहले एक शक्तिशाली राज्य था। महादजी सिंधिया ने जब गोहाद पर चढ़ाई की तो गोहाद को फतह करने में कुछ दिन तक नाकामयाब रहा।

आखिर महादजी सिंधिया की विजय हुई। तब उसने इस खानदान के कुछ प्रभावशाली लोगों को खुश रखने के लिए स्वतंत्र जागिरें दी। राजा अमानसिंह, अचलसिंह और ठाकुरदास जी को महादजी सिंधिया ने अकाझरी कैंप में बुलाकर अंताकी, कड़वास, अतरसोहा, छिरेटा, अंतऊआ, चित्तौड़ा आदि गांव जागीर में दिये।

अब यह स्टेट तीन हिस्सों में बटी हुई है। राजा उदयभान सिंह, श्री गणेशसिंह और दीवानसिंह इन तीनों हिस्सों के अधिपति हैं।

राजा उदयभान सिंह जी एक योग्य और शिक्षित सरदार हैं। सिंधिया हाई स्कूल में आपने शिक्षा पाई है। ग्वालियर राज्य सभा के प्रेसिडेंट रहे हैं। हिम्मत के आप बड़े धनी हैं। दुश्मन से घबराते नहीं हैं। आप


[पृ.568]: संत मत के अनुयाई हैं। आपके भतीजे भगवानसिंह जी श्री गणेशसिंह जी के सुपुत्र हैं। कौमी सेवा में भाग लेते हैं। ग्वालियर राज्य जाट सभा को उन्होंने अपनी सेवाएं दे रखी हैं। तीसरे दीवानसिंह जी का स्वर्गवास हो गया है। राजा उदयभान सिंह जी इस समय 42-43 साल के नौजवान व्यक्ति हैं और बड़े उत्साही हैं।

कैलोर खानदान (श्योपुर, मध्य प्रदेश)

[पृ.568]: महाराजा दौलतराव जी सिंधिया के जमाने में ग्राम केलोर बनीमोदा ठाकुर गोपालसिंह लक्ष्मणसिंह जी को प्रदान हुआ। इसके बाद प्यारेसिंह को यह गांव बहाल रहे। संवत 1882 में प्यारे सिंह ला बलद मर गए। इसलिए गांव जप्त हो गए। फिर संवत 1926 में गोद नसीनी साहबसिंह जी ने मंजूर कर ली और गांव वापस कर दिए।

यह गांव पांच थे: गोठरा, जाखदा, एक और थे। हजारीसिंह जी इस समय इस जागीर के मालिक हैं। आपने सिंधिया स्कूल में शिक्षा पाई है। लोकप्रिय हैं। उम्र लगभग 23 साल होगी।

मोहनगढ़ (ग्वालियर, मध्य प्रदेश)

[पृ.568]: इन जगहों के अलावा ग्वालियर में एक अच्छी जागीर मोहनगढ़ के नाम से थी। जिसमें 5 ग्राम जागीर में थे और उनकी माली हालत भी बहुत अच्छी थी। राव गोपालसिंह के पुत्र घनश्याम सिंह जी के निसंतान मरने के कारण यह जागीर जप्त हो गई। राव साहब की दो बेवाएँ हैं जो बहैसियत जमीदारी ग्रामों पर काबिज है।

मध्य भारत के जाट जन सेवकों का वर्णन

1. ठाकुर अलबेलसिंह - [पृ.569]: आप राना गोत्र के जाट सरदार ठाकुर उत्तमसिंह जी के सुपुत्र हैं। जन्म आपका लगभग आज से 30-32 वर्ष पहले हुआ है। ग्वालियर राज्य में गांव आपका चित्तौरा है और इस समय धौलपुर राज्य में तहसीलदार हैं। सर्विस में रहते हुए भी कौम की सामाजिक स्थिति को सुधारने की आप हमेशा कोशिश करते रहते हैं। आप दो भाई हैं। छोटे बृजेंद्रसिंह जी इस समय अंग्रेजी की नवमी कक्षा में पढ़ते हैं। वह एक होनहार व सीधी प्रकृति के बच्चे हैं।

2. ठाकुर क्षत्रपालसिंह - [पृ.569]: आपकी जन्म भूमि जिला अलीगढ़ इगलास तहसील में वसौली गांव में है। गोत्र आप का काकरान है। उम्र 35-36 साल के आसपास होगी। आपने बीए और साहित्य रत्न किया है। इस समय ग्वालियर की सर्विस में है। और विक्टोरिया कॉलेज में हैड क्लार्क है। स्थानीय जाट बोर्डिंग हाउस के सुपरिटेंडेंट है। इस प्रकार आप कौमी सेवा के कार्यों में दिलचस्पी लेते हैं। आपके कुटुंब के एक नौजवान बृजेंद्र सिंह जी (नौनेरा) यही पर शिक्षा प्राप्त करते हैं और कुंवर भंवरसिंह जी के लेफ्टिनेंट में से हैं।

3. ठाकुर हुकुमसिंह जी - [पृ.569]: मेला गांव के रहने वाले हैं और गोत्र आपका ..... है। अवस्था इस समय लगभग 40 साल की होगी आप ग्वालियर राज्य जाट सभा की कार्यकारिणी के उत्साही सदस्यों में से हैं। मेला गांव परगना गिर्द में ही है।


4. ठाकुर जाहरसिंह - [पृ.570]: आप मुडैना के रहने वाले हैं जोकि जिला भिंड में अवस्थित है। गोत्र आपका राणा है। आप समझदार हैं। छोटे भाई का नाम मनोहरसिंह जी है। अवस्था आपकी इस समय लगभग 50 साल होगी। जाट क्षत्रिय सभा की कार्यकारिणी के आप मेंबर हैं। आपके एक भतीजे हैं जिन्होंने हिंदी प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की है और इस अवसर पर घर का कामकाज देखते भालते हैं।

5. बाबू चंद्रभान जी - [पृ.570]: आप हिसार जिले के खुसरा गांव के श्योराण गोत्र के जाट हैं। अवस्था आपकी लगभग 34-35 की होगी। इधर आप कई वर्षों से बिरला मिल ग्वालियर में सुपरवाइजर हैं।आप एक उच्च शिक्षित युवक हैं। आपके दिल के अंदर स्वभावत: कौमी सेवा की लगन है। आप एक सुधारक आर्यसमाजी और श्रद्धावान व्यक्ति हैं। आपने प्रवासी जाटों की संगठन के लिए भरपूर कोशिश की है। आप चार भाई हैं। आप के तीसरे भाई रामकुमार जी सूबेदार हैं।

6. ठाकुर मजबूतसिंह - [पृ.570]: आप रई गांव के रईस हैं। आप का गोत्र खेनवार है। आप दो भाई हैं। छोटे भाई मनुलाल जी हैं। आप एक अनुभवी पुरुष हैं और शिक्षित भी हैं। छोटे भाई की प्रतिभाएं लोग मानते हैं। आप की अवस्था इस समय 44-45 साल के लगभग होगी। आप ग्वालियर राज्य जाट कांफ्रेंस के कोषा अध्यक्ष और सदस्य हैं। आपके भाई के पुत्र नरेंद्रसिंह ने मैट्रिक पास कर लिया है। आपके पुत्र देवेंद्रसिंह जी ने


[पृ.571]: हिंदी की मध्यम श्रेणी तक शिक्षा प्राप्त की है। सभा के कामों में आप काफी दिलचस्पी लेते हैं और नरेंद्रसिंह इस समय कार्यकारिणी के सदस्य भी हैं।

7. ठाकुर राजारामजी - [पृ.571]: ग्वालियर राज्य के गिर्द जिले में ढोईयापुरा नाम का गांव आपकी जन्म भूमि है। गोत्र आपका .....है। अवस्था आपकी इस समय 50 के लगभग होगी। आप जाट सभा के कामों में दिलचस्पी से भाग लेते हैं और उसके मेंबर भी है। आपका भाई भतिजों से सम्पन्न घर है।

8. ठाकुर पंचमसिंह – [पृ.571]: आप जखारा जिला गिर्द राजय ग्वालियर के रहने वाले ठाकुर हरप्रसाद जी के सुपुत्र हैं। आप का गोत्र सोगरवार है। आप की उम्र लगभग 35 साल है। तालीम आपने माध्यमिक हिंदी श्रेणियों तक है। आप ग्वालियर राज्य जाट क्षत्रिय सभा की कार्यकारिणी के मेंबर तथा कोषाध्यक्ष हैं। आपके पिताजी एक प्रतिष्ठित जाट सरदार हैं। आपके बड़े भाई ठाकुर रघुवीरसिंह जी थे जिनके 2 पुत्र सोवरणसिंह और राजाराम विद्याध्ययन कर रहे हैं। स्वयं के दो लड़के हैं वह भी पढ़ते हैं। उनके नाम और अमरसिंह और बलवंतसिंह हैं।

9. ठाकुर गंधर्वसिंह – [पृ.571]: आप चितोरा के रईस ठाकुर रघुवीरसिंह के सुपुत्र हैं। शिक्षा आपकी हिंदी माध्यमिक है। गोत्र आपका राणा है। उम्र लगभग 36-37 साल है। आप ग्वालियर जाट क्षत्रिय सभा की कार्यकारिणी के सदस्य हैं और एक उत्साही आदमी हैं। आप के सबसे छोटे भाई निहाल सिंह जी अध्यापक हैं।


[पृ.572]: दूसरे और तीसरे भाइयों के नाम क्रमशः जोहारसिंह और पंचमसिंह है जोहार सिंह एक अच्छे पहलवान हैं।

10. ठाकुर मुंशीलाल - [पृ.572]: आप जिला मेरठ के चौधरी बलवंतसिंह जी के सुपुत्र हैं। जन्म आपका संवत 1969 विक्रमी में हुआ है। गोत्र आपका कुंडू है। आप दो भाई हैं। छोटे भाई का नाम खेमसिंह है। आप इधर न्यू वर्ष से ग्वालियर में रहते हैं। इस समय आपकी ट्रक (मोटर ठेला) सर्विस चलती है। आपने इधर आर्य समाज के सिद्धांतों का प्रचार करने में काफी कोशिश बिड़ला मिल की कॉलोनी में की है। साथ ही यहां जाटों में समाज सुधार की प्रेरणा की है। मिल के अंदर भी जाट सभा कायम हुई है इसके आप मंत्री रहे। ग्वालियर के प्रवासी जाटों में आपने जाट साहित्य का प्रचार और प्रसार किया। आप एक उत्साह और शांत प्रकृति के व्यक्ति हैं और कौम से हार्दिक प्रेम रखते हैं।

11. ठाकुर हुकमसिंह - [पृ.572]: आप चित्तौरा के रहीस हैं। गोत्र आपका राणा है। उम्र आपकी लगभग 56-57 वर्ष होगी। शरीर से आप हृष्ट-पुष्ट आदमी हैं। दिल के भी आप मजबूत हैं। जाट सभा की ओर से बिरादरी के लोगों ने आपकी सेवाओं से प्रभावित होकर आप को सरदार की उपाधि दी है। इस समय जाट सभा ग्वालियर राज्य के प्रेसिडेंट है। आप एक अच्छे जमीदार खेतिहर हैं। आपके पुत्र अजमेर सिंह जी हैं जो घर के कामकाज को बुद्धिमानी के साथ संभालते हैं।


12. ठाकुर पोषनसिंह - [पृ.573]: आप भी रई के रहने वाले हैं। गोत्र आपका खेनवार है। आप दो भाई हैं। बड़े भाई प्रीतमसिंह जी हैं। आज से लगभग 25 वर्ष पहले रई के ठाकुर जुझारसिंह जी के घर आपका जन्म हुआ। पिताजी के असामयिक देहावसान के कारण आपने मेट्रिक से पढ़ना छोड़ दिया। इस समय आप ग्वालियर राज्य जाट सभा की कार्यकारिणी के सदस्य हैं। इससे पहले आप उपमंत्री भी रह चुके हैं। आप एक उत्साही नौजवान हैं। भाई आप तीन हैं। यहीं के रहने वाले एक दूसरे जाट सज्जन ठाकुर मुन्नालाल जी हैं जो कोमी कामों में पूरी दिलचस्पी लेते हैं।

13. ठाकुर पूरनसिंह जी – [पृ.573]: आप गिर्द जिला परगना पिछोर के शीशगाम के रहने वाले हैं। अवस्था आपकी इस समय 53-54 साल के आसपास होगी। गोत्र आप का बातरे है। सभा के उत्साही आदमियों में से हैं। और लगन के साथ आप सभा की ओर से सौंपे हुए काम को पूरा करते हैं।

14. ठाकुर उत्तमसिंह जी – [पृ.573]: ग्वालियर राज्य की और दतिया की सीमाओं पर सेंथरी नाम का एक गांव है जो ग्वालियर राज्य की भांडेर तहसील में है। यहीं के ठाकुर उत्तमसिंह जी हैं। आपके पिता का नाम ठाकुर यशवंतसिंह जी था। आप की अवस्था इस समय 20-22 साल है और उत्साही जाट युवक हैं। आप का गोत्र सैनवार है। कौमी सेवा के कामों में दिलचस्पी है और एक अच्छे जागीरदार हैं।


15. ठाकुर विजयसिंह जी - [पृ.574]: ग्वालियर राज्य की भांडेर तहसील में मलऊआ नाम का एक गांव है। उसी में आज से लगभग 40 साल पहले आपका जन्म हुआ। आप का गोत्र हंसेलिया है। ठाकुर नन्हेसिंह जी के सुपुत्र हैं। पिछले कई पीढ़ी से आप बड़े रहीस हैं। धन और जमीन आपके पास काफी है। आपके पुत्र शुघर सिंह हैं जगजीतसिंह गोविंदसिंह हैं। आप का खानदान भरा पूरा है।

16. ठाकुर प्रतापसिंह जी [पृ.574]: तहसील भांडेर राज्य ग्वालियर में ही भलका नाम का एक गांव है। वही के ठाकुर कनीराम जी के आप भतीजे हैं। ठाकुर कनीराम हरभान सिंह दो भाई थे। आप हरभान सिंह जी के सुपुत्र हैं। आप बड़े जमींदार और धनी आदमी हैं। गोत्र आपका हतींगरवार है।

इसी ग्राम में ठाकुर निहालसिंह जी भी एक बड़े जागीरदार और बड़े आदमी हैं। ठाकुर बहादुरसिंह जी आपके पिता थे। आप का गोत्र जाडू है। आपने ग्वालियर जाट सभा में बड़ी दिलचस्पी से काम किया है।

17. ठाकुर सुंदरसिंह जी – [पृ.574] भांडेर तहसील में नौगवां एक मशहूर गांव है। इसमें 25 वर्ष की उम्र के एक जाट नौजवान रईस ठाकुर सुंदरसिंह हैं। आपके पिता का नाम ठाकुर प्रतापसिंह और गोत्र आपका डरूडे है।

18. ठाकुर भोलाराम जी - [पृ.574]: डबरा के पास सिमरिया नाम का ग्वालियर राज्य में एक गांव है।


[पृ.575]: यही के ठाकुर रंगलसिंह जी एक प्रतिष्ठित जमीदार के सुपुत्र हैं। आपका घर सदा से अतिथि सत्कार के लिए मशहूर है। आप कौम के कामों में काफी दिलचस्पी रखते हैं। अवस्था आपकी लगभग 45-46 साल होगी।

19. ठाकुर कुंवरसिंह जी – [पृ.575]: कुठौंदा गांव तहसील घाटीगांव, ग्वालियर राज्य में राजा साहब मगरौरा के साडू ठाकुर कुंवरसिंह जी हैं। आपकी उम्र इस समय लगभग 36 साल होगी। आप एक शिक्षित नौजवान जाट हैं और अपने परिश्रम और बुद्धिमानी से आपने एक बड़ी जिम्मेदारी बना ली है।

20. ठाकुर लालाराम जी – [पृ.575]: मोहनगढ़ ठिकाने में घूघा निवासी ठाकुर लालाराम जी जांडू एक मशहूर जाट सरदार है। आप भी कौम के काम में रुचि लेते हैं। उम्र आपकी अंदाजन 46 साल होगी।

21. ठाकुर कमोदसिंह जी - [पृ.575]: श्यामपुर (ग्वालियर) में खेनवार गोत्र के ठाकुर प्रमोदसिंह जी एक बहादुर जमीदार है। ठाकुर हमीरसिंह के सुपुत्र हैं।

22. ठाकुर नंदलालसिंह जी – [पृ 575]: जौरा (ग्वालियर) के एक बड़े जिम्मेदार आदमी ठाकुर नंदलालसिंह हैं। आज से लगभग 30 साल पहले आपका जन्म हुआ। आप स्वभाव से अच्छे हैं।

23. ठाकुर रनधीरसिंह जी – [पृ 575]: पिछोर में बघे गाँव में महाराज ठाकुर रनधीरसिंह


[पृ.576]: नन्ने सिंह, सुल्तान सिंह और पुष्पसिंह तथा रेवासिंह जी बड़ी इज्जत के धनीमानी जाट सदाराम हैं। आप सब जाडू गोत्र के जाट हैं और कौम से मोहब्बत करना आपका स्वभाव है।

24. ठाकुर लक्ष्मणसिंह - [पृ.576]: पिछोर में ऐंती गांव में हंसेलिय गोत्र के ठाकुर लक्ष्मणसिंह जी एक प्रसिद्ध जाट सरदार हैं। जो कौम के कामों में लगने रखते हैं। आप अभी एक नौजवान आदमी हैं।

25. ठाकुर भगवानसिंह – [पृ.576]: पिछोर परगना में लखनौती के ठाकुर परमानंद और भगवान सिंह मशहूर जाट सरदार हैं। आपके पिता ठाकुर हरनाम सिंह थे। गोत्र आपका धनाडिया है।1 यहीं पर इस गोत के एक दूसरे सज्जन ठाकुर देवीसिंह है। आप भी कौम के कामों में दिलचस्पी लेते हैं।

26. ठाकुर चिमनसिंह – [पृ.576]: परगना पिछोर में सुख्ल्यारी गांव में ठाकुर जवानसिंह जी के लड़के चिमनसिंह जी हैं। आप का हंसेलिया गोत्र है। इसी गोत्र के यहीं पर दूसरे ठाकुर मेवासिंह जी हैं।

27. ठाकुर रामचरणसिंह – [पृ.576]: कुम्हर्रा गांव परगना पिछोर में अवस्थित है। यहां पर धनाड़िया गोत्र के जाट सरदार ठाकुर मनोहरसिंह के बेटे ठाकुर रामचरण सिंह जी एक रईस हैं।


28. ठाकुर बद्रीसिंह – [पृ.577]: राज्य ग्वालियर परगना पिछोर में कैथोदा गाँव में ठाकुर हीरालाल के पुत्र बद्रीसिंह हैं। आप एक संपन्न परिवार के आदमी है। इसी गोत्र में एक दूसरे जाट सरदार ठाकुर राजारामजी जांडू हैं। आप दोनों ही कौम की तरक्की के कार्यों से प्रेम करते हैं।

29. ठाकुर खलकसिंह – [पृ.577]: राज्य ग्वालियर पिछोर परगने में गतारी गांव के खैनवार गोत ठाकुर खलकसिंह जी हैं जिनकी अवस्था 45-46 साल के पास होगी। एक बड़े समझदार और जमीदार सरदार हैं।

30. ठाकुर गंभीरसिंह – [पृ.577]: अजयगढ़ परगना पिछोर मैं ठाकुर जवाहरसिंह जी के सुपुत्र ठाकुर गंभीरसिंह जी हैं। आप एक प्रसिद्ध दोन्देरिया जाट सरदार हैं। इसी गांव में इसी गोत्र के ठाकुर बलवंतसिंह जी हैं। आप सभी राजा मगरौरा के राजाओं के भाई बंधु हैं।

31. ठाकुर मोहनसिंह – [पृ.577]: छपरा परगना पिछोर के रईस ठाकुर मोहनसिंह एक होनहार नौजवान आदमी है। गोत्र आपका कैथोलिया है। आप एक धनी मानी जाती प्रेमी सज्जन है।

32. ठाकुर मंगलसिंह जी – [पृ.577]: आदि निवासी आगरा जिला के धिगरोता खुर्द के रहने वाले महलवार जाट हैं। आपके पिताजी का नाम मूलचंद था। आप दो भाई हैं। बड़े ठाकुर चंदनसिंह जी हैं जो धिगरोता में रहते हैं। ठाकुर मंगलसिंह का जन्म संवत 1972 विक्रमी में चैत्र


[पृ.578]: के महीने में हुआ है। आपने आरंभिक हिंदी शिक्षा प्राप्त की है। आप आजकल ग्वालियर में रहते हैं। लगभग 15 साल पहले आप यहां आकर आबाद हुए। आप फाउंटेन पेन और चश्मा के व्यापारी तथा मरम्मत का काम करते हैं। आप का धंधा बड़ा अच्छा चल रहा है। ग्वालियर केंद्र में रहने के कारण आप यहां के जाट संगठन के लिए बड़े उपयोगी सिद्ध हुए हैं। यहां जाटों का एक बोर्डिंग हाउस है उसे बनवाने में आपने खास मेहनत की है।

ग्वालियर राज्य जाट सभा की कार्यकारिणी के आप मेंबर हैं। ग्वालियर राज्य के जाटों में खारे और मीठे के दो शर्मनाक भेद हैं। आप इस भेद को खत्म करने के लिए प्रयत्न कर रहे हैं।

आपकी निस्वार्थ सेवा का यहां के जाटों पर काफी असर है। जो भी आपके संपर्क में आता है उस पर आपका अच्छा प्रभाव पड़ता है।

आपके 5 पुत्र हैं बृजेंद्रसिंह, भगवानसिंह, रामजीसिंह, देवीसिंह और ओमहरनाम सिंह है। जिनमें बड़े तीनों पढ़ते हैं। आपका अपनी कौम के लिए शहर के दूसरे लोगों में भी अच्छी साख है। आपकी भलमनसाहत से लोग प्रभावित हैं।

33. कुंवर भ्रमरसिंह राणा – [पृ.578]: ग्वालियर राज्य के भिंड जिले में इटायदी नाम के एक गांव में राणा गोत्र के जाट आबाद है। क्योंकि इनके बुजुर्ग आगरा जिले के बमरौली गांव से जाकर उधर आवाद हुये इसलिए बमरोलिया कहलाते हैं । वास्तव में गोत्र इनका राणा है। ईटायदी में ठाकुर नाहरसिंह जी के घर में संवत 1980 विक्रमी में आपका जन्म हुआ। इस समय आप एमए और एलएलबी के विद्यार्थियों हैं। कौमी सेवा की और आपकी रुचि अब से सात-आठ साल से पूर्व हो चुकी है जबकि


[पृ.579]: आपके इलाकों में जाट महासभा के उपदेशक ठाकुर भोलासिंह जी और हुकमसिंह जी आए थे। पिछले 3 वर्ष से आप ग्वालियर राज्य जाट सभा के सेक्रेटरी हैं।

आप एक प्रखर बुद्धि स्फूर्तिवान और उन्नत विचार के जाट नौजवान हैं।

आप चार भाई हैं। आप से छोटे कोकसिंह जी इस समय (सन् 1949) एंग्लो वर्नाकुलर मिडिल में है। बाकी तिलकसिंह, रुपसिंह गांव में शिक्षा प्राप्त करते हैं।

34. ठाकुर नाहरसिंह जी – [पृ 579]: ग्वालियर राज्य की महगावां में चमाड़ी एक जागीरी गांव है। ठाकुर नाहरसिंह जी पटेल यही के एक प्रसिद्ध जाट रहीस हैं। इनके पिता ठाकुर शेरसिंह जी हैं। आप एक नौजवान जाट सरदार हैं। ग्वालियर राज्य जाट सभा के कार्यकर्ता हैं। आप का गोत्र बेरिया है।

35. ठाकुर गजाधरसिंह जी – [पृ.579]: जनकपुरा महगावां परगने में एक प्रसिद्ध गांव है। यहां के ठाकुर लल्लू सिंह जी के सुपुत्र ठाकुर गजाधरसिंह हैं। आप एक बड़े जमीदार हैं और इधर इलाके में आपकी काफी इज्जत है। मौजा की इलाका कांग्रेस कमेटी के प्रधान हैं।

36. ठाकुर जवाहरसिंह जी – [पृ.579]: आपका गांव नसरोल है जो कि महगावां परगने में है। आप का गोत्र बेंटा है। आप की अवस्था 45 साल के आसपास होगी। आप एक अच्छे जमीदार हैं।

37. ठाकुर बलवंतसिंह – [पृ 579]: महगावां परगने में नहनौली गांव के ठाकुर बलवंतसिंह, ठाकुर मेघसिंह, ठाकुर सुंदरसिंह, जसवंत सिंह ठाकुर मनी सिंह


[पृ.580]: आदि बमरौलिया गोत्र के जाट सरदार हैं जो प्रतिष्ठित पुरुष और माननीय सरदार हैं।

38. ठाकुर रघुवीरसिंह - [पृ.580]: असुई परगना महेगवा में एक मशहूर गांव है। यहां के रईस ठाकुर रघुवीर सिंह जी राणा से सभी लोग परिचित हैं। आप की अवस्था लगभग 50 साल है।

39.ठाकुर पंचमसिंह – [पृ.580]: परगना मेहगांव में पिपाड़ा के ठाकुर पंचमसिंह जी राणा से भी सभी जाट लोग परिचित हैं। आप भी एक संपन्न जमीनदार और समझदार आदमी हैं।

40.ठाकुर प्रानसिंह – पृ.580]: ग्वालियर राज्य की आंतरी तहसील में घमडपूरा के ठाकुर प्राणसिंह एक प्रयत्नशील जाट पुरुष हैं। आपने ग्वालियर राज्य जाट सभा की सक्रिय सेवा की है। जो कार्य कौम के जगाने का होता है उनमें आप भाग लेते हैं।

41. ठाकुर नेकीराम और 42. ठाकुर जवाहरसिंह – [पृ.580]: यह सौभाग्य ग्वालियर राज्य की मस्तूरा गांव को हासिल है कि उसकी एक जुगल जोड़ी कौम की तरक्की व काम में पूरी दिलचस्पी रखती है। इस जोड़ी के उत्साही सरदारों के नाम ठाकुर नेकीराम और ठाकुर जवाहरसिंह जी हैं। ग्वालियर राज्य जाट सभा के सन् 1946 के सालाना जलसे को सफल बनाने में आप ने पूरा सहयोग दिया। आप अपने गांव के माने हुए जाट सरदार हैं।


परिशिष्ट (ग) समाप्त
रियासती भारत के जाट जन सेवक पुस्तक समाप्त

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