तेजाजी का हळसौतिया
ज्येष्ठ मास लग चुका है। ज्येष्ठ मास में ही ऋतु की प्रथम वर्षा हो चुकी है। ज्येष्ठ मास की वर्षा अत्यन्त शुभ है। गाँव के मुखिया को ‘हालोतिया’या
हळसौतिया करके बुवाई की शुरुआत करनी है। उस काल में परंपरा थी की वर्षात होने पर गण या कबीले के गणपति सर्वप्रथम खेत में हल जोतने की शुरुआत करता था, तत्पश्चात किसान हल जोतते थे। गणराज्यों के काल में
हलजोत्या की शुरुआत गणपति द्वारा किए जाने की व्यवस्था अति प्राचीन थी। ऐतिहासिक संदर्भों की खोज से पता चला कि उस जमाने में गणतन्त्र पद्धति के शासक सर्वप्रथम वर्षा होने पर हल जोतने का दस्तूर (
हळसौतिया) स्वयं किया करते थे तथा शासक वर्ग स्वयं के हाथ का कमाया खाता था। राजा
जनक के हल जोतने के ऐतिहासिक प्रमाण सर्वज्ञात हैं, क्योंकि सीता उनको हल जोतते समय
उमरा (सीता) में मिली थी इसीलिए नाम सीता पड़ा ।
बुद्ध के शासक पिता शुद्धोदन के पास काफी जमीन थी। शुद्धोदन तथा बुद्ध स्वयं हल जोता करते थे। बोद्ध काल में यह परंपरा
वप्रमंगल उत्सव कहलाता था जिसके अंतर्गत धान बोने के प्रथम दिन हर
शाक्य अपने हाथ से हल जोता करते थे।(आनंद श्रीकृष्ण:भगवान बुद्ध, समृद्ध भारत प्रकाशन, मुंबई, अक्टूबर 2005,
ISBN 80-88340-02-2, p. 2-3 [SUP]
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मुखिया
ताहड़ देव की पत्नी अपने छोटे पुत्र को, जिसका नाम तेजा है, खेतों में जाकर हळसौतिया का शगुन करने के लिए कहती है।
<dl><dd>गाज्यौ-गाज्यौ जेठ'र आषाढ़ कँवर तेजा रे ।</dd><dd>लगतो ही गाज्यौ रे सावण-भादवो ।।</dd><dd>सूतो कांई सुख भर नींद कुँवर तेजारे । </dd><dd>हल जोत्यो कर दे तूँ खाबड़ खेत में ॥
</dd></dl> जब तेजा कहता है कि यह काम तो हाली ही कर देगा, तब माता टोकती है कि-
<dl><dd>हाली का बीज्या निपजै मोठ ग्वार कुँवर तेजारे,</dd><dd>थारा तो बीज्योड़ा मोती निपजै॥
</dd></dl> माता समझाती है कि कहां रास, पिराणी, हल, हाल, जूड़ा, नेगड़-गांगाड़ा पड़ा है। तेजाजी माता से मालूम करते हैं कि मोठ, ग्वार, ज्वार, बाजरी किन किन खेतों में बीजना है तब माता कहती है –
<dl><dd>डेहरियां में बीजो थे मोठ ग्वार कुँवर तेजारे,</dd><dd>बाजरियो बीजो थे खाबड़ खेत मैं।
</dd></dl> माता का वचन मानकर तेजा पहर के तड़के उठते हैं। हल, बैल, बीजणा, पिराणी आदि लेकर खेत जाते हैं और
स्यावड़ माता का नाम लेकर बाजरा बीजना शुरू किया। दोपहर तक 12 बीघा की पूरी आवड़ी बीज डाली। तेजा को जोरों की भूख लग आई है। उसकी भाभी उसके लिए ‘छाक’ यानी भोजन लेकर आएगी। मगर कब? कितनी देर लगाएगी? सचमुच, भाभी बड़ी देर लगाने के बाद ‘छाक’ लेकर पहुँची है। तेजा का गुस्सा सातवें आसमान पर है। वह भाभी को खरी-खोटी सुनाने लगा है। तेजाजी ने कहा कि बैल रात से ही भूके हैं मैंने भी कुछ नहीं खाया है, भाभी इतनी देर कैसे लगादी। भाभी भी भाभी है। तेजाजी के गुस्से को झेल नहीं पाई और काम से भी पीड़ित थी सो पलट कर जवाब देती है,
<dl><dd>एक मन पीसना पीसने के पश्चात उसकी रोटियां बनाई, घोड़ी की खातिर दाना डाला, फिर बैलों के लिए चारा लाई और तेजाजी के लिए छाक लाई परन्तु छोटे बच्चे को झूले में रोता छोड़ कर आई, फिर भी तेजा को गुस्सा आये तो तुम्हारी जोरू जो पीहर में बैठी है, कुछ शर्म-लाज है, तो लिवा क्यों नहीं लाते?
</dd></dl> तेजा को भाभी की बात तीर-सी लगती है। वह रास पिराणी फैंकते हैं और ससुराल जाने की कसम खाते हैं। वह तत्क्षण अपनी पत्नी
पेमल को लिवाने अपनी ससुराल जाने को तैयार होता है और अगली सुबह ससुराल जाने की कसम खा बैठे-
<dl><dd>ऐ सम्हाळो थारी रास पुराणी भाभी म्हारा ओ </dd></dl> <dl><dd>अब म्हे तो प्रभात जास्यां सासरे </dd></dl> <dl><dd>हरिया-हरिया थे घास चरल्यो बैलां म्हारा ओ </dd></dl> <dl><dd>पाणिड़ो पीवो थे
गैण तळाव रो।</dd></dl>
संत श्री कान्हाराम ने लिखा है कि.... [पृष्ठ-215]: कुछ लोगों का मानना है कि
तेजाजी को अपनी शादी के बारे में पता नहीं था।
धौलिया तथा
काला वंशों में दुश्मनी जगजाहिर थी।
तेजाजी के पिता
ताहड़ देव की मृत्यु भी इसी दुश्मनी का परिणाम था। यह सभव नहीं लगता कि 29 वर्ष के राजकुमार
तेजाजी को इसका पता न हो। लाछा गुजरी के पति नंदू गुर्जर से पता चला कि
पेमल आपकी राह देख रही है और उन्होने अपनी माँ से साफ बता दिया है कि धौलिया को ब्याही हुई
पेमल अन्यत्र शादी नहीं करेगी तो तेजा अपने कर्तव्य पालन के लिए बैचैन हो गए। भाभी के बोल ने आग में घी का काम किया, यही जनमानस में ज्यादा प्रचलित रहा जो लोकगीतों में परिलक्षित होता है।
तेजाजी को ताना देने वाली भाभी कौन थी यह जानने के लिए काफी खोज-खबर की गई। पुराने जानकार लोगों का कहना है कि तेजाजी के इस भाई का नाम
बलराम था तथा भाभी का नाम
केलां था। खरनाल के धौलिया गोत्र के भाट भैरूराम की पोथी से इसकी पुष्टि नहीं होती है। भाट की पोथी में तेजाजी के भाईयों के नाम और भाभियाँ निम्नानुसार थे –
- 1. रूपजीत (रूपजी) ... पत्नी रतनाई (रतनी) खीचड़
- 2. रणजीत (रणजी)...पत्नी शेरां टांडी
- 3. गुण राज ....पत्नी रीतां भाम्भू
- 4. महेशजी ...पत्नी राजां बसवाणी
- 5. नागराज (नागजी)....पत्नी माया बटियासर
[पृष्ठ-216]: रूपजी की पीढ़ियाँ - .... 1 दोवड़सी 2 जससाराम 3 शेरा राम 4 अरसजी 5 सुवाराम 6 मेवा राम 7 हरपालजी
गैण तालाब - गैण तालाब खरनाल के
बाछुंड्या व
खाबड़ खेत से पूर्व दिशा में
नागौर-
अजमेर मुख्य सड़क से सटाकर पश्चिम में
मूंडवा और
इनाण गाँव के बीच में पड़ता है। जो खरनाल खाबड़ खेत से 12-15 किमी की दूरी पर स्थित है। इस तालाब के उत्तर पश्चिम कोण पर नरसिंह जी का मंदिर बना है। मंदिर में राधा-कृष्ण की मूर्तियाँ स्थापित हैं। तेजाजी के समय गैण तालाब प्रसिद्ध था। तेजाजी की गायें यहाँ पानी पिया करती थी। तेजाजी के पूर्वजों की यहाँ 12 कोश की आवड़ी (खेत) थी। आज भी यह गैण तालाब सुरक्शित है।
तेजा खेत से सीधे घर आते हैं और माँ से पूछते हैं कि मेरी शादी कहाँ और किसके साथ हुई। माँ को
खरनाल और
पनेर की दुश्मनी याद आई और बताती है कि शादी के कुछ ही समय बाद तुम्हारे पिता और पेमल के मामा में कहासुनी हो गयी और तलवार चल गई जिसमें
पेमल के मामा की मौत हो गयी। माँ बताती है कि तेजा तुम्हारा ससुराल
गढ़ पनेर में रायमलजी के घर है और पत्नी का नाम
पेमल है। सगाई दादा
बक्साजी ने पीला-पोतडा़ में ही करदी थी।
तेजा ससुराल जाने से पहले विदाई देने के लिये भाभी से पूछते हैं। भाभी कहती है - "देवरजी आप दुश्मनी धरती पर मत जाओ। आपका विवाह मेरी छोटी बहिन से करवा दूंगी। " तेजाजी ने दूसरे विवाह से इनकार कर दिया।