User:Lrburdak/My Tours/Tour of South India I

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)
South India Map
Map of Kerala

दक्षिण भारत का भ्रमण

Tour of South India

14.12.2007: Departure for Chennai from Bhopal at 5.25 by 2616 GT Express

15.12.2007: Reaching Chennai Central at 6.15 am by 2616 GT Express

15.12.2007 & 16.12.2007: Stay at and Visit of Chennai & Mahabalipuram

16.12.2007: Departure for Kanya Kumari from Chennai at 17.25 by 2633 Kanya Kumari Exp

17.12.2007: Arrival Nagercoil at 6.30 am

17.12.2007: Stay and Visit of Kanya Kumari & Nagercoil

18.12.2007 : Departure for Goa at 13.30 from Nagercoil by 6336 Gandhidham Exp

19.12.2007: Arrival Margao (Goa) at 10.45 am

19.12.2007 & 20.12.2007: Stay and Visit of Goa

21.12.2007: Departure for Bhopal from Margao at 15.40 Hrs by 2779 Goa Express

चेन्नई (तमिलनाडू) भ्रमण: दक्षिण भारत की यात्रा भाग-1

दक्षिण भारत की यात्रा (Tour of South India) (14.12.2007-21.12.2007)

मेरे द्वारा दक्षिण भारत का भ्रमण मेरी पत्नी गोमती बुरड़क के साथ दिनांक 14-12-2007-21-12-2007 को किया गया. इस यात्रा में भारत शासन की खण्ड-वर्ष 2006-2007 के लिए अवकाश यात्रा सुविधा (एलटीसी) का लाभ लिया गया था। इस यात्रा में चेन्नईमहाबलीपुरम्कन्याकुमारीनागरकोइलगोवा का भ्रमण किया गया।

दक्षिण भारत भ्रमण की कार्य आयोजना तैयार कर हमारे तमिलनाडु कैडर के बैचमेट श्री रमाकांत ओझा को भेजी गई। उनके द्वारा रुकने और भ्रमण की व्यवस्था की गई।

14-12-2007: भोपाल से चेन्नई यात्रा:

भोपाल से चेन्नई के लिए 5.25 बजे सुबह 2616 GT Express से रवाना हुये। रास्ते में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडू के निम्न लिखित स्टेशन पड़ते हैं।

Bhopal (MP) (5.25) → Hoshangabad → Itarsi → GhoradongriBetulAmlaPandhurna (Chhindwara, M.P.) → Narkher (Nagpur, Maharashtra) → NagpurSewagramHinganghatChandrapurBalharshahSirpur Kaghaznagar (Telangana) → BellampalliManchiryalRamagundamWarangal (19.30) → KhammamVijayawada (AP) → TenaliBapatlaChiralaOngoleNelloreGudurCennai (TN) (6.15)

भोपाल से चेन्नई तक ट्रेन की यात्रा काफी रोमांचक होती है। उत्तर से दक्षिण तक के सभी तरह के लोग ट्रेन में देखने को मिलते हैं जिससे भारत की विविधता झलकती है। रेल में खाना भी दक्षिण भारतीय मिलता है। तेलंगाना प्रांत के वारंगल शहर तक दिन में यात्रा होती है और इस दौरान रेल के बाहर घना, हरभरा जंगल भी देखने को मिलता है। अलग-अलग प्रांत के लोगों के रहन-सहन और जनजीवन की झलक भी मिलती है। वारंगल शहर के आगे रात्री का समय होने से बाहर का लुत्फ लेना संभव नहीं है और सुबह होते ही चेन्नई पहुँच जाते हैं।

चेन्नई भ्रमण (15.12.2007)

15-12-2007: सुबह चेन्नई सेंट्रल स्टेशन पर 6.15 बजे 2616 GT Express से पहुँचे। चेन्नई में पदस्थ हमारे तमिलनाडु कैडर के बैचमेट श्री रमाकांत ओझा द्वारा चेन्नई सेंट्रल स्टेशन पर ववाहन भेजा गया था। हम चेन्नई के गिंडी क्षेत्र (Guindy) में स्थित फोरेस्ट रेस्ट हाउस पहुँचे जहाँ रुकने की व्यवस्था थी। श्री रमाकांत ओझा रेस्ट हाउस में मिलने के लिए आए और चेन्नई में भ्रमण के लिए कुछ टिप्स दिये। उन्होने बताया कि वे शासकीय निवास के शिफ्टिंग में व्यस्त हैं इसलिए साथ घूमना संभव नहीं हो पाएगा। इसी क्षेत्र में गिंडी राष्ट्रीय उद्यान (Guindy National Park) स्थित है जो शहरी क्षेत्र में देश का एक मात्र राष्ट्रीय उद्यान है। हमने जल्दी से तैयार होकर नाश्ता किया और भ्रमण पर निकल पड़े। देखे गए स्थानों का विवरण आगे दिया गया है। दक्षिण भारत के इस क्षेत्र का भूगोल, संस्कृति और जनजीवन को समझने के लिए तमिलनाडु और चेन्नई का संक्षिप्त परिचय पहले दिया जा रहा है।

तमिलनाडु परिचय

भूतकाल में विभिन्न समय पर विभिन्न तत्वों के अत्याचारों वह हमलों को झेलते हुए भी तमिलनाडु के निवासियों पर उसका कोई विशेष प्रभाव नहीं दिखाई देता है। इस पूरे प्रदेश में विश्व के अद्वितीय मंदिरों की भरमार होने के कारण इसे मंदिरों की नगरी भी कहा जाता है। यहां लोग धर्मावलंबी होने के साथ-साथ शिष्ट और कर्तव्य परायण भी हैं।

पोंगल को तमिल निवासी राष्ट्रीय पर्व की भांति मानते हैं। पोंगल यहां का विशेष पर्व है जिसे लोग पूरे जोर-शोर और हर्ष से मनाते हैं। विश्वविख्यात भरतनाट्यम, कर्नाटक संगीत इसके सांस्कृतिक जीवन के अभिन्न अंग हैं। यहां की भोजन शैली विविधता लिए होते हुए भी पौष्टिक, सस्ती व सुपाच्य है.

मद्रास का नाम एक पुर्तगाली सौदागर दल के मुखिया मैड्रा के नाम पर पड़ा हुआ माना जाता है। अभी 1996 से चेन्नई कहा जाता है। यहां के निवासी सीधे वह सरल स्वभाव के हैं और स्वाभाविक रूप से मेहमाननवाज भी हैं। आभूषण एवं वस्त्रों में यहां की संस्कृति की छाप स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है। मद्रास में घूमने के शौकीनों के लिए काफी कुछ है।

चेन्नई परिचय

चेन्नई का प्राचीन नाम चेन्नापटम् था और 1996 तक मद्रास (AS, p.706) के नाम से जाना जाता था। सन् 1639 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारी फ़्रांसिस डे ने विजयनगर के राजा से कुछ भूमि लेकर इस नगर की स्थापना की थी। उस समय का बना हुआ क़िला अभी तक विद्यमान है। मद्रास के उपनगर मायलापुर में कपालीश्वर शिव का प्राचीन मंदिर है। मायलापुर का शाब्दिक अर्थ मयूरनगर है। पौराणिक जनश्रुति के अनुसार पार्वती ने मयूर का रूप धारण करके शिव जी की इस स्थान पर पूजा की थी। इसी कथा का अंकन इस मंदिर की मूर्तिकारी में है। मंदिर के पीछे एक पवित्र ताल है। ट्रिप्लीकेन में पार्थसारथी का मंदिर भी उल्लेखनीय है। मद्रास के स्थान पर प्राचीन समय में चेन्नापटम नामक ग्राम बसा हुआ था। चेन्नई धार्मिक संस्थाओं के लिए जाना जाता है। इनमें से रामकृष्ण मंदिर, कालीकंबल मंदिर, सैंथोम चर्च और कपालीश्वर मंदिर प्रमुख है। गर्मी के समय में चेन्नई का मौसम काफी गर्म हो जाता है। हालांकि ठंड का मौसम काफी खुशगवार होता है।

चेन्नापटम् (AS, p.343): प्राचीन समय में मद्रास (वर्तमान चेन्नई) नगर के स्थान पर बसा हुआ एक ग्राम था। भारतीय इतिहास में यह स्थान इसीलिए महत्त्व का है, क्योंकि अंग्रेज़ ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने यहाँ अपना पहला क़िला स्थापित किया था। 1639 ई. में अंग्रेज़ व्यापारी फ़्राँसिस डे ने चेन्नापटम के हिन्दू राजा से इस स्थान का दानपत्र प्राप्त किया था। दानपत्र प्राप्त करने के बाद 1640 ई. में फ़ोर्ट सेण्ट जॉर्ज नामक क़िले की स्थापना की गई, जो अंग्रेज़ों का भारत में पहला क़िला था। 1653 ई में फ़ोर्ट सेंट जॉर्ज में एक प्रेसीडेंसी स्थापित की गई। आगामी वर्षों में इसी केंद्र के चारों ओर मद्रास नगर का विकास हुआ।

चेन्नई के दर्शनीय स्थल

फोर्ट सेंट जॉर्ज, मद्रास (Fort Saint George) (AS, p.599): मद्रास की पुरानी बस्ती का नाम चेन्नापटम् था. इसी ग्राम में 1640 ई. में अंग्रेजी व्यापारी फ्रांसिस डे ने फोर्ट सेंट जॉर्ज की स्थापना की थी. इसी किले के चतुर्दिक भावी महानगरी मद्रास का कालांतर में विकास हुआ. सेंट जॉर्ज फोर्ट चेन्नई का एक महत्वपूर्ण आकर्षण है सेंट जॉर्ज फोर्ट। यह किला ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापारिक केंद्र था। 150 वर्षों तक यह युद्धों और षड्यंत्रों का केंद्र बना रहा। इस किले में पुरानी सैनिक छावनी, अधिकारियों के मकान, सेंट मेरी गिरजाघर एवं रॉबर्ट क्लाइव का घर है। यह चर्च अँगरेजों द्वारा भारत में बनवाया गया सबसे पुराना चर्च माना जाता है।

Marina Beach, Chennai

मरीना बीच (Marina Beach): दक्षिण भारत का चेन्नई महानगर में एक प्रसिद्ध बीच है। यह बीच विश्व के सबसे लम्बे तट (बीच) में से एक है। यह भारत का सबसे बड़ा और दुनिया का दूसरा सबसे बड़े समुद्र तटों में गिना जाता है। मरीना बीच भारत के बंगाल की खाड़ी के साथ चेन्नई, तमिलनाडु में एक शहरी क्षेत्र का प्राकृतिक समुद्र तट रहा है। यह तट 13 किमी. रेतीली नदी दक्षिण के बेसंत नगर (Besant Nagar) से उत्तर में फोर्ट सेंट जॉर्ज तक फैला हुआ है। मरीना तट मुख्य रुप से रेतीली-चट्टानी संरचनाओं के विपरित रेतीला है जो मुंबई के जुहू समुद्र तट को दर्शाता है। समुद्र तट की औसत चौड़ाई 300 मी. जबकि पश्चिमी चौड़ाई 437 मी. है। मरीना बीच के खतरों को देखते हुए स्नान तथा तैराकी पर प्रतिबंध लगाया गया है। यह देश के उन सबसे भीड़भाड़ वाले समुद्र तटों में है जहां सप्ताह में 3,000 और छुट्टियों के दिनों लगभग 50,000 के करीब दर्शनार्थी आकर्षण के केन्द्र होते हैं। यहाँ गर्मियों के महिनों और फ़रवरी, नंम्बर महीनों में बिशेष रुप से 15,000 से 20,000 दर्शनार्थियों को आकर्षित करता है। 16 वी. शताब्दी से पहले, समुद्र के स्तर में वृद्धि के फलस्वरूप भूमि जलग्रहण की अनेक घटनाएँ होती थी। लेकिन वहाँ समुद्र पीछे हटने से कई लकीरें और लैगून बन गये। 1880 के दशक में वहाँ के गर्वनर माउंटस्टाट एल्फिंस्टन ग्रांट डफ द्वारा चेन्नई में मरीना बीच का नवीनीकरण किया गया था।

Government Museum, Chennai

सरकारी संग्रहालय परिसर (Government Museum, Chennai): एगमोर (Egmore) में सरकारी संग्रहालय परिसर में सरकारी संग्रहालय, कोनिमारा सार्वजनिक पुस्तकालय (Connemara Public Library) और राष्ट्रीय कला दीर्घा (National Art Gallery) स्थित हैं। 1851 में स्थापित, छह भवनों और 46 दीर्घाओं वाला संग्रहालय लगभग 16.25 एकड़ क्षेत्र में व्याप्त है। संग्रहालय में प्रदर्शित वस्तुओं में पुरातत्व विज्ञान, मुद्राशास्त्र, प्राणीशास्त्र, प्राकृतिक इतिहास, मूर्तिकला, ताड़ की पत्तियों से निर्मित पांडुलिपियों एवं अमरावती चित्रकला सहित विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित शिल्पकृतियां एवं वस्तुएं शामिल हैं। कोनिमारा सार्वजनिक पुस्तकालय भारत के चार राष्ट्रीय संग्रह पुस्तकालयों में से एक है जहां भारत में प्रकाशित होने वाले सभी पुस्तकों, समाचार पत्रों और पत्रिकाओं की एक प्रति उपलब्ध है। 1890 में स्थापित पुस्तकालय सदियों पुराने प्रकाशनों का भंडार है, जिसमें देश की कुछ सर्वाधिक सम्मानित कृतियां एवं संग्रह मौजूद हैं। यह संयुक्त राष्ट्र संघ के लिए एक संग्रह पुस्तकालय के रूप में भी कार्य करता है। राष्ट्रीय कला दीर्घा भवन देश भारतीय-सार्सिनियाई रूप वाले सबसे बेहतरीन स्थापत्यकलाओं में से एक है।

Valluvar Kottam Chariot, Chennai

वल्लुवर कोट्टम (Valluvar Kottam): तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में स्थित एक मंदिर है। सन्त कवि वल्लुवर ने तिरुक्कुरल नामक एक पवित्र ग्रंथ लिखा। वल्लुवर कोट्टम मेमोरियल को रथ शैली जैसे मंदिर के आकार में बनवाया गया है जो 39 मीटर ऊँचा और वजन में 2700 टन है। वल्लुवर कोट्टम में एक विशाल ऑडीटोरियम है जिसमें 4000 लोगों की बैठने की व्य्वस्थाध है। वल्लुवर कोट्टम कोडम्बक्कम सड़क और नुंगम्बक्कम सड़क के जंक्शन पर स्थित है.

राष्ट्रीय उद्यान गिंडी (Guindy National Park): 2.76 वर्ग किमी में फैला देश का सबसे छोटा राष्ट्रीय उद्यान गिंडी राष्ट्रीय उद्यान पूर्ण रूप से शहर के भीतर स्थित है। यह हिरण, लोमड़ियों, बंदरों और सांपों की विभिन्न विलुप्तप्रायः किस्मों को सहेजे है। राष्ट्रीय उद्यान में स्थित गिंडी सर्प उद्यान में सांपों का विशाल संग्रह है एवं यह विषरोधी सीरम का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।

चेन्नई सर्प उद्यान (Chennai Snake Park): सर्प उद्यान तमिलनाडु के शहर चेन्नई का एक मुख्य पर्यटन स्थल है। इस उद्यान में भारत के लगभग 40 सांपों की प्रजातियाँ हैं। यहाँ मगरमच्छों, गिरगिटों, कछुओं, छिपकलियों और गोह को प्राकृतिक अवस्था में देखा जा सकता है। सर्प उद्यान में सांपों का विशाल संग्रह है एवं यह विषरोधी सीरम का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।

राष्ट्रीय उद्यान गिंडी और चेन्नई सर्प उद्यान के चित्र
Anna Memorial, Chennai

अन्ना मेमोरियल चेन्नई (Anna Memorial, Chennai): अन्ना मेमोरियल, जिसको स्थानीय लोग अन्ना समाधि के नाम से जानते हैं, मरीना समुद्र तट चेन्नई पर निर्मित एक स्मारक है जो तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री C. N. Annadurai की स्मृति में बनाया गया था। यहीं उनका 1969 में अंतिम संस्कार किया गया था। मेमोरियल में अन्नादूरई पर एक म्यूजियम भी है।

Vedanthangal bird sanctuary Watch Tower

वेदांतगल पक्षी विहार (Vedanthangal Bird Sanctuary): यह पक्षी विहार चेंगलपट्टु जिले में स्थित है और चेन्नई से 75 कि.मी. है, देखने गए। यहाँ का ख़ास आकर्षण 'वाच टॉवर ' और वहाँ बनी पक्षियों की तस्वीर हैं जिनकी सहायता से पक्षियों को आसानी से पहचाना जा सकता है। वेदान्थांगल पक्षी अभयारण्य दो कारणों के लिए देश भर के पक्षी प्रेमियों का तथा पक्षीवैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित करती है। सबसे पहले, यह भारत में स्थापित किए गए प्रथम पक्षी अभयारण्यों में से एक है जिसका इतिहास ब्रिटिश शासन काल जितना पुराना है। दूसरा, इस अभयारण्य को जो राष्ट्रव्यापी महत्व मिलता है इसका श्रेय इस अभयारण्य के संरक्षण के लिए दिए गए स्थानीय समुदायों के लोगों की भागीदारी को जाता है। विविध प्रकार के प्रवासी पक्षियों के कारण वेदान्थांगल पक्षी अभयारण्य देश भर से पक्षी प्रेमियों को आकर्षित करता है। इस अभयारण्य में देखे जाने वाले दुर्लभ और विदेशी पक्षियों की प्रजातियों में कलहंस, ऑस्ट्रेलिया का ग्रे हवासील, श्रीलंका का ड़ार्टर, ग्रे बगुला, ग्लॉसी आइबिस, ओपन बिल सारस, साइबेरियाई सारस, स्पॉट बिल हंस शामिल हैं। इस अभयारण्य में अनगिनत छोटी झीलें मौजूद हैं और यह 74 एकड़ के क्षेत्र में फैला है। नवंबर और दिसंबर के महीनों में इस अभयारण्य में यूरोपीय प्रजाति के कई दुर्लभ पक्षी देखे जा सकते हैं। पक्षियों के लिए महत्वपूर्ण वृक्ष प्रजातियाँ हैं- Baringtonia sp. और Acacia nilotica.

अरिग्नार अन्ना प्राणी उद्यान (Arignar Anna Zoological Park): इसे वन्डालुर चिड़ियाघर के नाम से बेहतर रूप में जाना जाता है। चेन्नई शहर के दक्षिण पश्चिम में 31 किमी दूरी पर स्थित है और 5.1 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां प्रदर्शन करने के लिए अस्सी प्रजातियां हैं और इसमें एक शेर सफ़ारी, एक हाथी सफ़ारी, एक निशाचर पशु घर और एक मछलीघर शामिल हैं। शहर के दक्षिण में, ईस्ट कोस्ट रोड के किनारे, उभयचर प्राणिविज्ञान संबंधी अनुसंधान का एक महत्वपूर्ण केन्द्र है जिसे मद्रास क्रोकोडाइल बैंक ट्रस्ट कहा जाता है, जिसमें कई ताजे पानी और खारे पानी वाले मगरमच्छों, ग्राहों, घड़ियालों और कछुए तथा सांपों का भी आवास है। उद्यानकृषि (बागवानी) विभाग के वनस्पति उद्यान में पौधों की एक बहुत व्यापक विविधता है और 2 करोड़ वर्ष पुराना एक जीवाश्मीकृत पेड़ का तना भी है। हर वर्ष यहां मई के महीने में एक ग्रीष्मकालीन समारोह आयोजित किया जाता है।

Kapaleeshwarar Temple, Mylapore, Chennai

कपालीश्वर मंदिर (Kapaleeshwarar Temple): चेन्नई का एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है। यहाँ पार्वती का जो रूप पूजित है, उसे तमिल में 'कर्पागम्बल' कहते हैं, जिसका अर्थ है- 'कृपा वृक्ष'। यह मन्दिर द्रविड शैली में है और इसकी स्थापना 7वीं शताब्दी के आसपास हुई थी। कपालीश्वर मंदिर चेन्नई के उपनगर मायलापुर में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव और पार्वती को समर्पित है। यहां पार्वती की पूजा करपागंबल के रूप में किया जाता है। इस मंदिर का नाम कपलम और ईश्वरर पर पड़ा है। कपलम का अर्थ होता है सर, जबकि इश्वरर भगवान शिव का दूसरा नाम है। हिंदू पौराणिक कथाओं के जब भगवान ब्राह्मा और भगवान शिव माउंट कैलाश की चोटी पर मिले तो ब्राह्मा भगवान शिव की श्रेष्ठता को पहचान नहीं पाये। इससे कुपित होकर शिव ने ब्राह्मा का सर पकड़कर खींच दिया। अपनी गलती को सुधारने के लिए ब्राह्मा मायलापुर आ गए और यहां उन्होंने शिवलिंग की स्थापना की। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी के आसपास पल्लव राजाओं ने किया था। इस मंदिर की वास्तुशिल्पय बनावट द्रविड शैली से काफी मिलती जुलती है। कहा तो यह भी जाता है कि मूल मंदिर उस स्थान पर बना था जहां आज सैंथोम चर्च बना हुआ है। वर्तमान समय के मंदिर को विजयनगर के राजाओं ने 16वीं शताब्दी में बनवाया था।

Parthasarathy Temple, Chennai

पार्थसारथी मंदिर (Parthasarathy Temple): चेन्नई के त्रिपलीकेन (Tiruvallikeni) में बना पार्थसारथी मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर को 6वीं शताब्दी में बनवाया गया था। पार्थसारथी एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है अर्जुन का सारथीमहाभारत की लड़ाई में भगवान कृष्ण भी अर्जुन की सारथी का हिस्सा थे। त्रिपलीकेन स्थित भगवान कृष्ण का मंदिर पल्लव राजा नरसिम्हावर्मन प्रथम द्वारा मान्यताप्राप्त था। मंदिर के अंदर भगवान विष्णु, कृष्णा, नरसिम्हा, राम और वराह के विभिन्न अवतारों को रखा गया है। भगवान राम और भगवान नरसिम्हा के तीर्थ स्थल के लिए अलग प्रवेश द्वार बना हुआ है। चेन्नई का सबसे पुराना निर्माण होने के कारण भी इस मंदिर की प्रसिद्धी है। इसी कारण से यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। इसके अलावा मंदिर के स्तंभों और दीवारों पर बेहतरीन नक्काशी भी की गई है। यहाँ क़ृष्ण को रुक्मिणी, बड़े भाई बलराम, पुत्र प्रद्युम्न, पौत्र अनिरुद्ध और सत्यकी के साथ खड़ा दिखाया गया है. क़ृष्ण के साथ संबंध होने के कारण त्रिपलीकेन (Tiruvallikeni) को दक्षिण का वृंदावन भी कहा जाता है.

Kalikambal Temple, Chennai

कालीकंबल मंदिर (Kalikambal Temple, Chennai]): चेन्नई कालीकंबल मंदिर जॉर्ज टाउन में थंबू छेट्टी स्ट्रीट में स्थित है। शहर का एक प्रमुख आर्थिक केन्द्र होने के कारण यह एक चर्चित स्थान है। यह मंदिर हिंदू देवी कालीकंबल को समर्पित है, जिसे भारत के कई हिस्सों में देवी कमाक्षी के रूप में भी पूजा जाता है। वर्तमान के कालीकंबल मंदिर को 1640 में उस समय बनवाया गया था जब मूल मंदिर नष्ट हो गया था। पुराना मंदिर समुद्र तट के किनारे था और ऐसा माना जाता है कि पुर्तगाली आक्रमणकारियों ने मंदिर को नष्ट किया था। स्थानीय पौराणिक कथा के अनुसार कभी इस मंदिर में देवी कमाक्षी की एक उग्र रूप की पूजा की जाती थी। देवी के इस रूप को काफी आक्रमक और शक्तिशाली माना जाता था। बाद में देवी के उग्र रूप के स्थान पर कम आक्रमक और ज्यादा शांत देवी कालीकंबल को स्थापित किया गया। देवी कमाक्षी के इस अवतार को शांता स्वरूप माना जाता है। शिवाजी, मराठा योद्धा और 17 वीं शताब्दी में हिंदवी-स्वराज्य के संस्थापक ने 3 अक्टूबर 1667 को इस मंदिर में पूजा की थी।

नंगनल्लूर अंजनेयार मंदिर, चेन्नई (Anjaneya Temple, Nanganallur, Chennai) : नंगनल्लूर चेन्नई स्थित अंजनेयार मंदिर, हनुमान मंदिर है. यहाँ हनुमान की की मुख्य मूर्ति 32 फीट की ग्रेनाईट पत्थर की बनी हुई है।

क्रमश: अगले भाग में देखिये महाबलीपुरम्

Source Facebook Post of Laxman Burdak Dated 4.4.2021

चेन्नई की चित्र गैलरी

महाबलीपुरम् (तमिलनाडू) भ्रमण: दक्षिण भारत की यात्रा भाग-2

महाबलीपुरम् भ्रमण (16.12.2007)
Kanchipuram district map

मेरे द्वारा दक्षिण भारत का भ्रमण मेरी पत्नी गोमती बुरड़क के साथ दिनांक 14.12.2007-21.12.2007 को किया गया. इस यात्रा में भारत शासन की खण्ड-वर्ष 2006-2007 के लिए अवकाश यात्रा सुविधा (एलटीसी) का लाभ लिया गया था। इस यात्रा में चेन्नईमहाबलीपुरम्कन्याकुमारीनागरकोइलगोवा का भ्रमण किया गया।

पिछले भाग में चेन्नई का विवरण दिया था. इस भाग में पढ़िए महाबलीपुरम् का प्राचीन इतिहास, वहाँ का भूगोल तथा इसका पर्यटन संबंधी महत्व।

तमिलनाडु का यह वही ऐतिहासिक शहर महाबलीपुरम् है जिसमें एशिया के दो ‘महाबली’ भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग 11.10.2019 को मिले थे। उन्होने अर्जुन की तपस्या स्थली देखी, कृष्ण बटरबॉल के आसपास भ्रमण किया, पंच रथ देखा और समुद्र के किनारे स्थित शोर मंदिर देखा था। 12.10.2019 को दोनों नेताओं के बीच अनौपचारिक शिखर बैठक हुई थी। इस घटना ने महाबलीपुरम् के महत्व की तरफ विश्व समुदाय का ध्यान आकर्षित किया।

हमारा यह सौभाग्य था कि भारतीय वन सेवा प्रशिक्षण के दौरान दक्षिण भारत टूर के समय भी हमने 6.1.1982 को महाबलीपुरम् का भ्रमण किया था परंतु उस समय ज्यादा समय शोर मंदिर और महाबलीपुरम् समुद्री तट देखने में ही लग गया था। यहाँ के ऐतिहासिक स्मारकों को बहुत गहराई से नहीं देख पाये थे। इस बार 6.12.2007 को हमने पर्याप्त समय लगाया और सभी स्मारकों को देखने का प्रयास किया। पाठकों की रुचि के लिए चित्र-गैलरी में हमारे 6.12.2007 के चित्रों के बाद हमारे 6.1.1982 के चित्र और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के 11.10.2019 के चित्र भी तुलना के लिए दे रहा हूँ।

16.12.2007: चेन्नई से महाबलीपुरम् - सुबह नाश्ता करने के बाद वन विश्राम गृह चेन्नई के पास से महाबलीपुरम् के लिए बस पकड़ी। चेन्नई से महाबलीपुरम् की दूरी 60 किमी है और लगभग 1.45 घंटे का समय महाबलीपुरम् पहुँचने में लगता है। समुद्र के किनारे-किनारे यह रोमांचक यात्रा होती है। सड़क बहुत अच्छा है और दोनों तरफ घने हरे-भरे वृक्ष दिखाई देते हैं। रास्ते में यहाँ का जनजीवन समझने का अच्छा अवसर मिलता है। महाबलीपुरम् पहुँच कर हमने एक अनुभवी गाइड कर लिया था जो आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया से सेवा निवृत था। दिनभर महाबलीपुरम् भ्रमण करने के बाद शाम को हम चेन्नई वापस आ गए। यहाँ विस्तार से महाबलीपुरम का परिचय, इतिहास और मुख्य स्मारकों का विवरण दिया जा रहा है।

महाबलीपुरम का परिचय

महाबलीपुरम (Mahabalipuram) या मामल्लपुरम (Mamallapuram) भारत के तमिल नाडु राज्य के चेंगलपट्टु ज़िले में स्थित एक शहर है। यह मंदिरों का शहर राज्य की राजधानी, चेन्नई, से 60 किलोमीटर दूर बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित है। यह प्राचीन शहर अपने भव्य मंदिरों, स्थापत्य कला और सागर-तटों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। सातवीं शताब्दी में यह शहर पल्लव राजाओं की राजधानी था। द्रविड़ वास्तुकला की दृष्टि से यह शहर अग्रणी स्थान रखता है। यहाँ पर पत्थरों को काट कर मन्दिर बनाया गये हैं। पल्लव वंश के अंतिम शासक अपराजित थे। महाबलिपुरम से 60 किलोमीटर दूर स्थित चैन्नई निकटतम एयरपोर्ट है। भारत के सभी प्रमुख शहरों से चैन्नई के लिए फ्लाइट्स हैं। चेन्गलपट्टू महाबलिपुरम का निकटतम रेलवे स्टेशन है जो 29 किलोमीटर की दूरी पर है। चैन्नई और दक्षिण भारत के अनेक शहरों से यहां के लिए रेलगाड़ियों की व्यवस्था है। तमिलनाडु के प्रमुख शहरों से यह सड़क मार्ग से जुड़ा है। राज्य परिवहन निगम की नियमित बसें अनेक शहरों से महाबलिपुरम के लिए जाती हैं।

महाबलीपुरम के मुख्य आकर्षण
Laxman Burdak & Gomati Burdak at Fiverathas.Mahabalipuram

पंच रथ मंदिर (Five Rathas): महाबलीपुरम के लोकप्रिय रथ दक्षिणी सिरे पर स्थित हैं। यह समूह एक ही पत्थर में से कटे हुए पाँच मन्दिरों का है, जिन्हें रथ कहते हैं। महाभारत के पांच पांडवों के नाम पर इन रथों को पांडव रथ कहा जाता है। इनके नाम हैं- 1. द्रौपदी रथ, 2. अर्जुन रथ, 3. धर्मराज रथ, 4. भीम रथ, और 5. नकुल-सहदेव रथ. पांच में से चार रथों को एकल चट्टान पर उकेरा गया है। द्रौपदी और अर्जुन रथ वर्ग के आकार के हैं जबकि भीम रथ रेखीय आकार में है। भीमरथ की छत गाड़ी के टाप के सदृश जान पड़ती है। धर्मराज रथ सबसे ऊंचा है। धर्मराज रथ पाँच तलों से युक्त है। यह एक सुन्दर स्मारक परिसर है जिसका निर्माण 7वीं सदी में महेंद्र वर्मन प्रथम और बेटे नरसिंह वर्मन प्रथम ने करवाया था। पंच रथ के पांच स्मारकों को पूरी तरीके से रथ के समान बनाया गया है जो सभी ग्रेनाइट पत्थर को खोद-खोद कर बनाए गए हैं।

Descent of the Ganges, Mahabalipuram

गंगा अवतरण का स्मारक (Descent of the Ganges) - यह गंगा अवतरण का स्मारक महाबलीपुरम में स्थित है। 96X43 फीट का यह स्मारक सुंदर कलाकारी को दर्शाता है। यह एक बड़ा पत्थर है जिसमें खोद-खोद कर भगीरथ द्वारा गंगा का पृथ्वी पर अवतरण का बहुत ही अद्भुत चित्रण किया गया है। कुछ विद्वान इस दृश्य को महाभारत की एक कहानी से जुड़ा हुआ मानते हैं जिसमें अर्जुन शिव को खुश करने के लिए तपस्या करते हैं इसलिये इसे अर्जुन की तपस्या/अर्जुन्स् पेनेन्स (Arjuna's penance) भी कहते हैं। यह स्थान सबसे विशाल नक्काशी के लिए लोकप्रिय है। इसमें व्हेल मछली के पीठ के आकार की विशाल शिलाखंड पर ईश्वर, मानव, पशुओं और पक्षियों की आकृतियां उकेरी गई हैं। अर्जुन्स् पेनेन्स को मात्र महाबलिपुरम या तमिलनाडु का गौरव ही नहीं बल्कि देश का गौरव माना जाता है।

Shore Temple, Mahabalipuram

शोर टेम्पल (Shore Temple): प्राचीन काल में समुद्र तट पर तथा सन्निकट समुद्र के अन्दर स्थित सप्तरथों का उल्लेख है, जिनमें से छः तो समुद्र में समा गए हैं और एक समुद्र तट पर विशाल मन्दिर के रूप में विद्यमान है जिसे शोर टेम्पल कहा जाता है। ये छः भी पत्थरों के ढेरों के रूप में समुद्र के अन्दर दिखाई पड़ते हैं। महाबलिपुरम के तट मन्दिर को दक्षिण भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में माना जाता है जिसका संबंध आठवीं शताब्दी से है। यह मंदिर द्रविड वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है। यहां तीन मंदिर हैं। बीच में भगवान विष्णु का मंदिर है जिसके दोनों तरफ से शिव मंदिर हैं। मंदिर से टकराती सागर की लहरें एक अनोखा दृश्य उपस्थित करती हैं। इसे महाबलीपुरम का रथ मंदिर भी कहते है। इसका निर्माण नरसिंह बर्मन प्रथम ने कराया था। प्रांरभ में इस शहर को "मामल्लपुरम" कहा जाता था।

Krishna Mandapam Entrance, Mahabalipuram

कृष्ण मंडपम (Krishna Mandapam): यह मंदिर महाबलीपुरम के प्रारंभिक पत्थरों को काटकर बनाए गए मंदिरों में एक है। मामल्लपुरम में भगवान कृष्ण का सबसे बड़ा मंडप है। इस मंडपम के अंदर गोवर्धन के ग्रामीण जीवन के दृश्यों की चट्टानों पर बेहतरीन नक्काशी हैं। मंदिर की दीवारों पर ग्रामीण जीवन की झलक देखी जा सकती है। एक चित्र में भगवान कृष्ण को गोवर्धन पर्वत को उंगली पर उठाए दिखाया गया है। एक चरवाहा गाय को दूध पिला रहा है। एक किसान बच्चे को अपने कंधे पर लादे हुए है। एक महिला अपने सिर पर चटाई समेटे जा रही है। एक युवा दंपत्ति को खूबसूरती से चित्रित किया गया है। सबसे बड़ी नक्काशी में यह दर्शाया गया है कि भगवान कृष्ण ने अपनी उंगली पर पूरे गोवर्धन पहाड़ को उठाकर भगवान इंद्र के प्रकोप से गांव वालों को कैसे बचाया। बारिश इतनी तेज हुई कि सब कुछ डूब सकता था। लेकिन भगवान कृष्ण ने सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाए रखा। कृष्ण मंडपम अर्जुन की तपस्या स्थल के ठीक बगल में है। इसी परिसर में गणेश रथ और कृष्ण बटर बॉल भी है।

Laxman Burdak & Gomati Burdak at Krishna's Butter Ball, Mahabalipuram

कृष्ण की मक्खन गेंद (Krishna's Butter Ball)- दक्षिण भारत के महाबलीपुरम में 1200 वर्ष पुराना एक पत्थर बहुत ही अजीबोगरीब तरीके से रखा हुआ है। इसे देखकर लगता है कि यह जरा सा धकेलने में नीचे गिर पड़ेगा, लेकिन ऐसा नहीं है। इस पत्थर की चौड़ाई 5 मीटर तथा ऊंचाई 20 फीट है। सन् 1908 में इस पत्थर पर उस समय के मद्रास गवर्नर आर्थर की नजर पड़ी तो उनको लगा कि यह पत्थर किसी बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकता है इसलिए उन्होंने इस पत्थर को उसके स्थान से हटवाने के लिए 7 हाथियों से खिंचवाया पर यह पत्थर अपनी जगह से एक इंच भी नहीं खिसका। ग्रेविटी के नियमों की उपेक्षा करते हुए यह पत्थर एक ढलान वाली पहाड़ी पर 45 डिग्री के कोण पर बिना लुढ़के टिका हुआ है। लोग इस पत्थर को 'कृष्ण की मक्खन गेंद' भी कहते हैं क्योंकि उनका मानना है कि यह पत्थर मक्खन की गेंद है जिसको कृष्ण ने अपनी बाल्य अवस्था में नीचे गिरा दिया था।

Mahabalipura-Light House, Mahabalipuram

दीपस्तम्भ की पहाड़ी में गुफाएँ (Light House & Hill area caves): पहाड़ी पर स्थित दीपस्तंभ समुद्र-यात्राओं की सुरक्षा के लिए बनवाया गया था. इसके निकट ही सप्तरथों के परम विशाल मंदिर विदेश यात्राओं पर जाने वाले यात्रियों को मातृभूमि का अंतिम संदेश देते रहे होंगे। वराह गुफा विष्णु के वराह और वामन अवतार के लिए प्रसिद्ध है। साथ की पल्लव के चार मननशील द्वारपालों के पैनल लिए भी वराह गुफा चर्चित है। सातवीं शताब्दी की महिसासुर मर्दिनी गुफा भी पैनल पर नक्काशियों के लिए खासी लोकप्रिय है।

टाइगर गुफाएं (Tiger caves) - यह गुफाएं महाबलीपुरम की सबसे बेहतरीन कलाकृतियां हैं। इनके बाहर पत्थर में उभरे हुए शेर की मूर्तियां हैं। यह भी पल्लव राजाओं द्वारा बनाया गया था।

मूर्ति संग्रहालय (Sculpture Museum: राजा स्ट्रीट के पूर्व में स्थित इस संग्रहालय में स्थानीय कलाकारों की 3000 से अधिक मूर्तियां देखी जा सकती हैं। संग्रहालय में रखी मूर्तियां पीतल, रोड़ी, लकड़ी और सीमेन्ट की बनी हैं।

मुट्टुकाडु (Muttukadu): यह स्थान महाबलिपुरम से 21 किलोमीटर की दूरी पर है जो वाटर स्पोर्टस् के लिए लोकप्रिय है। यहां नौकायन, केनोइंग, कायकिंग और विंडसर्फिग जैसी जलक्रीड़ाओं का आनंद लिया जा सकता है।

कोवलोंग (Covelong): महाबलिपुरम से 19 किलोमीटर दूर कोवलोंग का खूबसूरत बीच रिजॉर्ट स्थित है। इस शांत फिशिंग विलेज में एक किले के अवशेष देखे जा सकते हैं। यहां तैराकी, विंडसफिइर्ग और वाटर स्पोट्र्स की तमाम सुविधाएं उपलब्ध हैं।

क्रोकोडाइल बैंक (Crocodile Bank): महाबलिपुरम से 14 किलोमीटर दूर चैन्नई-महाबलिपुरम रोड़ पर क्रोकोडाइल बैंक स्थित है। इसे 1976 में अमेरिका के रोमुलस विटेकर ने स्थापित किया था। स्थापना के 15 साल बाद यहां मगरमच्छों की संख्या 15 से 5000 हो गई थी। इसके नजदीक ही सांपों का एक फार्म है।

महाबलीपुरम् का इतिहास

महाबलीपुरम् (AS, p.723): एक ऐतिहासिक नगर है जो 'ममल्लपुरम्' भी कहलाता है। यह पूर्वोत्तर तमिलनाडु राज्य, दक्षिण भारत में स्थित है। यह नगर बंगाल की खाड़ी पर चेन्नई (भूतपूर्व मद्रास) से 60 किलोमीटर दूर स्थित है.

मद्रास से लगभग 40 मील दूर समुद्र तट पर स्थित वर्तमान ममल्लपुर. इसका एक अन्य प्राचीन नाम बाणपुर भी है. यह पल्लव नरेशों के समय (सातवीं सदी ई.) में बने सप्तरथ नामक विशाल मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है. ये मंदिर भारत के प्राचीन वास्तुशिल्प के गौरवमय उदाहरण माने जाते हैं. पल्लवों के समय में दक्षिण भारत की संस्कृति उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर पहुंची हुई थी. इस काल में बृहत्तर भारत, विशेषकर स्याम, कंबोडिया, मलाया और इंडोनेशिया में दक्षिण भारत से बहुसंख्यक लोग जाकर बसे थे और वहां पहुंच कर उन्होंने नए-नए भारतीय उपनिवेशों की स्थापना की थी. महाबलीपुर के निकट एक पहाड़ी पर स्थित दीपस्तंभ समुद्र-यात्राओं की सुरक्षा के लिए बनवाया गया था. इसके निकट ही सप्तरथों के परम विशाल मंदिर विदेश यात्राओं पर जाने वाले यात्रियों को मातृभूमि का अंतिम संदेश देते रहे होंगे. [p.724] दीपस्तंभ के शिखर से शिल्पकृतियों के चार समूह दृष्टिगोचर होते हैं.

पहला समूह:पहला समूहएक ही पत्थर में से कटे हुए पाँच मन्दिरों का है, जिन्हें रथ कहते हैं। ये कणाश्म या ग्रेनाइट पत्थर के बने हुए हैं। इनमें से विशालतम धर्मरथ हैं जो पाँच तलों से युक्त हैं। इसकी दीवारों पर सघन मूर्तिकारी दिखाई पड़ती है। भूमितल की भित्ति पर आठ चित्रफलक प्रदर्शित हैं, जिनमें अर्ध-नारीश्वर की कलापूर्ण मूर्ति का निर्माण बड़ी कुशलता से किया गया है। दूसरे तल पर शिव, विष्णु और कृष्ण की मूर्तियों का चित्रण है। फूलों की डलिया लिए हुए एक सुन्दरी का मूर्तिचित्र अत्यन्त ही मनोरम है। दूसरा रथ भीमरथ नामक है, जिसकी छत गाड़ी के टाप के सदृश जान पड़ती है। तीसरा मन्दिर धर्मरथ के समान है। इसमें वामनों और हंसों का सुन्दर अंकन है। चौथे में महिषासुर मर्दिनी दुर्गा की मूर्ति है। पाँचवां एक ही पत्थर में से कटा हुआ है और हाथी की आकृति के समान जान पड़ता है।

दूसरा समूह: दूसरा समूह दीपस्तम्भ की पहाड़ी में स्थित कई गुफ़ाओं के रूप में दिखाई पड़ता है। वराह गुफ़ा में वराह अवतार की कथा का और महिषासुर गुफ़ा में महिषासुर तथा अनंतशायी विष्णु की मूर्तियों का अंकन है। वराहगुफ़ा में जो अब निरन्तर अन्धेरी है, बहुत सुन्दर मूर्तिकारी प्रदर्शित है। इसी में हाथियों के द्वारा स्थापित गजलक्ष्मी का भी अंकन है। साथ ही सस्त्रीक पल्लव नरेशों की उभरी हुई प्रतिमाएँ हैं, जो वास्तविकता तथा कलापूर्ण भावचित्रण में बेजोड़ कही जाती है।

तीसरा समूह: तीसरा समूह सुदीर्घ शिलाओं के मुखपृष्ठ पर उकेरे हुए कृष्ण लीला तथा महाभारत के दृश्यों के विविध मूर्तिचित्रों का है। जिनमें गोवर्धन धारण, अर्जुन की तपस्या आदि के दृश्य अतीव सुन्दर हैं। इनसे पता चलता है कि स्वदेश से दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में जाकर बस जाने वाले भारतीयों में महाभारत तथा पुराणों आदि की कथाओं के प्रति कितनी गहरी आस्था थी। इन लोगों ने नए उपनिवेशों में जाकर भी अपनी सांस्कृतिक परम्परा को बनाए रखा था। जैसा ऊपर कहा गया है, महाबलीपुर समुद्रपार जाने वाले यात्रियों के लिए मुख्य बंदरगाह था और मातृभूमि छोड़ते समय ये मूर्तिचित्र इन्हें अपने देश की पुरानी संस्कृति की याद दिलाते थे।

चौथा समूह: चौथा समूह समुद्र तट पर तथा सन्निकट समुद्र के अन्दर स्थित सप्तरथों का है, जिनमें से छः तो समुद्र में समा गए हैं और एक समुद्र तट पर विशाल मन्दिर के रूप में विद्यमान है। ये छः भी पत्थरों के ढेरों के रूप में समुद्र के अन्दर दिखाई पड़ते हैं।[p.725]

महाबलीपुरम के रथ: महाबलीपुरम के रथ जो शैलकृत्त हैं, अजन्ता और एलौरा के गुहा मन्दिरों की भाँति पहाड़ी चट्टानों को काट कर तो अवश्य बनाए गए हैं किन्तु उनके विपरीत ये रथ, पहाड़ी के भीतर बने हुए वेश्म नहीं हैं, अर्थात ये शैलकृत होते हुए भी संरचनात्मक हैं। इनको बनाते समय शिल्पियों ने चट्टान को भीतर और बाहर से काट कर पहाड़ से अलग कर दिया है। जिससे ये पहाड़ी के पार्श्व में स्थित जान नहीं पड़ते हैं, वरन् उससे अलग खड़े हुए दिखाई पड़ते हैं। महाबलीपुरम दो वर्ग मील के घेरे में फैला हुआ है। वास्तव में यह स्थान पल्लव नरेशों की शिल्प साधना का अमर स्मारक है।

क्रमश: अगले भाग में पढ़िए कन्याकुमारी के बारे में.

Source - Facebook Post of Laxman Burdak Dated 10.4.2021

महाबलीपुरम् की चित्र गैलरी
Gallery of images of Mahabalipuram dated 16.12.2007 by Laxman Burdak
Gallery of images of Mahabalipuram dated 6.1.1982 by Laxman Burdak
Gallery of images of Narendra Modi–Xi Jinping at Mahabalipuram dated 11.10.2019

कन्याकुमारी भ्रमण (तमिलनाडु): दक्षिण भारत की यात्रा भाग-3

कन्याकुमारी भ्रमण (17.12.2007-18.12.2007)

मेरे द्वारा दक्षिण भारत का भ्रमण मेरी पत्नी गोमती बुरड़क के साथ दिनांक 14.12.2007-21.12.2007 को किया गया. इस यात्रा में भारत शासन की खण्ड-वर्ष 2006-2007 के लिए अवकाश यात्रा सुविधा (एलटीसी) का लाभ लिया गया था। इस यात्रा में चेन्नईमहाबलीपुरम्कन्याकुमारीनागरकोइलगोवा का भ्रमण किया गया।

पिछले भाग में महाबलीपुरम् का विवरण दिया था. इस भाग में पढ़िए कन्याकुमारी का प्राचीन इतिहास, वहाँ का भूगोल तथा इसका धार्मिक और पर्यटन संबंधी महत्व।

16.12.2007: चेन्नई से कन्याकुमारी

चेन्नई से कन्याकुमारी के लिए ट्रेन 2633 Kanya Kumari Exp द्वारा 17.30 बजे रवाना हुये. रास्ते में पड़ने वाले स्टेशन इस प्रकार थे:

Chennai Egmore (17:30) → Tambaram (17:54 pm) → Chengalpattu (18:23 pm) → Melmaruvattur (18:54) → Tindivanam (19:19) → Villuparam (20:00 pm) → Vridhachalam (20:40) → Tiruchchirapali (22:35) → Dindigul (00:35) → Madurai (1:55) → Virudunagar (2:38) → Satur (3:05) → Kovilpatti (3:24) → Tirunelveli (4:45) → Valliyur (5:29) → Nagercoil (6:10) → Kanyakumari (6:50)

चेन्नई से कन्याकुमारी के रास्ते में पड़नेवाले ऐतिहासिक महत्व के स्थानों का संक्षिप्त इतिहास यहां दिया जा रहा है:

चेंगलपट्टु (Chengalpattu) (तमिलनाडु): यह चेन्नई से 55 किमी दूर नैशनल हाईवे 45 पर स्थित है। चेंगलपट्टु भारत के तमिल नाडु राज्य के चेंगलपट्टु ज़िले में स्थित एक छोटा शहर है, जो राज्य की राजधानी, चेन्नई, का भाग है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। राष्ट्रीय राजमार्ग 32 यहाँ से गुज़रता है और यहाँ चेन्नई उपनगरीय रेलवे-दक्षिण लाइन का भी एक स्टेशन है। यह पलार नदी के किनारे स्थित है। इसके दक्षिणी सिरे पर कोलवई झील है। यह हिन्दी में चिंगलपट या चिंगलपेट (AS, p.333) भी लिखा जाता है जो चेन्नई में समुद्र तट पर स्थित एक दुर्ग नगर है। यहाँ के क़िले के एक पार्श्व में दोहरी क़िलाबंदी है और तीन ओर झील तथा दलदलें हैं। यहाँ से 5 मील (लगभग 8 कि.मी.) पर पहाड़ी के ऊपर दक्षिण का प्रसिद्ध 'पक्षीतीर्थ' है। पहाड़ी पर भगवान शिव का मंदिर और जटायुकुंड भी है। जटायुकुंड का संबंध रामायण के गिद्धराज जटायु से बताया जाता है। पहाड़ी के नीचे 'शंखतीर्थ' है। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बहुत प्रारंभिक दिनों में यह स्थान क्रांतिकारी और गोपनीय कार्यवाहियों और बैठकों का अड्डा बन गया था। जुलाई, 1857 में दो हिन्दू मंदिर- एक छोटा चिंगलपुट शहर के तीन मील दक्षिण पश्चिम, मनिपकम में और दूसरा उससे बड़ा, चिंगलपुट शहर के उत्तर में पल्लवरम में स्थित, क्रांतिकारियों के क्षेत्रीय शरण-स्थल बन गए थे।

तिरुचिरापल्ली (Tiruchchirapali) (तमिलनाडु): तिरुचिरापल्ली जो त्रिचि या तिरुची नाम से भी प्रसिद्ध है। यह नगरी चेन्नई से 330 किमी दूर कावेरी नदी के तट पर अवस्थित है। यह तमिलनाडु प्रान्त का एक शहर और एक जिलाहै। प्राचीन काल में चोल साम्राज्‍य का एक महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा रहा है। यह स्थान विशेष रूप से विभिन्न मंदिरों जैसे श्री रंगानाथस्वामी मंदिर, श्री जम्बूकेश्‍वरा मंदिर और वरैयूर आदि के लिए प्रसिद्ध है। शहर के मध्य से कावेरी नदी गुजरती है। वर्तमान समय में तिरूचिरापल्ली का एक महत्‍वपूर्ण हिस्सा वरैयूर है, यह चोल साम्राज्‍य की राजधानी था। इसको त्रिचनापल्ली = त्रिशिरापल्ली (AS, p.415) नाम से भिजाना जाता है. किंवदंती के अनुसार त्रिशिर नामक राक्षस का ग्राम (पल्ली) होने के कारण यह नगरी त्रिशिरापल्ली कहलाई. ऐसी मान्यता है कि त्रिशिर राक्षस का वध भगवान शिव ने इसी स्थान पर किया था। त्रिचनापल्ली का दुर्ग पल्लव कालीन है। यह एक मील लम्बा और आधा मील चौड़ा समकोणाकार बना हुआ है और 272 फुट ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। शिखर पर जाते समय पल्लव नरेशों के समय में निर्मित सौ स्तंभों का एक मंडप और कई गुहा मंदिर भी दिखाई पड़ते हैं। पहले दुर्ग के चारों ओर एक खाई थी और परकोटा खिंचा हुआ था। खाई अब भर दी गई है। भीतर एक चट्टान पर भूतेश्वर शिव और गणेश के मंदिर स्थित हैं। चट्टान के दक्षिण में नवाब का महल है, जिसे 17वीं शती में चोकानायक ने बनवाया था। चट्टान और मुख्य प्रवेश द्वार के बीच में 'तेघकुलम्' या 'नौका सरोवर' है। गणपति मंदिर दुर्ग से 2 फलांग दूर है। अभिलेखों में त्रिचनापल्ली का एक नाम 'निचुलपर' भी मिलता है।

मदुरई (Madurai) (तमिलनाडु): चेन्नई से 465 किमी दूर स्थित मदुरई या मदुरै भारत के तमिलनाडु राज्य के मदुरई ज़िले में स्थित एक नगर है और उस ज़िले का मुख्यालय भी है। यह भारतीय प्रायद्वीप के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक है। इस शहर को अपने प्राचीन मंदिरों के लिये जाना जाता है। मदुरा = मदुरै (मद्रास) (AS, p.704) प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में इस नगर को दक्षिण मधुर (उत्तर मधुर = मथुरा) कहा गया है. जैन ग्रंथों में मदुरा को पांड्य देश की राजधानी बताया गया है। (देखें बी. सा. लॉ- सम जैन कैनॉनिकल सूत्राज,पृ. 52). प्राचीन पांड्य देश की राजधानी होने के कारण ही शायद इस नगरी को दक्षिण मधुरा कहते थे क्योंकि पांड्य नरेश का संबंध पांडवों की किसी शाखा से बताया जाता है और पांडवों का, अपने मित्र क़ृष्ण की नगरी मथुरा (=मधुरा) से संबंध सुविदित है। यह नगर वैगा नदी के तट पर बसा है। वैसे तो मदुरा नगरी बहुत प्राचीन है किंतु यहां का प्रसिद्ध मीनाक्षी-मंदिर तथा अन्य स्मारक 16 वीं -17वीं शतियों में ही बने थे। इन्हें मदुरा नरेश तिरुमलाई नायक तथा उसके वंशजों बनवाया था। मीनाक्षी का मंदिर 845 फुट लंबा और 725 फुट चौड़ा है। इसका बाह्य परकोटा लगभग 21 फुट ऊंचा है। इसके चारों कोनों पर 11 मंजिल और 11 कलश वाले भव्य गोपुर हैं इनमें से एक 152 फुट ऊंचा और 105 फुट चौड़ा है इन विशाल गोपुरों के अतिरिक्त स्थान-स्थान पर पांच छोटे गोपुर भी हैं। मंदिर के दो भाग हैं। दक्षिणी भाग में मीनाक्षी का मंदिर पत्थर का बना है। इसमें भव्य स्थापत्य और सूक्ष्मशिल्प के एकत्र ही दर्शन होते हैं। मधुरा सती के बावन पीठों मंत से है और सती की आंख का प्रतीक माना जाता है। मीनाक्षी नाम का आधार भी संभवत: यही तथ्य है।

तिरूनेलवेली (Tirunelveli): चेन्नई से 465 किमी दूर स्थित (Tirunelveli) भारत के तमिल नाडु राज्य के तिरूनेलवेली ज़िले में स्थित एक नगर है। यह उस ज़िले का मुख्यालय भी है। तिरुनेलवेली (AS, p.401) बालीश्वर या कृष्णपुर के मंदिर के कारण प्रसिद्ध है। मंदिर में कामदेव की पत्नी रति की मानव आकार मूर्ति के रूप में श्रांगारिक भावों का सुकुमार चित्रण है। मंदिर के प्रांगण की भित्ति के नीचे एक छोटी सरिता बहती है।


Kanniyakumari district map

17.12.2007: सुबह 6.10 बजे हम कन्याकुमारी जिले के मुख्यालय नगरकोइल पहुँच गए। यहाँ स्टेशन पर हमें लेने के लिए वन मंडल अधिकारी ......ने स्टाफ के साथ वाहन भेज दिया था। वन विश्राम गृह में रुकने की व्यवस्था थी। तैयार होकर नाश्ता किया और निकल पड़े कन्याकुमारी जिले के पर्यटन स्थलों को देखने के लिए।सबसे पहले नगरकोइल से उत्तर पश्चिम में तिरुअनंतपुरम जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित उदयगिरी किला और बायोडायवर्सिटी पार्क पहुँचे।

उदयगिरी किला और बायोडायवर्सिटी पार्क: सबसे पहले उदयगिरी किला देखा। तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में स्थित उदयगिरि दुर्ग, तिरुअनंतपुरम-नगरकोइल राष्ट्रीय राजमार्ग पर नगरकोइल से 14 किमी दूरी पर पुलियूरकुरिचि (Puliyoorkurichi) नामक स्थान पर स्थित है। त्रावणकोर के शासकों का यह सबसे महत्व का दुर्ग था, जब पद्मनाभपुरम (Padmanabhapuram) उनकी राजधानी थी। कन्याकुमारी से 34 किमी दूर यह किला राजा मरतड वर्मा द्वारा 1729-1758 ई. दौरान बनवाया गया था। इसी किले में राजा के विश्वसनीय यूरोपियन दोस्त जनरल डी लिनोय (De Lannoy) और उनकी पत्नी की समाधि भी है। अब इसको बायोडायवर्सिटी पार्क में बदल दिया गया और प्रबंधन वन विभाग द्वारा किया जा रहा है। बहुत सुंदर पर्यटन स्थल है। यहाँ नाव चलाने के लिए सुंदर झील है। यहाँ 13 प्रजाति के वन्य प्राणी, 50 तरह के पक्षी और 60 प्रजाति वृक्षों की देखी जा सकती है। किले में एक गुप्त सुरंग भी है जिसकी खोज आर्कियोलोजी विभाग द्वारा हाल में ही की गई है। किले के ऊपर से वेस्टर्न घाट के सुंदर वनों और पर्वतों का मनोरम दृश्य दिखाई देता है।

Gallery of Images of Udayagiri Fort & Bio-diversity park, Kanyakumari
Suchindram Temple, Kanyakumari

सुचीन्द्रम मंदिर (Suchindram Temple)

वन विश्राम गृह नगरकोइल लौटकर लंच लिया और दोपहर बाद हम टेक्सी से कन्याकुमारी के लिए रवाना हुये। रास्ते में सुचीन्द्रम का मंदिर देखा. सुचीन्द्रम एक छोटा-सा गांव है जो कन्याकुमारी से लगभग 12 किमी पहले स्थित है। यहां का थानुमलायन मंदिर काफी प्रसिद्ध है। मंदिर के मुख्य देवता भगवान शिव, विष्णु और ब्रह्मा को एक ही रूप में स्तरनुमल्याम कहा जाता है। स्तरनुमल्याम तीन देवताओं को दर्शाता है जिसमें ‘स्तानु’ का अर्थ ‘शिव’ है, ‘माल’ का अर्थ ‘विष्णु’ है और ‘आयन’ का अर्थ ‘ब्रह्मा’ है। यह भारत के उन मंदिरों में से एक है जिसमें त्रीमूर्ति व तीनों देवताओं की पूजा एक मंदिर में की जाती है। यह मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है. मंदिर में स्‍थापित हनुमान की छह मीटर की उंची मूर्ति काफी आकर्षक है। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश जोकि इस ब्रह्मांड के रचयिता समझे जाते है उनकी मूर्ति स्‍थापित है। यह मंदिर सात मंजिला है जिसका सफेद गोपुरम काफी दूर से दिखाई देता है। इस मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में किया गया था।

सुचीन्द्रम से रवाना होकर करीब 3.15 बजे कन्याकुमारी स्थित विवेकानंद रॉक मेमोरियल पहुँचे। यह समुद्र के अंदर स्थित है। यहाँ जाने के लिए नाव से जाना पड़ता है। समस्या अब यह हुई कि श्रीमती गोमती बुरड़क नाव में बैठने से डरती हैं। उन्होने कहा कि मैं तो नाव में नहीं बैठूंगी आप अकेले चले जाओ। मैंने सोचा यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण होगा कि पृथ्वी के अंत में स्थित इस महत्वपूर्ण स्मारक को देखने से वंचित रह जाएँगी। टिकट तो पहले ले लिया था और श्रीमती जी को बताया आओ यहाँ से घुस कर नाव को अंदर से देखतो लो, इसके लिए वह तैयार हो गई। नाव के अंदर घुस कर राउंड लिया इतने में नाव रवाना हो गई। तब श्रीमती बुरड़क बोली कि इसमें तो डर जैसी कोई बात नहीं। 10 मिनट में हम विवेकानंद रॉक मेमोरियल पहुँच गए।

Vivekananda Rock Memorial, Kanyakumari

विवेकानंद रॉक मेमोरियल (Vivekananda Rock Memorial) : विवेकानन्द रॉक मेमोरियल तमिलनाडु के कन्याकुमारी शहर में स्थित प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। समुद्र में मुख्य द्वीप से लगभग 500 मीटर की दूरी पर बने इस स्थान पर बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। सन 1892 में स्वामी विवेकानंद कन्याकुमारी आए थे। इसी स्थान पर स्वामी विवेकानंद गहन ध्यान लगाया था। स्वामी विवेकानंद के अमर संदेशों को साकार रूप देने के लिए ही 1970 में उस विशाल शिला पर एक भव्य स्मृति भवन का निर्माण किया गया। स्मारक भवन का मुख्य द्वार अत्यंत सुंदर है। यहाँ एक बहुत अच्छी लायब्रेरी है जिसमें स्वामी विवेकानन्द से संबंधित अच्छा साहित्य मिलता है। हमने भी कुछ पुस्तकें खरीदी।

Thiruvalluvar Statue

तिरूवल्लुवर मूर्ति (Thiruvalluvar Statue): विवेकानंद रॉक मेमोरियल देखने के बाद हम तिरूवल्लुवर मूर्ति देखने गए. तिरुक्कुरुल की रचना करने वाले अमर तमिल कवि तिरूवल्लुवर की यह प्रतिमा पर्यटकों को बहुत लुभाती है। 38 फीट ऊंचे आधार पर बनी यह प्रतिमा 95 फीट की है। इस प्रतिमा की कुल उंचाई 133 फीट है और इसका वजन 2000 टन है। इस प्रतिमा को बनाने में कुल 1283 पत्थर के टुकड़ों का उपयोग किया गया था।

होटल तमिलनाडू (Hotel Tamilnadu) : रॉक मेमोरियल और तिरूवल्लुवर मूर्ति देख कर लौटते समय एक होटल में चाय पी। पास ही एक राजस्थानी भोजनालय दिखा। हमने तय किया कि रात का राजस्थानी खाना यहीं खाएँगे। घूमते हुये होटल तमिलनाडू (Hotel Tamilnadu) पहुँच गए। रात को हमारे रुकने की व्यवस्था तमिलनाडू पर्यटन विकास निगम के होटल तमिलनाडू में थी। यह बहुत अच्छी जगह पर स्थित होटल है और सुविधाएँ भी अच्छी हैं। होटल तमिलनाडू पहुँचे तो याद आया कि जिस होटल में चाय पीकर निकले थे पुस्तकें हम वहीं भूल गए थे। श्रीमती बुरड़क ने कहा कि अभी वापस जाकर पुस्तकें ले आओ नहीं तो कोई और ले जाएगा। मैंने बताया कि पुस्तकें उठाने में शायद ही किसी की रुचि होती है। रात को खाने पर जायेंगे तब ले लेंगे। हुआ भी ऐसा ही जब रात को दुबारा गए और मैनेजर को पुस्तकों के बारे में पूछा तो बताया कि टेबल के नीचे दराज में रखी हैं।

Sunset Point, Kovalam, Kanyakumari

कन्याकुमारी का सूर्यास्त बहुत सुंदर दिखाई देता है. सूर्यास्त देखने के लिए कोवलम सूर्यास्त बिन्दु ( Sunset Point, Kanyakumari, Kovalam) पर गए। इस समय यहाँ बहुत पर्यटक आते हैं और अच्छा नजारा दिखता है। सूर्यास्त का आनंद लेकर रात्री विश्राम के लिए होटल तमिलनाडू पहुँच गए।

रात का डिनर लेने के लिए हम राजस्थानी भोजनालय गए। राजस्थानी खाना अच्छा था। सर्विस भी अच्छी थी। तभी एक बैरे ने पूछा कि आप राजस्थान में कहांके रहने वाले हैं। हमने बताया चुरू जिले से हैं। बैरा एक युवा लड़का ही था और वह बड़ा खुश हुआ, बोला साहब मुझे लग रहा था कि आप जरूर चुरू के ही हैं। आपकी टोन से मुझे अभाष हो गया था। उसने बताया कि वह भी चूरू का ही रहने वाला है, वह राठोड़ है। गर्मी और शरदियों की छुट्टियों में यहाँ आ जाता है और कुछ कमाई कर लेता है जिससे उसकी पढ़ाई में सहायता मिल जाती है। उसने सुबह नाश्ते पर आमंत्रित किया और बोला कि आपको शुद्ध राजस्थानी दहि-पराठे का विशेष नाश्ता कराऊंगा।

18.12.2007: सुबह 7 बजे हम होटल तमिलनाडू से चेक आउट कर कन्याकुमारी भ्रमण पर निकल पड़े. वादे के अनुसार हम सुबह नाश्ते पर राजस्थानी होटल गए. वहाँ नए बने राजस्थानी मित्रा राठोड़ ने दहि-पराठा-मिर्च की चटनी का स्वादिष्ट नाश्ता कराया। पृथ्वी के अंतिम छोर पर ऐसा देशी नाश्ता और प्रेम पाकर हमारी खुशी का ठिकाना न रहा। नाश्ते की सुगंध ही इतनी अच्छी थी कि बगल में बैठे अन्य लोगों ने भी दहि-पराठे की माँग की परंतु उनको बताया गया कि यह नाश्ता तो विशेष आदेश पर बनाया गया है।

यहाँ से हम कुमारीदेवी का मंदिर देखने निकले। मंदिर में कुमारीदेवी के दर्शन के लिए बहुत लंबी लाइन लगी थी। हम सोच रहे थे कि यदि बहुत ज्यादा समय लाइन में लग जाएगा तो मंदिर में दर्शन करने से वंचित ही रहना पड़ेगा क्योंकि आगे समय की लिमिट थी। तभी कोई एक व्यक्ति हमारे पास आया और कहा कि 50 रुपये दो तो आपको जल्दी दर्शन करा सकता हूँ। हमने तुरंत दिये और वह व्यक्ति तमिल में कुछ कहता हुआ हमें बहुत आगे ले गया और जल्दी से दर्शन करके लौट आए।

कुमारीदेवी का मंदिर (Kumari Devi Temple): इस मंदिर को स्थानीय लोग कन्याकुमारी अम्मन मंदिर नाम से पुकारते हैं। सागर के मुहाने के दाईं ओर स्थित यह एक छोटा सा मंदिर है जो पार्वती को समर्पित है। मंदिर तीनों समुद्रों के संगम स्थल पर बना हुआ है। भारत के 51 शक्ति पीठों में कन्याकुमारी भी एक है। मंदिर का स्थापत्य लगभग 3000 वर्ष पुराना है परंतु इतिहास के अनुसार वर्तमान मंदिर आठवीं शताब्दी में पांड्य सम्राटों ने बनवाया था। चोला, चेरा, वेनाड और नायक राजवंशों के शासन के दौरान समय-समय पर इसका पुनर्निर्माण हुआ है। अंदर से मंदिर की बनावट भूल भुलैया सी है। माता के कुमारी रूप के पीछे बाणासुरऔर शिव से जुड़ी एक रोचक कहानी है। कुमारी देवी मन से शिव को पति रूप में चाहती थी। बाणासुर ने मौका देखकर इस सुंदर कन्या से जबरन विवाह करना चाहा। देवी ने बाणासुर से युद्ध किया जिसमें बाणासुर मारा गया। देवी आजन्म अविवाहित रही और बड़ी कुशलता से दक्षिण का अपना राज्य संभालने लगी। कन्याकुमारी जिले का नाम देवी कन्याकुमारी के नाम पर ही रखा गया है।

कुमारीदेवी का मंदिर देखने के बाद हम वापस नगरकोइल के लिए रवाना हुये जो यहाँ से 20 किमी है. करीब 10.30 बजे नगरकोइल पहुँच गए। हमारी ट्रेन यहाँ से दोपहर 13.30 बजे थी। इस समय का उपयोग हमने नगरकोइल के ऐतिहासिक नागराज मंदिर को देखने का निर्णय लिया। यह मंदिर नागनागराज (वासुकि) को समर्पित है।

नागराज मंदिर, नागरकोविल: कन्याकुमारी से 20 किमी दूर उत्तर-पश्चिम में स्थित कन्याकुमारी जिले के मुख्यालय नागरकोविल का नागराज मंदिर नागराज वासुकी को समर्पित है। यह मंदिर राज्य के चुनिंदा सबसे प्रसिद्ध और अद्भुत मंदिरों में गिना जाता है। तमिल भाषा में "कोविल" का अर्थ "मंदिर" होता है। "नागर" शब्द "नाग" से उत्पन्न हुआ है। "नागरकोविल" का अर्थ "नाग मंदिर" है। मूल मंदिर नागराज का है. इसके साथ ही लगा हुआ अनंतकृष्ण का मंदिर है जहाँ कृष्ण को बालरूप में रुक्मिणी और सत्यभामा के साथ सर्प के कुंडली पर नाचते हुये दिखाया गया है। यहाँ तीसरा मंदिर शिव को समर्पित है। प्रसाद के रूप में नागराज मंदिर में जहाँ नागराज की मूर्ति स्थापित है वहाँ की रेत दी जाती है। मंदिर के बगीचे में नाग फूल (Couroupita guianensis) नाम का वृक्ष है जो नागराज को प्रदर्शित करता है।

डॉ नवल वियोगी (Nagas the Ancient Rulers of India, p.32,34,35) ने लेख किया है कि श्रीलंका और मलाबार भू-भाग पर प्राचीन काल में नागवंशी लोगों का राज्य था। तमिल साहित्य में प्रथम सदी ई. में नाग-नाडु अर्थात 'नागाओं का देश' का उल्लेख बार-बार मिलता है। अभी भी मलाबार-कोस्ट में सबसे ज्यादा नाग-उपासना के केंद्र मिलते हैं। प्रागैतिहासिक काल से ही दक्षिण भारत के लोग नाग के उपासक रहे हैं. दक्षिण भारत के केरा, चेरा, सेरा या सेराय लोग नागकी पूजा करते हैं। द्रविड़ भाषाओं में इन शब्दों का अर्थ सर्प या नाग होता है। दक्षिण के द्रविड़ लोग असुर या नागवंश मूल के हैं। नगरकोइल का नागराज मंदिर इस दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है।

दोपहर वन विश्राम गृह नगरकोइल में लंच लिया और वहीं से 13.30 बजे 6336 Gandhidham Exp से गोवा के लिए रवाना हुये।

Gallery of Images of Nagaraja Temple, Nagercoil, Kanyakumari


अलविदा तमिलनाडु: दक्षिण भारत की हमारी यात्रा कन्याकुमारी के भ्रमण के साथ ही समाप्त हो जाती है। दक्षिण भारत की अद्भुत जैव-विविधता, अद्वीतीय प्राकृतिक सुंदरता, अमूल्य प्राचीन ऐतिहासिक अवशेष, द्रविडियन भाषा, संस्कृति, दर्शन तथा साहित्य को जानना देखना और समझना काफी रुचिकर लगा। विश्व के अद्वितीय मंदिरों की स्मृद्धि और उनकी आर्किटेक्चर अनुपम है। यहां की भोजन शैली की विविधता, लोगों की शिष्टता और कर्तव्य परायणता अनुकरणीय है।

Source: Facebook Post of Laxman Burdak Dated 16.4.2021

कन्याकुमारी भ्रमण की चित्र गैलरी
Gallery of Images of Udayagiri Fort & Bio-diversity park, Kanyakumari


Gallery of Images of Kanyakumari
Gallery of Images of Nagaraja Temple, Nagercoil, Kanyakumari

गोवा भ्रमण: दक्षिण भारत की यात्रा भाग-4

नागरकोइल - गोवा यात्रा (18-19.12.2007)
Map of Kerala

19.12.2007: नागरकोइल (तमिलनाडू) से दोपहर 13.30 बजे 6336 Gandhidham Exp से गोवा के लिए रवाना हुये।

20.12.2007: सुबह 10.45 बजे हम गोवा की रेल्वे स्टेशन मडगांव पहुँच गए। नागरकोइल से गोवा के रास्ते में पड़ने वाले स्टेशनों का विवरण इस प्रकार है:

Nagercoil (13.30) (TN) → Trivandrum (15:05) (Kerala) → Kollam (16:15) → Chengannur (17:13) → Tiruvalla (17:23) → Kottayam (18:20) → Ernakulam (19:55) → Aluva (20:20) → Thrisur (21:20) → Shoranur (22:15) → Pattambi (22:39) → Kuttippuram (22:59) → Tirur (23:19) → Parpanangadi (23:39) → Ferok (23:57) → Kozhikode (00:25) → Quilandi (00:54) → Thalassery (1:43) → Kannur (2:15) → Kannapuram (2:33) → Payyanur (2:53) → Kasaragod (3:58) → Mangalore (4:55) (Karnataka) → Surathkal (5:40) → Udupi (6:21) → Kundapura (6:49) → Mookambika road (7:22) → Murdeshwar (7:48) → Kumta (8:31) → Karwar (9:29) → Cancona (9:59) (Goa) → Margao (10:45)

नागरकोइल से गोवा की रेल यात्रा अरब सागर समुद्र के किनारे-किनारे है। पहले पूरा केरल प्रांत पार करते हैं और फिर कर्नाटक प्रांत के पश्चिमी भाग होते हुये गोवा में प्रवेश करते हैं। इस यात्रा में इन प्रांतों का भूगोल और जनजीवन समझने का अच्छा अवसर मिलता है। इस रास्ते में कई प्राचीन प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान पड़ते हैं। रास्ते के इन ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण शहरों का परिचय यहाँ दिया जा रहा है।

नगरकोइल (तमिलनाडू) से रवाना होकर अगला स्टेशन केरल प्रांत का त्रिवेन्द्रम् स्टेशन पड़ता है। इसको आजकल तिरुअनंतपुरम् बोलते हैं जो केरल की राजधानी है।

त्रिवेंद्रम (केरल) (AS, p.418) (केरल): तिरुवांकुर (ट्रावनकोर) की भूतपूर्व राजधानी है। 18 वीं सदी में राजा मार्तंड वर्मा ने केरल देश की सीमाएं विस्तृत करने के पश्चात इस नगर में अपनी राजधानी स्थापित की थी। इस नगर के अधिष्ठातृ-देव पद्मनाथ को उन्होंने अपना राज्य समर्पण कर दिया था तथा स्वयं देवता के प्रतिनिधि के रूप में राज्य करते थे। यहां पद्मनाथ विष्णु का विशाल मंदिर है। उन्हें अनंतस्वामी भी कहते हैं। जान पड़ता है कि तिरुविंदम् या त्रिवेंद्रम तिरुअनंतपुरम् का ही रूपांतर है।

वर्कला (Varkala) (केरल) (AS, p.835): त्रिवेन्द्रम शहर से 51 किमी की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है। यहाँ समुद्र तट पर एक पहाड़ी के ऊपर जनार्दन विष्णु का एक प्राचीन मंदिर है, जिसके विषय में किंवदंती है कि 16वीं शती में हालैंड के एक दुर्घटनाग्रस्त जलयान चालक ने आपत्ति से छुटकारा मिलने पर इस मंदिर को कृतज्ञतास्वरूप अपने जलयान के घंटे का दान दे दिया था। इस मंदिर के पुरोहित की प्रार्थना से अवरुद्ध वायु चलने लगी और समुद्र में फंसे हुए जलयान की यात्रा संभव हो सकी।

कोलम (Kollam) (केरल) (AS, p.237) : क्विलन (केरल) (AS, p.192) प्राचीन नाम कोलम। यह त्रिवेंद्रम से लगभग 70 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह प्राचीन नगर और बंदरगाह है। यह पुराने जमाने में दक्षिण भारत के इस क्षेत्र और समुद्र पार से पश्चिमी देशों के बीच होने वाले व्यापार का प्रमुख केंद्र था। बहुत प्राचीन समय में ही इस नगर का व्यापार पश्चिमी देशों के साथ प्रारंभ हो गया था, जिनमें फ़िनीशिया, ईरान, अरब, यूनान, रोम और चीन आदि मुख्य हैं। 'तांग' राज्य काल में चीनियों ने क्विलन में अनेक व्यापारिक बस्तियाँ स्थापित की थीं। क्विलन का एक प्राचीन नाम कोलम भी था। सम्भवत: कोलम के प्राचीन नाम 'कोलगिरि', 'कोलाचल' और 'कोल्लक' आदि हैं, जिनका उल्लेख महाभारत, सभापर्व में हुआ है।

कोट्टायम (Kottayam) (केरल): त्रिवेन्द्रम शहर से 147 किमी की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है। कोट्टायम का मलयालम में अर्थ है कोट्ट (किला) + अयम (भीतर). कोट्टनर (AS, p.232) का उल्लेख प्राचीन रोम के इतिहास लेखक 'प्लिनी' ने किया है। उसने भारत के सुदूर दक्षिण के इस प्रदेश का उल्लेख करते हुए इसे 'काली मिर्च' का समुद्र तट कहा है, क्योंकि रोम साम्राज्य से जो व्यापार भारत के साथ ई. सन के प्रारंभिक काल से होता था, उसमें काली मिर्च प्रमुख पण्य वस्तु थी। कोट्टनर के प्रदेश में काली मिर्च बड़ी प्रचुरता से उत्पन्न होती थी। विंसेंट स्मिथ के मत में कोट्टनर, केरल राज्य में स्थित वर्तमान 'कोट्टायम' और 'क्विलन' का इलाका रहा होगा। (अर्ली हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया, पृ. 476.)

अर्नाकुलम (Ernakulam) (केरल) (AS, p.40): त्रिवेन्द्रम शहर से 220 किमी की दूरी पर उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित है। प्राचीन कोचीन नरेशों की राजधानी थी। इन्होंने पूर्णात्रयों अथवा वर्तमान त्रिपुणित्तुरै नामक स्थान पर राजप्रासाद बनवाए थे। यह अर्नाकुलम नगर से 6 मील दूर है।

अलुवा (Aluva) (केरल) : त्रिवेन्द्रम शहर से 230 किमी की दूरी पर उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित है। एरणाकुलम जिले में एक नगरीय निकाय है। यह कोच्चि से लगभग 15 किमी की दूरी पर है। अलुवा राज्य का एक प्रमुख औद्योगिक केन्द्र है। इसको प्राचीन काल में अलवाई (AS, p.43) नाम से जाना जाता था जो भारत के केरल राज्य में बहने वाली परियार नदी के तट पर एक छोटा-सा क़स्बा और रेल स्टेशन है। यह कस्बा अद्वैतवाद के प्रचारक और महान् दार्शनिक शंकराचार्य (9 वीं शती ई.) का जन्मस्थान माना जाता है।


त्रिस्सूर (Thrissur) (केरल): त्रिवेन्द्रम शहर से 300 किमी की दूरी पर उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित है। त्रिस्सूर केरल के सांस्कृतिक राजधानी के नाम से भी जाना जाता है। इसे पहले त्रिचूर के नाम से जाना जाता था। त्रिचूर (केरल) (AS, p.416) कोचीन का एक बड़ा नगर है। त्रिचूर वेदक्कनाथ के प्रसिद्ध प्राचीन शिव मंदिर के चतुर्दिक बसा हुआ है। प्रशासनिक दृष्टि से यह त्रिस्सूर ज़िले का मुख्यालय है। इसका शाब्दिक अर्थ होता है "भगवान शिव का वासस्थान"। तृश्शूर का सन्धिविच्छेद है: तृश्शूर = तिरु + शिव + ऊर। तिरु एक तमिल आदरसूचक शब्द है (जैसे कि - तिरुचिरापल्ली, तिरुपति, तिरुवल्लुवर) जिसका हिन्दी समानान्तर है श्री (जैसे - श्रीमान, श्रीकाकुलम्, श्रीनगर, श्रीविष्णु इत्यादि)। ऊर का मतलब होता है पुर। तृश्शूर श्री शिव के मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है।

काजीकोड (Kozhikode) (केरल): त्रिवेन्द्रम शहर से 390 किमी की दूरी पर उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित काजीकोड या कोड़िकोड शहर पहले कालीकट (Calicut) कहलाता था। कालीकट (AS, p.182) पश्चिमी समुद्र तट पर प्राचीन बंदरगाह था. 1498 ई. में पुर्तगालियों के जहाज का कप्तान वास्कोडिगामा पहले पहल इसी नगर में पहुंचा था। किंवदंती है कि कालीकट नाम कोल्लीकोंडे शब्द का रूपांतर है, जिसका अर्थ है कुक्कुट-दुर्ग। यहां के राजा ने अपने एक सरदार को इतनी दूर तक भूमि जागीर में दी थी जिसमें कुक्कुट का शब्द सुनाई दे सके। इसी भूमि पर जो किला बना उसे कोल्लीकोंडे नाम दिया गया।

भारत के केरल राज्य के कोड़िकोड ज़िले में अरब सागर के तट पर स्थित एक नगर है। यह उस ज़िले का मुख्यालय भी है। शहर के पूर्व में वायनाड की पहाड़ियाँ हैं, जो पश्चिमी घाट का भाग हैं। कोड़िकोड का प्रारंभिक इतिहास स्पष्ट नहीं है। प्रागैतिहासिक काल की पत्थरों की गुफाएं यहां प्राप्त हुई हैं। संगम युग में यह जिला चेरा प्रशासन के अधीन था। उस समय यह स्थान व्यापारिक गतिविधियों का केन्द्र था। कोड़िकोड का अस्तित्व तेरहवीं शताब्दी में उभरकर सामने आया। इरनाड के राजा उदयावर ने कोड़िकोड और पोन्नियंकर के आसपास का क्षेत्र जीतकर एक किला बनवाया जिसे वेलापुरम कहा गया। 1498 ई. में पुर्तगाली नाविक वास्कोडिगामा ने अपने दल के साथ यहां सर्वप्रथम प्रवेश किया। समुद्री मार्ग से आने वाला वह पहला यूरोप वासी था। उसके बाद डच, फ्रेन्च और ब्रिटिश लोगों का यहां आगमन हुआ। आगे चलकर यह स्थान शक्तिशाली जमोरिन साम्राज्य की राजधानी बनी। 1956 में केरल का राज्य के रूप में गठन हुआ और आगे चलकर कोड़िकोड राज्य की व्यापारिक गतिविधियों का केन्द्र बना।

कन्नूर (Kannur) (केरल): त्रिवेन्द्रम शहर से 470 किमी की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित केरल राज्य के कन्नूर ज़िले में स्थित एक नगर है। प्राचीन काल में यह शहर कई नामों से जाना जाता था यथा: कण्णनूर, क्रंगनौर, मुरचीपत्तन आदि। कन्नूर अरब सागर से तटवर्ती है। पर्यटकों को कन्नूर काफी रास आता है। प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण इस नगर के पश्चिमी तट पर फैले रेत को लक्षद्वीप सागर चूमता है और तट के दूसरी तरफ ऊंचे-ऊंचे ताड़ के पेड़ वातावरण को और मनोरम बनाते हैं। सांस्कृतिक विरासत और कला से संपन्न इस नगर से अनेक किस्से जुड़े हुए हैं। माना जाता है कि राजा सोलोमन का जहाज मंदिर बनवाने हेतु लकड़ियां एकत्रित करने यहीं आया था। यहां की थय्यम नृत्य परंपरा विश्व प्रसिद्ध है। अतीत की याद दिलाती यहां की अनेक इमारतें जैसे मस्जिद, मंदिर और चर्च अपनी कहानी स्वयं कहते प्रतीत होते हैं। कण्णनूर (AS, p.129) का उल्लेखनीय स्मारक सेंट एंजिलो का दुर्ग (St. Angelo Fort) अंग्रेजी राज्य के प्रारंभिक काल का अवशेष है। कण्णनूर में उसी समय की बनी बारक (बैरक) तथा बारूद भरने के कोष्ठ अभी तक विद्यमान हैं। कन्नूर किले के रूप में विख्यात इस किले का निर्माण 1505 ई. में प्रथम पुर्तगाली वायसराय डॉन फ्रांसिसको डी अलमीडा (Dom Francisco de Almeida) द्वारा बनवाया गया था। पुर्तगालियों के बाद इस किले पर डचों को नियंत्रण हो गया, उसके बाद अंग्रेजों ने इस पर अधिकार कर लिया। मालाबार में अंग्रेजों का यह प्रमुख सैन्य ठिकाना था। वर्तमान में यह किला भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के अधीन है और यहां से मप्पिला बे फिशिंग हार्बर के सुंदर दृश्य देखे जा सकते हैं। यह किला कन्नूर से 3 किलोमीटर की दूरी पर है।

क्रंगनौर (केरल) (AS, p.246) परियार नदी के तट पर बसा हुआ प्राचीन बंदरगाह जिसे रोम के लेखकों ने मुजीरिस कहा है। ई. सन के प्रारंभिक काल में यह समुद्र-पत्तन दक्षिण भारत और और रोम साम्राज्य के बीच होने वाले व्यापार का केंद्र था। इसका एक नाम मरीचीपत्तन या मुरचीपत्तन भी था जिसका अर्थ है 'काली मिर्च का बंदरगाह'। मुजिरिस शब्द इसी का रोमीय रूपांतर जान पड़ता है। मुरचीपत्तन का उल्लेख महाभारत 2,31,68 में है। इस बंदरगाह से काली मिर्च का प्रचुर मात्रा में निर्यात होता था।

ईजीमाला (Ezhimala) (केरल): त्रिवेन्द्रम शहर से 500 किमी की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित केरल राज्य के कन्नूर ज़िले में पय्यन्नूर के पास स्थित ईजीमाला पहाड़ियां और बीच कन्नूर की उत्तरी सीमा पर स्थित है। कन्नूर से 50 किलोमीटर दूर इन पहाड़ियों में दुर्लभ जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं। यहां माउंट देली लाइटहाउस भी बना हुआ है जिसकी देखभाल नौसेना द्वारा की जाती है। लाइटहाउस प्रतिबंधित क्षेत्र में है और सैलानियों को यहां जाना मना है। यहां के बीच की रेत अन्य बीचों से अलग है, साथ ही यहां का पानी अन्य स्थानों से अधिक नीला है। यहां की एट्टीकुलम खाड़ी में डॉल्फिनों को देखा जा सकता है। ईजीमाला में इंडियन नेवल अकेडमी है जहाँ इंडियन नेवल और कोस्ट गार्ड अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाता है।

पय्यन्नूर (Payyannur) (केरल): त्रिवेन्द्रम शहर से 521 किमी की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित केरल राज्य के कन्नूर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह पेरुंबा नदी के तट स्थित है. पय्यन्नूर का अर्थ है 'पय्यन का नगर'. 'पय्यन' कार्तिकेय को कहते हैं जो शिव और पार्वती के पुत्र थे। यह एक प्राचीन सभ्यता का नगर है जिसका उल्लेख अनेक यात्रियों ने किया है। इब्न-बतूता 1342 ई. में ईजीमाला आए थे और एक बड़े बंदरगाह के बारे में लिखा है। Abul Fida 1273 ई. में, Marco Polo 1293 ई. में , इटली के यात्री निकोलो दे कोंटी (Niccolò de' Conti) 15 वीं सदी में, पुर्तगाली स्कॉलर और यात्री Barbosa आदि ईजीमाला ने बंदरगाह की यात्रा की और इसका विस्तृत विवरण दिया है। उस समय यह हेली (Heli) नाम से जाना जाता था। निकोलो दे कोंटी (1395-1474) एक इतालवी देशाटक और अन्वेषी था जो मध्य युग में मुस्लिम व्यापारी के वेष में इटली से लेकर भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया और संभवतः चीन तक का भ्रमण किया।

मंगलूरु (Mangalore) (कर्नाटक): त्रिवेन्द्रम शहर से 625 किमी की दूरी पर उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित शहर जिसे मंगलूर और मैंगलोर भी कहा जाता है। यह भारत के कर्नाटक राज्य के दक्षिण कन्नड़ ज़िले में अरब सागर के तट पर स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय है और कर्नाटक के महत्वपूर्ण शहरों में गिना जाता है। शहर के उत्तर में गुरुपुर नदी (Gurupura River) और दक्षिण में नेत्रवती नदी पूर्व से आकर गुज़रती हैं और सागर में विलय होती हैं। शहर के पूर्व में पश्चिमी घाट की पहाड़ियाँ हैं। अरब सागर और पश्चिमी घाट के बीच बसा मंगलौर सदियों से वाणिज्यिक गतिविधियों का केन्द्र रहा है। कर्नाटक की नेत्रावती और गुरूपुरा नदियों के संगम स्थल पर बसा मंगलौर कर्नाटक के दक्षिण पश्चिमी तट पर स्थित है। मंगलौर को प्राचीन काल में नौरा नाम से भी जाना जाता था। मंगलौर नाम मंगला देवी मंदिर के नाम पर पड़ा। मंगलादेवी अलुपा राजवंश की कुलदेवी थीं। यह मंदिर केरल की राजकुमारी की याद में बनवाया गया था। मंगलादेवी मंदिर: इसी मंदिर के नाम पर इस शहर का नाम मंगलौर पड़ा। यह मंदिर शहर के मुख्य बस स्टैन्ड से 3 किलोमीटर दूर स्थित है। इस मंदिर को अट्टावर के बलाल वंश द्वारा केरल की राजकुमारी की याद में बनवाया गया था।

उडुपी (Udupi) (कर्नाटक): कर्नाटक राज्य में उडुपी ज़िले का मुख्यालय उडुपी है। त्रिवेन्द्रम शहर से 677 किमी की दूरी पर उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित ज़िला अरब सागर से तटस्थ है और मंगलूर से उत्तर में 55 किमी दूर पड़ता है। यहाँ प्रसिद्ध मणिपाल शैक्षणिक संस्थान हैं, जो शहर के आसपास फैला है । धार्मिक पंरपरा में द्वैत सिद्धांत का प्रवर्तन और कार्यभूमि यही नगरी रही है। यह जगह भगवान कृष्ण को समर्पित मंदिरों के लिए मुख्य रूप से प्रसिद्ध है। माना जाता है कि, भगवान शिव को समर्पित, येल्लूर के निकट स्थित, 1000 से अधिक साल पुराना एक अन्य मंदिर भी है। उडुपी कृष्ण मठ 13 वीं सदी में संत माधवाचार्य द्वारा स्थापित किया गया था। उडुपी में पर्यटन स्थल माल्पे के खूबसूरत समुद्र तट और येल्लूर श्री विश्वेश्वर मंदिर पास के अन्य रोचक स्थान हैं।

कारवार (कर्नाटक): कारवार उत्तर कन्नड़ जिले का मुख्यालय है और कर्नाटक राज्य में स्थित है। त्रिवेन्द्रम शहर से 876 किमी की दूरी पर उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित यह एक सागर तटीय क्षेत्र है और भारतीय प्रायद्वीप के पश्चिमी ओर गिरने वाली काली नदी के किनारे स्थित है। यह कस्बा कर्नाटक-गोवा सीमा से 15 किमी दूर, राजधानी बंगलुरु से 519 किमी उत्तर-पश्चिम में स्थित है। शहर में समानांतर एवं अवलम्ब कंक्रीट सड़कें हैं। करवर का सी-फूड भी प्रसिद्ध है। निकटवर्ती स्थानों में मगोड फॉल्स, होनवर, शिवगंगा फॉल्स, लालगुली फॉल्स, लशिंग्टन फॉल्स आदि देख सकते हैं। कारवार शहर में सुंदर समुद्र तट, खूबसूरत मंदिर और ऐतिहासिक स्थल बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। पर्यटन के लिहाज से यह बेहद खूबसूरत है। यहां जंगल, समुद्र तट और ऐतिहासिक इमारतों जैसे सभी आकर्षण उपलब्ध हैं।


गोवा भ्रमण (19.12.2007-21.12.2007)
Map of Goa

19.12.2007: सुबह 10.45 बजे हम गोवा की रेल्वे स्टेशन मड़गांव पहुँच गए। मड़गांव स्थित वन विश्राम गृह में मुख्य वन संरक्षक गोवा श्री ओंकार सिंह द्वारा हमारा रुकने का आरक्षण किया गया था। वन विश्राम गृह Deputy Conservator, Forest South Goa Division, Margao कार्यालय के ऊपर ही स्थित है। गोवा में स्थित कुछ स्थलों के ठीक-ठीक पहचान के लिए हमारे यूनियन टेरीटरी (UT) कैडर के बैच-मेट श्री शशि कुमार की सहायता ली गई जो गोवा में काफी समय तक पदस्थ रह चुके हैं।

मड़गांव: गोवा राज्य के दक्षिण गोवा ज़िले में स्थित एक नगर और ज़िले का मुख्यालय है। पणजी के बाद यह राज्य का दूसरा सबसे बड़ा कस्बा है। यह गोवा की व्यापारिक राजधानी एवं सर्वाधिक व्यस्त कस्बा है। एक छोटी सी बस्ती है, जो एक किलोमीटर के दायरे में होते हुए बहुत ही आकर्षक जगह है। इस जगह से दक्षिण गोवा के कई महत्त्वपूर्ण समुद्र तट निकट हैं जिस वजह से यहाँ पर्यटकों की भारी आमद देखी जा सकती है। मड़गाँव का प्राचीन नाम मठग्राम था जो अपभ्रंश होकर मठगाम और मड़गाँव हो गया। कभी यहां नौ मठ और मंदिर हुआ करते थे। पुर्तगाली आक्रमण के बाद इन सभी मठों को नष्ट कर दिया गया। यहां चर्च का निर्माण होने लगा। मड़गाँव को गोवा का व्यावसायिक और सांस्कृतिक राजधानी माना जाता है। मडगांव कोंकण रेलवे का लोकप्रिय रेलवे स्टेशन है। दक्षिण जाने वाली सभी ट्रेनें यहां रुकती हैं। इसलिए रेल कनेक्टविटी के लिहाज से यह गोवा का सबसे मुफीद शहर है।

कोलवा बीच (Colva Beach): दोपहर लंच के बाद बस से गोवा के तटों का भ्रमण करने निकले। मड़गांव से 8 किमी दूर कोलवा बीच) देखने गए। कोलवा बीच गोवा के कुछ बेहद खूबसूरत समुद्र तटों में गिना जाता है। उत्तरी गोवा के समुद्र तटों की तरह यहां भीड़-भाड़ नहीं होती है। सफेद रेत के किनारे लगे नारियल के ऊंचे-ऊंचे पेड़ों ने हमारा मन मोह लिया। सूर्यास्त के समय समुद्र किनारे टहलने के शानदार अनुभव को तो कभी भूलाया नहीं जा सकता।

बेनौलिम बीच (Benaulim Beach) : कोलवा से दक्षिण की तरफ करीब दो किमी आगे चलने पर यहाँ स्थित बेनौलिम समुद्र तट पहुँचे जहाँ पर बड़ी संख्या में स्थानीय लोग और पर्यटक घूमने आते हैं। गोआ के समुद्री किनारे बहुत सुकून देने वाले और हर उम्र के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यहाँ कुछ घंटे समुद्री तट की रेत और समुद्र की लहरों के साथ तफ़री करने के बाद रात को वापस मड़गांव आ गए।

20.12.2007: अगले दिन 20.12.2007 को सुबह बस द्वारा मड़गांव से पणजी गए।

पणजी: मड़गांव से पणजी दूरी लगभग 40 किमी है और यात्रा का समय 1.15 घंटा है। वास्को दा गामा रास्ते में बायें तरफ पड़ता है। यह एक सुहाना सफर होता है जब हम यहाँ की जमीनी हकीकतों को समझते हैं। स्थानीय जनजीवन और संस्कृति की झलक मिलती है। पहले हम पणजी में मीरामर बीच (Miramar Beach) गए।

मीरामर बीच (Miramar Beach): मीरामर का पुर्तगाली में अर्थ है समुद्र को निहारना। यहाँ से अरब सागर का अद्भुत और खूबसूरत नज़ारा देखने को मिलता है। स्थान की दृष्टि से गोवा का सबसे अच्छा बीच, मीरामर, राजधानी पणजी से केवल 3 कि.मी. दूर है। मीरामर बीच पर सुनहरी रेत पर नारियल के पेड़ों की कतारें लगी हैं। फिर पणजी शहर का भ्रमण किया।

मांडवी नदी: मांडवी नदी से अद्भुत नज़ारे देखने के लिए पणजी जेटी पर कुछ देर रुके। मांडवी नदी (AS, p.732) गोआ के निकट बहने वाली नदी है जो सह्याद्रि पर्वत से निस्तृत होकर अरब सागर में गिरती है।

पोरवोरिम: मांडवी नदी के उस पार उत्तर में पोरवोरिम उपनगर स्थित है जिसका अद्भुत नजारा देखा। पोरवोरिम (Porvorim) गोवा राज्य की वैधानिक राजधानी है। यह माण्डवी नदी के उत्तरी तट पर स्थित है। राज्य की प्रशासनिक राजधानी पणजी मांडोवी नदी के दूसरे तट पर स्थित है। पोरवोरिम को पणजी का उपनगर माना जाता है, और यह मुम्बई-गोआ एनएच-17 पर स्थित होने के कारण एक सम्भ्रान्त-वर्गीय आवासीय केन्द्र माना जाता है। पोरवोरिम, गोवा की राजधानी पणजी से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

दीवार: मांडवी नदी के ऊपर की तरफ 10 किमी दूरी पर दीवार नामक द्वीप स्थित है, जिसका पुराना नाम दीपवती (AS, p.439) था जो गोआ के उत्तर में स्थित है। अब इस द्वीप को दीवार नाम से जाना जाता है। यह पणजी के नज़दीक स्थित है। इस द्वीप का पौराणिक महत्त्व भी है। स्कंदपुराण 'सह्याद्रिखंड' में दीपवती द्वीप पर सप्त ऋषियों द्वारा शिव के मंदिर की स्थापना का उल्लेख है।


गोवा के महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों का विस्तृत विवरण आगे दिया गया है। अंत में गोवा का इतिहास और संक्षिप्त जानकारी भी दी गई है।

मडगाँव परिचय
Margao municipal building, Goa

साल्सेत गोवा राज्य के दक्षिण गोवा जिले की एक तालुक है। इसका प्रशासनिक मुख्यालय मडगांव है। स्थानीय मान्यता के अनुसार यह क्षेत्र, छियासठ गांवों के मिलकर बना है, इसीलिए इसका नाम साष्टी पड़ा है. पणजी के बाद मडगांव राज्य का दूसरा सबसे बड़ा कस्बा है। यह गोवा की व्यापारिक राजधानी एवं सर्वाधिक व्यस्त कस्बा है। एक छोटी सी बस्ती है, जो एक किलोमीटर के दायरे में होते हुए बहुत ही आकर्षक जगह है। इस जगह से दक्षिण गोवा के कई महत्त्वपूर्ण समुद्र तट निकट हैं जिस वजह से यहाँ पर्यटकों की भारी आमद देखी जा सकती है। प्रसिद्ध चर्चों और मंदिरों के अलावा एक बात और है जो इस जगह को विशेष दर्जा देती है। ये जगह कई सारी संस्कृतियों को अपने में समेटे हुए है, यहाँ जहाँ एक तरफ चर्च और मंदिर हैं तो वहीँ दूसरी तरफ इस स्थान पर मुस्लिम समुदाय के लिए भी बहुत कुछ है। यहाँ पर कई सारी मस्जिदें हैं जिन्हें हर साल लाखों पर्यटक देखने आते हैं। यहाँ की मस्जिदों में शिया इमाम इस्माइली खोजा जमातखाना और आके प्रमुख हैं । मडगांव,बेनौलिम कोल्वा, वार्का, बैतूल और मजोरदा जैसे मनमोहक बीचों से ज्यादा दूर नहीं है इस कारण, इन स्थानों से यहाँ आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहाँ आकर पर्यटक बीच के आस पास से सस्ती दरों में बेहतरीन खरीदारी भी कर सकते हैं। अगर आप अच्छे खाने के शौक़ीन है तो यह जगह गोवा का दक्षिणी हिस्सा होने के कारण आपको एक उम्दा कुजीन प्रदान करती है। यहाँ आने वाले पर्यटक कई प्रमुख पांच सितारा होटलों जैसे ताज, लीला, हयात, और हॉलिडे इन जैसे होटलों में रुक सकते हैं जो प्रमुख स्थान से एक मील की दूरी पर हैं। अगर आपको एक छोटी सी राइड का मजा लेना है तो आप फिशरमैन व्हार्फ़ जरूर जाएं ये जगह बेतुल बीच के पास है । अगर आप गोवा आये हैं और आपको ताजा और प्रामाणिक सी फ़ूड खाना है तो आप मडगाव की यात्रा जरूर करें। मडगांव जाने के लिए डाबोलिम हवाई अड्डा सबसे बेहतर विकल्प है यहाँ से आपको प्राइवेट कैब आसानी से मिल जाएँगी जो काफी सस्ती होती है साथ ही यहाँ आने के लिए आपको वास्को दा गामा, डाबोलिम से ट्रेन भी मिल जायगी। यहाँ आने के लिए पर्यटक राजधानी पंजिम या वास्को डा गामा से ड्राइव करके भी यहाँ आ सकते हैं।

Laxman Burdak at Colva Beach, Goa

कोलवा बीच (Colva Beach): दक्षिणी गोवा के साल्सेट क्षेत्र में स्थित कोलवा बीच, गोवा के कुछ बेहद खूबसूरत समुद्र तटों में गिना जाता है। इसकी खूबी यह है कि उत्तरी गोवा के समुद्र तटों की तरह यहां भीड़-भाड़ नहीं होती और यह तट अपेक्षाकृत शांत रहता है। वैसे यह बीच गोवा के सबसे प्राचीनतम तटों में से एक होने के साथ-साथ यहां का सबसे लंबा समुद्री तट (25 कि.मी.) भी है। कुछ समय एकांत में बिताने के शौकीनों को यहां का शांत और खूबसूरत माहौल खासा लुभाता है। सफेद रेत के किनारे लगे नारियल के ऊंचे-ऊंचे पेड़ इस जगह की खूबसूरती में इजाफा कर देते हैं और सूर्यास्त के समय समुद्र किनारे टहलने के शानदार अनुभव को तो कभी भूला ही नहीं जा सकता। कोलवा से पर्यटक, काब दे राम (Cabo de Rama) किले तक आसानी से जा सकते हैं जो कि पूर्व पुर्तगाली समय का किला है और साथ ही गोवा का सबसे पुराना किला भी है।

कोलवा बीच का इतिहास: किसी जमाने में कोलवा एक विशाल बंजर इलाका हुआ करता था, जहां से अरब सागर का खूबसूरत नजारा दिखाई देता था। फिर मुग़ल और आदिल शाही राजवंश के शासकों को गोवा का उत्तरी और पहाड़ी हिस्सा इतना पसंद आया कि उन्होंने वहां के साथ-साथ यहां भी किलों और गढ़ों का निर्माण करवाया। लेकिन 1510 से 1961 के बीच यह इलाका पुर्तगालियों के कब्जे में रहा। तब इसे डॉक्टर डीओगो रोड्रिग्स की वंशज कहे जाने वाले रोईज़ नामक पुर्तगाली परिवार का गांव माना जाता था। उसे लोग कोलवा का भगवान मानते थे। कहा जाता है कि वह पहला शख्स था जिसने 1551 में यहां पहले पुर्तगाली वास्तुशैली से बने घरों का निर्माण कराया था। तब यह पूरा समुद्र तट भी उसी का हुआ करता तह और इसे प्राईआ दा कोलवा का नाम से जाना जाता था।

वाटर स्पोर्ट्स: यहां बनाना बोट और मोटर बोट की सवारी जैसे कुछ बेहद रोमांचकारी पानी के खेलों का लुत्फ़ तो उठाया जा ही सकता है, साथ ही समुद्र का यह हिस्सा तैराकी के लिए भी पूरी तरह सुरक्षित है। इसलिए यहां आने पर आपको तैरने के लिए सुरक्षित हिस्सों में लाल झंडे लगे दिख जायेंगे।

पाउडर जैसी सफेद रेत: यहां चारों ओर फैली सफेद रंग की पाउडर जैसी रेत विशेष रूप से लोगों को आकर्षित करती है और साथ में लगे नारियल के ऊंचे-ऊंचे पेड़ इस पूरे इलाके की सुंदरता को बढ़ा देते हैं। इस सबके अलावा यहां बने आकर्षक घर भी सैलानियों को अपनी साज-सज्जा की वजह से खासे प्रभावित करते हैं।

Cabo de Rama Entrance, Goa

काब दे राम (Cabo De Rama Beach): गोवा के खूबसूरत बीचों में शुमार एक अद्भुत बीच है, जिसे स्थानीय लोगों द्वारा काब दे राम नाम से भी जाना जाता है। काब दे राम बीच गोवा के दक्षिण में स्थित एक आकर्षक समुद्र तट है। इस समुद्र तट के उत्तरी दिशा में एक छोटी और उथली नदी भी है। कैबो डी राम बीच से 28 किलोमीटर की दूरी पर मर्गोस ग्रोव्स हैं और बीच से 2 किलोमीटर की दूरी पर काब दे राम भी हैं। यहां पर ताड के पेड़ों की संख्या बहुत अधिक हैं और पर्यटक पेड़ों की छाया में बैठकर पिकनिक मानते हैं और अपने परिवार के साथ समय बिताना भी पसंद करते हैं।

काब दे राम किला: काब दे राम में एक किला है। पुर्तगालियों ने दावा किया कि सून्डा राजा को हराने के बाद काबो डी राम किला और बाद में इसका जीर्णोद्धार हुआ। अतीत में, किले ने हिंदू, मुस्लिम सम्राटों और पुर्तगालियों के बीच हाथ मिलाया है और इतिहास में कई लड़ाइयों को देखा है। बुर्ज और जंग खाए हुए तोपों के साथ वर्तमान दुर्लभ संरचना पुर्तगालियों का एक बचा हुआ इलाका है। पुर्तगालियों ने इसे 21 तोपों और सैन्य बैरकों के साथ-साथ कमांडेंट क्वार्टर और एक चैपल से सुसज्जित किया। पुर्तगालियों के इस जगह से चले जाने पर इसे छोड़ दिया गया था। बाद में, इस किले ने 1955 तक एक सरकारी जेल में रखा और फिर से छोड़ दिया गया। आज, यह किला खंडहर में है, लेकिन गोवा का एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण है। काबो डी राम किले के अंदर, सेंटो एंटोनियो का चर्च है जो उत्कृष्ट स्थिति में है और अभी भी भक्तों द्वारा उपयोग किया जाता है। सफेद चर्च और काला किला स्टार्क कंट्रास्ट की एक फोटोग्राफिक तस्वीर प्रदान करते हैं। लोग यहां प्रार्थना करने और किले के रहस्यमय वातावरण का आनंद लेने आते हैं। किले के पश्चिमी भाग में चट्टानें समुद्र के आसपास के क्षेत्रों को मनोरम दृश्य प्रदान करती हैं। किले कोलवा समुद्र तट की पूरी लंबाई और कानाकोना खिंचाव के राजसी दृश्य प्रदान करता है।

Laxman Burdak at Benaulim Beach, Goa

बेनौलिम समुद्र तट (Benaulim Beach): कोलवा से दक्षिण की तरफ करीब दो किमी आगे चलने पर स्थित बेनौलिम समुद्र तट पर बड़ी संख्या में स्थानीय लोग और पर्यटक घूमने आते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम द्वारा चलाया गया तीर इस जगह के समीप कोंकण क्षेत्र में आकर गिरा था, जिसके फलस्वरूप गोवा का निर्माण हुआ।। यह बीच दक्षिणी कोलवा से लगभग 2 किमी की दूरी पर है। बेनौलिम बीच गोवा के स्थिर और शांत समुद्री तटों में से एक है। यह राज्य के उन स्थानों में से एक है, जहां आप स्थानीय हस्तशिल्प की झलक देख सकते हैं। 'सेंट जॉन द बैपटिस्ट' का चर्च यहां की यात्रा के लायक है। मानसून के दौरान यहां 'सेंट जॉन द बैपटिस्ट' नामक फेस्टिवल बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।

बेनोलिम का इतिहास: बाणावली या बेनोलिम भारत के गोवा राज्य के दक्षिण गोवा जिले में स्थित है। यह एक समुद्र-तटीय कस्बा है जो मडगाँव के दक्षिण में है। एक दन्तकथा के अनुसार भगवान परशुराम ने समीप के कोकंण में स्थित सह्याद्री पर्वतों पर से एक तीर (बाण) चलाया जो इस स्थान पर आकर गिरा जिससे इसका नाम बाणावली पड़ा।

पुर्तगालियों के आने से पूर्व इसे बाणाहल्ली (Banahalli) या बाणावल्ली (Banawalli) के नाम से जाना जाता था। पुराने बाणावली में भगवान शिव और पार्वती को समर्पित एक कात्यायनी बाणेश्वर मन्दिर (Katyayani Baneshvar temple) था जिसके खण्डहरनुमा अवशेष अभी भी इस कस्बे में देखे जा सकते हैं। कात्यायनी पार्वती का नाम है। सोलहवीं सदी में इस मन्दिर के देवों को उत्तर कनारा (वर्तमान उत्तर कन्न्ड़) में स्थित आवेसरा में स्थापित कर दिया गया था।

कस्बे का प्राचीन नाम बाणाहल्ली या बाणावल्ली होना तथा प्राचीन कात्यायनी बाणेश्वर मन्दिर के अवशेषों से यह प्रमाणित होता है कि इस स्थान पर कभी बाणासुर का राज्य रहा है। बाणासुर या बाणेश्वर के नाम पर ही कात्यायनी बाणेश्वर मन्दिर बना है। परशुराम के बाण की कथा काल्पनिक है। बाणासुर शिव का उपासक था और आज भी जाटों में उनके वंशज जाट गोत्र बाणा के रूप में विद्यमान हैं।

वास्को दा गामा परिचय
Clock Tower at Vasco da Gama, Goa

मोरमुगाओ उपद्वीप पर गोवा का सबसे बड़ा शहर वास्को दा गामा स्थित है, जो कि पणजी से भी बड़ा है। वास्को दा गामा को स्थानीय लोग वास्को भी कहते हैं। हवाई अड्डे के पास होना इस शहर का एक मुख्य पहलू है जो इस जगह को महत्वपूर्ण बनाता है। वास्को दा गामा में बॉलीवुड की अनेक फिल्में फिल्माई जाती हैं और यहाँ आने वालो को उन सभी जगहों और आवाज़ों की याद आ ही जाएगी। बैना, हंसा, बोगमालो और मज़ेदार नाम वाला दादी माँ होल, सभी तट प्रसिद्ध हैं जहाँ हर जगह से पर्यटक आते हैं।

दादी माँ होल तट का नाम इस तथ्य पर रखा गया कि पर्यटकों को फोर्टलेज़ा सेंटा कैटरीना किले के खंडहरों में स्थित एक छोटे से छेद में से निकलकर इस तट पर पहुंचना होता है। असलियत में यह तट बहुत छोटा है, लेकिन शैक के व्यवसायीकरण से दूर यह पूरी तरह से प्राकृतिक है और गोवा तथा वास्को के सुंदर छोटे सीनों में से एक है। किवदंतियों के अनुसार इस इस छेद में बैठकर दादी माँ मछली पकड़कर या सैर से लौटकर आने वाले अपने बच्चों का इंतज़ार करती थी, इसलिए इस तट का नाम दादी माँ होल रखा गया।

बोगमालो तट (Bogmalo Beach) के पास स्थित नौसेना उड्डयन संग्राहलय में आप गर्मी और तटों से दूर एक अनोखी दोपहर बिता सकते हैं तथा यहाँ आप पुर्तगालियों के समय से गोवा के नौसेना इतिहास का व्यावहारिक प्रदर्शन देख सकते हैं। यहा भारतीय नौसेना के सालों पुराने विमानों के विकास को खूबसूरती से दर्शाया गया है।

वर्का बीच (Varca Beach) के पास मारगाओ बंदरगाह के प्रवेशद्वार पर 1624 में निर्मित मारमुगाओ किला स्थित है। यह जगह ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है जहाँ कुछ सुसंरक्षित शिलालेख हैं। सूर्य व रेत न होने के कारण दोपहर के सूय इस किले में आना एक सुखद अहसास होता है। आपको इस जगह घूमने के लिए आसानी से गाइड उपलब्ध हो जाते हैं।

महान मराठा नेता को समर्पित, शिवाजी का किला, वास्को का एक अन्य आकर्षण है जो इस शहर के कुछ मुख्य विचारों को दर्शाता है। दादी माँ होल के पास, आप डोना पाउला बीच (Dona Paula Beach) तथा सामान्यतः डोना पाउला के लिए लांच व नौका की सुविधा ले सकते हैं। डोना पाउला, गोवा का एक जीवंत शहर है जहाँ बहुत सारी शापिंग और अन्य गतिविधियों का मज़ा लिया जा सकता है। डोना पाउला पणजी के बहुत पास है, बल्कि इसे पणजी का ही एक उपनगर माना जाता है।

वास्को दा गामा पहुँचना बहुत आसान है। वास्को के पास कई रेलवे स्टेशन जैसे वास्को दा गामा स्टेशन तथा डाबोलिम स्टेशन है। साथ ही, डाबोलिम हवाई अड्डा शहर के केंद्र से केवल 4 कि.मी. दूर है तथा मुंबई व दिल्ली के लिए नियमित उड़ानें उपलब्ध है। पणजी से डाबोलिम के लिए लगातार टैक्सियाँ चलती हैं तथा मुंबई व पुणे जैसे शहरों से नियमित वोल्वो बस सेवा उपलब्ध है।

पणजी परिचय
Laxman Burdak & View of Gurudwara & Tata Housing at Porvorim across Mandovi River from Panaji on the bank of Mandovi, Goa

पणजी भारत के पश्चिमी प्रान्त गोवा की राजधानी है। यह मांडोवी नदी के मुहाने के तट पर, उत्तरी गोवा के जिले में निहित है। पणजी वास्कोडिगामा और मडगांव के बाद गोवा का सबसे बड़ा तीसरा शहर है। वर्तमान गोवा, पणजी का पर्यायवाची है।

पणजी का शाब्दिक अर्थ है,’वह भूमि जहाँ कभी बाढ़ नहीं आती’। यह जगह 7मी. की औसत उंचाई पर स्थित है तथा यहाँ प्रवेश करते ही आपको यह आभास हो जाएगा कि गोवा के बाकी शहरों की अपेक्षा यह शहर कुछ अधिक गतिशील है। लेकिन फिर भी, अधिकतर दूसरे महानगरों की अपेक्षा कम गतिशील होने के कारण शहरी लोग यहाँ छुट्टियों का पूरा मज़ा ले सकते हैं। इस शहर की जनसंख्या लगभग 40000 है। गोवा में छुट्टियाँ बिताने के लिए आने पर पणजी एक बहुत अच्छी जगह है जहाँ पर्याप्त संख्या में पाँच व चार सितारा होटल, रेस्टोरेंट और शापिंग मॉल उपलब्ध है। इसके अलावा यह शहर, पार्टियों के लिए प्रसिद्ध उत्तरी गोवा, विरासत में समृद्ध दक्षिणी गोवा तथ वास्को दा गामा व मारमुगाओ जैसे शहरों से समान दूरी पर स्थित है।

पणजी में प्राचीन काल में बीजापुर के सुल्तान आदिल शाह का अस्तबल था जो कालांतर में विकसित होकर नगर के रूप में परिवर्तित हुआ। पणजी एक राजपथीय शहर है। समूचा शहर राजपथों के दोनों ओर स्थित है। ऐतिहासिक व नवीन इमारतों का यहां सम्मिश्रण यहाँ देखने को मिलता है। आदिल शाह का अस्तबल, इडालको राजमहल जहां आज सचिवालय है, अब्बे फारिया की मूर्ति, आजाद मैदान, शहीद स्मारक, महालक्ष्मी मंदिर, एलटीनो पहाड़, दोना पावला, मीरामर, कोवला बीच, पावला के उस पार वास्को आदि पर्यटकों का दिल मोह लेते हैं। कुटीर उद्योगों में हाथी दांत व कछुए की खाल से निर्मित वस्तुएं, काजू, बादाम, दालचीनी आदि भी पर्यटकों को विशेष रूप से खरीदारी के लिए मजबूर करती हैं।

इस नगर की एक विशेषता और है कि यहां कि प्रत्येक इमारत की छत ढलवां तथा लाल रंग की है। यह प्रांत क्योंकि काफी लंबे समय अवधि तक पुर्तगालियों के शासन में रहा इसलिए यहां पुर्तगाली सभ्यता तथा ईसाई धर्म का प्रभाव स्पष्टत: दृष्टिगोचर होता है। पणजी और इसके आसपास कई दर्शनीय स्थल हैं: पुराना गोवा में स्थित 16 वीं शताब्दी में निर्मित बॉम जीसस चर्च विशेष रूप से उल्लेखनीय है. इस चर्च में संत जेवियर का पार्थिव शरीर ताबूत में रखा हुआ है. अन्य दर्शनीय स्थलों में अगोड़ा का किला, केसरवाल जलप्रपात, मेयम झील, महावीर राष्ट्रीय प्राणी उद्यान, कोटिगाओ वन्यजीव अभयारण्य तथा गोवा संग्रहालय के नाम प्रमुखता से लिए जा सकते हैं।

पणजी में गोवा का पैतृक संग्रहालय देखने योग्य है और साथ ही यहाँ होने वाली व्यापारिक तथा सांस्कृतिक गतिविधियाँ अद्भुत हैं जो गोवा की पहचान हैं। इस संग्रहालय में गोवा की रबड़ की खेती से लेकर लवण कंपनियों तक, प्रत्येक चीज़ को दर्शार्या गया है। यही पर ’लेजेंड ऑफ बिगफुट’ का दिलचस्प प्रदर्शन भी देखा जा सकता है। वर्तनाम समय में ’ बिगफुट ’ एक विशाल मंच बन चुका है जहाँ अनेक कार्यक्रम तथा अभिनय किए जाते हैं।

यदि आप पणजी में ईडीसी कांप्लेक्स के पास हैं तो आप आसानी से गोवा के स्टेट म्यूजि़यम तक पहुंच सकते हैं 8000 वस्तुएँ प्रदर्षित की गई हैं जिनमें मिट्टी के प्राचीन बर्तन, लकड़ी की प्राचीन वस्तुएँ तथा शिल्पकला, हिंदु व जैन धर्मग्रंथों को दर्शाती विभिन्न पेंटिंग सम्मिलित हैं। हर साल लाखों की संख्या में छात्र, कलाप्रेमी तथा जिज्ञासु पर्यटक गोवा का स्टेट म्यूजि़यम देखने के लिए आते हैं।

Laxman Burdak at Miramar Beach, Goa

मीरामर बीच (Miramar Beach): मीरामर का पुर्तगाली में अर्थ है समुद्र को निहारना। यहाँ से अरब सागर का अद्भुत और खूबसूरत नज़ारा देखने को मिलता है। स्थान की दृष्टि से गोवा का सबसे अच्छा बीच, मीरामर, राजधानी पणजी से केवल 3 कि.मी. दूर है। यह उस जगह स्थित है जहाँ मांडोवी नदी अरब सागर में मिलती है। अपने कुछ छोटे प्रतिरूपों के विपरीत, मीरामर बीच में पर्यटकों के ठहरने के लिए पर्याप्त होटलों की व्यवस्था है जिससे गोवा आने वालों के लिए रहने की उचित जगह बनाते हैं। मीरामर बीच पर सुनहरी रेत पर नारियल के पेड़ों की कतारें लगी हैं। 2 कि.मी. लंबा तट और चाँदी की रेत वाले क्षेत्र में होने से यह बीच शाम की सैर के लिए सबसे अच्छी जगह है। इस क्षेत्र में स्थित बीचों पर बिखरी रेत रात की चाँदनी में अद्भुत चमक बिखेरती हैं। मीरामर बीच आने का सबसे अच्छा समय नवम्बर से मार्च के बीच का होता है जब बहुत भीड़ और बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों के होने से यहाँ का नज़ारा देखने योग्य होता है। डोना पाउला और अगुआड़ा का किला जैसे पर्यटन स्थल मीरामर बीच के बहुत पास है और आपको इस बीच के पास शॉपिंग के लिए अनेक छोटी-छोटी जगह मिल जाएंगी। मीरामर जाने के लिए आप पणजी जाने वाली बस या फिर हवाईअड्डे से टैक्सी ले सकते हैं। यह बहुत प्रसिद्ध जगह है और साइनबोर्ड होने से टैक्सी ड्राइवर आपको भटका नहीं पाएगा।

डोना पाउला बीच (Dona Paula Beach) : गोवा की राजधानी पणजी से करीबन 7 किमी की दूरी पर स्थित डोना पाउला गोवा के सबसे खूबसूरत समुद्र तटों में से एक है और मोरमुगाओ बंदरगाह का अद्भुत नजारे प्रस्तुत करता है। डोना पाउला हेडलैंड के दक्षिणी भाग से घिरा हुआ है जहां मंडोवी और जुआरी नदियों अरब सागर से मिलती हैं। यह जगह पर्यटकों के बीच 'लवर्स पैरेडाइस'के नाम से जानी जाती है। इसके पीछे की कहानी यह है कि, डोना पाउला का नाम पुर्तगाली शासनकाल के दौरान गोवा के वाइसराय की बेटी, डोना पाउला डि मेनेज़ेस के नाम पर रखा गया था। किंवदंती के अनुसार, एक स्थानीय मछुआरे से शादी करने की इजाज़त न मिलने पर उसने एक चट्टान से कूदकर खुदकुशी की थी। जिसके बाद से इसे 'लवर्स पैरेडाइस'कहा जाने लगा। डोना पाउला बीच पर आप पानी के खेलों का मज़ा ले सकते हैं, जिसमे सन बाथिंग, स्कूबा डाइविंग, पैरा-सेलिंग आदि शामिल हैं। इसके अलावा आप इस खूबसूरत समुद्री तट को घूमते हुए अच्छी शॉपिंग का भी लाभ ले सकते हैं।

माण्डवी नदी: जिसे मांडोवी, महादायी या महादेई तथा कुछ स्थानों पर गोमती नदी के नाम से भी जाना जाता है। मांडवी नदी (AS, p.732) के निकट बहने वाली नदी है जो सह्याद्रि से निस्तृत होकर अरब सागर में गिरती है। यह कर्नाटक और गोवा से होकर बहने वाली एक नदी है। इस नदी को गोवा राज्य की जीवन रेखा के रूप में वर्णित किया जाता है। साथ ही यह ज़ुआरी नदी के साथ गोवा की दो प्रमुख नदियों में से एक है। पणजी का माण्डवी पुल माण्डवी नदी पर पणजी को पोरवोरिम (Alto Porvorim) से जोड़ता है. नदी के दोनों ओर बंदरगाह पर नौका व लक्ज़री क्रूसर का नज़ारा शाम को देखते ही बनता है। पणजी से थोड़ी दूर मांडोवी नदी के किनारे स्थित एक गाँव, रीस मैगोस (Reis Magos), में रीस मैगोस किला है जहाँ पणजी से आसानी से पहुंचा जा सकता है। रीस मैगोस किले से पणजी का बहुत सुंदर नज़ारा देखने को मिलता है। कुछ समय पहले यह फिर से चमकाया गया था। इस किले की यात्रा के लिए अधिपत्र लेना होता है क्योंकि यह किला प्रसिद्ध अगुआड़ा किले से लगभग 50 साल पहले बना था। पणजी से थोड़ी दूर मांडोवी नदी पर सुबह और शाम के अद्भुत नज़ारे देखने के लिए आप बैंसतरिम पुल (Banastarim) पर जा सकते हैं जिसे स्थानीय लोगमेटा ब्रिज कहते हैं। मांडोवी नदी के ऊपर की ओर पणजी से पुराना गोवा तथा पोंडा (Ponda) के रास्ते में बैंसतरिम पुल (Banastarim) को पार कर बांई तरफ शांतादुर्गा मंदिर (Shantadurga Temple) जा सकते हैं तथा दाईं तरफ श्री मंगेश मंदिर (Shri Mangesh Temple) जा सकते हैं।

पणजी अपने धार्मिक स्थानों जैसे सेंट कैथरीन की चैपल तथा पणजी चर्च के लिए भी प्रसिद्ध है। हिंदु लोग अकसर महालक्ष्मी तथा मारुति मंदिर देखने के लिए आते हैं। गोवा की सभी जगहों से बसें पणजी से गुज़रने के कारण यहाँ आसानी से पहुंचा जा सकता है। आप किराए की बाइक लेकर भी जा सकते हैं, रास्ता बताने के लिए पर्याप्त साइन बोर्ड यहाँ उपलब्ध हैं। अगर आप मुंबई या पुणे से आ रहे हैं तो गोवा में प्रवेश करने पर पहला शहर पणजी है। हवाई अड्डे से पणजी 30 मिनट की दूरी पर है और बाहर निकलते ही टैक्सियाँ उपलब्ध रहती हें।

पोरवोरिम (कोंकणी: पर्वरी) - भारत के गोवा राज्य की वैधानिक राजधानी है। यह गोवा की वैधानिक राजधानी इसलिये माना जाता है कि गोवा विधान सभा और सचिवालय यहीं से संचालित होते हैं। यह माण्डवी नदी के उत्तरी तट पर स्थित है। जबकि राज्य की प्रशासनिक राजधानी पणजी नदी के दूसरे तट पर स्थित है। पोरवोरिम को पणजी का उपनगर माना जाता है, और यह मुम्बई-गोआ एनएच-17 पर स्थित होने के कारण एक सम्भ्रान्त-वर्गीय आवासीय केन्द्र माना जाता है। पोरवोरिम, गोवा की राजधानी पणजी से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आधिकारिक रूप से यह एक गाँव है, लेकिन जिस प्रकार की सुविधाएँ यहाँ उपलब्ध हैं वह किसी कस्बे या छोटे नगर से कम नहीं हैं। पोरवोरिम अभी भी एक हरियाली युक्त क्षेत्र है। अब पोरवोरिम एक आवासीय क्षेत्र में विकसित हो चुका है और इसके आसपास शैक्षणिक संस्थान हैं। पोरवोरिम, मण्डोवी नही के एक किनारे पर स्थित है और मण्डोवी सेतु से राजधानी पणजी का विहंगम दृश्य दिखलाई देता है।

Fort Aguada, Goa

अगुआड़ा किला (Aguada Fort) : गोवा के प्रमुख पर्यटक स्थलों में अगुआड़ा किला एक प्रमुख स्थान है जोकि पर्यटकों को काफी आकर्षित करता है। यह किला अगुआड़ा बीच के नजदीक है जो इसके आकर्षण में चार चाँद लगाने का कार्य करता है। यह किला गोवा की राजधानी पणजी से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अगुआड़ा किला का दृश्य बहुत ही आकर्षक है। यह अरब सागर और मांडवी नदी के संगम को देखता हुआ प्रतीत होता हैं। अगुआड़ा किले का निर्माण पुर्तगालियों के द्वारा 17वीं शताब्दी में किया गया था। गोवा सिटी में स्थित यह खूबसूरत किला पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यदि आप भी गोवा जाते हैं तो इस मनमोहक किले को घूमना न भूले। इस किले का नाम पुर्तगाली शब्द अगुआ से लिया गया है। यह स्थान नाविकों के लिए ताजे पानी का स्त्रोत है। यह एशिया की मीठे पानी के जलाशयों में से एक था। अगुआड़ा किले को अगुआड़ा जेल के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है।

अगुआड़ा किले का इतिहास: अगुआड़ा किला पुर्तगालियों के द्वारा निर्मित किया गया भारत का एक खूबसूरत किला है, जोकि सिंकुरियम बीच (Sinquerim) के पास स्थित है। इस किले का निर्माण 1609 में शुरू किया गया था और 1612 इसका निर्माण कार्य पूर्ण हो गया था। अगुआड़ा किले का निर्माण तत्कालीन वायसराय रूयू तवारा के शासन काल में हुआ था। मंडोवी नदी के तट पर कैंडोलिम नगर के दक्षिण में स्थित यह किला मराठों और डच के विरुद्ध पुर्तगालियों की रक्षा के लिए निर्मित किया गया था। यूरोप से आने वालो जहाजों के लिए यह एक संदर्भ बिंदु था। फोर्ट अगुआडा को ताजे पानी के स्थान के रूप में भी जाना जाता हैं। यह अगुआ में इस्तेमाल होने वाले जहाजों के लिए पानी की पूर्ती करता है। जोकि अगुआ के लिए इस्तेमाल होने वाला एक पुर्तगाली शब्द हैं। यहां से गुजरने वाले जहाजों का चालक समूह पानी भरने के लिए यहां रुकते थे। इस किले में 2,376,000 गैलन पानी रखने की क्षमता थी। लाइट हाउस के अलावा भी इस किले में एक खंदक, एक बारूद का कमरा, युद्ध और अपात काल के दौरान पलायन करने के लिए एक गुप्त मार्ग भी हैं।

अगुआडा किला पुर्तगालीयों की वास्तुकला का एक बेहतरीन नमूना है। यह किला लेटराइट पत्थर से बना हुआ है जोकि गोवा में व्यापक रूप से पाया जाता है। हवा-पानी और तेज आंधियों के समक्ष बहुत ही बहादुरी के साथ खड़ा हुआ है। किले को बर्देज (Bardez) प्रायदीप पर बनाया गया है और इसे पूरी तरह से कवर किया गया है। अगुआडा किला तीन ओर से गढ़ों से घिरा हुआ है, जबकि चौथे हिस्से पर नदी के सामने एक गेट लगा हुआ है। अगुआड़ा फोर्ट दो हिस्सों में विभाजित है इसका ऊपरी भाग एक किले और पानी स्टेशन के रूप में कार्य करता है और निचला भाग पुर्तगाली जहाजों के लिए सुरक्षित स्थान प्रदान करता है।

अगुआड़ा का लाइट हाउस 1864 में बनाया गया एशिया के सबसे पुराने लाइट हाउसों में से एक हैं। यह एक चार मंजिला संरचना है जोकि अपने प्रकाश से जगमगाती है और इसके आसपास का दृश्य बहुत खूबसूरत लगता है। यह स्थान उन लोगों के बीच बहुत ही लौकप्रिय हैं जिन्हें फोटो निकलवाने का बहुत शोक होता है। इतिहास से पता चलता है कि प्रकाश स्तम्भ का निर्माण जहाजों को सुरक्षित बन्दरगाह उपलब्ध कराना था।

Basilica of Bom Jesus, Old Goa

पुराना गोवा परिचय (Old Goa): पुराना गोवा को गोवा वेल्हा (पुर्तगाली भाषा में "वेल्हा" यानि पुराना) भी कहते हैं। यह भारत के राज्य गोवा के उत्तर गोवा जिले का एक शहर है जो पणजी शहर से 10 किमी पूर्व में मांडवी नदी पर स्थित है। बीजापुर सल्तनत द्वारा 15 वीं सदी में यह शहर एक बंदरगाह के रूप में बसाया गया था जो 16वीं सदी से पुर्तगाली शासकों की राजधानी रहा। 17 वीं सदी में मलेरिया और हैजा महामारी के कारण यह शहर तबाह हो गया तब इसे छोड़ दिया गया था। 1843 में राजधानी को पणजी स्थानांतरित कर दिया। इस पुरानी बस्ती को वेल्हा गोवा अर्थात पुराना गोवा कहा गया।

बेसिलिका ऑफ़ बोम जीसस (Basilica of Bom Jesus): पुराना गोवा में स्थित एक प्रसिद्ध चर्च (गिरजाघर) है जो अब यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल सूची में शामिल है। पणजी से पूर्व दिशा में 10 किलोमीटर की दूरी पर मांडवी नदी पर पुराना गोवा कस्‍बा बसा हुआ है। यहां भारत के कुछ महान गिरजाघर हैं और इनमें सबसे अधिक लोकप्रिय और सबसे अधिक सम्‍मानित चर्च है- बेसिलिका ऑफ़ बोम जीसस। दुनिया भर के ईसाई इसे मानते हैं। शिशु जीसस को समर्पित इस बेसिलिका को अब वैश्विक विरासत स्‍मारक घोषित किया गया है। बोम जीसस का अर्थ है शिशु जीसस या अच्‍छा जीसस। बॉम जीसस चर्च 16 वीं शताब्दी में निर्मित किया गया था। इस चर्च में संत जेवियर का पार्थिव शरीर ताबूत में रखा हुआ है। सेंट फ्रेंसिस जेवियर गोवा के संरक्षक संत थे और उनकी मृत्‍यु 1552 में हुई थी।

गोआ परिचय

गोवा भारतीय प्रायद्वीप के पश्चिमी तट पर स्थित है। पूरी दुनिया में गोवा अपने ख़ूबसूरत समुद्र के किनारों और मशहूर स्थापत्य कला के लिये जाना जाता है। मौजमस्ती, उल्लास और उमंग से भरे गोआ के समुद्री किनारे हर उम्र के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यहां पहुंच कर ऐसा लगता है मानो दुनियाभर का सुकून यहीं है। नीला आसमान, रेत और पानी के चमकीले नजारों का प्रकृति का ऐसा खूबसूरत उपहार है गोआ जहां जाने की चाहत हर किसी के दिल में बसती है।

पर्यटन के क्षेत्र में अग्रणी: भारत का सबसे आधुनिक पर्यटन स्थल गोआ विदेशी और भारतीय संस्कृति का बेजोड़ संगम है। पर्यटकों में बढ़ती गोआ की लोकप्रियता का ही सबूत यह है कि यहां की आबादी से ज्यादा यहां पर्यटकों का जमावड़ा दिखता है। भूतकालीन पुर्तगालीय क्षेत्र गोवा आज भारतीय पर्यटन के क्षेत्र में अपना अग्रणी स्थान बनाए हुए है। जैसा कि प्रसिद्ध है 'समस्त तीर्थों में उत्तम काशी नगरी' वैसे ही पर्यटन की दृष्टि से गोवा के संबंध में कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। यहां के सुंदर और स्वच्छ सागर तटों, झीलों, झरनों, बगीचों के आकर्षण से मंत्रमुग्ध देश-विदेश के पर्यटक स्वयं ही यहां खींचे चले आते हैं। अल्प समय में ही गोवा अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित हुआ है। गोवा पर्यटन विकास निगम समय-समय पर गोवा के टूर की सुंदर व्यवस्था करता रहता है।

गोवा राज्य के उत्तर में महाराष्ट्र राज्य, पूर्व व दक्षिण में कर्नाटक राज्य और पश्चिम में अरब सागर से घिरा है। पणजी गोवा की राजधानी है। गोवा का क्षेत्रफल 3,702 वर्ग किलोमीटर है। यह समुद्र तट की ओर एक द्वीपयुक्त शहर है, जो मुंबई से 400 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण में मुख्यभूमि में स्थित है। गोवा क्षेत्रफल में भारत का सबसे छोटा और जनसंख्या के हिसाब से दूसरा सबसे छोटा राज्य है।

इसके उत्तर में तेरेखोल नदी (Terekhol River) बहती है जो गोवा को महाराष्ट्र से अलग करती है। इसके दक्षिण में कर्नाटक का उत्तर कन्नड़ ज़िला और पूर्व में पश्चिमी घाट और पश्चिम में अरब सागर है। पणजी, मडगाँव, वास्को, मापुसा, तथा पोंडा राज्य के प्रमुख शहर हैं।

1498 ई. में पुर्तगाली नाविक वास्कोडिगामा के कालीकट पर उतरने के पश्चात पुर्तगालियों ने भारत के पश्चिमी तटवर्ती अनेक स्थानों पर अधिकार कर लिया। वास्को द गामा एक पुर्तग़ाली नाविक थे। वास्को द गामा के द्वारा की गई भारत यात्राओं ने पश्चिमी यूरोप से केप ऑफ़ गुड होप होकर पूर्व के लिए समुद्री मार्ग खोल दिए थे। इन्होंने विश्व इतिहास के एक नए युग की शुरुआत की थी। यह यूरोपीय खोज युग के सबसे सफल खोजकर्ताओं में से एक है, और यह यूरोप से भारत सीधी यात्रा करने वाले जहाज़ों के कमांडर थे। वास्को द गामा ने पुर्तग़ाल को एक विश्व शक्ति बनाने में भी मदद की थी।


गोवा के दर्शनीय स्थल - गोवा में कई संग्रहालय व अभयारण्य है। बोंडला अभयारण्य, कावल वन्य प्राणी अभयारण्य, कोटिजाओ वन्य प्राणी अभयारण्य आदि प्रमुख है। धार्मिक स्थल में आप बैसिलिका ऑफ बॉम जीसस (सेंट कैथरीन्स), कैथेड्रल ऑफ सेंट काजेतान, दत्त मंदिर, चर्च ऑफ सेंट फ्रांसिस, मंगेश श्री महालसा आदि देख सकते हैं। गोवा के ऐतिहासिक चर्च व खूबसूरत मंदिर भी पर्यटकों को गोवा में छुट्टियां बिताने को आमंत्रित करते हैं। गोवा के ऐतिहासिक चर्चों में सेंट फ्रांसिस, ऑफ असीसी, होली स्पिरिट, पिलर सेमिनरी, सालीगांव, रकोल आदि चर्च है। इसके अतिरिक्त सेंट काजरन चर्च, सेंट आगस्टीन टॉवर, ननरी ऑफ सेंट मोनिका तथा सेंट ऐरक्स चर्च भी प्रसिद्ध है।

गोवा का इतिहास

गोआ (AS, p.295) पश्चिमी समुद्र तट पर स्थित भूतपूर्व पुर्तग़ाली बस्ती है, जो 1961 से भारत का अभिन्न अंग बन गई। गोवा अतिप्राचीन नगर है. इसका उल्लेख पुराणों तथा अन्य प्राचीन संस्कृत ग्रंथों से प्राप्त है. गोआ प्राचीनकाल में गोव, गोवापुरी, गोराष्ट्र, गोपकवन और गोमांतक आदि कई नामों से विख्यात रहा है।

गोवा के इतिहास से विदित होता है कि यहां दक्षिण के प्रसिद्ध कदंब नामक राजवंश का अधिकार द्वित्तीय शती ई. से 1312 ई. तक था. तत्पश्चात उत्तरी भारत से आने वाले मुसलमान आक्रमणकारियों ने इस पर आधिपत्य स्थापित कर लिया. उनका राज्य यहां 1370 ई. तक रहा, जब गोवा विजयनगर साम्राज्य के अंतर्गत कर लिया गया. 1402 ई. में बहमनी राज्य के विघटित हो जाने पर युसूफ आदिलशाह ने गोवा को बीजापुर रियासत में मिला लिया. इस समय गोवा की गणना पश्चिमी समुद्र तट के प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्रों में होती थी. विशेषकर हुरमुज (ईरान) से भारत आने वाले ईरानी घोड़े गोवा के बंदरगाह पर ही उतरते थे. हज यात्रियों के अरब जाने के लिए भी यही बंदरगाह था. इस समय व्यापारिक महत्व की दृष्टि से केवल कालीकट को ही गोवा के समकक्ष समझा जाता था.

अरब भौगोलिकों ने गोवा को सिंदबर या संदाबूर नाम से लिखा है. पुर्तगाली इसे गोवा वेल्हा कहते थे. 1498 ई. में पुर्तगाली नाविक वास्कोडिगामा के |कालीकट पर उतरने के पश्चात पुर्तगालियों ने भारत के पश्चिमी तटवर्ती अनेक स्थानों पर अधिकार कर लिया. 1510 ई. में पुर्तगाली गवर्नर अलबूकर्क ने इस नगर पर आक्रमण करके उसे हस्तगत कर लिया. युसूफ आदिलशाह के बारंबार पुर्तगालियों से मोर्चा लेते रहने पर भी अंत में गोवा पुर्तगालियों के कब्जे में आ गया. इसी काल में इन लोगों का भारत के पश्चिमी तट के अनेक स्थानों पर अधिकार हो गया किंतु उन्हें डच, अंग्रेजों तथा मराठों का सामना करना पड़ा. पुर्तगाली बस्तियों पर 1603 ई. में डचों ने हमला कर दिया. 1683 ई. में शिवाजी के पुत्र संभाजी ने लालसट इत्यादि स्थानों पर आक्रमण करके पुर्तगालियों को बहुत हानि पहुंचाई. 1739 ई. में मराठा सरदार चिमना जी आपा ने पुर्तगाली राज्य पर जोर का आक्रमण किया और उसका अधिकांश जीत लिया. इसका एक भाग ततपश्चात अंग्रेजों के हाथ में चला गया. गोवा पुर्तगाल की अवशिष्ट बस्तियों में से था और यह स्थिति 1961 तक रही जब भारत ने अपने अभिन्न अंग को साढ़े चार सौ वर्ष के विजातीय शासन के पश्चात पुनः अपना लिया.

कोंकण परिचय

कोंकण भारत के पश्चिमी भाग में सह्य पर्वत और अरब सागर के बीच उस भूभाग की वह पतली पट्टी है जिसमें ठाणा, कोलाबा, रत्नागिरि, बंबई और उसके उपनगर, गोमांतक (गोवा) तथा उसके दक्षिण का कुछ अंश सम्मिलित है। यह भाग कोंकण कहलाता है। कोंकण का क्षेत्र फल 3,907 वर्गमील है।

कोंकण क्षेत्र में उत्तर से दक्षिण की तरफ सम्मिलित हैं महाराष्ट्र के जिले पालघर, ठाणे, मुंबई जिला, मुंबई उपनगर जिला, रत्नागिरी, रायगड, सिंधुदुर्ग; गोवा; कर्नाटक का उत्तर कन्नड़ जिला।

प्राचीन काल में भड़ोच से दक्षिण का भूभाग अपरांत कहलाता था और उसी को कोंकण भी कहते थे। सातवीं शती ई. के ग्रंथ प्रपंचहृदय में कोंकण का कूपक, केरल, मूषक, आलूक, पशुकोंकण और परकोंकण के रूप में उल्लेख हुआ है। सह्याद्रि खंड में सात कोंकण कहे गए है- केरल, तुलंग, सौराष्ट्र, कोंकण, करहाट, कर्णाट और बर्बर। इससे ऐसा जान पड़ता है कि लाट से लेकर केरल तक की समस्त पट्टी कोंकण मानी जाती थी। चीनी यात्री युवानच्वांग के वर्णन से ऐसा प्रतीत होता हे कि कोंकण से वनवासी, बेलगाव, धारवाड़, और घाटापलिकड का प्रदेश अभिप्रेत था। मध्यकाल में कोंकण के तीन भाग कहे जाते थे- तापी से लेकर बसई तक बर्बर, वहाँ से बाणकोट तक विराट और उसके आगे देवगढ़ तक किरात कहा जाता था।

कोंकण नामकरण: कोंकण प्रदेश के नामकरण के संबंध में अनुसंधान से मुख्य रूप से दो मत सामने आते हैं। एक मत के अनुसार ईरान, सिंध और अफ़ग़ानिस्तान के प्राचीन जाट राज्यों से अभिगमन करने वाले जाटों ने यह नाम दिया। भीमसिंह दहिया (Jats the Ancient Rulers, p. 127-135) ने लिखा है कि ईरान में 700 ई.पू. मंडा जाटों का साम्राज्य था जिसके संस्थापक का नाम देवक था। आपसी संघर्ष के कारण सायरस महान (c.576 BC–530 BC) के काल में इन जाटों का अभिगमन भारत की ओर हुआ। उस समय मंडा जाटों के साथ अन्य जाट गोत्र भी आए जिन्होने भारत में अनेक स्थानों के नाम दिये। गोवा में मांडवी नदी, मड़गांव आदि का मिलना इस बात की पुष्टि करता है। बाद में सम्राट् सिकन्दर महान के आक्रमण (327-326 ई.पू.), अरबों व तुर्कों के आक्रमण के कारण जाटों को अपनी अश्रय-भूमि छोडकर भारत के पश्चिमी भूभागों में सुरक्षित स्थानों की ओर आना पडा (डॉ पेमाराम, p.18)। मंडाराज नाम के एक विषय का उल्लेख “Prince of wales museum, Bombay plates of Mummuṇirāja of the village Ki-icchitā” में मिलता है. यह विषय रायगढ़ महाराष्ट्र के श्रीवर्धन तहसील में दीवे आगर (Dive Agar) के समीप था.


जाटों में कोंकण/ कुंकणा गोत्र का मिलना इस बात की पुष्टि करता है. कोंकण/ कुंकणा गोत्र के लोग वर्तमान में हरयाणा और राजस्थान में मिलते हैं। संभवत: ये कुकुण नामक प्राचीन नागवंशी राजा के वंशज हैं जिनका उल्लेख महाभारत उद्योग पर्व (V.103.10) में हुआ है - 'बाह्यकुण्डॊ मणिर नागस तथैवापूरणः खगः, वामनश चैल पत्रश च कुकुरः कुकुणस तथा'।

ठाकुर देशराज (p.125) लिखते हैं कि कैक जाट मद्रों की भांति शिवि जाटों की एक शाखा में से बताए जाते हैं। सन् 833 में अरब के सरदार अमरानवीन ने इन लोगों को जीत लिया और यह राज्य सदा के लिए नष्ट कर दिया। यह अफगानिस्तान के दक्षिण पूर्व में केकान पहाड़ के आसपास के प्रदेश के अधिपति थे। ठाकुर देशराज लिखते हैं कि कैकान एक प्रदेश का नाम है। कीकानियां नाम का एक पहाड़ भी है। जिस समय कीकान पहाड़ में पहले पहल अरब विजेता आए थे तो जाटों ने उन्हें मारकर भगा दिया था। ‘हिस्ट्री आफ जाटस्’ में श्री कालिकारंजन कानूनगो ने कैकान प्रदेश के जाटों का वर्णन इस प्रकार किया है -

“कैकान का देश, जो कि अफगानिस्तान के दक्षिण-पूर्व में अनुमान किया जाता है, अरब के सेनापति अमरानवीन मूसा ने बाद में उनसे सन् 833 ई. के लगभग छीन लिया था। उन्हीं दिनों में जाटों पर जिन्होंने कि हजारा की सड़क पर अपना अधिकार जमा लिया था और रेगिस्तान की तरफ खम्बे गाड़कर सबके दिल दहला दिए थे, दूसरा हमला किया गया। पच्चीस दिन के खून-खच्चर के बाद वे जीत लिए गए और सत्ताईस हजार की संख्या में कैद कर लिए गए। इन लोगों में लड़ाई के समय तुरई बजाने का रिवाज था।”

दूसरे मत के अनुसार परशुराम की माता कुंकणा के नाम पर इस प्रदेश को कोंकण कहते हैं। इस क्षेत्र में जमदग्नि, परशुराम और रेणुका की मूर्ति कोंकण देव के नाम से पूजित हैं। संभवत: इसीलिये मालाबार और कोंकण अर्थात् केरल, कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र के सम्मिलित समुद्री क्षेत्र को 'परशुराम क्षेत्र कहा गया है। (भारतकोश-परशुराम क्षेत्र)

पर्शुस्थान (AS, p.534) पर्शु नामक एक युयुत्सु जाति का पाणिनि ने ने उल्लेख किया है (अष्टाध्याई 5,3,117) जो भारत के उत्तर पश्चिम के प्रदेश में, संभवत है काबुल के निकटवर्ती भूभाग में निवास करती थी. पर्शुस्थान इन्हीं के देश का नाम था। यहीं अलसंदा की स्थिति थी। पर्शु या पार्शव का संबंध पारस या ईरान देश से भी हो सकता है. (विजयेन्द्र कुमार माथुर,ऐतिहासिक स्थानावली, p.534)

उपरोक्त प्रमाणों से यह तो स्पष्ट होता है कि देश के पश्चिमी सीमा पर बसने प्राचीन लोगों का संबंध ईरान (प्राचीन नाम पर्सिया) से जरूर है। कुछ लोग इसके मूल में चेर देश के कांग अथवा कोंगु को देखते है; कुछ इसका विकास तमिल भाषा से मानते हैं।

वस्तुस्थिति जो भी हो, कोंकण नाम ईसा पूर्व चौथी शती से ही प्रचलित चला आ रहा है। महाभारत, हरिवंश, विष्णु पुराण, वरामिहिरकृत बृहत्संहिता, कल्हण कृत राजरंगिणी एवं चालुक्य नरेशों के अभिलेखों में कोंकण का उल्लेख है। पेरिप्लस, प्लीनी, टॉलेमी, स्टेबो, अलबेरूनी आदि विदेशों लेखकों ने भी इसकी चर्चा की है। उन दिनों यूनान, मिस्र, चीन आदि देश के लोग भी इस देश और इसके नाम से परिचित थे। बेबिलोन, रोम आदि के साथ इसका व्यापारिक संबंध था। भड़ोच, चौल, बनवासी, नवसारी, शूर्पारक, चंद्रपुर और कल्याण व्यापार के केंद्र थे।

कोंकण पर अधिकार: ईसा पूर्व की तीसरी-दूसरी शती में यह प्रदेश मौर्य साम्राज्य के अंतर्गत था। पश्चात् इस प्रदेश पर सातवाहनों का अधिकार हुआ। चौथी-पाँचवी शती ई. में यह कलचुरि नरेशों के अधिकार में आया। छठीं शती ई. में यहाँ स्थानीय चालुक्यनरेश पुलकेशिन ने अपना अधिकार स्थापित किया। उसके आद लगभग साढ़े चार सौ वर्ष तक यह भूभाग सिलाहार नरेशों के अधिकार में रहा। 1260 ई. में देवगिरि नरेश महादेव ने इसे अपने राज्य में सम्मिलित किया। 1347 ई. में यादव नरेश नागरदेव को पराजित कर गुजरात सुलतान ने इस पर अपना अधिकार जमाया। जब 16वीं शती का पुर्तग़ालियों ने भारत में प्रवेश किया तो उन्होंने यहाँ के निवासियों का धर्मोन्मूलन कर ईसाई मत फैलाया। छत्रपति शिवाजी के समय जंजीरा को छोड़कर समूचा कोंकण उनके अधिकार में रहा, पश्चात् 1739 ई. तक पुर्तग़ालियों का इस पर एक छत्र अधिकार रहा। उस वर्ष चिमणजी अप्पा ने बसई के क़िले को जीत कर पुर्तग़ालियों की सत्ता नष्ट कर दी और कोंकण पर पेशवा की सत्ता स्थापित हुई, पश्चात् वह अंग्रेज़ों के अधिकार में चला गया।

कोंकण प्रदेश अनेक बौद्ध, जैन एवं हिंदू धर्मों से संबंधित प्राचीन शैलकृत गुहा मंदिरों के लिए विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं, यथा कन्हेरी, काराद्वीप, जोगेश्वरी, मंडपेश्वर, मागाठन (Magathane), घारापुरी, एलिफैंटा, कोंडाणे आदि स्थानों के लयण (गुफायें) काफ़ी प्रसिद्ध हैं।

काराद्वीप (AS, p.172) आर्यशूर की जातकमाला के अगस्त्य-जातक में कारादीप का उल्लेख है. इस द्वीप की स्थिति दक्षिण समुद्र में बताई गई है. कारादीप का अभिज्ञान [p.173]: संदेहास्पद है. संभव है यह घारापुरी का वर्तमान एलिफेंटा द्वीप हो. घारापुरी नाम प्राचीन है और यह अनुमेय है कि कालांतर में मूल शब्द 'कारा' का रूपांतर घारा हो गया हो. पर एलिफेंटा दक्षिण समुद्र में न होकर पश्चिम समुद्र में स्थित है किंतु प्राचीन काल में उत्तर भारतियों की दृष्टि में दक्षिण और पश्चिम समुद्र में अधिक भेदभाव नहीं जान पड़ता. (देखें एलिफेंटा)

धरसेव (जिला उस्मानाबाद, महाराष्ट्र) (AS, p.463): धरसेव महाराष्ट्र राज्य के उस्मानाबाद नगर के पास स्थित है। धरसेव पर डाबरलेण, चमरलेण और लचंदरलेण नाम के प्राचीन जैन और वैष्णव गुफाएँ स्थित हैं, जिनका समय 500 ई. से 600 ई. तक माना गया है। 14 वीं शती की शमसुद्दीन की दरगाह भी यहाँ है।

भौगोलिक दृष्टि: भौगोलिक दृष्टि से इस भूभाग में 75 से 100 इंच तक वर्षा प्रति वर्ष होती है। समुद्र तटीय क्षेत्रों में नारियल के वृक्ष होते हैं और पश्चिमी घाट के ढाल वनों से आच्छादित है। इस प्रदेश में कोई बड़ी और महत्त्वपूर्ण नदी नहीं हैं। फिर भी यह क्षेत्र काफ़ी उपजाऊ है। धान, दाल, चारा, काफ़ी पैदा होती है।

संदर्भ: भारतकोश-कोंकण

कोंकण रेल्वे से यात्रा
कोंकण रेल्वे से यात्रा

कोंकण भू-भाग पर जब आप यात्रा कर रहे हों तो कोंकण रेल्वे के बारे में भी जानना चाहिए। कोंकण रेल्वे से यात्रा आपको भारत की सबसे शानदार यात्राओं का अनुभव कराती है। ‘तू किसी रेल सी गुजरती है... मैं किसी पुल सा थरथराता हूं...’ दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों को अगर आपको देश में किसी रेल यात्रा के दौरान महसूस करना हो तो आप कोंकण रेलवे की यात्रा पर निकल सकते हैं। महाराष्ट्र के रोहा से शुरू होकर कर्नाटक के ठोकुर तक जाने वाली ये लाइन भारतीय रेलवे के इतिहास में मील का पत्थर है।

कोंकण रेल्वे को आधुनिक भारत की अभियांत्रिकी की उत्कृष्ट कृति के रूप में देखा जाता है। कोंकण रेल्वे के ज़्यादातर स्टेशन शहरों से थोड़े दूर ही हैं, जिनकी तुलना में पुराने समय के स्टेशन्स आमतौर पर शहरों में ही स्थित हैं । कोंकण रेल्वे नाज़ुक पर्वतमालाओं, हरभरे वनों तथा कम ठोस और रेतीले रास्तों से गुजरती हुई जाती है। यहाँ पर विभिन्न नदियां बहती हैं जिन्हें पार करते हुए गुजरना पड़ता है। बरसात के मौसम में पश्चिमी घाट से बहने वाले झरनों का नज़ारा देखते ही बनता है। कोंकण रेल्वे की यात्रा के समय आपको अनेक झरनों की झलक मिलती है। ये झरने ज़्यादातर मौसमी होते हैं और बरसात के मौसम में बारिश पर निर्भर होते हैं। जैसे-जैसे ट्रेन सुरंगों से गुजरती हुई, नदियों को पार करती हुई संकीर्ण पटरियों से जाती है तो वहाँ के सारे नज़ारे देखने लायक होते हैं। ऐसा लगता है मानो सारी जिंदगी इसी ट्रेन में सफर करते रहें।

कोंकण रेल्वे के व्यापक भागों में हरियाली ही हरियाली फैली हुई है। सुरंगों के भीतर जाने और सुरंगों से बाहर निकलने में बहुत मजा आता है। बच्चे ते यह दुर्लभ और सुहाने अनुभव जिंदगी भर नहीं भूलते। कोंकण रेल्वे की यात्रा कोंकण तट का पूरा मजा लूट लेने की आपकी खुशी को दुगुना कर देती है और झरने तो जैसे सोने पे सुहागा।


गोवा से भोपाल यात्रा

21.12.2007: मड़गांव (गोवा) से भोपाल के लिए 15.40 बजे 2779 Goa Express से रवाना हुये. रास्ते में पड़ने वाले स्टेशन इस प्रकार हैं:

Margao (Goa) (15:40) → Kudchade (16:00) → Kulem (16:25) → Castle Rock (Karnataka) (17:35) → Londa (18:30) → Belagavi (19:45) → Ghataprabha (20:51) → Rayabag (21:22) → Kudachi (21:43) → Miraj (Maharashtra) (22:40) → Sangli (22:57) → Karad (23:55) → Satara (00:55) → Pune (04:15) → Ahmednagar (07:23) Belapur (08:29) → Kopargaon (09:14) → Manmad (10:30) → Jalgaon (12:23) → Bhusaval (12:55) → Khandwa (Madhya Pradesh) (14:57) → Harda (16:10) → Itarsi (17:35) → Bhopal (19:20)

Source - Facebook Post of Laxman Burdak Dated 24.4.20210

गोवा भ्रमण के चित्र